बुधवार, 7 सितंबर 2016

खंडहर में भटकते राजकुमार और राजकुमारी की कहानी



  27 जनवरी 2016


खंडहर में कैद एक राजकुमार और एक राजकुमारी

प्रस्तुति- अमन कुमार अमन

दिल्‍ली के सरदार पटेल मार्ग स्थित रिज में पहाडी पर स्थित है एक महल, जहां जाने की इजाजत किसी को नहीं है । उस महल तक पहुंचने के एक मात्र रास्‍ते पर लगा है लोहे का ग्रिल, जिस पर हल्की-सी आहट होते ही कई कुत्‍ते भौंकना  शुरु कर देते हैं । चारों ओर कंटीली तार के बाड़े से घिरे उस महल के प्रवेश द्वार पर लगे पत्थर पर लिखा है, 'रूलर्स ऑफ अवध: 'प्रिंसेस विलायत महल'...
जी हां, आपको आश्चर्य होगा, लेकिन नवाब वाजिद अली शाह के वंश की आखिरी निशानी अवध के राजकुमार रियाज व राजकुमारी सकीना दशकों से दिल्‍ली के सरदार पटेल मार्ग के रिज एरिया में स्थित मालचा महल में रह रहे हैं। मालचा महल को बिस्‍तदारी महल भी कहा जाता है। यह उनका एक ऐसा द्वीप है, जहां बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं । पास ही स्थित इसरो के केंद्र से उन्‍हें पानी तो मिल जाता है, लेकिन उनके खाने का इंतजाम... आज भी एक रहस्य जैसा ही है...
नवाब वाजिद अली शाह के वंशज हैं रियाज व सकीना
औपनिवेशिक शासक काल का अवध, आज का लखनऊ है । अवध के आखिरी शासक नवाब वाजिद अली शाह काफी रंगीन मिजाज बादशाह थे। उनके हरम में कई रानियां थी, लेकिन उनकी सबसे चहेती रानी का नाम हजरत महल था । वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने 1856 में कलकत्‍ता में नज़रबंद कर दिया था । उस दौरान हजरत महल ने लखनऊ की सत्‍ता पाने की काफी कोशिश की थी । उन्होंने अंग्रेजों को अपने नाबालिग बेटे बिरजिस कदर को गद्दी सौंपने को कहा था । हजरत महल के अनुरोध को अंग्रेजों ने ठुकरा दिया था । बिरजिस के जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा था । इसलिए हजरत महल अपने बेटे बिरजिस कदर के साथ छिपते-छिपाते नेपाल भाग गई । बाद में वह कभी हिंदुस्‍तान नहीं लौट सकी । मां-बेटे की मौत नेपाल में ही हो गई । वाजिद अली शाह के अन्‍य बेगम व उनके बच्‍चे बच्चे बच गए थे, जिसमें से एक बेटे की शादी बेगम विलायत महल से हुई थी । रियाज व सकीना इसी विलायत महल के बच्‍चे हैं ।
विलायत महल, रियाज और सकीना
अपना गुजारा चलाने के लिए विलायत महल के पति सरकारी मुलाजिम बन गए । पति की मौत के बाद विलायत महल ने अंग्रेजों से लखनऊ की रियासत में हिस्‍सेदारी मांगी, लेकिन अंग्रेजों ने उन्‍हें मना कर दिया । सन 1947 में देश आजाद हो गया । आजाद भारत के गृहमंत्री सरदार वल्‍लभ भाई पटेल की कोशिशों से देश की 565 रियासतों का भारत गणराज्‍य में विलय हो गया ।  लेकिन रियासतों के राजा, रानी, नवाब आदि को अंग्रेजी शासन काल की ही तरह पेंशन की सुविधा मिलती रही । बेगम विलायत महल को 500 रुपए प्रति माह पेंशन मिलता था । मालचा महल में रहने वाले राजकुमार रियाज व व राजकुमारी सकीना इसी विलायत महल के बच्चे हैं।
पेंशन खत्‍म होने पर, नई दिल्‍ली स्‍टेशन पर डाला डेरा
जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तो उन्‍होंने सारे राजे-महाराजे की पेंशन सहित सभी तरह की सुविधाएं समाप्‍त कर दीं । जो राजे-महाराजे शक्तिशाली थे वे राजनीति के मैदान में उतर पड़े और जो कमजोर थे उनकी दशा दयनीय हो गई । विलायत महल के दो छोटे बच्‍चे थे और वह मजबूत भी नहीं थी इसलिए उनके साथ संकट उत्‍पन्‍न हो गया । कोई उपाय न देखकर विलायत महल ने सन 1975 में अपने दोनों बच्‍चे रियाज व सकीना सहित , 12 कुत्‍तों और और पांच नौकरों के साथ लखनऊ से दिल्‍ली की ओर रुख किया और यहां के नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन के एक प्‍लेटफॉर्म पर डेरा डाल दिया । बाद में वह अपने कुनबे के साथ प्‍लेटफॉर्म से उठकर वीआईपी वेटिंग लांज पहुंची और वहां कब्‍जा कर लिया।
विलायत महल अपने कुनबे के साथ नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन पर करीब नौ वर्ष तक रहीं, जिसमें से लगातार तीन वर्ष धरना देकर अपने अपने अधिकार की मांग करती रहीं । उनके धरने की खबर तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कानों तक पहुंची । जिस वर्ष इंदिरा गांधी की हत्‍या हुई उसी वर्ष इंदिरा गांधी विलायत महल व उनके बच्‍चों के हालात का जायजा लेने नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन पहुंची ।  इंदिरा गांधी को देखते ही विलायत महल फट पड़ी । किसी तरह उन्‍हें शांत किया गया । इंदिरा गांधी ने उन्‍हें कहीं और रहने के लिए ठिकाना उपलब्‍ध कराने का वचन दिया । विलायत महल की मांग थी कि उन्हें रहने के लिए ऐसी जगह मुहैया कराई जाए, जहां आम आदमी उनकी जिंदगी में ताक-झांक न कर सके । जगह की तलाश खत्म हुई सरदार पटेल मार्ग स्थित सेंट्रल रिज एरिया में।
सेंट्रल रिज एरिया में मालचा महल स्थित है, जो ऊंची पहाड़ी पर तो स्थित है ही, जंगल से भी घिरा है ।  यह एक अनजान स्‍मारक है, जहां के बारे में आज भी दिल्‍ली के अधिकांश निवासी नहीं जानते हैं । जानकारी के मुताबिक इंदिरा गांधी की मौत के बाद वर्ष 1985 में उनके बेटे व तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विलायत महल को मालचा महल में रहने के लिए स्‍वीकृति पत्र प्रदान किया था, जिसमें उन्हें नवाब वाजिद अली शाह का वंशज बताया गया था।
मालचा महल में विलायत महल ने की थी आत्‍महत्‍या
करीब 700 वर्ष पुराने लाल-भूरे पत्‍थर से निर्मित मालचा महल को फिरोजशाह तुगलक के शिकारगाह के रूप में जाना जाता है । इस महल में 20 दरवाजे हैं, जिसकी वजह से इसे 'बिस्‍तदरी महल'  भी कहा जाता है ।  लेकिन इसके एक भी दरवाजे पर किवाड़ नहीं लगा है । 10 सितंबर 1993 में दोपहर 2.40 बजे बेगम विलायत महल ने आत्‍महत्‍यार कर ली थी। कहा जाता है कि वह अपने जीवन के अकेलेपन से ऊब गई थी और अपने हीरे की अंगूठी को तोड़कर खा लिया था, जिससे उनकी मौत हो गई । मां की मौत के बाद से रियाज व सकीना बिल्‍कुल अकेले हैं।
वर्तमान में राजकुमार व राजकुमारी की दुनिया
राजकुमार रियाज व राजकुमारी सकीना की उम्र 50 वर्ष से अधिक है । बाहरी दुनिया से दोनों का कोई संपर्क नहीं है । मालचा महल में न तो बिजली कनेशन है और न ही पानी की पाइप लाइन, लेकिन एमटीएनएल का टेलीफोन कनेक्‍शन उन्होंने जरूर ले रखा है । एमटीएनएल के लाइन मैन महेन्द्र के अनुसार, दोनों की दुनिया बड़ी रहस्यमयी है । फोन खराब हो जाए तो फोन को बाड़े के अंदर से ही सरका देते हैं, लेकिन हमें अंदर नहीं आने देते । उनकी हालत खास्‍ता है । ढंग के कपड़े भी उनके शरीर पर नहीं होता, लेकिन राजकुमार के पास रिवाल्‍वर जरूर है । उसके पास एक टूटी साइकिल भी है । वह खुद के लिए राशन लाने और अपने कुत्‍तों के लिए मीट लाने के लिए लुंगी व शर्ट पहने बाहर निकलता है और किसी द्वारा कुछ पूछने की कोशिश करने पर रिवाल्‍वर तान देता है । गेट पर आहट होते ही उसके कुत्‍ते भौंकने लगते हैं । अब तो कुत्‍ते भी शायद एक या दो ही बचे हैं । राजकुमार रियाज की अंग्रेजी बहुत अच्‍छी है । उसने विदेश से पढ़ाई की है।
आज भी बरकरार है अकड़ 
मालचा महल के पास ही अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र(इसरो) का दफ्तर है । इसरो दफ्तर की दीवार के पास और बाड़े के अंदर एक पानी की टंकी लगी है । इसरो से एक पानी की पाइप लाइन निकली है, जो उस टंकी से जुड़ी है । इसरो के एक कर्मचारी ने बताया कि दिन में एक बार टंकी भर देते हैं । राजकुमार बाल्‍टी से उससे पानी निकाल-निकाल कर पानी अंदर ले जाता है। आज भी रियाज की अकड़ पहले वाले राजकुमार की तरह है । वह हिंदी की बजाय फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करना पसंद करता है । वह चाहता है कि लोग उससे 'हुजूर' कह कर बोलें और अदब से पेश आएं । राजकुमारी भी अकड़ में रहती है, लेकिन वह कभी बाहर नहीं निकलती ।

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

जियो ,मगर जीने नहीं दूंगा



जियो के चक्कर में 

 

jio not free
रिलायंस जीओ के लांच के बाद अब तक बाकी ऑपरेटर सदने से उबर नहीं पाए हैं. लेकिन जानकार अभी भी कई सवाल उठा  रहे हैं. इन सवालों का जवाब जब तक नहीं मिलता तबतक ये कहपाना मुश्किल होगा कि रिलायंस जियो की तरफ जाने से आपका महीने का मोबाइल का बिल कम होगा या बढ़ेगा. जानकारों का कहना है कि अभी दावे से नहीं कहा जा सकता कि रिलायंस दूसरे ऑपरेटर के मुकाबले महंगा पड़ने वाला है या सस्ता. ये कुछ सवाल रिलायंस के मामले में सबसे अहम हैं..
  1. रिलायंस का कॉल 4 जी डाटा के ज़रिये किया गया हाई क्वालिटी इंटरनेट कॉल होगा न कि जीएसएम कॉल. ऐसे कॉल करने पर आपको डाटा खर्च करना होगा अब तक वाट्सएप या दूसरे जरियों से की गई ऐसी कॉल आम कॉल के मुकाबले काफी महंगी पड़ती है. कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि बात करने के लिए मुफ्त कॉल के नाम पर रिलायंस डाटा का बिल बनाता रहे और आप मुफ्त समझते रहें. मीडिया का एक हिस्सा कह रहा है कि कॉल में खर्च होने वाला डाटा बिल में जोड़ा नहीं जाएगा. लेकिन दूसरा हिस्सा कह रहा है कि ऐसा नहीं है.
  2. 4 जी डाटा की खपत आम तौर पर 2 जी और 3 जी से कहीं ज्यादा होती है. सच तो ये हैं कि 4 जी के इस्तेमाल से डाटा की खपत काफी ज्यादा ब़ढ़ जाती है. कई ऐसे फंक्शन भी 4 जी में काम करने लगते हैं जो कि 3 जी कनेक्शन में सिर्फ वाई फाई पर ऑन होते हों . इन फंक्शन्स में है गूगल प्ले ऑटोमेटिक डाउन लोड और सिस्टम अपडेट बगैरह. रफ्तार से काम करने के कारण भी लोग 4 जी में कम समय में ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं जो अंत में जेब पर भारी पड़ती है.
  3. इसमें कोई सच नहीं कि रिलायंस का 4 जी डाटा बेहद सस्ता है लेकिन जब इन जरियों से ज्याद खपत होने लगेगी तो ये पता करना मुश्किल होगा कि जियो महंगा पड़ा या सस्ता. खास तौर पर 500 रुपये महीने से कम के मोबाइल बिल वाले लोग हो सकता है बड़े झटके के शिकार हों .
जानकार सलाह दे रहे हैं कि कुछ दिन टिककर जियो के बिल पर पड़ने वाले असर का अध्ययन कर लिया जाए तभी कोई बड़ा फैलला लिया जाए. इसलिए मुफ्त की सेवा के खत्म होने का इंतज़ार करें. देखें जियो कितनी ज़िंदगी देता है. इस बीच दूसरी मोबाइल कंपनियों का प्राइज़वार में अभी कूदना बाकी है. उनके नये टैरिफ प्लान आने के बाद भी तस्वीर और साफ होगी. तबतक आप मुफ्त सेवा का मज़ा लेते रहें और दिसंबर तक तस्वीर साफ होने का इँतज़ार करें

सोमवार, 5 सितंबर 2016

चीनी सरकार की उपेक्षा के शिकार बने ओबामा






प्रस्तुति- स्वामी शरण


शनिवार तीन सितम्बर 2016 दोपहर को जब अमेरिकी वायुसेना का विमान हांगझाउ में उतरने वाला था, उससे पहले ही अमेरिकी और चीनी अधिकारी एक तात्कालिक मुद्दे पर लंबी और गर्मागर्म बहस में उलझे हुए थे-राष्ट्रपति ओबामा विमान से कैसे उतरेंगे? जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने चीन पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन पर चीन ने जिस तरह आचरण किया, उसे देखकर कहा जाने लगा कि चीन ने बराक ओबामा का अनादर किया है। चीन के रवैये से परिचित अमेरिकी अधिकारी और राजनयिक कहते हैं कि वास्तविकता सरल और जटिल, दोनों है।
अमेरिकी सेना ने एक रोलिंग एयर स्टेयर लगाया था, जैसा कि ओबामा की सभी विदेश यात्राओं में होता है। ह्वाइट हाउस ने चीन से इस उपकरण के प्रयोग की मंजूरी ले ली थी, लेकिन ओबामा के चीन पहुंचने से पहले एक वरिष्ठ प्रशासनिक पदाधिकारी ने बताया कि बीजिंग ने अचानक अपना फैसला पलट दिया है। उस अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी चीनी सीढ़ियों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार थे, लेकिन चीनी अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि सीढ़ियों को एक स्थानीय ड्राइवर लेकर जाएगा, जो ह्वाइट हाउस की टीम के साथ बातचीत भी नहीं कर सकता था। इसलिए ह्वाइट हाउस ने मांग की कि उसकी जगह पर एक अंग्रेजीभाषी ड्राइवर को तैनात किया जाए, जिसे चीनी अधिकारियों ने ठुकरा दिया।

जैसे ही अमेरिकी वायुसेना का विमान एयरफोर्स वन उतरा, चीनी अधिकारी नरम पड़ गए और उन्होंने अमरेकी अधिकारियों से कहा कि वे अपनी सीढ़ियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन तब अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि अब इसके लिए समय नहीं है, इसलिए ह्वाइट हाउस ने मुख्यद्वार को छोड़कर विमान के तल में बने निकास द्वार के उपयोग का फैसला किया, जो फोल्डिंग सीढ़ियों से लैस था। ओबामा आम तौर पर उस द्वार का इस्तेमाल तभी करते हैं, जब एयरफोर्स वन अफगानिस्तान जैसी सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील जगहों पर उतरता है। इस फैसले के कारण राष्ट्रपति ओबामा मुख्य द्वार से लाल कालीन तक लगी भव्य सजावट वाली सीढ़ियों से उतरने से वंचित रह गए। हालांकि वहां कालीन बिछी थी, लेकिन वह राष्ट्रपति ओबामा के लायक नहीं थी।

चीनी अधिकारियों ने राष्ट्रपति ओबामा के आगमन को रिकॉर्ड करना चाहा, तो ह्वाइट हाउस प्रेस के अधिकारियों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इस तरह राष्ट्रपति ओबामा का चीन में आगमन अराजकता की भेंट चढ़ गया। यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुसैन ई. राइस को भी चीनी सुरक्षा अधिकारियों द्वारा परेशान किया गया। सुरक्षा और ओबामा की यात्रा को लेकर चीनी एवं अमेरिकी अधिकारियों के बीच विवाद नवंबर, 2009 से उनके हर दौरे की विशेषता बन गई है। कुछ लोगों का मानना है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सीढ़ियों को लेकर अमेरिकी अनुरोध को खारिज करने के लिए आदेश जारी किया, यह गतिरोध एक तरह से राष्ट्रीय गौरव और अमेरिका को चुनौती देने का प्रतीक है, जो शी जिनपिंग के काल में गहरा हुआ है। चीन में मैक्सिको के पूर्व राजदूत जॉर्ज गुआजार्दो कहते हैं कि यह चीन की राष्ट्रवादी संस्कृति का हिस्सा है, जिसे जिनपिंग ने हर स्तर पर लागू किया है। 'अमेरिका नहीं बता सकता कि हमें क्या करना चाहिए।'

गुआजार्दो बताते हैं कि उन्हें भी एक बार चीन की इस चरम मांग का सामना करना पड़ा था, जब वह वर्ष 2012 में मैक्सिको में हुए जी-20 समूह के शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी अधिकारियों के साथ काम कर रहे थे। उन्होंने बताया कि ड्राइवर वाली सीढ़ी का मुद्दा चीन की उस मुद्रा को दर्शाता है, जिसे लेकर चीन के लोग गौरव का अनुभव करते हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं।

प्रशासनिक अधिकारियों में इस बात को लेकर विवाद है कि सीढ़ी वाली घटना ओबामा को अपमानित करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है। उनके मुताबिक, इस घटना से यह साफ होता है कि चीन किस तरह जी-20 समूह शिखर सम्मेलन (जिसमें दर्जनों विश्व नेता हिस्सा लेते हैं) की मेजबानी करता है।

चीनी अधिकारियों ने शिखर सम्मेलन से पहले एक करोड़ की आबादी वाले झांगहाउ शहर के काफी हिस्से को खाली करा दिया था। इसके लिए यहां के निवासियों को भुगतान किया गया। अधिकारियों ने बताया कि हांगझाउ एक प्रांतीय राजधानी है, इसलिए इसे विशिष्ट अतिथियों की मेजबानी का कोई अनुभव नहीं है, जैसा कि बीजिंग या यहां तक कि शंघाई को है।

दुर्गा पूजा का त्योहार पर मनाही





प्रस्तुति-  नीतिन दीपाली  पाराशर


कोलकता। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का त्योहार बडी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन एक तरफ बंगाल में ऐसा गांव भी हैं जहां हिन्दू दुर्गा पूजा का त्योहार आयोजित करने की मनाही है। खबरों के मुताबिक कोलकाता से 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वीरभूमि जिले के नलहाटी गांव में हिन्दुओं को दुर्गा पूजा करने की मनाही है। 
इस मुद्दे पर मिली खबरों के अनुसार स्थानीय लोगों ने कई बार दुर्गा पूजा के आयोजन की अनुमति मांगी लेकिन अज्ञात कारणों से हर बार उनकी अपील को ठुकरा दिया गया। एक रिपोर्ट के अनुसार गांव में रहने वाले मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं को दुर्गा पूजा का आयोजन नहीं करने देने के लिए दबाव बनाया है। गांव के लोगों ने चैनल पर इस बात को कहा है। ,
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि अगर हिंदुओं को दुर्गा पूजा के आयोजन की अनुमति दी गई तो गांव में सांप्रदायिक तनाव फैल जाएगा। खबरों के मुताबिक  स्थानीय मुस्लिम समुदाय का कहना है कि अगर दुर्गा पूजा की अनुमति दी गई तो उन्हें भी गौ हत्या की इजाजत चाहिए।

शनिवार, 3 सितंबर 2016

क्यों रुक नहीं रहीं किसानों की आत्महत्याएँ











विदर्भ
विदर्भ में पिछले 16 महीनों में 1000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कर्ज़ में डूबे चार और किसानों ने आत्महत्या कर ली है और इसी के साथ इस क्षेत्र में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 1000 हो गई है.
आत्महत्याओं का यह ताज़ा मामला ऐसे समय में सामने आया है जब पूरा देश दिवाली का पर्व मना रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक पिछले वर्ष जून से लेकर अभी तक 1000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
जानकारों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं के सामने आने की एक वजह यह भी है कि राज्य सरकार इन किसानों से कपास खरीदने में देर कर रही है.
उधर किसानों ने भी माँग की है कि सरकार को उनसे जल्द ही फसल ख़रीद लेनी चाहिए और उसके बदले में उन्हें उचित दाम दिया जाना चाहिए.
किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनसे तुरंत कपास नहीं ख़रीदती है तो स्थितियाँ और भी बदतर हो सकती हैं.
ग़ौरतलब है कि यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर कपास की खेती के लिए जाना जाता है पर पिछले 16 महीनों से यहाँ किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं.
चिंता
किसानों की आत्महत्याओं से संबंधित विवरण अपने पास रखने वाले किशोर तिवारी बताते हैं कि इस बार फसल के समय की स्थितियाँ पिछले वर्ष की तुलना में और ज़्यादा चिंताजनक हैं.
 अभी फसल का समय ख़त्म भी नहीं हुआ है और मरने वालों की तादाद 464 हो चुकी है. पिछले वर्ष फसल के समय में केवल 77 किसानों ने आत्महत्या की थी
किशोर तिवारी
वो बताते हैं, "अभी फसल का समय ख़त्म भी नहीं हुआ है और मरने वालों की तादाद 464 हो चुकी है. पिछले वर्ष फसल के समय में केवल 77 किसानों ने आत्महत्या की थी."
तिवारी बताते हैं कि सरकारी ख़रीद केंद्र अभी तक बंद हैं और इस वजह से किसान अपनी फसल कम दामों पर बिचौलियों के हाथों बेचने के लिए मजबूर हैं.
कपास के लिए मौजूदा दाम 20,000 रूपए प्रति क्विंटल है. किसानों का कहना है कि इसे बढ़ाकर 27,000 रूपए प्रति क्विंटल किया जाना चाहिए.
ग़ौरतलब है कि लगभग 32 लाख की आबादी वाले इस क्षेत्र में 90 प्रतिशत ग्रामीण कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं.

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महेन्द्र सिंह टिकैत





 

मंगलवार, 01 अप्रैल, 2008 को 17:36 GMT तक के समाचार

टिकैत की गिरफ़्तारी के प्रयास तेज़

महेंद्र सिंह टिकैत (फ़ाइल फ़ोटो)
इलाक़े के किसान महेंद्र सिंह की गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे हैं
उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की गिरफ़्तारी के लिए दबाव बढ़ा दिया है.
इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने टिकैत के सिसौली गाँव से अविलंब पुलिस बल वापस बुलाने की माँग की है.
भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख और वरिष्ठ किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत पर आरोप है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के लिए जातिसूचक टिप्पणियों का इस्तेमाल किया.
महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिरासत में ले लिया है, लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत के नज़दीकी सूत्रों ने बताया है कि वे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे.
उत्तर प्रदेश के मुख्य गृह सचिव जेएन चंबर ने लखनऊ में पत्रकारों को बताया कि मुजफ़्फ़रनगर स्थित उनके गाँव सिसौली में उनकी गिरफ़्तारी के लिए अतिरिक्त अर्धसैनिक बल भेजे जा रहे हैं.
मुख्य गृह सचिव ने बताया कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का एक दल एक विशेष विमान से उनकी गिरफ़्तारी को शांतिपूर्ण तरीक़े से अंजाम देने के लिए मुज़फ्फ़रनगर पहुँच गया है.
तनाव
स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि सिसौली में टिकैत के घर को चारों तरफ़ से घेर लिया गया है और वहाँ काफ़ी तनाव है क्योंकि गाँव के लोग उनकी गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे हैं.
पुलिस पिछले दो दिनों से उनकी गिरफ़्तारी की कोशिश कर रही है, पुलिस को सोमवार को पीछे हटना पड़ा था कि क्योंकि पथराव और पुलिस फायरिंग में कई लोग घायल हो गए थे.
पुलिस ने टिकैत उनके चार बेटों और 14 अन्य लोगों के ख़िलाफ़ जातिवादी टिप्पणी के लिए आपराधिक मामला दर्ज किया है.
बताया जा रहा है कि मायावती टिकैत की कथित टिप्पणी से आहत हैं और उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों की खिंचाई की है कि वे अब तक टिकैत को गिरफ़्तार नहीं कर सके हैं.
राजनीतिक दाँव-पेंच
दूसरी ओर विपक्षी पार्टियाँ खुलेआम टिकैत के समर्थन में आ गई हैं और उनका कहना है कि सरकार बेकार के मुद्दे को बढ़ावा दे रही है.
मुख्यमंत्री मायावती जाटव समुदाय से हैं जिसकी गिनती कथित तौर पर निचली जाति के रुप में होती है जबकि टिकैत जाट समुदाय से आते हैं.
यो दोनों समुदाय राजनीतिक बिसात पर भी बँटे हुए हैं. जहाँ जाटव बसपा समर्थक माने जाते हैं, वहीं जाट विरोधी खेमे के समर्थक माने जाते हैं.
प्रेक्षकों का कहना है कि मुख्यमंत्री मायावती टिकैत के ख़िलाफ़ बेहद कड़ा रूख़ अपना रही हैं ताकि पिछड़ी और दलित जातियों में पैठ को और मज़बूत किया जा सके.
लेकिन ये रणनीतिक चूक भी साबित हो सकती है क्योंकि टिकैत इस देश के चर्चित किसान नेता हैं और उनकी भारतीय किसान यूनियन की शाखाएँ कई इलाक़ों में फ़ैली हुई हैं.

विदर्भ मरने को मजबूर किसान
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है.


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