व्यंग्य____ / "समर्थन मूल्य"/ जय प्रकाश पाण्डेय
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सब तरह के किसान परेशान हैं। भूख हड़ताल कर रहे हैं, अपने हक की मांग के लिए हड्डी गलाने वाली ठंड में ठिठुर रहे हैं। उधर दिल्ली के बाहरी इलाके में हजारों किसान पचीस दिनों से कड़कड़ाती ठंड में डटे हुए हैं, और इधर आधा बीघा जमीन का पट्टा बनवाने के लिए लंगोटी लगाए एक किसान पटवारिन बाई के पचास दिन से चक्कर पे चक्कर लगाए जा रहा है। जब समय खराब आता है तो सब तरफ से वक्त परीक्षा लेता है किसान के पुराने पट्टे को चूहों ने कुतर दिया था, उसके घर में मंहगी संदूक होती तो चूहों की हिम्मत न होती, भूखे किसान के घर में कुछ नहीं मिला तो भूमि के पट्टे को खा गए,पता नहीं ऊपर का पन्ना कैसे छोड़ दिया,अब वो पन्ना देखकर पटवारिन कह रही है कि नई बनवाने के लिए एफआईआर दर्ज कराओ चूहों के खिलाफ।
भटकते भटकते जब पांव की बिवाईं फट के चिल्लाईं तो बात एक टुटपुंजिया पत्रकार तक पहुंच गई। पत्रकार अखबार का ऐजेंट था, दलाली भी करता था ,इस पार्टी से उस पार्टी में कूद फांद भी करता था। पत्रकार के पास किसान को लाया गया, किसान घबराया सा आया । पत्रकार टुटपुंजिया हो और दलाल भी हो तो किसी की भी लंगोटी बेच सकता है। पत्रकार ने पटवारिन से कहा कि कुछ खर्चा पानी लेकर उस बेचारे का पट्टा बना दो बहन। पटवारिन एक न मानी बोली- समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना तो लगेगा ही।
पत्रकार बोला - समर्थन मूल्य पर काम कर दो न सरकार। सरकार कहने पर पटवारिन आग बबूला हो गई बोली- जानते हो कि सरकार किसे बोला जाता है, बात का बतंगड़ बनते देख किसान गश्त खाकर गिर गया। पत्रकार ने स्थिति बिगड़ते देख पटवारिन से क्षमा मांगी बोला- मेडम आपको गलतफेहमी हो रही है, आप सरकार की प्रतिनिधि हैं और किसान की भूमि के पट्टे बनाने का आपका काम है, इसीलिए किसान की तरफ से निवेदन किया था। पटवारिन का पारा चढ़ गया था..... बोली- तुम कौन होते हो हमें हमारी ड्यूटी बताने वाले, किसान का काम है तो फिरी में थोड़े न होगा , हमारे ऊपर वाले साहबों ने हर काम के समर्थन मूल्य तय कर के रखे हैं, साहब के लघु हस्ताक्षर कराने में हमें ऐड़ी चोटी एक करनी पड़ती है और समर्थन मूल्य तुरंत देना पड़ता है । पास खड़ा एक पढ़ा - लिखा किसान बहुत देर से ये सब सुन रहा था , कहने लगा किसान का पट्टा बनाकर देना आपकी ड्यूटी है इसी बात के लिए तो सरकार आपको वेतन देती है, आज कम्प्यूटर का जमाना है हर काम आनलाइन होता है,ये बात अलग है कि आनलाइन में बैठे कर्मचारी बिना पैसे लिए काम नहीं करते , पैसे न दो तो सर्वर डाउन का बहाना बनाकर चक्कर लगवाते हैं । मेडम ये बताईए कि जब किसान की भूमि का हर काम कम्प्यूटराइज हो गया है तो ये पट्टा आप हाथ से क्यों बनाती हो, इसलिए न कि हर किसान को भूमि का पट्टा चाहिए और पट्टा बिना खर्चा पानी दिए बनेगा नहीं। ये बेचारा गरीब किसान महीने दो महीने से भटक रहा है, इसके पास पैसा नहीं है , ऐसे में ये क्या करे ? पटवारिन झट से बोल उठी कि कहीं से उधार भी तो ले सकता है, और यदि उधार नहीं मिलता तो जमीन रहन रखकर पैसा उठा सकता है। पट्टा बनवाना है तो खर्चा पानी तो लगेगा,हम बना भी देंगे तो हमारा साहब बिना पैसे लिए सील दस्तखत नहीं करेगा। पैसे के मामले में वो बड़ा हरामी है, गरीब हो अमीर हो सबसे निर्धारित समर्थन मूल्य के भाव से हमसे वसूल करता है। तो किसान दादा पहले पैसे का इंतजाम कर लो फिर हमारे पास आना...तुम्ही बताओ घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ? और दादा तुम्हारे पुराने पट्टे को चूहे भी तो खा गए हैं। पट्टा नहीं रहेगा तो कैसे पता चलेगा कि कि तुम्हारे पास जमीन जायदाद है और तुम अन्नदाता कहलाने के पात्र हो।
किसान के पास पटवारी को देने के लिए खर्चा पानी का कोई जुगाड़ नहीं दिखा, इसलिए पत्रकार और वहां जुड़ गए पढ़े-लिखे किसानों ने तय किया कि जो किसान पटवारी और तहसीलदार से परेशान हैं, वे आमरण अनशन पर बैठेंगे और सरकार से मांग करेंगे कि अब हर किसान को हाथ से बने भूमि के पट्टे से मुक्ति मिलनी चाहिए। किसान को कम्प्यूटराइज पट्टा निशुल्क दिया जाना चाहिए, तभी से किसानों का आंदोलन चल रहा है , फर्क इतना है कि वो किसान कोरोना से मर चुका है जिसके पुराने पट्टे को चूहों ने कुतर दिया था।
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जय प्रकाश पाण्डेय