रविवार, 16 अक्तूबर 2011

लिव इन रिलेशन – महिलाओं के लिए घाटे का सौदा


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आधुनिकता की भेंट चढ़ता भारतीय समाज, पाश्चात्य देशों  की देखा-देखी नए-नए नियमों और व्यवस्थाओं को अपने में शामिल करने की ज़िद करने लगा है. वैश्वीकरण , जहां एक ओर भारत जैसे अल्प-विकसित देशोंकी अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसके कई गंभीर परिणाम भी समय के साथ सामने आते रहे हैं, जिन्हें न तो नकारा जा सकता है और न ही नजरंदाज किया जा सकता है.
भारत के संदर्भ में बात की जाए तो यह वह राष्ट्र है जो प्रारंभिक काल से ही अपनी परंपराओं और संस्कृति की मजबूती के आधार पर विश्व पटल पर अपनी खास पहचान बनाए हुए है. संबंधों का भारतीय समाज में खास महत्व रहा है और अगर यह कहा जाए कि यही पारस्परिक संबंध इसकी मौलिक पहचान हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि जबसे वैश्वीकरण, उदारीकरण जैसी नीतियों के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में आगमन हुआ है, हमारा मूलभूत सामाजिक ढांचा इससे काफी हद तक नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है. विदेशों में तो हमेशा से ही आपसी और पारिवारिक रिश्तों का महत्व न्यूनतम रहा है, जिसके कारण वहां संबंधों का टूटना-बिखरना एक आम बात है, वहीं अब भारत में भी रिश्तों का औचित्य खोने लगा है और व्यक्तिगत हित  के सामने आपसी रिश्तों का कद दिनोंदिन बौना होता जा रहा है. जिसका नवीनतम उदाहरण है बिना शादी किए साथ रहने की अवधारणा, जो महानगरों में बढ़ता जा रहा है, जिसे हम लिव–इन-रिलशनशिप के नाम से अधिक जानते हैं. इसके अंतर्गत महिला और पुरुष साथ रहते हुए अपने खर्चों  को साझा रखते हैं. जैसे घर का किराया, खाना-पीना इत्यादि.
आर्थिक तौर पर देखा जाए तो आज महिलाएं भी पुरुषों की ही तरह सक्षम और सशक्त हैं, इसके अलावा महिला हो या पुरुष दोनों बेहतर कॅरियर विकल्प या आजीविका के लिए एक शहर से दूसरे शहर जाने से भी नहीं हिचकिचाते, तो बढ़ती महंगाई के चलते साझेदारी ही एक अच्छा विकल्प रह जाता है और व्यय का उचित बंटवारा दोनों में से किसी को भी बोझ नहीं लगता.
लेकिन हमारा समाज जो रुढ़िवादी होने के साथ-साथ परंपरावादी भी है, ऐसे किसी भी रिश्ते को जायज नहीं ठहराता जो महिला या पुरुष को शादी से पहले साथ रहने की इजाजत दें. और अगर ऐसे संबंधों के प्रभावों की चर्चा की जाए तो यह साफ हो जाता है कि लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे रिश्ते खासतौर पर महिलाओं के लिए घाटे का सौदा साबित होते हैं.
गौरतलब है कि ऐसे रिश्तों को न तो कानून का कोई विशेष संरक्षण प्राप्त है और न ही समाज का, इसके उलट हमारा समाज तो ऐसे रिश्ते और इनका निर्वाह कर रहे लोगों को गलत नज़रों से देखता है. हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि महिलाएं आज भी सामाजिक रूप से कई बंधनों और सीमाओं में जकड़ी हुई हैं. और बिना शादी किए साथ रहना उनके लिए एक अपराध माना जाता है. सामाजिक दायरों और सीमाओं की बात छोड़ भी दी जाए तो वैयक्तिक दृष्टिकोण से भी इसके कई दुष्प्रभाव हैं.
जिन संबंधों को पारिवारिक और सामाजिक तौर पर मान्यता न मिले, यह अक्सर देखा गया है कि ऐसे संबंध स्थायी नहीं होने पाते. और इनके टूटने का खामियाज़ा केवल महिलाओं को ही भुगतना पड़ता हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि एक तो महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक संवेदनशील होती हैं, और दूसरा ऐसी महिला जो बगैर शादी किए किसी पुरुष के साथ रहे उसे हमारा परंपरावादी समाज जो केवल विवाह जैसी संस्था को अपनाने के बाद ही इसकी इजाजत देता है, उसे हमेशा गलत नज़रों से देखता है और उसे वह सम्मान भी नहीं मिल पाता जिसकी वह अपेक्षा रखती है. यह मानसिक तौर पर तो उसे आघात पहुंचाता ही है, उसके चरित्र पर उठ रहीं अंगुलियां भी उसे जीने नहीं देतीं.
यद्यपि महाराष्ट्र सरकार द्वारा लिव-इन-रिलेशनशिप  को कानून बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया है, लेकिन उसमें भी कई पेंच हैं, जैसे कि एक निर्धारित समय तक साथ रहने के पश्चात ही किसी महिला-पुरुष को पति-पत्नि माना जाएगा, और उनके अलग होने के बाद महिला को उचित मुआवज़ा और सम्मान दिया जाएगा. और इस बीच अगर संतानोत्पत्ति हो तो उसे जायज ठहराते हुए उचित अधिकार दिया जाएगा.
लेकिन इस बात का ज़िक्र कहीं नहीं किया गया कि उस निर्धारित समय सीमा से पहले ही अगर वह अविवाहित युगल अलग हो जाएं तो महिला और उसकी संतान के हितों की रक्षा के लिए क्या प्रावधान हैं?
बढ़ती भौतिकतावादी मानसिकता के कारण लिव-इन- रिलेशनशिप का चलन बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण जिम्मेदारियों से जुड़े रिश्ते जैसे विवाह और परिवार की पारम्परिक मान्यताएं टूट रही हैं.
पुरुष ही नहीं, कई ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने कॅरियर को प्राथमिकता देते हुए शादी जैसी बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से बचना चाहती हैं, लेकिन ऐसे में उन महिलाओं के हितों को नहीं नकारा जा सकता जो किसी बहकावे में आकर ऐसे झूठे रिश्तों की भेंट चढ़ जाती हैं. साथ ही इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि ऐसे रिश्तों की बढ़ती लोकप्रियता का बुरा असर खासतौर से हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है, और यदि कानून द्वारा लिव-इन-रिलेशन जैसे रिश्तों को मान्यता मिल गई तो यह हमारी संस्कृति और परंपराओं को नष्ट करते हुए, संभवत: हमारे समाज पर भी गहरा आघात करेंगे.

जग बौराना: लिव इन रिलेशन के सदके


Posted by K M Mishra on अक्टूबर 27, 2010
लेखक: श्री नरेश मिश्र
साधो, सुप्रीम कोर्ट में नारी शक्ति की बिजली चमकी । हमारी आंखें डर के मारे बन्द हो गयीं । गनीमत हुयी कि हम अंधे नहीं हुये । आंखों की रोशनी चली जाती तो हम बुढ़ापे में ठोकर खाते । हमें कौन सहारा देता । हमारी नारी बेचारी तो हमारा साथ छोड़कर अल्ला मियां को प्यारी हो गयी । वह सचमुच बेचारी थी । उसने हमारे जैसे बेपरवाह, गरीब, कलमकार के साथ लड़ते झगड़ते, रूठते मनाते जिन्दगी के पचास बरस गुजार दिये । पता नहीं किस पोंगा पण्डित ने उसके जेहन में यह जहर भर दिया था कि पति को फैशन के मुताबिक हर रोज बदला नहीं जा सकता है । पति का चीर एक बार पहना तो उसे मरने तक उतारने की मनाही है ।
साधो, हमारे मुल्क में करोड़ों ऐसी अन्धविश्वासी, गयी गुजरी, गलीज दिमाग औरतें हैं जो एक ही मर्द के साथ सारी जिंदगी गुजार देती हैं । लगता है इस मुल्क का यह प्रदूषण कभी दूर नहीं होगा ।
ये अनपढ़ नारियां कुछ नहीं जानतीं । इन्हें इक्कीसवीं सदी की बयार छू कर भी नहीं निकली, ये लिव इन रिलेशन से महरूम हैं । इन्होंने वह क्लब कभी नहीं ज्वाइन किया जिसमें वाइफ, हस्बेण्ड की अदला बदली होती है । नया मर्द, नयी औरत का जायका काबिले बयान नहीं । इस जायके को वही जानता है जिसने कभी इसका सुख उठाया हो ।
इक्कीसवीं सदी के माहौल में हजारों बरस पुरानी लीक पर चलना कौन सी समझदारी है । इस तरह मुल्क तरक्की की सीढ़ियों पर चढ़ कर विकास के शिखर पर कैसे पहुंचेगा ।
मामला काबिले फिक्र है इसीलिये एक सम्मानित महिला वकील ने यह सवाल सुप्रीमकोर्ट में उठाया है । मामला एक फैसले से जुड़ा है जिसमें न्यायमूर्ति ने एक रखैल के लिये ‘कीप’ शब्द का इस्तेमाल किया । महिला वकील ने पूछा है कि क्या कोई औरत किसी मर्द को रखैल रख सकती है ।
सवाल मौजूं, पेचीदा और दिलचस्प है । महिला वकील के सवाल में नाराजगी भरी आधुनिकता है लेकिन उन्होंने खुद को अतिआधुनिक होने से बचा लिया । वकील की दलील बेहद शातिर होती हैं । हम तो पुरातनपंथी, खण्डहरों में विचरने वाले जिंदा प्रेत माने जाते हैं लेकिन हमें भी मालूम है कि बहुत सी अतिआधुनिक महिलाएं मर्दों को रखैल रखती हैं । उन्हें अंग्रेजी में ‘जिगालो’ कहा जाता है । मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में जिगालो पैसे पर अपनी सेवाएं देते हैं । थोड़ा कहा बहुत समझना, चिट्ठी को तार समझना । बात को अफसाना और घास को दाना बनाना वाजिब नहीं है । इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो ।
साधो, वकील साहिबा को ‘कीप’ शब्द पर एतराज है । ‘कन्कोबाइन’ पर उन्हें नाराजगी है । रखैल लफ्ज पर उनका भड़कना लाजिमी है । जजों की लाचारी है कि उन्हें जजमेंट लिखने के लिये डिक्शनरी में दर्ज शब्द ही इस्तेमाल करने पड़ते हैं । इस मर्ज का क्या इलाज है । संसद में कानून पास कर डिक्शनरियों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये । कानून पास करने में देर हो तो आरडिनेन्स लागू कर देना चाहिये । सुप्रीम कोर्ट ये दोनो काम नहीं कर सकती । शिकायत संसद पर है तो गुस्सा सुप्रीम कोर्ट पर कैसे उतारा जा सकता है ।
सम्मानित वकीलसाहिबा को लिव इन रिलेशन पर कोई एतराज नहीं है । इस रिलेशन पर तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही मोहर लगा चुकी है । इस रिलेशन का दायरा बताने का काम बाकी था । कोर्ट ने अपनी समझ से यह जिम्मेदारी निभा दी ।
मामला दक्षिण भारत की एक फिल्म अभिनेत्री खुश्बू से जुड़ा था । इस मामले पर फैसला देते हुये कोर्ट ने कहा था कि बालिग मर्द और औरत अपनी सहमति से साथ रह सकते हैं । फैसला लिखते वक्त एक माननीय न्यायधीश ने अपनी सारी हदें तोड़ दीं । उन्होंने लिखा कि भगवान श्री कृष्ण और भगवती राधा के बीच लिव इन रिलेशन था । यह मिसाल देने की कोर्ट को कोयी जरूरत नहीं थी । इस मिसाल के बिना भी कोर्ट का फैसला अधूरा न रहता लेकिन माननीय न्यायधीश को करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर चोट करनी थी । वे अपना काम कर गये । उन्हें माननीया वकील साहिबा बेहिचक अति आधुनिकों की जमात में शामिल करेंगी । उन्होंने यह जजमेंट जरूर पढ़ा होगा, पढ़ा नहीं होगा तो सुना जरूर होगा । करोड़ों हिंदुओं के कलेजे पर घाव करने वाला यह जजमेंट आज भी जस का तस है । इसकी भाषा में सुधार करने पर किसी ने नहीं सोचा । इस मिसाल से बेजबान हिंदुओं के दिल पर क्या गुजरी होगी जिनका सवेरा श्री राधा के नामजप से होता है, जो जय श्रीराधे कह कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं ।
गरज ये कि हिंदू तो जन्म से ही साम्प्रदायिक होता है । सेकुलर होने के लिये उसे बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है । जो जितना पढ़ा लिखा है उतना अधिक सेकुलर है । ऐसे ही पढ़े लिखों के बारे में जनाब अकबर इलाहाबादी ने फरमाया था -
हम ऐसी कुल किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं ।
जिनको पढ़ कर लड़के बाप को खब्ती समझते हैं ।
बात निकलेगी तो बहुत दूर तक जायेगी । रखैल, कीप या कन्कूबाईन शब्द बदबूदार हैं लेकिन रखैल या कीप होना उससे ज्यादा अफसोसजनक है । यह समाज पुरूष प्रधान रहा था, रहा है, आगे क्या होगा राम जी जाने । चंद महिलाओं के अतिआधुनिक हो जाने से समाज की स्त्रियों में रातों रात कोई बदलाव नहीं आ सकता । मजबूरी में पैसे के बदले जिस्म बेचने वाली बेबस औरतों को सेक्सवर्कर का नाम देने से समाज की कालिख नहीं धुल सकती । कोई महिला अपनी इच्छा से जिस्म बेचने का धंधा नहीं करती, रखैल, कीप नहीं बनती । वकील साहिबा पेड़ की पत्तियां तोड़ना चाहतीं हैं, जहरीले पेड़ को जड़ से उखाड़ना नहीं चाहतीं । यह जड़बुद्धि कलमकार उनसे क्या गुजारिश करे । जजों पर खीज उतारने के बजाये उन्हें सजामसुधार पर अपना कीमती वक्त खर्च करना चाहिये ।



La =>जज साहेब ये बेचारी रखैल नहीं है ये तो बस एक शादीशुदा मर्द के साथ लिवइन रिलेशन में है । इस बेचारी का क्या पता कि ये किसी दूसरी औरत का घर/मर्द तोड़ रही है ।

नोएडा में बढ़ता लिव इन रिलेशन का चलन


हिसार लोकसभा उपचुनाव: वोटों की गिनती जारी, एचजेसी के कुलदीप विश्नोई 32 हजार वोटों से आगे | आईएनएलडी के अजय चौटाला दूसरे और कांग्रेस के जयप्रकाश तीसरे नंबर पर | टीम अन्ना ने की थी कांग्रेस को हराने की अपील |




23 Sep 2008, 0733 hrs IST,नवभारत टाइम्स  

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देवेंद्र कुमार
नोएडा : हाइटेक सिटी नोएडा में नए चलन तेजी से अपने पांव पसार रहे हैं। इसका सबूत लिव इन रिलेशन है। कुछ साल पहले तक समाज के लिए वर्जित रहा यह रिश्ता धीरे-धीरे अर्बन सोसायटी में अपनी जगह बनाने में सफल हो गया है। बीपीओ और कॉर्परट सेक्टर में लाखों रुपये महीने कमा रहे कई यूथ कपल इस रिलेशनशिप को बुरा नहीं मानते।


नोएडा के सेक्टर-58, 59, 60, 61, 63, 64 और 125 में बीपीओ इंडस्ट्री स्थापित है। यहां पर करीब 400 नैशनल-मल्टीनैशनल कंपनियों ने अपनी यूनिट बना रखी हैं। इन इकाइयों में आठ-आठ घंटे की शिफ्टों में 24 घंटे काम किया जाता है। प्रत्येक कंपनी में एम्पलॉई को न्यूनतम 15 हजार से तीन लाख रुपये मासिक वेतन तक दिया जाता है।


जिस समय पूरी दुनिया सो रही होती है, उस समय बीपीओ में काम करने वाले अपने काम में व्यस्त होते हैं और दिन में नींद पूरी करने के लिए बिस्तरों पर औंधे पडे़ होते हैं। त्यौहारी मौकों पर भी अक्सर इन लोगों को छुट्टियां नहीं दी जाती और ऑफिस कैंपस में पार्टी का आयोजन कर मन बहला दिया जाता है। साइकोलॉजिस्ट के अनुसार परिवार से अलग-थलग रहने के कारण यंग कपल्स एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं। पुलिस के अनुसार पिछले दिनों गोलीकांड में मारी गई एक एयर होस्टेस अपने बॉयफ्रेंड के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही थी। इस तरह के करीब दर्जनों जोड़े विभिन्न सेक्टरों में किराये पर मकान लेकर रह रहे हैं। जब इन कपल्स के फैमिली मेंबर जब उनसे मिलने आते हैं तो प्लानिंग के तहत अपने पार्टनर को कुछ दिन के लिए दूसरी जगहों पर रहने के लिए भेज देते हंै। परिजनों के जाते ही ये लोग फिर वापस आ जाते हैं।


पुलिस सूत्रों के अनुसार सेक्टर-34, 51, 62, 51, 22, 71 आदि सेक्टर्स में लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले ऐसे जोड़ों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है। मोटा किराया मिलने की वजह से मकान मालिकों को भी अब ऐसे किरायेदारों से परहेज नहीं रहा। एसपी सिटी ए. के. त्रिपाठी ने कहा कि कानून के अनुसार दो बालिग व्यक्ति आपसी सहमति पर एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं। इस लिहाज से लिव इन रिलेशन में रहने पर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। यदि किसी एक पक्ष की ओर से कंप्लेंट मिलती है तो उसकी जांच-पड़ताल करके दोषी के खिलाफ एक्शन अवश्य लिया जाता है।

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शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

जो बैंक बना वह बना रहे



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जो बैंक बना वह बना रहे
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19 जुलाई यूं ही बीत गयी और किसी को कानोकान खबर नहीं हुई कि 19 जुलाई वह तिथि है, जिसने वर्ष 1969 में न केवल राजनीति के क्षेत्र में अपितु आर्थिक, सामाजिक क्षेत्र में भी अपने निशान छोड़े है, यह वह दिन था जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने संसद में अपना बहुमत बनाने के लिए वामपंथी दलों से समर्थन प्राप्त करने हेतु 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इस अवसर पर उन्होने कहा था कि ' भारत में निर्मित हो रहे नये सामाजिक संबंधो को सुदृढ़ करने में वित्तीय और इसके नीति निर्धारक संस्थानों पर सरकारी क्षेत्र का अधिकार और नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण धुरी है।"
उन्होंने आगे कहा था कि "किसी भी समाज के सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय संस्थानों का संचालन बहुत केंन्द्रीय  महत्व का होता है। जनता की बचत को उचित दिशा देने व उसे उत्पादक कार्यो में लगाने में बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकारण महत्वपूर्ण कदम है, सरकार का विश्वास है कि यह कदम देश के संसाधनों को प्रेरित करने व उनके ऐसे प्रभावशील विनियोजन में उपयोगी होगा, जिससे राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में बड़ी सफलता मिलेगी।'' उनका भरोसा सही साबित हुआ था।
हमारे  देश में संगठित बैकिंग उद्योग को दो शतक से अधिक हो चुके हैं। सन् 1955 तक सारे बैंक प्राइवेट हाथों में ही थे। वे या तो व्यक्तियों द्वारा स्थापित थे अथवा औद्योगिक घरानों द्वारा स्थापित थे। सेंन्ट्रल बैक ऑफ इंण्डिया टाटा का था, तो यूको बैक बिड़ला का, बैक ऑफ बड़ौदा, बालचंद हीराचंद का था और ओरियंटल बैक ऑफ कामर्स करमचंद्र थापर का इण्डियन बैक चेटियार का था, सिंडीकेट बैक पईयों का था और दूसरे भी इसी तरह थे, वे लोगों का पैसा जमा करते थे व उसे अपने कामों में लगाते थे। उनके कई काम तो बहुत नासमझी के होते थे, क्योंकि उन पर नियंत्रण के लिए कोई संस्था नही थी, जो जमाकर्ताओ के हितों की रक्षा करती। बैंकों के मालिक  बैक में जमा धन को अपनी मर्जी के अनुसार उपयोग के लिए स्वतंत्र थे, द्वितीय विश्व युद्व के बाद में अविभाजित और विभाजित बंगाल तथा केरल में दर्जनों बैकों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया, जिससे आम जनता बैकों में पैसा करने से घबराने लगी। यही कारण था कि  आजादी के  बाद सन् 1949 में सरकार को बैकिंग कंपनी नियामक कानून बनाना पड़ा। यह हस्तक्षेप इसलिए अनिवार्य हो गया था क्योंकि निरतंर  घटती घटनाओं ने आम आदमी के हितों पर भारी कुठाराघात किये। सन् 1951 में व्यावसायिक बैकों की संख्या 566 थी, जो 1969 में 89 पर आ चुकी थी, अठारह वर्षो  में 477 बैक दृश्य से बाहर हो चुके थे। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने असमानता दूर करने और निचले स्तर पर जीवन जीने वालों को अवसरों की समानता पर लाने का सपना देखा था। उन्हें उम्मीद थी कि बैंक इस सपने को पूरा करने में मदद करेंगे, किन्तु प्रायवेट क्षेत्र के बैकों ने इस ओर निगाह ही नही की। तब ग्रामीण बैकिंग जॉच समिति ने इम्पीरियल बैंक से ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रो में 114 नई शखाएं खोलने को कहा  जो पॉच वर्ष के अंदर खुलनी थी, किन्तु 1 जुलाई 1951 से 30 जून 1955 तक कुल 63 शाखाएं ही खोली जा सकीं।

ग्रामीण क्षेत्रो में ऋणों का वितरण शून्य था, इन परिस्थितियों में अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण समिति की सिफारिशों पर 1955 में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट लागू किया गया और इम्पीरियल बैंक को स्टेट बैक ऑफ इंडिया बना दिया गया। रिजर्व बैक ने इसमें 97 प्रतिशत पूंजी लगायी। इसके बाद पॉच वर्षो के अंदर ही चार सौ शाखाऐं खोलने के लक्ष्य के समक्ष स्टेट बैंक ने 415 शखाऐं खोल दीं। यह देखकर 1959 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (सहयोगी बैक) कानून पास किया गया जिसमें स्टेट बैक ने आठ बैकों को अपने सहयोगी बैकों का दर्जा प्रदान किया। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि सन् 1955 से 1959 के बीच ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों का जन्म हुआ यह वही समय था जब बैंक ऋणों का प्रसार ग्रामीण क्षेत्र में हुआ। इसके साथ ही बैंक शाखाओं का विस्तार भी हुआ। इसी उपलब्धि के प्रकाश में 1968 में सरकार को बैकों के सामाजिक नियंत्रण (सोशल कंट्रोल) के लिए विवश होना पड़ा। बाद में 19 जुलाई 1969 को 14 बड़े बैकों के राष्ट्रीयकरण  की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करने में इसी आधार ने विपक्षियों का मुंह बंद किया था। बैकिंग कंपनी बिल (अधिग्रहण एव उपक्रम स्थानातरंण) 1969 अपने उद्देशय को स्पष्ट करते हुए कहता है कि ''हमारा बैकिंग तंत्र लाखों लोगों के जीवन से जुड़ा है और इसे बडे सामाजिक उद्देशयों के लिए काम करना चाहिए  जिससे  कृषि के तीव्र विकास, लघु उद्योग और निर्यात के साथ साथ रोजगार के अवसरों में वृद्वि तथा  पिछड़े क्षेत्रों में विकास की नई गतिविधियॉ संचालित करने जैसे राष्ट्रीय प्राथमिकता के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके इस उद्देशय  के लिए यह आवश्यक हो गया है कि सरकार बैकों के प्रसार और कामों में विविधता की दृष्टि से इसकी सीधी जिम्मेवारी अपने हाथ में ले। 
राष्ट्रीयकरण के बाद तीन दशकों में हुई प्रगति के आंकडे चौकाने वाले है, जहॉ 1969 में कुल बैंक शखाएं 8262 थीं वहीं आज बैंकों की शाखाओं की संख्या 70000 से अधिक है ग्रामीण क्षेत्र की शाखाओं की संख्या 1833 से बढ़कर 35000 से अधिक हो गयी है। अर्धशहरी क्षेत्र की शखाएं भी 3342 से बढ़कर 16000 से अधिक  हो गयी है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों की शाखाओं को सम्मिलित किये बिना ही शाखाओं की संख्या सात गुना बढ़ गयी है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैक को मिला लेने के बाद तो यह विकास सारी दुनिया में अनूठा है। जहॉ पहले 65000 की आबादी पर एक बैंक शखा हुआ  करती थी, वहॉ आज प्रत्येक 15000 की आबादी पर एक शाखा है जबकि आबादी में भी बेतरह बढोत्तरी हुई है। शाखाओं  का अधिकतम विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ है। इस विस्तार ने ग्रामीणजनों का भाग्य ही बदल कर रख दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर विकास के समान अवसर उपलब्ध होने से राष्ट्रीय एकता में बहुत मदद हुई है। 1969 के पूर्व जहॉ  अमरीका से गेंहू आयात करना पड़ता था, वहीं आज हमारे गोदाम अनाज  के भंडारों से भरे हैं। कृषि के क्षेत्र में यह विकास  केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों द्वारा दिये गये बैक ऋणों की दम पर ही संभव हो सका है। सिचाई, कृषि उपकरणों और खाद के लिए दिए गए ऋण के सहारे किसानों ने पूरे देश को हरा-भरा कर दिया है। इस उपलब्धि के पीछे बैकों के राष्ट्रीयकरण  की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, जो हर हालत में कुल ऋणों  का 16 प्रतिशत कृषि के लिए देते हैं।

यद्यपि यह सच है कि बाद में बैंकों का राजनीतिक उद्देशयों के लिए दुरूपयोग किया गया एंव अव्यवहारिक प्रचारत्मक सरकारी योजनाओं में धन और श्रम शक्ति का अपव्यय हुआ, फिर भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लाभ में रहे, बाद में नयी एकाउंटिंग व्यवस्था लागू कर दी गई, जिससे कुछ बैंको की तत्काल नुकसान दृष्टिगोचर हुआ पर एक-दो वर्ष में ही ये बैंक पुन: लाभ की स्थिति में आ गये। नई आर्थिक नीति में राष्ट्रीयकरण से विनेवेशीकरण की ओर बढा गया। 1998 से 2004 के बीच देश में दल की सरकार रही जिसने बैंको के राष्ट्रीयकरण का विरोध किया था, इसलिए वह इस फैसले को उलटने के लिए पूरा प्रयास कर रही थी। ब्याज की दरें निरंतर घटायी जा रही थी बैकों के बोर्डो में राजनीतिक नियुक्तियॉ की जा रही थीं। उनके कार्यो में राजनीतिक उद्देशयों के लिए अनुचित हस्तक्षेप किया जा रहा था तथा बडे औद्योगिक घरानों से वसूली के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाये गये। वर्तमान सरकार भी बैंकों के प्राइवेटीकरण की दिशा में तेजी से कदम बढा चुकी है। यदि राष्ट्रीयकरण को उलटने का फैसला किया किया गया तो यह देश के लिए और इसके जमाकर्ताओं के लिए बेहद घातक कदम होगा।

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल -11






राहुल की ताजपोशी की तैयारी शुरू

कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी की कैंसर के आपरेशन के साथ ही अपने ईमानदार पीएम (?) मन्नू जी के विदाई की तैयारी शुरू हो गई है। पार्टी के लिए कैंसर बन गए मनमोहन को अब सत्ता सुख से वंचित करने की पटकथा लिखी जा रही है। यूपीए मुखिया सोनिया गांधी के पास मनमोहन को विदा करने के सिवा अब और कोई चारा ही नहीं रह गया है। मनमोहन की दक्षता कार्यशैली और योग्यता से पूरा देश कायल (कम, घायल ज्यादा) है। उधर संगठन-संगठन-संगठन का राग अलाप रहे (अधेड़) युवराज से भी पर्दे के पीछे ज्यादातर लोग नाराज ( सामने की तो हिम्मत नहीं) है। ज्यादातरों का मानना है कि 2014 तक मन्नू साहब  पार्टी और संगठन को इस लायक छोड़ेंगे ही नहीं कि उसको फिर से सत्ता के लायक देखा जा सके। विश्वस्तों के लगातार बढ़ते प्रेशर से अब मैडम भी मानने लगी है कि राहुल की ताजपोशी के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा है। संगठन के लोगों की माने तो बस्स रास्ता साफ करने की कवायद चालू है, और मन्नू के सिर पर (शासन में) कुछ चट्टान और पहाड़ को तोड़कर बाबू (बाबा) युवराज को कमसे कम 27-28 महीने के लिए पीएम की खानदानी कुर्सी (सीट) पर सुशोभित किया जा सके।

बेआबरू होकर मैडम के घर से......


ईमानदारी के लंबे चौड़े कसीदों के साथ देश के पीएम (बने नहीं) बनाए गए मन साहब को भी यह उम्मीद नहीं थी कि उनका साढ़े सात साला शासन काल इतना स्मार्ट और शानदार रहेगा। पूरा देश पानी पानी मांग रहा है और पार्टी को रोजाना अपनी नानी की याद (कम सता ज्यादा) रही है, विश्वस्तरीय अर्थशास्त्री होने की कलई इस तरह खुली की  गरीबों के साथ रहने वाली पंजा पार्टी की लंगोटी ही खुल गई। पूरे देश को यह समझ में नहीं आ रहा है कि मन्नू साहब देश के पीएम हैं या चोरों की बारात के दुल्हा? लोगों ने तो मन्नू सरदार को 40 चोरों के सरदार अलीबाबा भी कहना चालू कर दिया है। मन्नू सरदार के बेअसरदार(?) होने के बाद भी सत्ता में सुरक्षित रखने पर देश वासियों को गुस्सा अब कांग्रेस सुप्रीमों पर आ रहा है कि एक विदेशी महिला देश को चलाना चाह रही है या रसातल में ले जा रही है ? बहरहाल पूरे देश के साथ पंजा पार्टी में भी 23 साल के बाद गांधी खानदान के चिराग राज के लिए लालयित है। जिसके लिए स्टेज को सजाने और संवारने का पूरा जिम्मा बंगाली बाबू प्रणव दा संभाल रहे है। राहुल के पक्ष में बयान देकर प्रणव दा ने मन्नू दा को दीपावली के बाद आगाह भी कर रहे है। सचमुच 1991 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिेए अपने परम राईटर मित्र खुशवंत सिंह के सामने हाथ पसार कर दो लाख रूपए उधार लेने वाले अपने मनजी की माली हालात इन 20 सालों में अब पांच करोड़ की हो गई है। क्या आपको अब भी सरदार जी कि ईमानदारी  पर कोई शक सुबह है क्या ?

और इस बार दीदी भी थामेंगी कमान

और इस बार पूरी राजनीति और रणनीति के साथ देश की खानदानी सत्ता में भैय्या और दीदी को लाने, जमाने और दुनियां को दिखाने की हिट फिल्म की कहानी अमर अकबर अहमद एंथोंनी समेत ओम जय जगदीश और जॅान जॅानी जर्नादन द्वारा लिखी जा रही है। राहुल बाबा के मददगार के रूप में पूरी संभावना है कि वाचाल तेज सतर्क और हवा के रूख को भांपने और खानदानी शहादत के नाम पर देश वासियों को मोहित कम (मूर्ख बनाने में) माहिर प्रियंका वाड्रा गांधी को भी मैदान में उतारा जाएगा. बतौर डिप्टी पीएम (जिसे उप प्रधानमंत्री भी कहा जाता है) के रूप में। यानी सता पर भले ही भैय्या का साम्राज्य दिखे मगर बहुत सारे फैसलों पर दीदी का भी कंट्रोल बना रहे। वे अपने भाई को जरा तेज स्मार्ट और चालू भी बनाएंगी, ताकि निकटस्थ लोग राहुल बाबा को पिता राजीव गांधी की तरह नया और बमभोला के रूप में ना देखे, माने और कहें। पार्टी की दुर्गा माता के रूप में सुशोभित सोनिया जी भी अपनी सेहत का हवाला देकर अपने संतानों को मैच्योर करके पार्टी की मुखिया का दायित्व अपनी बेटी को देकर सत्ता से दूर रहकर भी मास्टर माइंट या पावक कंट्रोलर बनकर अपने संतानों की कार्यकुशलता को निरखती परखती रहेंगी। हालांकि देश के इमोशन को अपने हाथ में लेने के लिए, यदि 2014 में लोकसभा चुनाव हुए तो उससे कुछ पहले वरूण गांधी को भी अपनी टोली में भी लाया जा सकता हैं। यानी राहुल को लेकर देश भर में इस हवा को शांत करने के लिए कि यदि राहुल पीएम अभी नहीं बने तो फिर कभी नहीं की आशंका को खत्म किया जा सके। और बाकी बचे ढाई साल में इन भाई बहनों की धुआंधार देश व्यापी दौरों से देश के मिजाज पर अन्ना समेत हाथी कमल के असर को कमजोर करके काबू में किया जा सके।


मोंटेक की भी विदाई की तैयारी


 दो सरदारों (MMS & MSA)  के इकोनामिक ज्ञान से पूरे देश को चौंकाने से ज्यादा स्तब्ध कर देने वाले मोंटेक सिंह अहलूवालिया एंड कंपनी पर भी तलवार लटक रही है। जिस अचंभे से पूरे देश को चाह कर भी जो काम गांधी और नेहरू नहीं कर सके, वो काम मनमोहन (योजना आयोग के अध्यक्ष है, लिहाजा वे यह कहकर बच नहीं सकते कि मुझे इसकी जानकारी नहीं थी) ने मोंटेक मंतर से कर दिखाया। महंगाई भले ही आसमान पर हो, फिर भी दोनों सरदारों ने 32 रूपए और 26 रूपए में अमीरी गरीबी को परिभाषित करके बहुत पुरानी फिल्म अमीर गरीब (के इस गाने की याद ताजी कर दी कि सोनी और मोनी की है जोड़ी अजीब, सोनी गरीब ..मोनी अमीर) को एक ही तराजू में तौल दिया। इस पर पार्टी समेत योजना विभाग की वो छिछा लेदर हो रही है कि अब पूरे देश के साथ मुझे भी यकीन होने लगा है कि ये दोनों इकोनामिक्स स्कूल आफ लंदन के स्टूडेंट रहे है या किसी मेरठ या मगध यूनीवसिर्टी में पढ़ते हुए कुंजियों के सहारे डिग्री और पदवी तो नहीं प्राप्त की है?


कमल छाप गदर


कांग्रेस के लिेए यह एक बड़ी राहत और खुशखबरी है कि करप्शन में फंसी कांग्रेस पर लोटा पानी लेकर सवार बीजेपी एकाएक अपने आप में ही इस कदर उलझ गयी कि पंजा कि उखड़ती सांसे अब फिर से काबू में आती दिख रही है। मोदी की मिशन सदभावना एकाएक मिशन पीएम में तब्दील हो गया। एक तरफ कमल के सबसे बुजुर्ग फूल ने 11 अक्टूबर से लोकनायक जयप्रकाश नारायण को याद करते हुए (जेपी की जन्मदिवस के मौके पर) बिहार के उनके गांव सिताब दियारा से रथयात्रा के बहाने अपनी दावेदारी जता रहे है। इसके लिए बिहारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हरी झंडी दिखाएंगे। उधर इस रथयात्रा से परेशान मोदी ने पार्टी में अघोषित कलह (विद्रोह) मचा दिया है। मीडिया मैनेज के गुरू मोदी अपने समर्थन में उतरे ठाकरे गिरोह को ले आए है। एनडीए के कई समर्थर्को से भी मोदी अपनी राह आसान करना चाह रहे है। वैसे मोदी के 10 साला सत्ता सुख पर एक बार फिर ज्यादातर बड़े नेताओं ने मोदी को बेस्ट माना और कहा है,। मगर एक दूसरे के दुश्मन बन चुके मोदी को अब भी पार्टी पर पूरा भरोसा नहीं रहा और पार्टी को भी मोदी के गदर से होने वाले नुकसान का अंदाजा है। एक तरफ सुषमा स्वराज और भी कई लोग अपने सपने को साकार करने में अलग गोटी बिठा रहे है। किसी को आडवाणी की रथयात्रा मंजूर नहीं है , मगर पार्टी की आचार संहिता और अनुसासन की लकीर के सामने आग उबलने की बजाय लोग भीतर ही भीतर सुलग रहे है। देखना है कि यूपीए को नेस्तनाबूद करने के फिराक में कहीं आपसी कलह और फूट से कमल ही ना मुर्छा जाए ?


चुनावी माहौल का पूर्वाभ्यास

यूपी समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भले ही अभी कुछ समय बाकी हो, मगर चुनावी तापमान को बनाने और गरमाने में सभी सवार बाहर निकल गए हैं। छह माह के अंदर इंटरनेशनल लेबल पर लोकप्रिय हुए अन्ना हजारे और लाल कृष्ण आडवाणी अगले सप्ताह से अलग अलग रथयात्रा चालू कर रहे है। कांग्रेस के युवराज के दौरों की गाड़ी हमेशा चलायमान ही रहती है। गुजरात के हर जिले में जाकर नरेन्द्र मोदी अलग अलख जगाने की कार्रवाई शुरू कर दी है। अपने सुपुत्र को साथ लेकर मुलायम भैय्या भी यूपी को लांघने का खेल जारी रखा है। यूपी और उत्तरांचल में उमा भारती रोजाना सवारी कर रही है। कल्याम सिंह से लेकर राजनाथ सिंह कमल लाओ हाथी भगाओ की डफली बजा रहे है। यानी देश के कई राज्यों में चुनावी बिगुल बजने से पहले ही माहौल को हाथ में लेने के लिए हाथ,हाथी, साइकिल और कमल के खिलाफ रणभेरी बज गई है। मगर सबों के लिए अन्ना रोचक और रोमाचंक बने हुए है कि गांधी बाबा की टोपी पहनकर यह बंदा क्या कमाल या धमाल करता है।


(ब्लैकमेलर) अन्ना की नीयत और निगाह


गांधीवादी टोपी पहनकर जैसे कोई गांधी नहीं हो जाता ठीक वैसे ही गांधीगिरी का नकल करके कोई अन्ना हजारे गांधी की मूरत नही हो जाते। हालांकि देश भर में कांग्रेस के खिलाफ अलख जगा रहे महाराष्ट्र के अन्ना हजारे इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव के सबसे बड़े नायक (रामदेव दूसरे नंबर पर हो सकते हैं)  बनकर उभरे हैं। पीएम अन्ना यानी पब्लिक मैन अन्ना भले ही पीएम ना बन सकते हैं ,मगर पावर मैन जरूर बन चुके है। चुनाव से ठीक पहले कहीं अनशन करके या दौरा करके या एंटी कांग्रेस वोट का फरमान जारी करके अपने अन्ना यह जताना और दिखाना चाहते हैं कि उनकी क्या ताकत है ? अन्ना लगातार स्वच्छ और बेहतर लोगों को चुनाव में खड़ा होने का अपील कर रहे है, जिसके समर्थन में जाकर चुनावी रैली या प्रचार करने का भी दावा कर रहे है। यानी लोकसभा चुनाव (यदि 2014 में ही हुए तो) से पहले तक वे पूरी टोली तैयार कर रहे है। उधर पहली बार शिवसेना सुप्रीमों बाल ठाकरे पर पलटवार करते हुए खुद 74 साल के अन्ना ने ठाकरे को उम्र का तकाजा देकर सठियाने की घोषणा कर दी। जिस पर ठाकरे ने अन्ना को पंगा नहीं लेने की चेतावनी तक दे डाली। फिर भी अपनी ताकत के बूते अन्ना सभी दलों पर अपना दबदबा दिखाने और जताने की मंशा पाल रहे है। हालांकि गैर राजनीतिक जनांदोलन का दावा कर रहे अन्ना के दावे पर पानी फेरते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कर दिया कि अन्ना के पीछे संघ और बीजेपी है। और इसके पीछे विपक्षी मतो के आधार पर 2012 में होने वाले रायसिना हिल्स निवास पर भी अन्ना की नजर लगी है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस भी वाचाल अन्ना सुनामी को यह पदवी देकर चूहा बनाने में भरपूर साथ देने के लिए राजी हो सकती है। यानी सत्ता में सीधे ना सही, मगर बैकडोर से इंट्री के लिेए मंदिर निवासी अन्ना का मन डोल रहा है।

 कांग्रेस, करप्शन, लोकायुक्त, और शीला

कांग्रेस चाहे लाख दलील दे, मगर करप्शन से इसे ना कोई परहेज है और नाही कोई दिक्कत है। लोकायुक्त की रपट पर कर्नाटक के बीजेपी  मुख्यमंत्री को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी। आमतौर पर सरकारी आदेशों को अपने ठोकर पर ऱखने के लिए कुख्यात यूपी सीएम बसपा सुप्रीमों बहम मायावती ने भी अपने दो दो मंत्रियों की लाल गाड़ी छीनकर सड़क पर ला दिया। लोकायुक्त की सिफारिश मानकर माया ने कानून के प्रति सम्मान दर्शाया है। हालांकि दो मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच चल रही है और माया मंडल से लगता है कि दो और मंत्रियों की नौकरी बस्स जाने ही वाली है। माया दीदी का ऐन चुनाव से पहले अपने करप्ट मित्रों से पल्ला झाडने का यह कानूनी दांव औरों के लिए चेतावनी भी है कि जो माया से टकराएगा.......। मगर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस मामले में सबों को परास्त कर दिया। अपने परम सहयोगी और सबसे निकटस्थ मंत्री राजकुमार चौहान के खिलाफ दिल्ली के लोकायुक्त ने सीधे राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजी। मगर काफी दिनों तक रायसिना हिल्स में धूल फांकने के बाद जब शीला के पास लोकायुक्त की सिफारिश पहुंची तो वे बड़ी चालाकी से अपने मंत्री के खिलाफ एक्शन लेने की बजाय लोकायुक्त के पत्र को सोनिया गांधी के पास भेज कर उन्हें अलग राम कहानी सुना दी। और लोकायुक्त की सिफारिश को कूडेदान में पार्टी सुप्ारीमों को फेंकना पड़ा। कुछ मामलो में दिल्ली की सीएम काफी होशियार और स्मार्ट है। कामन वेल्थ गेम करप्शन में शुंगलू जांच समिति द्वारा सीएम को आरोपित किेए जाने के बाद भी पीएम, एफएम, एचएम और पार्टी चेयरपर्सन को रामकहानी सुनाकर दोबारा साफ निकल गई। यानी इस बार मुख्यमंत्री बनने के लिए उतावला हो रहे एक केंद्रीय मंत्री को फिर और हर बार की तरह इस बार भी मुंह खानी पड़ी।  और तमाम करप्शन के आरोपों के बाद भी 13 सालों से शीला दिल्ली की महारानी बनी हुई है।

फिर मंदी की आहट या ...साजिश

दो साल पहले ग्लोबल मंदी से पूरा संसार अभी तक ठीक से उबर भी नहीं पाया था कि एक बार फिर मंदी की आहट या साजिश तेज हो गई है। और इस बार मंदी की स्क्रिप्ट क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज लिख रही है। चार दिन पहले ही भारतीय स्टेट बैंक आफ इंडिया की रेटिंग में गिरावट करके बैक समेत इसके लाखो निवेशकों को एक ही झटके में अरबों रूपए की चपत लगा दी। भारतीय बाजार अभी इससे उबर भी नहीं पाया था कि मूडीज ने ब्रिटेन के करीब दर्जन भर बैंकों की रेटिंग को गिराकर पूरे यूरोप में हंगामा मचा दिया है। अमरीका के दर्जन भर बैंक पहले से ही दीवालियेपन की कगार पर खड़े है। एशिया और अन्य देशों केसैकड़ों बैंको की पतली हालात किसी से छिपी नहीं है। यानी मूडीज ने रेटिंग कार्ड से पूरे ग्लोबल को हिला दिया है। मंदी की आशंका को  तेज कर दिया है। यानी कारोबारियों की फिर से पौ बारह और कर्मचारियों की फिर से नौकरी संकट से दो चार होना होगा। अपना भारत भी मूडीज के मूड से आशंकित है, क्योंकि गरीबों का जीवन और कठिनतम (सरल कब था) हो जाएगा।


रामलीला में राम पीछे और लीला बहुत बहुत आगे


रामलीलाओं की चमक दमक देखकर किसी भी आदमी का होश खराब हो सकता है। मगर, होश अपने नेताओं की मस्त हो जाती है। अगर रामजी भी कहीं से इन लीलाओं को देख रहे होंगे तो उनका दिल भी अपने पीएम मनमोहन जी की तरह ही रो रहा होगा। रामलीला के नाम पर लीला का ऐसा मंचन कि करोड़ो रुपए स्वाहा करने का बाद भी आयोजकों का मन नहीं भरता। तंत्र मंत्र से लेकर यांत्रिक उपकरणों, हेलीकाप्टरों की मदद से एक एक सेट और सीन को प्रभावशाली बनाने दिखाने और दूसरे आयोजकों पर अपनी दादागिरी जताने के लिए रामलीला एक बड़ा मंच बन जाता है। अपने प्रभाव को दर्शाने के लिेए तो आयोजकों द्वारा उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी को भी बुलाकर तीर धनुष से रावण दहन का शुभ कार्य कराया जाता है। जनता के मूड पर कब्जा जमाये रखने के लिेए हमारे नेतागण भी इस मौके पर जाने से खुद को रोक नहीं पाते। इससे लीला में और इजाफा ही हो जाता है।


 लालू और ममता से कंगाल हुआ रेल 

किराया बढ़ाने की बजाय और घटाने की सनक पाले  बिहार को बदहाल करने वाले लालू भैय्या और तुनक मिजाजी के लिए कुख्यात ममता दीदी ने अपने सात साल के रेल मंत्री वाले कार्यकाल में रेलवे की ऐसी तैसी कर दी। अपने बूते चलने वाला आत्मनिर्भर रेल मंत्रालय देश की रीढ़ माना जाता था। रोजाना करीब दो करोड लोगों को ढोने वाला रेल इस समय घनघोर संकट में है। लालू और ममता की ऐसी नजर लगी कि आज वो एक एक पैसों के लिए मोहताज हो गया है। नए रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को कुछ सूझ भी नहीं रहा है। ममता उनकी नेता हैं, लिहाजा वो किसी को कोई दोष भी नहीं दे सकते। रेल किराया बढ़ने की पूरी तैयारी हो चुकी है, मगर संकटग्रस्त मनमोहन की यूपीए सरकार में फिलहाल इतना दम कहां कि पार्टी और अपनी लंगड़ी सरकार से बाहर जाकर देश हित पर कुछ विचार करे। फिलहाल टल रहा है रेलवे का भाड़ामें बढ़ोतरी, क्योंकि वो बीजेपी को फिर हल्ला बोलने का मौका देना नहीं चाहती।

और कंगाली में महाराज.......

सालों से कंगाली में चल रहे एयर इंडिया की कंगाली भी मनमोहनजी के अर्थशास्त्रीय ज्ञान का एक नायाब उदाहरण है। तमाम निजी विमान कंपनियां लाभ कमा रही है, मगर सरकारी महाराज की कंगाली अब इस कदर परवान पर चढ़ गयी है कि इसको संभालना मोंटेक बाबू के हाथ में नहीं है। महाराज की कंगाली को दूर करने के लिेए मंत्रालय ने 20 हजार करोड रूपए की डिमांड की है। यानी एक बार फिर महाराज के नाम पर नेता नौकरशाहों और दलालों की कंगाली दूर होगी और महाराज पर कुछ दिनों तक अमीरी और सेहत में सुधार का आक्सीजन लगाकर बेहतर दिखाया जाएगा। जय हो महाराज कि तेरे नाम पर फिर होगी करप्ट लोगों की फिर से सोना चांदी। वैसे हालात को ज्यादा गमगीन दिखाने के लिे हवाई नौकरशाहों ने फिलहाल नाईट फ्लाईट बंद कर दिया है ताकि मैडम समेत मन्नूजी और मोंटेक को पतली हालत का अंदाजा लग सके, और हालात को सुधारने के नाम पर पैसों की बारिश जल्दी से की जा सके।


पाक सीमा पर चीनी खतरा

प्रधानमंत्री कार्यालय के नौकरशाहों द्वारा पीएम मनमोहन सिंह को दिखाएं बगैर ही दर्जनों फाईलों पर सहमति की मुहर लगाकर से दूसरे मंत्रालय में भेजने की खबर ही हमारे पीएम को किसी विवाद उठने पर पता चलता है। तब बड़ी मासूमियत से अपने मन साहब यह कहने में संकोच नहीं करते कि इस फाईल को तो उन्होनें देखा ही नही था। अखबारों और खुफिया रपटों के लीक होने पर भी अपने ऐसे कर्मठ होनहार प्रभावशाली और दबंग पीएम को तो शायद यह भी नहीं पता होगा कि उनका अपना देश जिसे भारत (सॅारी मन साहब आपको तो हिन्दी पसंद नही है ना, इसलिए इंडिया)  और पाक सीमा पर पाक सैनिकों के साथ करीब चार हजार से भी अधिक चीनी सेना ( भारत और चीनी भाई भाई) अपने इंडिया के खिलाफ साजिश कर रहे है। हमे चारो तरफ से घेरा जा रहा है। और हमारी सरकार अपनी लंगोटी बचाने में लगी है। देश के ब्लैक अंग्रेजों (शासकों) अपने स्वार्थ और लालच को छोड़कर कुछ तो देश का ख्याल करो बेशर्मो।


(डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा वापस ले लो


आज एजूकेशन के अरबों खरबों के बिजनेस में में डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा पाना शान की बात हो गई है। मानव संसाधन मंत्रालय में इसे कौड़ियों के भाव (टेबुल के नीचे करोड़ों देने पर ही) बिक रहा है। देश के दर्जनों जगह पर सैकड़ों एकड़ लैंड में अपना साम्राज्य फैलाकर एक नहीं दर्जनों डीम्ड यूनिवसिर्टी आज शिक्षा के नाम पर करोड़ों और अरबों रूपे की फसल काट रहे है। देश भर में डीम्ड यूनिवसिर्टी के इतना डिमांड होने पर भी छह साल से डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा पाने के बाद अब नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के प्रंबधको ने  नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के डीम्ड यूनिवसिर्टी का दर्जा वापस करने की गुहार लगाई है। उनका मानना है कि इससे उनकी गुणवत्ता और स्वायत्तता पर असर पड़ रहा है और एनएसडी अपने लक्ष्य से भटकता जा रहा है। कमाल है सिव्वल साहब को इस स्कूल पर की गई मेहरबानी के ऐसे मोल की तो सपनों में भी उम्मीद नहीं थी।

इस क्रिकेट को बचाओ

हॅाकी भले ही हमारा नेशनल गेम हो , मगर सारे लोग जानते हैं कि क्रिकेट हमारे देश की धड़कन है। क्रिकेट से देश की सांसे चलती और थमती है। बेशुमार पैसों की खनक से लगभग पगला से गए हमारे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों ने देश को विकलांग और खिलाड़ियों की चैन हराम करके नोटों की बारिश करके अंधा बना दिया है। लालच बुरी बला कहावत को चरितार्थ करते हुए हमारे बोर्ड के स्वार्थी नौकरशाहों ने क्रिकेट को साल भर का खेल बना दिया। पैसों की चमक दमक में खो गए हमारे खिलाड़ी भी बहती गंगा मे हाथ धोने का ऐसा जुनून पाल रखा है कि खेल के सिवा अब उन्हें और कुछ सूझ ही नही रहा है। चैंपियन लीग में चेन्नई सुपरकिंग की हार के बाद चेन्नई  के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी निराशा प्रकट करने की बजाय यह कहकर राहत की सांस ली कि चलो एक सप्ताह का तो आराम मिलेगा। धोनी की यह टिप्पणी दर्शाता है कि टीम किस बुरी तरह थक गई है। फिर भी हमारे लालची अधिकारी खिलाड़ियों को झोके जा रहे है। इस साल विश्व कप और इसके एक ही सप्ताह के बाद आईपीएल का थकाऊ खेल। आईपीएल खत्म हुआ नहीं कि एक पखवारे के भीतर ही वेस्टइंडीज का दौरा । वहां से नाक कटाने से बस्स किसी तरह बचकर टीम को भारत आए एक सप्ताह भी नही गुजरा कि टायर्ड धोनी एंड कंपनी को फिर इंग्लैंड जाना पड़ा। वहां ऐसी करारी हार मिली कि पूरा इंड़िया शर्मसार हो गया। और वहां से खिलाड़ी ठीक से लौटे भी नहीं थे कि चैंपियन लीग मे कई देशों के खिलाड़ी 20-20 के लिए भारत में आ चुके थे। और क्रिकेट के पैंटी संस्करण 20-20 लीग खत्म हुआ भी नही है कि इंग्लैंड की टीम हैदराबाद में आकर एक बार फिर इंडिया को नेस्तनाबूद करने की रणनीति बना रही है। और अपने धुरंधर थके हुए शेर फिर से ढेर होने के लिेए तैयार है। इनसे निपटने की देर है कि एक बार फिर टीम इंडिया कंगारूओं के देश में संभावित हार के लिए तैयार होकर रवाना होगी।  वलर्ड कप जीतने वाली टीम छह माह के अंदर टेस्ट और वनडे में अपनी रैंकिंग गंवा चुकी है। क्या दीवाली , दशहरा क्या पर्व त्यौहार, क्या परीक्षा और शादी विवाह के मौसमों की परवाह किए बगैर केवल क्रिकेट और केवल क्रिकेट खेल से खिलाड़ियों को विकलांग और देश को निकम्मा बनाने की साजिश हो रही है। हालांकि सरकार का इस पर जोर नहीं है मगर देश,समाज, खिलाड़ियों और क्रिकेट को बचाने के लिए सरकार को एक मानक बनाना ही होगा ताकि लालची और बेलगाम अधिकारियों में मोदी श्रीनिवासन, राजीव शुक्ला आदि से देश को बचाया जा सके, जिन्हें क्रिकेट के सिवा कुछ और ना दिख रहा हा और ना ही चांदी की खनक में कुछ सूझ रहा है।


तुस्सी ग्रेट हो बिज्जी,.वेरी वेरी वेरी ग्रेट हो बिज्जी......

राजस्थान के बोरूंदा गांव में आज से 86 साल पहले लगभग एक निरक्षर परिवार में पैदा हुए विजयदान देथा उर्फ बिज्जी को भले ही साहित्य का नोबल पुरस्कार नहीं मिला हो, मगर बिज्जी ने यह साबित कर दिखाया कि काम और लेखन की खुश्बू को फैलने से कोई रोक नहीं सकताहै। हिन्दी के चंद मठाधीशों द्वारा अपने चमच्चों को ही साहित्य का पुरोधा साबित करने के इस गंदे खेल का ही नतीजा है कि बिज्जी को कभी ज्ञानपीठ पुरस्कार के लायक भी नहीं समझा गया, उसी बिज्जी को नोबल समिति ने साहित्य के नोबल के लिेए नामांकित करके ही एक तरह से नोबल प्रदान कर दिया। लोककथा को एक कथा (आधुनिक संदर्भ) की तरह विकसित करके पाठकों लोगों (आलोचकों को नहीं) और पुस्तक प्रेमियों को मुग्ध करके हमेशा के लिए अपना मुरीद बना देने वाले बिज्जी की दर्जन भर कहानियों पर रिकार्डतोड़ सफल फिल्में बन चुकी है। लगभग एक हजार (लोककथाओं को) कहानी की तरह लिखने वाले बिज्जी से ज्यादा मोहक लेखक शायद अभी दूसरा नहीं है। हजारों लाखों को मुग्ध करने वाले बिज्जी को कभी ज्ञानपीठ पुरस्कार या और कोई सम्मानित पुरस्कार के लायक माना ही नहीं गया। हमेशा उनके लेखन की मौलिकता पर हमारे आलोचकों ने कभी गौर नहीं फरमाया। मेरे साथ एक इंटरव्यू में बिज्जी ने माफियाओं पर जोरदार हमला किया। तब राष्ट्रीय सहारा के दफ्तर में संचेतना के लेखक महीप सिंह मुझे खोजते हुए आए और बिज्जी के इंटरव्यू को आधार बनाकर दो किस्तों में (क्य साहित्य में माफिया सरगरम है? ) दर्जनों साहित्यकारों की टिप्पणी छापी। तब बिज्जी ने मुझे बताया कि संचेतना के बाद इनकी चेतना को खराब करने के लिए कितनों ने फोन पर बिज्जी को धमकाया। मेरे एक पत्र को ही अपनी एक किताब की भूमिका बना देने वाले बिज्जी की सबसे बड़ी ताकत उनका अपने पाठकों का प्यार और आत्मीयता है। बिज्जी की बेटी द्वारा दर्जनों कहानियों को कूड़ा जानकर जलाने की घटना भी काफी रोचक है। पूछे जाने पर बड़ी मासूमियत से बेटी ने कहा बप्पा एक भी पन्ना कोरा नहीं था सब भरे थे सो जला दी। इस घटना को याद करके आज भी अपना सिर धुनने वाले बिज्जी को भले ही नोबल ना मिला हो, मगर नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जाना ही नोबल मिलने से ज्यादा बड़ा सम्मान है, क्योंकि हमारे तथाकथित महान आलोचक और समीक्षक शायद अब बिज्जी को बेभाव नहीं कर पाएंगे। रियली बिज्जी दा तुस्सी रियली ग्रेट हो।



शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-10



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सोनियाजी क्या आपको शर्म नहीं आती ?


किसी भारतीय बहू को बेशर्म कहने का साहस (हिम्मत) मुझमें नहीं है। खासकर गांधी परिवार की विदेशी बहू के रूप में भारत आने वाली और सत्ता से परहेज करते करते सत्ता की मुख्यधारा बन जाने वाली  कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी को तो बेशर्म कहने के लिए मैं सोच भी नहीं सकता। दुनिया की सबसे पावरफुल महिलाओं में शुमार की जाने वाली सोनिया पीएम की कुर्सी को लतिया कर भी आज कांग्रेस की परम पावर है। हालांकि सरकार को चलाने और देश पर राज करने के नाम पर यूपीए रोजाना देश को शर्मसार कर रही है। सोनिया और मनमनोहन की जोड़ी ने देश को अनगिनत करप्शन के कारनामे दिए। 126 साल के कांग्रेसी इतिहास में शायद पीएम और पार्टी चेयरमैन की शायद यह सबसे निकम्मी और भ्रष्ट जोड़ी है। खैर सोनिया के जमाने में तो करप्शन को खुली छूट और बेरोकटोक का लाईसेंस मिल गया है। हर राज्य में करप्ट लोगों की खासी शान है। पंजा और करप्शन में कोई अंतर नहीं रह गया है। शायद अंग्रेजी न्यूजपेपर में भी इस तरह की खबरों पर यदा कदा ही सही आप निगाह डाल देती होंगी। यूपीए ने तो करप्शन के शानदार प्रदर्शन करके पुराने सारे मामले को तोड दिया। पेपर समेत पूरा देश मन्नू राहुल प्रियंका पीसी प्रणव तमाम को देखकर उबकाईयां भरने लगा है। देश के बदलते मिजाज का कुछ तो भान आपको भी चल ही रहा होगा। प्लीज मैडम मन्नू समेत यूपीए से पूरा देश शर्मसार (इन चापलूसों के घेरे से निकले बगैर आपको देश की सही सूरत नजर नहीं आएगी) महसूस कर रहा है। क्या आपको अपनी सरकार अपनी पार्टी, और यूपीए के करप्ट शासन पर कोई शर्म नहीं आ रही है ? प्लीज सच सच बताएंगी ?
वाकई पूरा देश यह जानने के लिए बेसब्र और बेकरार है, सोनिया जी।



मोदी का पीएम रेस (गेम) चालू

कल तक बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं के सामने हाथ जोड़कर जीजीजीजी की मुद्रा में खड़े रहने वाले अहमदाबाद नरेश नरेन्द्र मोदी के मन में अब दिल्ली नरेश बनने का सपना करवटे ले रहा है। तभी से हाथ जोडू मोदी नरेन्द्र मोदी उन नेताओं को तरजीह देना ही (बंद) कम कर दिया है, जो खुद को मोदी के भगवान पिता होने का दावा करते अघाते नहीं थे। पीएम रेस में मोदी के सामने इनके गुरूदेव जी ही आड़े आ रहे है। रथयात्रा करके वे यह बताने कम जताने की ज्यादा चेष्टा में लगे हैं कि  मैं अभी रिटायर नहीं हूं। एक साथ कई मोर्चे पर माहौल को सामान्य करने की कवायद में लगे मोदी बीजेपी सम्मेलन में ना आकर एक ही साथ सबको मैसेज दे दिया कि अब मेरी बारी है, और आई एम द बेस्ट। कानूनी तौर पर क्लीन चिट पाने की जुगत भिड़ा रहे मोदी अपने एंटी नौकरशाहों को सबक सीखाने में लग गए हैं। गोधरा के बाद मोदी रामलीला के विभीषण बने निलंबित आईपीएस संजीव भट्ट को सरकारी ससुराल भेजने के बाद पीएम के लिेए मोदी मैजिक का स्टेज शो चालू हो गया है। यानी कानूनन क्लीन होने के बाद ही तो कमलछापू नेताओं से निपटना मोदी के लिए सरल या आसान उर्फ इजी होगा। यानी बीजेपी में सबसे भारी अटल बिहारी के बाद मोदी का गेमप्लान चालू हो गया है। पीएम रेस का नशा ऐसा कि कई लोग मोदी से अलग होकर और दिखकर भी अपनी जुगाड में लगे है। मगर यह काफी दिलचस्प होगा गुजरात और गांधीनगर में दम घुट रहे मोदी क्या करेंगे। यानी जो मोदी से टकराएगा, मिट्टी में मिल जाएगा के सामने कौन ठहरता है और कौन टीक पाता है?



टूजी और जीजीजीजीजीजीजीज........

इस टूजी ने कुछ को इजी तो कुछ को काफी बिजी कर रखा है। कांग्रेस ने तो इंडिया को बपौती मानकर पूरे देश को गुमराह करके करप्शन को केवल दबाने में लगी है। सत्ता को घर की जागीर मान कर चलने वाली बिगडैल पुत्रियां समेत राजा महाराजा सांसद नेता मंत्री संतरी इन दिनों तिहाड में है। अंदर बाहर घमासान है। पीसी की खामोशी से कोहराम है। अपने बंगाली मोशाय ने कुबेर मंत्रालय के गोपनीय खतों को बाहर करके पीसी की ईमानदारी को बेनकाब कर दिया। एक तरफ मैडम जी दिल्ली में तो देश के बाहर मनजी साहब। पार्टी के दो बड़े पीलरों को गिराने के लिए बुलडोजर लेकर खड़ी बीजेपी के प्रेशर से सरकार के पसीने सूख नहीं रहे है। ऐसा लग रहा था मानों इस बार कुछ होकर ही रहेगा। मगर देश को घर की जागीर समझने वाली मेम ने देशी सिपहसालारों को एचएमवी की तर्ज पर झाड़ा और करप्शन को बैक करके एक साथ खड़ा करके देश को दिखा दिया कि हम सब एक साथ एक है। कभी कभी तो पंजा के एचएमवी बन जाने पर दिल को सुकून सा लगता है कि वाकई सता सुख के वास्ते हमारे नेता केवल जीजीजीजीजीजी होकर ही रह गए है।

मल्टीकलर मनमोहनजी

वैसे तो रंग ढंग हाव भाव बोल चाल और बात व्यावहार में पूरी तरह बेरंग और बेजान से दिखने वाले अपने पीएम मनजी को कोई कितना भी बेभाव माने, मगर सच तो यह है कि बेदम से दिखने वाले मनू साहब रियली वेरी वेरी मल्टीकलर के मल्टी स्पेशल शो है। पल पल रंग बदलने वाले मन्नू जी  को बूझ पाना भी कम से कम यूपीए के तमाम लोगों के लिए कठिन है। बिना ताल ठोक ठाक के खामोशी से अपनी बात कह जाने वाले एमएमएस को सुन पाना भी काफी कठिन है। यानी आपके साथ रहकर भी वे अगर साथ नहीं है तो भी आप इसकी शिकायत नहीं कर सकते। सबों पर दावे के साथ यकीन करके यकीन खोना इनकी फितरत है। नेता से पहले नौकरशाह रह चुके मनजी यानी नीम चढे करैला की तरह सब कुछ सुनकर भी चुप्प रह जाना और अपनी मैड़म के सामने भी सब कुछ बता पाने में संकोच करना इनकी आदत है। चारो तरफऱ से इनकी काबलियत को लेकर सवाल उठने लगे है। आजादी के 65 साला की सबसे करप्ट सरकार के मुखिया को क्षण भर भी इसका मलाल नहीं। गुण अवगुण के सारे समीकरण से काफी पीछे रह गए मन्नू जी की किस्मत काफी तेज यानी सांड़ वाली है। करूणा निधान मैड़म की दया से ही अपने मन्नू दादा सही सलामत हैं। मार्च 2012 से  पहले इनकी गाड़ी फिलहाल पटरी पर ही रहेगी। मन्नू दादा कि किस्मत से जल रहे सभी दलों के बेचैन लोगों की आत्मा कचोट रही है कि किस्मत मिले को मुन्ना जैसा कि बदनाम होकर भी पार्टी के भाग्य नियंताओं के गले की फांस बन जाए । ना निगलते बने और नाही उगलते। धन्य है तू मन्नू दी रश्क भी होता है इश्क भी होता है कि खोटा होकर भी सिक्का ठनठना कर चल रहा है, और तमाम लोग सिर झुकाकर मात खा रहे है।

मन्नू का मोटेंक छाप बदला


हमारे पीएम मन्नू साहब बड़े ही नेकदिल के सज्जन (सज्जन कुमार नहीं) पुरूष हैं। विदेशी बैंको में काम करने वाले मन्नू जी रिजर्व बैंक आफ इंडिया के चेयरमैन भी रह चुके है। (यकीन ना हो तो 24-26 साल पुराने किसी सड़े गले नोट को उठाकर देख लो) पीवी नरसिम्हा राव की दया से पोलटिक्स में इंट्री करने वाले मनजी कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डाल रहे है. इनके साथ मोटेंक जी इंडिया को ग्लोबल मैप से ही आउट करने की अंपायरिंग कर रहे है। पलक झपकते ही आधे हिन्दुस्तान को अमीर बना चुके एमएमएस एंड एमएसए की जोड़ी लगता है कि कांग्रेस से 1984 के दंगों का बदला ले रही है। इन ग्लोबल इकोनामिस्टों की मदद से गरीबों को अब सांस लेना भारी पड़ता दिख रहा है। सामानों की कीमते कुतुबमीनार से उपर और जिंदगी की वैल्यू पाताल से भी नीचे रसातल में जाती दिख रही है। लगता है कि सरकार भले ही संकट में हो मगर ज्यादातर लोगों के मुंह से निवाला छीने बगैर दोनों सरदार जी मानने (रूकने) वाले नहीं है। उस पर सोनिया माता का आशीष है। यानी वाकई संकटग्रस्त इंडिया संकट में ही है।  


इमोश्नल (ब्लैकमेलर) राहुल झंडू बाम


फिल्म स्टार सलमान खान की फिल्म दबंग के बाद इंटरनेशनल स्तर पर ख्याति प्राप्त पेनकिलर झंडू बाम को आज बच्चा बच्चा जानने लगा है. कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी नेताजी की छवि से ज्यादा पेनकिलर होते दिख रहे है। देश भर में कहीं भी (खासकर यूपी को ज्यादा तवोज्जह) भी अनिष्ट हुआ नहीं कि बस लोगों से मिलकर झंडू बाम लगाकर दर्द हरने अपने युवराज महोदय हाजिर हो जाते। यह और बात है कि दिल्ली में अगर आग भी लगी हो तब भी युवराज अपने मांद से बाहर नहीं आते। कश्मीर में जाकर युवराज खुद को भी कश्मीरी घोषित करके लोगों को इमोश्नल कर देते , तो कभी उडीसा कभी विदर्भ तो कभी भट्ठा पारसौल में जाकर  किसानों और मजदूरों के आंसू पोछने लगते। कहीं मजदूर के साथ मजदूर बनके तो कहीं किसी दलित के घर में जाकर उनके यहां ही खाना खाकर सो जाते है। देश को समझने के चक्कर में मसहम लगाते फिर रहे राहुल भैय्या का नाम ही झंडू बाम पड़ गया है। ज्यादातर लोग इन्हें प्यार से राहुल झंडू बाम भी कहने लगे है। इमोश्नली ब्लैकमेलिंग करते फिर रहे युवराज को कौन समझाए कि संचार युग में गांव देहात तक के लोग भी अब पहले जैसे मूर्ख नहीं रह गए है।


दन दना दन दौड़ रही है राजीव एक्सप्रेस


यूपीए सरकार संकट में है। मनजी की हालत पतली हो रही है। पी. चिंदबरम खासे उलझ गए है। विपक्ष पानी पी पी कर बौछारें मार रहा है। सरकार की इमेज की तो बस्स,ना ही पूछो जो लगातार रसातल में जा रही है। संकट की इस घड़ी में संकट मोचक के रूप में लब्ध प्रतिष्ठ भूतपूर्व पत्रकार राजीव शुक्ला जी (रविवार छाप) को चैन कहां। 21 पार्टियों की बारात के दुल्हा बने मनजी सरकार की बारात को सेट और फिट रखने के लिए राजीव एक्सप्रेस को नाना प्रकार के नेताओं से मिलकर गोटी तय करनी पड़ रही है। बारात को बिखरने से बचाने का ठेका राजीव शुक्ला एंड कंपनी के पास है, और संकटमोचक की तरह वे यहां वहां जहां तहां अपनी संतोषी मां। जय संतोषी मां की तरह राजीव भैय्या भी मुन्ना को बदनाम होने से बचाने के लिए दर दर भटक रहे है। जय हो राजीव भाय्या जो फिलहाल यूपीए की कटी या (राम तेरी.......में).मैली यमुना में खो गई नाक को बचाने में लगे है। ध्न्य हो राजीव भाय्या कि जो कोई और ना कर सके वो हमारे यूपी के कनपुरिया लाल कर दिखाते है।



फिर टला किराया बढ़ाने का मामला

यूपीए सरकार में रेलवे को किराया ना बढने का ग्रहण लग गया है। 2004 में बिहार के पुरोधा लालू प्रसाद यादव ने रेल मंत्री बनते ही नाना प्रकारेण किराया नहीं बढ़ाया, फिर भी रेल को पटरी पर रखा। लालू के बाद तुनकमिजाजी ममता दीदी रेल मंत्री बनी और लालू के पदचिन्हों पर चलती हुई किराया नहीं बढ़ाया, मगर लालू जैसा जंतर मंतर नहीं कर सकी। लिहाजा रेलवे को पटरी से उतार कर बंगाल की गद्दी पर जा बैठी। दीदी की दया से त्रिवेदी जी रेल मंत्री बनकर फंस गए है। सारा खजाना खाली है। कर्जो के बोझ से रेल पटरी समेत रेल रसातल में जा रही है। वे सीधे 25 फीसदी किराया बढ़ाने की सिफारिश कर रहे है, मगर भला हो जनता कि ज्यादातर नेता समेत मनू सरकार अपने ही जाल में फंसी है। संकट की इस घड़ी में रेलवे की कौन सुने। कौन किराया बढ़ाने का जोखिम उठाए। विपक्षी हमलों से वैसे भी मनजी की पतलून ढीली होती जा रही है। कैंसर से निजात होकर भारत लौटी मैडम की पूरी पार्टी ही आज कैंसरग्रस्त दिख रही है। लिहाजा थोडे दिन और मजा ले लिया जाए। वैसे भी रेल और परिवहन बसों के किराये में ढाई गुना अंतर आ जाने के बाद रेल पर यात्रियों और मंत्रालय पर घाटे का बोझ उम्मीदग से कई गुना अधिक बढ़ गया है। 


केवल बोलने वाला किंग

इस समाज में ज्यादा बोलना हमेशा नुकसानदेह साबित होता आया है। मामला चाहे बाबा रामदेव का हो या राम जेठमलानी की ज्यादा बोलने की वजह से इनकी साख गिरी है। जनलोकपाल पर अनशन करके रातो रात स्टार बन गए अन्ना हजारे भी एकाएक हर मामले में इतना बोलने लग गए हैं कि .....। यही हाल है बालीवुड के स्टार और खुद को (अपने मियां मिठ्ठू) आई एम द बेस्ट कहने वाले किंग खान यानी शाहरूख खान का। वजह बेवजह हमेशा ही बोलते रहने वाले ?...खान भी कुछ ना कुछ बोलकर मजा लेते और देते रहते है। अपने प्यार और सेक्स संबंधों पर बोलते बोलते राजा साब बंगालन बाला विपाशा की रंगरलियों वाले बीएफ पर सबको ज्ञानदान देकर सरेआम बसु को बेबस कर दिया। अब नया धमाका राजा साब ने किया है कि इनका मन महिलाओं के लिए लेडिज टायलेट बनवाने की है। इस पावन पुनीत कार्य के लिए वे इतना धन कमाना चाहते है कि राजा को दूसरों के सामने कभी हाथ ना फैलाना पड़े। किंग का दिल भी किंग जैसा होना चाहिए खान साब। यही बात मुबंई मे या कहीं भी तीन चार लाख लगाकर या सुलभ इंटरनेशनल के सूत्रधार बिंदेश्वर पाठक से कहकर एक लेडिज टायलेट बनवाकर उसके उदघाटन के समय यही बात बोलते तो सबको भला लगता। मगर हवा में बात करने से सिवाय मजाक (जग हंसाई) के कुछ भी हासिल नहीं होता खान साब । महिलाओं के लिेए कुछ करके दिखाइए खान साब। अल्ला ताल्ला ने आपको पहले ही बहुत कुछ दे रखा है या दिया है।


चौतरफा घिर गए शोएब

अभी अभी हमने अर्ज किया है कि ज्यादा बोलना कितना नुकसानदेह होता है। किंग खान के बाद पाकिस्तान के तेज गेंदबाज शोएब अख्तर बोली से घाटा उठाने वालों में सबसे अव्वल है। अगर जुबांन पर इनका कंट्रोल रहता तो ये पाकिस्तान के सर्वकालीन श्रेष्ठ खिलाडियों में शुमार किए जाते। इनका रिकार्डस भी पूरी दुनियां में बच्चा बच्चा के जुबांन पर होता। मगर साहब को ज्यादा और बहुत ज्यादा बोलने का रोग है। रावलपिंड़ी एक्सप्रेस के नाम से विख्यात कम कुख्यात ज्यादा शोएब भाई ने अपनी किताब में हंगामा करके फंस गए। मास्टर ब्लास्टर पर टीका टिप्पणी करके तो जो लानत मलानत होनी थी वो तो हो गई, मगर साहब ने क्रिकेट में गेंदों के साथ छेड़छाड और फिक्सिंग पर मुंह खोल  कर तो पुरानी घटनाओं पर धमाका कर दिया। मगर, अब पाकिस्तान बोर्ड ने तो मामले की जांच  के आदेश दे दिए और किताब को ही साक्ष्य मानकर कार्रवाई पर विचार कर रही है। यानी शोएब भाई अपने ही बांउसर से घायल और आउट होते दिख रहे है। ऐसी हालात में तो शोएब भाई हम आपकी सलामती के लिेए खुदा खैर करे की ही कामना कर सकते है, क्यों ?


योग के आगे पीछे भोग


उपर की दो मिशालों (मिशाइलों) से तो आपलोग यह देख ही चुके होगें कि ज्यादा बोलकर अपना नुकसान उठाने वालों में एक और ब्रांड स्टार की फिर से चर्चा किए बगैर यह रामायण अधूरी रहेगी। योगबाबा के रूप में दुनिया जहान में धमाल मचाकर लाखों-करोड़ों को पार करके अरबों की जायदाद बटोरने वाले बाबा रामदेव की बंद बोलती एक बार फिर चालू हो गई है। रामलीला मैदान से सरकार को धमकाते धमकाते मैदान में पुलिस के रात में एकाएक धमक जाने पर महिला कपड़ों में जान बचाकर भागे बाबा की दो माह तक तो बोलती बंद रही, मगर इस बार खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी की कर्मभूमि झांसी से बाबा मन्नू सरकार को धमका रहे है। काला धन पर सरकार को बेहाल करने वाले बाबा के खिलाफ सरकारी जांच में रोजाना नए-नए खुलासे हो रहे है। बाबा की 1100 करोड़ की संपति के साथ साथ कई मामले भी उजागर हो रहे है। सबसे हैरतअंगेज मामला तो यह है कि इनके बालसखा बालकृष्ण ना केवल पासपोर्ट को लेकर ही विवादित नहीं है, बल्कि दर्जनों कंपनियों के सीईओ भी है। यानी योग के पीछे भोग है या भोग के आगे योग का खेल हो रहा है, यह तय कर पाना इतना आसान नहीं है। काला धन काला धन चिल्लाते चिल्लाते हरियाणा वाले योग बाबा रामदेव का पुरा कुनवा ही कालिया दिखने लगा है। हालांकि इसके बाद भी बाबा रामदेव सरकार के खिलाफ जनांदोलन छिड़ने की भविष्यवाणी करते हुए देश को अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे है। बुरा हो ज्यादा बोलने की कि इसके मायाजाल में ना चाहकर भी लोग फंस ही जाते हैं।   


केवल क्रिकेट खोलो भगवान जी

पिछले 23 साल से क्रिकेट खेलते खेलते लगता है कि मास्टर ब्लास्टर का मन क्रिकेट से भरने लगा है। तभी तो कोई माने या ना माने मुफ्त में वनडे क्रिकेट के फॅारमेट को चेंज करके 25-25 ओवर की दो दो पारी का कर देने का शिगूफा उछालने लगे है। तमाम प्रतिष्ठानों द्वारा इंकार किे जाने के बाद भी खेल को और ज्यादा मनोरंजक और फेवरिट बनाने का तर्क भगवान जी दे रहे है। मगर भगवान जी के तर्क के पीछे कहीं यह खौफ तो नहीं कि इनके रिकार्डस को भविष्य में कोई और तोड ना दे। लिहाजा क्रिकेट के 
फॅारमेट को ही इतना छोटा (वनडे पायजामा और 20-20 अंडरवियर माना गया है) बना दिया जाए कि शतकों को तोडने की तो बात ही दूर की हो जाएगी। यानी रोमांचक क्रिकेट में शतक बनाना ही ज्यादातर प्लेयरस के लिए सपना हो जाएगा। भगवान जी के नीयत में कहीं अपराजेय बनने का सपना तो नहीं ?  क्यों भगवानजी अगर इस तरह का इरादा है यार तो वेरी वेरी बैड। आप एक प्लेयर की तरह केवल खेलो जी, बस्स।


तुस्सी ग्रेट हो वालिया जी


दक्षिण दिल्ली में कुतुबमीनार के निकट लाडो सराय कालोनी के जनता फ्लैट(Ews) में रहने वाले विनय वालिया को मैं पिछले 16-17 साल से जानता हूं। इनसे मेरी पहली जान पहचान और मुलाकात 1996 के संसदीय चुनाव के दौरान हुई थी। तब ये महोदय बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से डीडीए के करप्शन को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रहे थे। वालियाजी  थोडा बहुत मोटर एंड आटो मोबाइल्स का काम करने के अलावा कभी कभार प्रोपर्टी का काम भी कर लेते थे। पहले केबल आपरेटरों की मनमानी के खिलाफ मोर्चो खोलकर अदालत तक घसीटते हुए मनमानी को रोकने में कामयाब हुए वालिया पिछले ढाई साल से बिस्तर पर है। डीडीए की सैकड़ों एकड़ जमीन पर हुए अवैध कब्जों के खिलाफ दर्जनों आरटीआई डालकर अधिकारियों और बिल्डरों की नींद हराम कर रखी है। भूमाफियाओं ने इनके ही पैर को बेदम करके बिस्तर पर बेबस कर दिया है । इसके बावजूद डीडीए और ग्राम सभा की जमीन पर हुए अतिक्रमण को लेकर नया मोर्चो खोलते हुए वालिया ने एक ही साथ फिर सैकडों को अपना दुश्मन बना लिया है। फिलहाल वालिया ने कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद पर निशाना साधा है। इनकी इटालियन बीबी द्वारा दर्जनों एकड़ जमीन में स्थापित सांस्कृतिक केंद्र के औचित्य और आवंटन पर सवाल खड़ा करके अधिकारियों को बेदम कर रखा है। बिस्तर पर लेटे लेटे कंम्प्यूटर के जरिए शेयर से रोजाना कुछ कमाई करने वाले वालिया जी के घर में चारो तरफ अभाव झलकता है फिर भी ईमानदारी में खरा सोना वालिया के इरादों में भरपूर दम बाकी है। वाकई तुस्सी ग्रेट हो वालियाजी। आपको मेरा सलाम कि आप अपने इरादों में हमेशा कामयाब रहे।