सोमवार, 30 जनवरी 2012

CWG घोटाला : शीला की चिट्ठी में चिदंबरम पर आरोप






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CWG घोटाला : शीला की चिट्ठी में चिदंबरम पर आरोप
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नई दिल्ली: कॉमवेल्थ खेलों में हुए घोटाले को लेकर कोर्ट में याचिका दायर करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने जो दो खत दिल्ली की अदालत में पेश किए हैं वह शीला दीक्षित ने प्रधानमंत्री को लिखे थे।


इनमें से एक चिट्ठी एनडीटीवी के हाथ लगी है जो कि शीला दीक्षित ने शुंगल कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद लिखी थी। इसमें दिल्ली की मुख्यमंत्री ने शंगुल कमेटी की रिपोर्ट की आलोचना के साथ-साथ तब के केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर अंगुली उठाई है। उन्होंने लिखा है कि चिदंबरम की ओर से तालमेल की कमी के चलते खेलों की तैयारियों में देरी हुई जिसके चलते बजट बढ़ गया।


कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले को लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और बाकी लोगों के खिलाफ शिकायत सीबीआई के पास भेज दी गई है। ये जानकारी दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को दी है। दरअसल, दिल्ली की अदालत में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित दिल्ली सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री राजकुमार चौहान और आयोजन समिति के पूर्व चेयरमैन सुरेश कलमाडी के खिलाफ एक याचिका दायर करके इन तीनों को करोड़ों रुपयों के घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
याचिकाकर्ता ने सबूत के तौर पर शीला दीक्षित के कुछ खत पेश किए हैं। इन खतों पर गौर करके हुए कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से पूछा था कि उसने अब तक मामला दर्ज क्यों नहीं किया। पुलिस ने अपने जवाब में कोर्ट से कहा कि इस घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है इसलिए मामला भी उसे ही दर्ज करना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 23 फरवरी को होगी।




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शनिवार, 28 जनवरी 2012

मारना ही है तो वोट की मार मारें : रामदेव

आप यहां हैं : होम » विधानसभा चुनाव 2012 »

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देहरादून: उत्तराखंड में जनसभा की अनुमति नहीं दिए जाने से बौखलाए योग गुरु बाबा रामदेव ने बुधवार को कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो पार्टी भ्रष्टाचार खत्म करने की बात उठाने वालों पर हमला करती है, उसका चुनाव में बहिष्कार किया जाना चाहिए।


बाबा रामदेव बुधवार को अभूतपूर्व सुरक्षा के बीच पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों तक देश के तीन-तीन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तथा पच्चीस मुख्यमंत्री उनकी भगवान की तरह से पूजा करते थे लेकिन आज ऐसा क्या हो गया जब उन्हें सभा करने की अनुमति तक नहीं दी गई और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा यह रिपोर्ट लगा दी गई कि सभा करने पर कानून और व्यवस्था की समस्या आ सकती है।


उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुये कहा कि उन्होंने काले धन के मुद्दे का उठाकर ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया है कि आज उनके मुंह पर कालिख लगायी जा रही है। उन्होंने कहा ‘मैं कहता हूं कि मेरे पूरे मुंह पर कालिख लगा दो लेकिन काला धन वापस ला दो।’ उन्होंने कहा कि वह किसी भी नेता या राजनैतिक पार्टी के विरोधी नहीं हैं।


बाबा रामदेव ने कहा कि वह किसी भी पार्टी या नेता पर जूता या चप्पल चलाने के पक्षधर नहीं हैं। ‘यदि मारना ही है तो वोट की मार मारें। बेइमानों का बहिष्कार करें।’


बाबा रामदेव ने कहा कि अन्ना हजारे की टीम द्वारा ऐसा कौन सा काम किया जा रहा है जिसके चलते उनके उपर जूता फेंका जा रहा है। डंडे मारे जा रहे हैं। यह कौन करा रहा है। उन्होंने कहा कि जो लोग इस देश को बचाने के लिये काले धन और भ्रष्टाचार को हटाने की बात कह रहे हैं उन्हें तो मिटाने, सताने तथा दफनाने की कोशिश की जा रही है और जो लोग काले धन के मुद्दे को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज वक्त का तकाजा है कि किसी पर न तो जूते ही चलाये जायें और न ही किसी को थप्पड़ मारा जाये बल्कि वोट के माध्यम से उनका बहिष्कार किया जाना चाहिए।


एक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि उनके निशाने पर कोई भी पार्टी नहीं है लेकिन कुछ पार्टियों में जो राक्षस और गुंडे हैं उनके निशाने पर मैं जरूर हूं। उनसे जब यह पूछा गया कि किस पार्टी में गुंडे और राक्षस हैं जो उनको निशाना बनाये हुये हैं तो उन्होने कहा कि भारतीय संस्कृति की स5यता में किसी का नाम लिये बगैर ही अपनी बात कहने की परम्परा है।


बाबा रामदेव ने कहा कि कुछ पार्टियों द्वारा लाखों करोड़ों रूपये के घोटालों पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है और जब इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की जाती है तो कहा जाता है कि चुनाव लड़ लें। ‘यह भी कोई बात हुई। इस देश में 121 करोड़ जनता है। क्या सभी लोगों को अपना हक मांगने के लिये चुनाव लड़ना पड़ेगा।’ उन्होंने कहा कि इस देश में जो भी काले धन की बात करता है, वह लोकतंत्र के लिये खतरा बन जाता है।


रामदेव ने कहा कि इस देश के चार सौ लाख करोड रूपये के कालेधन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित किया जाना चाहिये। उनसे जब पूछा गया कि कौन लोग ईमानदारी से भ्रष्टाचार मिटाने की बात कह रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने खुलकर भ्रष्टाचार मिटाने की बात कही है और लोगों को उनका साथ देना चाहिये। कम से कम इन पार्टियों ने शुरूआत तो की है।


उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि कमोबेश सभी पार्टियां देश में भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार हैं लेकिन कोई 90 प्रतिशत जिम्मेदार है तो कोई 10 प्रतिशत। उन्होंने कहा कि उन्हें उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में जनसभाओं की अनुमति मिल गयी लेकिन उत्तराखंड में ऐसा क्या है जो उनको अनुमति नहीं दी गयी।


रामदेव से जब यह पूछा गया कि उत्तराखंड में भाजपा में मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी को अगले मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है जबकि कांग्रेस से अभी किसी का नाम सामने नहीं आया है, तो उन्होंने कहा कि जिसके पास चेहरा होगा वही तो उसे सामने रखेगा। जिसके पास चेहरा ही नहीं होगा, वह क्या रखेगा। ‘जो लोग अपने लिये दूसरे का चेहरे का प्रयोग करते हैं उनका हम कैसे मूल्यांकन कर सकते हैं।’ उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि वह योग धर्म के साथ साथ राष्ट्र धर्म का भी निर्वाह कर रहे हैं।


उन्होंने बताया कि उनके समर्थक कार्यक्रम, व्यवस्था परिवर्तन, भ्रष्टाचार उन्मूलन सहित सात मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। जो लोग उन मुद्दों का समर्थन कर रहे हैं, उन्हें वोट दिया जाना चाहिये, अन्य का बहिष्कार किया जाना चाहिये।




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प्रदर्शन अच्छा न रहा तो राहुल दोषी ठहराए जाएँगे: पवार


 रविवार, 29 जनवरी, 2012 को 05:42 IST तक के समाचार
शरद पवार
शरद पवार ने कहा कि वे 2014 का चुनाव नहीं लड़ेंगे
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा है कि उत्तर प्रदेश चुनावों में कांग्रेस ने राहुल गांधी को 'स्टार कैंपेनर' के तौर पर आगे किया है और यदि पार्टी का प्रदर्शन चुनावों में अच्छा नहीं रहता तो इसके लिए उन्हें दोषी ठहराया जाएगा.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने भारतीय टीवी चैनल सीएनएन-आईबीएन को दिए एक इंटरव्यू में ये भी कहा कि 45 साल के सक्रिय राजनीतिक करियर के बाद वे चाहते हैं कि युवा नेताओं को मौका मिले और इसीलिए वे 2014 में होने वाले आम चुनाव नहीं लड़ेंगे.
पवान ने 1967 में चुनावी राजनीति में क़दम रखा था और तब से वे हर चुनाव जीते हैं. वे वर्ष 1985 से लोकसभा में हैं और तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
"कांग्रेस पार्टी ने उनको (राहुल को) आगे किया है. वे पार्टी के मुख्य कैंपेनर (प्रचारक) हैं, दिग्विजय सिंह नहीं, अन्य नेता नहीं. चाहे कांग्रेस पार्टी जो भी कहे, यदि उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता तो जनता और राजनीतिक विश्लेषक उन्हें ही दोषी मानेंगे"
शरद पवार
सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के मुद्दे पर 1999 में कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस बनाने वाले पवार ने बाद में इस मुद्दे पर अपने क़दम वापस ले लिए थे और वर्ष 2004 और 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में मंत्री है.

'राष्ट्रीय नेतृत्व में बदलाव नहीं देखता'

उत्तर प्रदेश के चुनावों के संदर्भ में उन्होंने कहा, "कांग्रेस पार्टी ने उनको (राहुल को) आगे किया है. वे पार्टी के मुख्य कैंपेनर (प्रचारक) हैं, दिग्विजय सिंह नहीं, अन्य नेता नहीं. चाहे कांग्रेस पार्टी जो भी कहे, यदि उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता तो जनता और राजनीतिक विश्लेषक उन्हें ही दोषी मानेंगे."
उनसे पूछा गया कि क्या राहुल गांधी को विधान सभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री के पद के लिए उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाएगा?
शरद पवार का कहना था, "मुझे नहीं पता कि यदि विधान सभा चुनावों में प्रदर्शन अच्छा भी रहता है तो उसके तत्काल बाद कांग्रेस उन्हें इस पद के दावेदार के रूप में पेश करेगी या नहीं...हो सकता है कि वे अगले चुनावों तक का भी इंतज़ार करे. कम से कम आज की स्थिति में तो मैं राष्ट्रीय नेतृत्व में कोई बदलाव होता नहीं देखता..प्रधानमत्री के स्तर पर."
कांग्रेस ने कहा है कि पवार की टिप्पणी न्यायसंगत नहीं है क्योंकि चुनावों में पूरी पार्टी काम करती है.

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उत्तराखण्ड में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में बसा है एक गांव

Written by डा. आशीष वशिष्‍ठ Category: विश्लेषण-आलेख-ब्लाग-टिप्पणी-चर्चा-चौपाल Published on 23 January 2012
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: जयंती पर विशेष : भारत रत्न नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारतीय इतिहास में एक बहेद महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। नेता जी का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, उड़ीसा में हुआ था, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि उड़ीसा से हजारों किलोमीटर दूर उत्तराखण्ड में नेताजी की याद में उनके नाम से एक गांव बसा हुआ है, जहां की मिट्टी में आज भी नेताजी की मौजूदगी का एहसास होता है। उत्तराखण्ड राज्य के जिला एवं तहसील हरिद्वार के इस गांव का नाम है सुभाषगढ़। उत्तर रेलवे के लक्सर जंक्‍शन से रेल जब हरिद्वार के लिए बढ़ती है तो पहला स्टेशन ऐथल पड़ता है। ऐथल स्टेशन से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में अवस्थित है गांव सुभाषगढ़। सड़क मार्ग से लक्सर और हरिद्वार से गांव सीधे जुड़ा है। जिला मुख्यालय लगभग 23 किलोमीटर और राज्य की राजधानी देहरादून से लगभग 63 की दूरी पर गांव स्थित है। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि उत्तराखण्ड में नेताजी के नाम का गांव क्यों और कैसे बसा है। किसने इस गांव को बसाया है और नेताजी का गांव से आखिरकर क्या संबंध है।


स्थानीय निवासी ओंकार नाथ शर्मा के अनुसार गांव को बसाने में आजाद हिंद फौज के गर्वनर जनरल शाहनवाज खान की प्रेरणा और योगदान है। जनरल खान का जन्म 24 जनवरी 1914 को गांव मटौर, जिला रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ था। फौजी परिवार के शाहनवाज ने भी अपने लिए देश सेवा का रास्ता चुना और ब्रिटिश आर्मी में भर्ती हो गए और दूसरे विश्‍व युद्व में भाग लिया। वर्ष 1943 में नेताजी से प्रभावित होकर जनरल खान ने आजाद हिंद फौज को ज्वाइन कर लिया। जनरल खान की गिनती नेताजी के करीबियों में होती थी। जनरल शाहनवाज खान के साथ उनके पुश्‍तैनी गांव और आस-पास के क्षेत्र के सैंकड़ों सैनिक आजाद हिंद फौज के झण्डे तले देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। 1947 में आजादी के बाद हुए बंटवारे में आजाद हिंद फौज के सैंकड़ों सैनिक उनके परिवार पाकिस्तान छोड़कर हिन्दुस्तान चले आये थे। जनरल शाहनवाज खान ने इन बहादुर सैनिकों को हरिद्वार के निकट बसाने का नेक काम किया और गांव का नामकरण महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से किया।


गांव के बुजुर्गों के अनुसार बंटवारे के बाद हिन्दुस्तान आने पर सब लोगों ने सरकार द्वारा चलाये जा रहे रिफ्यूजी कैम्पों में शरण ली थी। हालात सामान्य होने पर एक-दूसरे की खोज-खबर पता चली और सम्पर्क स्थापित हो पाया। जनरल खान अपने साथ कंधे से कंधे मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर सैनिकों और भारत माता के सच्चे सपूतों को भूले नहीं थे। जनरल खान प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ गहरी घनिष्ठता थी। गांधी जी और नेहरू की प्रेरणा से जनरल खान ने राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश किया और 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मेरठ से जीत दर्ज की और पॉलियामेंट्री सेक्रेटी और डिप्टी मिनिस्टर रेलवे बने। जनरल खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को आजाद हिंद फौज के इन बहादुर सैनिकों की आजादी की लड़ाई में योगदान और शहादत की दास्तां बताई और उनकों सम्मानपर्वूक जीने के लिए रहने और खेती-बाड़ी के लिए जमीन देने का आग्रह किया। पंडित जी ने जनरल खान के आग्रह को स्वीकार करते हुए इन बहादुर सैनिकों को तत्कालीन उत्तर प्रदेश राज्य के हरिद्वार जिले में घर और खेती की जगह दी। गांव की स्थापना 1952 में हुई थी।


गांव में तकरीबन ढाई सौ घर हैं। गांव की आबादी 1700 के आसपास और 1100 मतदाता हैं। ज्वालापुर (सु0) विधानसभा सीट के तहत गांव आता है। ग्राम पंचायत में ग्राम प्रधान महिला सीट है। पूरे जिले में सारस्वत ब्राहम्णों का यह सबसे बड़ा और इकलौता गांव है। गांव के हर घर में सैनिक हैं। मूलतः पाकिस्तान के जिला रावलपिण्डी (तत्कालीन भारत) के विभिन्न गावों के ये वाशिंदे और उनके पूर्वज सैनिक और किसान थे। ब्रिटिश आर्मी में काम करते हुए इन सैनिकों ने द्वितीय विश्‍व युद्व में भाग लिया। युद्व के दौरान सैनिकों को जापनी फौज ने रंगून की जेलों में बंदी बना दिया था। उस समय नेताजी ने जेलें तोड़कर इन सैनिकों को आजाद करवाया और आजाद हिंद फौज में शामिल होने का आह्वान किया। नेताजी के प्रेरणा से इन बहादुर सैनिकों ने पूरे जोश और हिम्मत के साथ आजादी की लड़ाई में बढ़-चढकर हिस्सा लिया और देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई।


गंाव के घर-घर में सैनिक मौजूद हैं। बदले समय के साथ गांव के युवा सेना के अलावा दूसरी नौकरियां भी कर रहे हैं। गावं में मवेशियों की अच्छी खासी संख्या के कारण अधिकतर निवासी दूध के व्यवसाय से जुड़े हैं। हरिद्वार शहर में दूध की लगभग 60 फीसदी सप्लाई इसी गांव से होती है। गांव में चावल व गन्ने की खेती अधिक होती है। गांव में स्कूल, डाकघर आदि की सुविधाएं हैं। हरिद्वार शहर के करीब बसे होने के कारण गांव में जरूरत की हर वस्तु उपलब्ध है। गांव के बीचों बीच नेता जी सुभाष चंद्र बोस की भव्य प्रतिमा स्थापित है। जनरल खान का घर और खेती ऐथल रेलवे स्टेशन के नजदीक है। जनरल खान की मृत्यु 9 दिसंबर 1983 को हो गयी थी। जनरल खान के परिवारीजन आज भी पूरी आत्मीयता से गांव वासियों से मिलते-जुलते हैं। गांववासी भी जनरल खान के परिवार को अपने संरक्षक की तरह मानते हैं। मशहूर उद्योगपति ब्रिगेडियर डा0 कपिल मोहन ने अपने खास दोस्त जनरल खान की प्रेरणा से गांव में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया है। गांव को राष्ट्रपति द्वारा निर्मल गांव का पुरस्कार मिल चुका है। हरिद्वार जनपद में क्षेत्र में इस गावं को फौजियों के गांव के रूप में जाना जाता है, और गांव के काफी युवा वर्तमान में सेना और अर्धसैनिक बलों में कार्यरत हैं अर्थात सैनिक परंपरा आज भी जारी और जीवित है।
लेखक डा. आशीष वशिष्‍ठ स्‍वतंत्र पत्रकार हैं.

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल और बैंक आफ अमेरिका व रिओ टिंटो जैसी कंपनियां... एक अपील


: कॉरपोरेट प्रायोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के सरोकर व राजनीति पर कुछ सवाल : पिछले साल की तरह इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों और प्रतिभागियों ने बरबाद हो रहे पर्यावरण, मानवाधिकारों के घिनौने उल्लंघन और इस आयोजन के कई प्रायोजकों द्वारा अंजाम दिए जा रहे भ्रष्टाचार के प्रति निंदनीय उदासीनता दिखाई है। 2011 में जब इन बातों पर चिंता व्यक्त करते हुए बयान दिए गए, तब फेस्टिवल-निदेशकों ने कहा था कि पहले किसी ने इस ओर हमारा ध्यान नहीं दिलाया था और अगर ये तथ्य सामने लाये जायेंगे तब हम ज़रूर उन पर ध्यान देंगे, लेकिन 2012 में भी उन्होंने ऐसा नहीं किया।
फेस्टिवल के प्रायोजकों में से एक, बैंक ऑफ अमेरिका ने दिसंबर 2010 में यह घोषणा की थी कि वह विकिलीक्स को दान देने में अपनी सुविधाओं का उपयोग नहीं करने देगा। बैंक का बयान था कि 'बैंक मास्टरकार्ड, पेपाल, वीसा और अन्य के निर्णय को समर्थन करता है और वह विकिलीक्स की मदद के लिये किसी भी लेन-देन को रोकेगा'।  क्या यह बस संयोग है कि रिलायंस उद्योग के मुकेश अम्बानी इस बैंक के निदेशकों में से हैं? फेस्टिवल में शामिल हो रहे लेखक और कवि क्या ऐसी हरकतों का समर्थन करते हैं? यह दुख की बात है कि विकिलीक्स की प्रशंसा करने वाले कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशन और समाचार-पत्र भी इस बैंक के साथ इस आयोजन के सह-प्रायोजक हैं।


अमेरिका और इज़रायल जैसी वैश्विक शक्तियों के रवैये को दरकिनार करते हुए मई 2007 से लागू सांस्कृतिक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा कहती है कि शब्दों और चित्रों के माध्यम से विचारों के खुले आदान-प्रदान के लिये आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय कदम उठाये जाने चाहिए। विभिन्न संस्कृतियों को स्वयं को अभिव्यक्त करने और आने-जाने के लिये निर्बाध वातावरण की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, माध्यमों की बहुलता, बहुभाषात्मकता, कला तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान (डिजिटल स्वरूप सहित) तक समान पहुंच तथा अभिव्यक्ति और प्रसार के साधनों तक सभी संस्कृतियों की पहुंच ही सांस्कृतिक विविधता की गारंटी है।


यूनेस्को द्वारा 1980 में प्रकाशित मैकब्राइड रिपोर्ट में भी कहा गया है कि एक नई अंतर्राष्ट्रीय सूचना और संचार व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें इन्टरनेट के माध्यम से सिमटती भौगोलिक राजनीतिक सीमाओं की स्थिति में एकतरफा सूचनाओं का खंडन किया जा सके और मानस-पटल को विस्तार दिया जा सके। याद करें कि 27 जनवरी 1948 को पारित अमेरिकी सूचना और शैक्षणिक आदान-प्रदान कानून में कहा गया है कि 'सत्य एक शक्तिशाली हथियार हो सकता है'।  जुलाई 2010 में अमेरिकी विदेशी सम्बन्ध सत्यापन कानून 1972 में किये गए संशोधन में अमेरिका ने अमेरिका, उसके लोगों और उसकी नीतियों से संबंधित वैसी किसी भी सूचना के अमेरिका की सीमा के अन्दर वितरित किए जाने पर पाबंदी लगा दी गयी है जिसे अमेरिका ने अपने राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये विदेश में बांटने के लिये तैयार किया हो। इस संशोधन से हमें सीखने की ज़रूरत है और इससे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी सरकार के गैर-अमेरिकी नागरिकों से स्वस्थ सम्बन्ध नहीं हैं।


इस आयोजन को अमेरिकी सरकार की संस्था अमेरिकन सेंटर का सहयोग प्राप्त है। यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए कि दुनिया के 132  देशों में 8000 से अधिक परमाणु हथियारों से लैस 702 अमेरिकी सैनिक ठिकाने क्यों बने हुए हैं? हम कोका कोला द्वारा इस आयोजन के प्रायोजित होने के विरुद्ध इसलिए हैं क्योंकि इस कंपनी ने केरल के प्लाचीमाड़ा और राजस्थान के कला डेरा सहित 52 सयंत्रों द्वारा भूजल का भयानक दोहन किया है जिस कारण इन संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों को पानी के लिये अपने क्षेत्र से बाहर के साधनों पर आश्रित होना पड़ा है।


जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की एक प्रायोजक रिओ टिंटो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी खनन कंपनी है जिसका इतिहास फासीवादी और नस्लभेदी सरकारों से गठजोड़ का रहा है और इसके विरुद्ध मानवीय, श्रमिक और पर्यावरण से संबंधित अधिकारों के हनन के असंख्य मामले हैं। केन्द्रीय सतर्कता आयोग की जांच के अनुसार इस आयोजन की मुख्य प्रायोजक डीएससी लिमिटेड को घोटालों से भरे कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के दौरान 23 प्रतिशत अधिक दर पर ठेके दिए गए।


हमें ऐसा लगता है कि ऐसी ताकतें साहित्यकारों को अपने साथ जोड़कर एक आभासी सच गढ़ना चाहती हैं ताकि उनकी ताकत बनी रहे. ऐसे प्रायोजकों की मिलीभगत से वह वर्तमान स्थिति बरकरार रहती है जिसमें लेखकों, कवियों और कलाकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता पर अंकुश होता है। हमारा मानना है कि ऐसे अनैतिक और बेईमान धंधेबाजों द्वारा प्रायोजित साहित्यिक आयोजन  एक फील गुड तमाशे के द्वारा 'सम्मोहन की कोशिश' है।


हम संवेदनात्मक और बौद्धिक तौर पर वर्तमान और भावी पीढ़ी पर पूर्ण रूप से हावी होने के षड्यंत्र को लेकर चिंतित हैं। हम जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल होने का विचार रखने वाले लेखकों, कवियों और कलाकारों से आग्रह करते हैं कि वे कॉरपोरेट अपराध, जनमत बनाने के षड्यंत्रों, और मानवता के ख़िलाफ़ राज्य की हरकतों का विरोध करें तथा ऐसे दागी प्रायोजकों वाले आयोजन में हिस्सा न लें।
हस्ताक्षर
गोपाल कृष्ण
सिटिज़न फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज़
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प्रकाश के. रे
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय शोध-छात्र संगठन
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अभिषेक श्रीवास्‍तव
स्‍वतंत्र पत्रकार
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शाह आलम
अवाम का सिनेमा
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Statement of Criticism on Jaipur Literature Festival
This year too as in 2011, the organizers and participants of Jaipur Literature Festival have revealed their deplorable callousness towards collapsing ecosystem, rampant human rights violations and corrupt practices of many of its sponsors. The festival is being organized at Diggi Palace, Jaipur during 20th – 24th January 2012. Last year, when a statement of concern was released, Festival Directors had claimed that “No one’s brought this to our notice yet. If someone does we shall certainly examine the issue.” In 2012, they cannot say so.


One of Festival’s sponsors, Bank of America has announced that “it would no longer service requests to transfer funds to WikiLeaks, stating that “Bank of America joins in the actions previously announced by MasterCard, PayPal, Visa Europe and others and will not process transactions of any type that we have reason to believe are intended for WikiLeaks” in December 2010. Is it a coincidence that Mukesh Ambani of Reliance Industries Limited is on the Board of Directors of the Bank? Do the authors and poets who are expected to join the festival approve of such behavior? It is sad that reputed publications who have been appreciative of Wikileaks too have chosen to be a co-sponsor alongside questionable entities like Bank of America.


Recalling the UN Declaration on Cultural Diversity that came in to force in March 2007 isolating global agenda setters like USA and Israel recommends “such international agreements as may be necessary to promote the free flow of ideas by word and image”. While ensuring the free flow of ideas by word and image care should be exercised so that all cultures can express themselves and make themselves known. Freedom of expression, media pluralism, multilingualism, equal access to art and to scientific and technological knowledge, including in digital form, and the possibility for all cultures to have access to the means of expression and dissemination are the guarantees of cultural diversity.;


Supporting a New International Information and Communication Order as envisaged in the UNESCO’s MacBride Report of 1980 to counter motivated information flow amidst diminishing geo-political boundaries and shaping of the mental landscapes through internet;


Remembering how US Congress that recommended the passage of the US Information and Educational Exchange Act on January 27, 1948 declared that “truth can be a powerful weapon”. Drawing lessons from the amendments to the US Foreign Relations Authorization Act of 1972 in July 2010 that banned disseminating within the USA any “information about the United States, its people, and its policies” prepared for dissemination abroad with the aim to engage in a global struggle for minds and wills to bolster its “strategic communications and public diplomacy capacity on all fronts and mediums – especially online” This reveals that US government’s relationship with the non US citizens is not healthy;


Questioning literature festival’s sponsorship by the US government institutions like American Centre that have failed to reveal as to why there are some 702 military installations of world’s super power throughout the world in 132 countries along with 8,000 active and operational nuclear warheads?


Objecting to sponsorship by Coca Cola Company that has dried up groundwater and local wells that has forced residents to rely on water supplies from outside their areas and the immorality of the Company’s water-intensive bottling plants in Plachimada, Kerala and Kala Dera, Rajasthan and some 52 water-intensive bottling plants of the company in India;


Outraged at the festival’s sponsorship by Rio Tinto Group, the world’s third- largest mining company has been deemed guilty of collusion with fascist and racist regimes and faces allegations of human, labour and environmental rights violations around the world and over decades;


Taking note of the fact that DSC Limited, the principal sponsor was awarded 23% higher rates in the matter of scam ridden Commonwealth Games as per the observation of Central Vigilance Commission;


Observing the ongoing co-option of literary figures by powers of all shades so that they can facilitate the maintenance of that power by creating a make belief reality;


Recollecting the complicity of sponsors in promoting status quo which censors the creative freedom of writers, poets and artists;


We contend that a literature festival supported by unethical and immoral business enterprises is an exercise aimed at ‘clinical manipulation’ masquerading as a feel good event akin to be an ‘act of hypnosis’.


We express grave concern at the emotional and intellectual depth to fathom the cognitive ramifications of ‘full spectrum dominance’ ideology on the present and future generations.


We appeal to the writers, poets and artists intending to attend the 5 day festival that commences on 20st January, 2012 to condemn corporate crimes, motivated public opinion engineering and state sponsored acts against humanity and disassociate from events that are sponsored by dubious sources.


Sd-


Gopal Krishna
Citizens Forum for Civil Liberties
Mb: 9818089660, Email: krishna1715@gmail.com


Prakash K Ray
Jawaharlal Nehru University Researchers Association
Mb: 9873313315, E-mail-pkray11@gmail.com


Shah Alam
Awam ka Cinema
Mb:9873672153, Email: shahalampost@gmail.com
Kindly Endorse This and Circulate

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

jaipur/ साहित्यिक लंपटों का शराबोत्सव / y भंवर मेघवंशी


बीस जनवरी से जयपुर में हूं। गले में जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल का आईकार्ड लटका कर डिग्गी पैलेस में भारी भीड़ के बीच धक्के खा रहा हूं। कभी फ्रन्ट लोन, कभी मुगल टेंट, कभी दरबार हाल तो कभी बैठक के टेंट में मारा मारा फिर रहा हूं। ज्यादातर बातचीत अंग्रेजी भाषा में हो रही है वह भी विदेशी  लहजे में, सो अपनी तो समझ में कुछ आता ही नहीं। लगता है कि कल लोगों ने जो ज्यादा पी ली थी, वह अभी तक उतरी नहीं है इसलिए लड़खड़ाती भाषा बोली जा रही है। पर भाई अपना साहित्य और साहित्यकार दारू हाथ में उठाकर जैसा डिस्को कर रहा है उससे हमें परम संतुष्टि मिली।
देखो ना हम कितने आधुनिक और प्रगतिशील हो गये है, हमारा साहित्य अब दकियानूसी साहित्य नहीं है, यह मुंशी प्रेमचंद, सहादत हसन मंटो, निराला, नागार्जुन, मुक्तिबोध और नजरूल इस्लाम का देशज ग्रामीण किस्म का साहित्य नहीं है। हमने बिल्कुल ताजा, नये नवेले साहित्यकार बनाये है, जो हाथों में कलम उठाकर दस्तखत करवाने वालों का इंतजार करते अपनी कुर्सियों पर ऊंघ रहे है। इनसे में कुछेक के नाम चेतन भगत, सुहेल सेठ, कपिल सिब्बल नुमा है।


वैसे तो गुलजार, प्रसून जोशी, जावेद अख्तर, आयशा जलाल, फातिमा भुट्टो, सुनील खिलनानी, अशोक वाजपेयी, ओमप्रकाश  वाल्मिकी आदि इत्यादि लोग भी बुलाये गये है, स्वामी अग्निवेश, अरूणा राय, दयामणी बारला, एस आनन्द, तरूण तेजपाल, ऊर्वशी बुटालिया भी आ चुके है जो कपिल सिब्बल की तरह या तो बैठने की जगहें तलाश  रहे है या भीड़ के धक्के खा रहे है। सच मानिये, पांच हजार साल के भारत के ज्ञात इतिहास में साहित्य कभी भी इतना लोकप्रिय नहीं रहा, हां  लेखक दारू और सिगरेट पीकर लिखने के सदैव शौकीन रहे है मगर साहित्य और शराब के ऐसे सांझे सरोकार पहले कभी नहीं देखे गए, शोषक और  शोषितों को ऐसे मंच साझा करते पहले कब देखा गया, सरस्वती पुत्रों पर कोकाकोला रियो टिंटो, टाटा स्टील आदि इत्यादि लक्ष्मीपुत्रों की ऐसी मेहरबानी भी कभी नहीं रही, इस अद्वितीय और ‘‘भूतो न भविष्यति’’ आयोजन को महज ऐसे लोग ही गरिया सकते है जो 12वीं सदी में जी रहे है, यह इक्कीसवीं सदी की उत्सवधर्मिता का जगमग करता हुआ साहित्य उत्सव है, इसका विरोध करने के बजाए भागीदारी खोजना ही चतुर सयानों को ठीक लगा, इसलिए वे अपने अपने तरीके से भागीदारी निभाने चले आए, जैसे ओपेरा विन्फ्रे आई, अनुपम खेर आये, विनोद विधु चोपड़ा आये और भी बहुत सारे आये, अपने अलावा वहां पर सारी सेलीब्रिटीज ही पहुंची, अपने वाले लोग तो सिर पर पगड़ी बांधकर या तो 10 रुपए में चरी चाय के सकोरे भर भर मटमैला तरल उष्ण बेच रहे थे अथवा कचरा बीन रहे थे, कुछेक जिन्होंने धोती छोड़ पतलून धारण कर ली थी वे सम्भ्रांतों के लिए दारू के कार्टन ढो रहे थे।


शब्दकर्मियों के लिए 400 पुलिस वाले लगाए गए, मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर लघु व दीर्घशंका निवारण कक्षों तक में सुरक्षाकर्मी नियुक्त किए गए, इतनी सुरक्षा कि यह सुरक्षा ही खतरा लगने लगे, वैसे भी राजस्थान पुलिस काफी अच्छी है, साहित्य उत्सव में भाग लेने आई कृतियों (इसे युवतियों न पढ़े) को बीच बीच में घूर लेने का समय भी निकाल ही लेती है। द सैटेनिक वर्सेस के लेखक सलमान रूश्दी शारीरिक रूप से भारत नहीं आ पाए, मगर वे साक्षात आकर जो नहीं कर पाते, वह बिना आये ही कर बैठे, पूरा महोत्सव  रूश्दी को समर्पित है, किसी को उनके हीरो बन जाने से दुःख है (ये वे लोग है जो अपनी मौजूदगी के बावजूद भी हीरो नहीं बन पाये है) तो किसी को उनका नहीं आना खल रहा है सलमान  रूश्दी प्रकरण ने अभिव्यक्ति की आजादी पर मंडरा रहे ईशनिंदा के खतरों की तरफ फिर से हमारा ध्यान आकर्षित किया है वहीं मुस्लिम समुदाय के मध्य बढ़ रही धर्मान्ध व कट्टरपंथी तत्वों की बढ़ती ताकत का भी संकेत दिया है।


राज्य शासन व आयोजको की मिलीभगत इस पूरे प्रकरण में साफ दिखी, मुट्ठी भर लोगों की हवाई बातों, अखबारी बयानों और माहौल बिगाड़ देने की गीदड़ भभकियों के सामने राजस्थान की सरकार और लिटरेचर फेस्टीवल के कारपोरेटी आयोजकों की सांसे फूल गई, उन्होंने कट्टरपंथियों के समक्ष घुटने टेक दिए और रूश्दी को नहीं आने दिया, यह घोर निंदनीय बात है। साहित्य उत्सव ही नहीं बल्कि पूरे भारत के साहित्य जगत के लिए भी कलंक की बात है। पर सलमान रूश्दी छाए रहे पूरे साहित्योत्सव में। रूचिर जोशी, जीत तायल, हरि कुंजरू  औरअमिताव ने द सैटेंनिक वर्सेज के अंश पढ़ने की कोशिश की, उन्हें आयोजकों द्वारा रोका गया, नमिता गोखले ने तो साहित्यक प्रतिभागियों को धमकी भरा मेल भी लिखा, चारों साहित्यकारों के विरूद्ध अशोकनगर थाने में शिकायत दर्ज की गई, धर्मान्धों के पर निकल आए, उन्होंने हैदराबाद से लेकर जयपुर तक फिर से अभिव्यक्ति की आजादी के पंख कतरने और चारों लेखको की गिरफ्तारी की मांग कर डाली। हमें इन लोगों को साफ बता देना चाहिए कि भारत अभी तक सेकुलर गणतंत्र है, यहां शरीयत का शासन नहीं है, यहां तो नास्तिक से लेकर आस्तिक तक सब स्वीकार्य है और रहेंगे।


एक तरफ साहित्योत्सव में सैटेनिक वर्सेज के अंश पढ़े जा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ कुछ धार्मिक लोग बाहर अंगे्रजी की होली कुरान फ्री में बांट रहे थे, मुझे भी देने की कोशीश की, मैंनें यह कहकर लेने से मना कर दिया कि मुझे न तो शैतान की आयतों में रूचि है और न ही भगवान की आयातों में। मेरा जीवन तो इनके बिना भी चल जाएगा। लेकिन तत्क्षण यह दुश्चिंता भी पैदा हुई, अगर इस पवित्र धर्मग्रंथ को ले जाकर किसी ने रद्दी वाले को बेच दिया, कचरे में डाल दिया अथवा फाड़ कर फैंक दिया तो ? फिर जो दंगे होंगे उसके लिये कौन जिम्मेदार होगा ? वैसे भी भारत में ज्यादातर धर्मग्रंथ पढ़ने के लिए नहीं बल्कि दंगे कराने के ही काम आते है।


भूमण्डलीकरण के इस दौर में साहित्यकार जब बाजार में आता है तो उसकी औकात कितनी रह जाती है, इसका सबसे क्रूर उदाहरण डिग्गी पैलेस का यह कथित साहित्यक मेला है, जहां शब्दों से अधिक शराब का प्रवाह है, लोगों के मुंह से आह या वाह से ज्यादा सिगरेट के धुंए के छल्ले निकल रहे है, साहित्य के नाम पर ऐसी गंध मचा रखी है कि इस साहित्य से तौबा करने को दिल चाहता है। सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश को यह अमीरों की चोंचलेबाजी लगती है तो साहित्यकार रमा पाण्डे को यह भीड़ का मेला, भारतीय प्रेस परिषद के बहुचर्चित अध्यक्ष सेवानिवृत जस्टिस मार्कण्डेय काटजू को यह अनुपयोगी और साहित्य के नाम पर भद्दा मजाक लगता है, गीतकार गुलजार के साथ प्रसून जोशी की सबसे बड़ी चिंता यह है कि टीवी उनकी चुड़ैल को खा गया है, भाई प्रसून जी, अव्वल तो चुड़ैलें होती नहीं, हम तो नारी को डायन अथवा चुड़ैलें कहने वालों के घनघोर विरोधी है मगर आप ठहरे चुड़ैल प्रेमी, आपकी चिंता मीडिया की चिंता बन गई और फिर अगले दिन वह पूरे देश की चिंता बन गई, आप कैसा अंध विश्वास पाले जी रहे हो जोशी जी, अगर आपका भूत व  चुड़ैल में यकीं है तो आगे कि कहानी सुनो, आपकी कहानी वाली जिस  चुड़ैल को आज का टीवी खा गया है, उस टीवी को एक प्रेत खा गया है, उस अत्याधुनिक प्रेत का नाम अन्ना हजारे है, जो हमारी खबरें, कविता, कहानी, राजनीति और विमर्श सबको खा गया है, उपर से कहता है  कि वह अनशन पर है, कुछ भी नहीं खायेगा।


भारी सुरक्षा इंतजामों और अंडरवल्ड की काल्पनिक धमकियों के बीच डरपोक सलमान रूश्दी तो जयपुर नहीं आये, या आ ही नहीं पाये अथवा आना ही नहीं चाहते रहे होंगे मगर रियो टिंटो संवाद स्थल पर नकारात्मक स्वरों में भौंकता हुआ एक विदेशी नस्ल का कुत्ता जरूर आ गया, सारी सिक्यूरिटी धरी रह गई, वह संवाद स्थल से दरबार हाल होते हुए उस कैफेटेरिया की तरफ दौड़ लगा गया। जहां पर अधिकांश देशी और विदेशी नस्ल के साहित्यकार दारूखोरी में व्यस्त थे, कुछ क्षणों के लिए साहित्यक लम्पटो के इस शराबोत्सव ने स्वयं को बाधित महसूस किया, हरेक के चेहरे पर नाराजगी के भाव साफ थे, मगर जैसे ही लेखकों, पत्रकारों, साहित्यकारों, चित्रकारों, विचित्रकारों और फिल्मकारों आदि इत्यादि को यह शुभ सूचना मिली कि यह कुत्ता हमारे मेजबान और डिग्गी पैलेस के मालिक राम प्रताप सिहं का है और वह भी विदेशी  नस्ल का, जो अक्सर अंग्रेजी में भौकता है तो उपस्थित लोग श्रद्धा से भर उठे और मालिक के उस कुत्ते की वापसी की प्रतीक्षा करने लगे ताकि उसे यथोचित सम्मान दिया जा सके, मगर वह नहीं लौटा, सरस्वती पुत्रों को यह अफसोस सदैव बना रहेगा कि उन्होंने वर्ष 2012 के साहित्य उत्सव में एक मध्यवर्गीय विदेशी  कुत्ते के साथ गली मोहल्ले के देशी  कुत्ते जैसा सलूक करने का अक्षम्य अपराध कारित किया है। कई लोगों का ऐसा भी अनुमान है कि वह इस फेस्टीवल का पांचवा  प्राणी था जिसने द सेटेनिक वर्सेस के अंश सुनाने की असफल कौशिक की, जिस पर जल्द ही आयोजको ने काबू पा लिया।





खैर, यह दारूबाजी और सिगरेटखोरी और अय्यासी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मौसम है यह वो वक्त है जब उत्तर भारत के एक चुनावी राज्य में टीम अन्ना पर जूते फैंक जा रहे है और इस साहित्य उत्सव में सोशल नेटवकिंग के विरोधी और इक्कसवीं सदी के सबसे बुरे कवि कपिल सिब्बल भीड़ के धक्के खा रहे है। खास आदमी होने का उनका पाप यहां की पियक्कड़ जनता ने धो दिया है, यह जनता है ही ऐसी चीज कि पता ही नहीं चलता है कि कब किसको धो देती है।


इस साहित्य उत्सव की एक विशेष उपलब्धि यह भी रही कि कपिल मुनि के अनन्य भक्त स्वामी जी जब उदरपूर्ति में लगे थे, तभी कोई उनकी टेबल पर सुरापात्र धर गया, अपना मीडिया तो बाग बाग हो गया, पृथ्वी लोक पर ऐसा दुलर्भ चित्र भला कहां मिलता है, जहां बिग बास रिटर्न एक स्वामी जी के समक्ष बोतल धरी हो! छाप दिया मीडियावीरों ने। मगर इससे क्या, स्वामी तो स्वामी है, शराब विरोधी जो ठहरे, वैसे एक बार पी लेते तो वैदिक समाजवाद, जनलोकपाल और गांधीवाद अच्छे से घुट जाता, पर वे तो इस मत के है न पियेंगे, न पीने देंगे। भाई लोग पूछ रहे है कि फिर इस शराबोत्सव में आप पधारे ही क्यों ?


शायद हर कोई इस शराबोत्सव में साहित्य ढूंढ रहा था, साहित्य स्वयं टुन्न होकर डिस्को कर रहा था, एक टेंट में किताबों के फुल लुटेरो का पूरा सर्कल था जो एक को सौ में बेच रहे थे, किताबों में कहीं कहीं जाति बहिष्कृत गरीब हिन्दी भाषी कवियों की किताबें भी कुशोभित थी, जिन्हें पाठक निहायत ही हिकारत की नजरों से देखकर आगे बढ़ रहे थे, नीलाभ का शोकगीत जरूर बिका होगा, डिग्गी पैलेस नामक इस सामंती प्रतीक के अवशेष स्थल में गुलाम मानसिकता के स्तुतिकारों का ऐसा संगम हो रखा था कि हर कोई यहां घुसकर खुद को धन्य महसूस कर रहा था और घुसा हुआ खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहा था, ज्यादातर लोग विशेष स्टाइल में बाल नौंच रहे थे, चरी चाय 10 रुपए में तो सड़ी चाय 25 रुपए में क्षत्रिय वेशधारी महिलायें बेच रही थी, ऐसा लग रहा था कि यहां सब कुछ बिकाऊ है, कबीरा भी शबनम बिरमानी के जरिये बाजार में फिर से खड़ा था।


राडियाकर्मी (क्षमा कीजिये मीडियाकर्मी) बरखा दत्त, ओपरा विन्फ्रे का साक्षात्कार लेकर धन्य हो रही थी, भारतीयों व अभारतीयों की कई पीढि़यां इस क्षण पर कुर्बान हो रही थी, बाहर रिक्सा चालक और आटो चालक पुलिस की ज्यादती और बदतमीजी के शिकार हो रहे थे। एसएमएस के रोगी इन सरस्वती व लक्ष्मी के संयुक्त पुत्रों के सांझे तमाशें से पैदा हो रहे विघ्न से दुःखी थे, रूश्दी की आत्मा डिग्गी पैलेस में यत्र तत्र सर्वत्र मण्डरा रही थी, जो अक्सर वक्ताओं की गर्दन पर जा बैठती और हलक में होते हुए हृदय तक उतर कर लबों के जरिये अभिव्यक्ति की आजादी के स्वर मुखर करने लग जाती, अचानक लोग तालियां बजाने लगते है ।


इधर दोपहर के भोजन का वक्त हो चला है, डेमोक्रेसी, डिसेंट, डायलाग, डिस्कोर्स बहुत हो गया है चलो थोड़ी दारू सारू कर ले। मैं भी अपनी काल्पनिक कन्या मित्र के कटिप्रदेश में बांह डाले भोजनशाला की तरफ बढ़ता हूं मगर निःशुल्क पंजीकृत साहित्यकार होने की वजह से बीपीएल माना जाकर हाशिये पर धकेल दिया जाता हूं, बस तब से ही विलाप कर रहा हूं। मेरा रोना भी हिन्दी में है जिसे वहां मौजूद मध्यमवर्गीय आंग्लभाषी साहित्यकार समझ पाने में असमर्थ है, जो मेरी भाषा, पीड़ा और सरोकार समझते है, वे असहाय है और गूंगे बनकर गुट निरपेक्षता में यकीन किये खड़े है, उन्हें डर है  कि वे अगर पहचान लिये जायेंगे कि वे हिन्दी भाषी है और जंतर मंतर पर प्रायश्चित में सहभागी नहीं थे तो उन्हें भी मेरी ही तरह बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।


शेष जो सौभाग्यशाली साहित्यकर्मी बचे है वे धक्के खाने को अपनी नियती मानकार अपने लिये कुर्सियां और कुर्सियों पर जगहें तलाश  रहे है, मगर वे घुटने के बल रैंगकर वहां पहुंच पाते इससे पहले ही किसी और देश, किसी और जबान, किसी और संस्कृति, किसी और धरातल एवं किसी और ग्रह के एलियन्स ने कुर्सियां और हमारी सारी शब्द सम्पदा को हथिया लिया है। उनके हाथों में हमारा साहित्य और उत्सव है और हमारे हाथों में उनकी दी हुई शराब, छलकते जाम और लड़खड़़ाते पांव है। तभी मैंनें सरस्वती को उल्लू पर सवार होकर तेजी से बाहर की ओर भागते देखा, जहां उसे किसी ने फ्री में पवित्र कुरान थमा दी, वह तो पहले से ही द सैटेनिक वर्सेज से डरी हुई ही थी, इसलिए यकायक अंतरध्यान हो गई। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक वह अशोकनगर थाने के रोजनामचे में अथवा मालखाने में छुपी हुई हो सकती है, पता चला है कि सारे सरस्वतीपुत्र उसे ढूंढने में लगे है, मिल जायेगी तो अगले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के शराबोत्सव में राजस्थान पुलिस की परमिशन के बाद उसे आने के लिए मनाने की कोशिश की जाएगी,  आप भी प्रस्तावित शराब उत्सव में सादर आमंत्रित है।
लेखक भंवर मेघवंशी स्वतंत्र पत्रकार है. उनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है

शनिवार, 21 जनवरी 2012

अदालत ने कहा, लिव इन रिलेशनशिप अनैतिक है!


प्रकाशित Wed, जनवरी 18, 2012 पर 14:01  |  स्रोत : Hindi.in.com
18 जनवरी 2012
आईबीएन-7

नई दिल्ली।
एक छत के नीचे दो बालिग रजामंदी से रहें तो कानून उसे नाजायज कैसे ठहरा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी दो वयस्कों के इस रिश्ते को जायज माना है, लेकिन मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद ये सम्बंध अनैतिक हैं। अदालत के मुताबिक लिव इन रिलेशनशिप एक सनक है जो सिर्फ शहरी इलाकों में ही देखा जाता है। अदालत ने लिव-इन को एक अलोकप्रिय पश्चिमी सांस्कृतिक उत्पाद करार दिया।



अदालत ने कहा कि काफी समय से लिव-इन हमारे देश के लिए विदेशी परिकल्पना थी। आज यह सनक केवल शहरों में दिखाई पड़ती है। न्यायाधीश ने यह टिप्पणी एक मामले में फैसला सुनाते हुए की, जिसमें तीन साल पहले दिल्ली में मिजोरम की एक लड़की ने अपने लिव-इन पार्टनर की हत्या कर दी थी।


साल 2008 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास रह रही 28 साल की जारजोलियानी ने अपने नाईजीरियाई लिव-इन पार्टनर विक्टर ओकोन की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी थी। महिला के लिव पार्टनर ने बिना बताए उसके खाते से करीब 49,000 रुपए निकाल लिए थे। इस बात को लेकर दोनों में विवाद हुआ और जारजोलियानी ने अपने लिव-इन-पार्टनर पर चाकुओं से हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया। इसी मामले में न्यायाधीश ने मिजोरम की इस महिला को अपने लिव-इन-पार्टनर की हत्या करने के जुर्म में सात साल की सजा और 7 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का फैसला दिया।

आम आदमी और महंगाई डायन / प्रभात कुमार रॉय



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गत वर्ष ओएनजीसी ने तकरीबन 20 हजार करोड़, इंडियन ऑइल ने 3 हजार करोड़ और जीएआईएल ने 3 हजार करोड़ रुपयों का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया। भारत के प्रधानमंत्री को एक बेहद काबिल अर्थशास्त्री करार दिया जाता है। क्या फायदा है प्रधानमंत्री की ऐसी काबिलियत का जो आम भारतीय की रोजमर्रा की परेशानियों को दूर करने के स्थान पर उसमें बढ़ोतरी ही करती जा रही हो।


प्रधानमंत्री एक ऐसी अर्थनीति के निर्माता बन चुके हैं, जो एकदम ही अमीर कॉर्पोरेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने की गरज से बनाई गई है। इस अर्थनीति के चलते आम आदमी की जिंदगी दुश्वार हो चली है। गत दो वर्षों से जारी महंगाई दर ने पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। अमीर आदमी को यकीनन महंगाई से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता, किंतु एक गरीब इंसान की हालत कितनी बदतर हो चली है, इसका कुछ भी अंदाजा शासक वर्ग को संभवतया नहीं है। अन्यथा इस पर इतना बेरहम रुख हुकूमत की ओर से अख्तियार नहीं किया जाता।


विपक्ष के बिखराव और खराब सियासी हालात ने कमरतोड़ महंगाई के प्रश्न पर जनमानस के रोष की अभिव्यक्ति को अत्यंत असहज कर दिया है, अन्यथा अपनी माली हालत को लेकर आम आदमी के अंतस्थल में जबरदस्त ज्वालामुखी धधक रहा है। अमीर तबके के और अधिक अमीर हो जाने की अंतहीन लिप्सा की खातिर आम आदमी को निचोड़ा जा रहा है।


मार्केट इकोनॉमी के नाम पर अब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को बेलगाम कर दिया गया है। ऐसा हो रहा कि हुकूमत द्वारा महंगाई के दावानल में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस को भी डाल दिया गया। महंगाई के प्रश्न पर आम आदमी का रोष इसलिए भी राजनीतिक जोर नहीं पकड़ रहा कि प्रायः सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का अपना चरित्र भी कॉर्पोरेट परस्त होता जा रहा है। संसद के सदस्य अपना वेतन अब बीस हजार से बढ़ाकर नब्बे हजार करने जा रहे हैं, जो कि हुकूमत के सेक्रेटरी रैंक के अफसर के वेतन के समकक्ष होगा।


सरकारी आंकड़े खुद ही बयान करते हैं कि गत वर्ष के दौरान खाने-पीने की वस्तुओं के दाम 16.5 की इंफ्लेशन की दर से बढ़े हैं। चीनी के दाम 73 फीसदी, मूंग दाल की कीमत 113 फीसद, उड़द दाल के दाम 71 फीसद, अनाज के दाम 20 फीसद, अरहर दाल की कीमत 58 फीसद और आलू-प्याज के दाम 32 फीसद बढ़ गए हैं।


इसके अलावा रिटेल के दामों और थोक दामों में भारी अंतर बना ही रहता है। सरकारी आंकड़े महज थोक सूचकांक बताते हैं, जबकि आम आदमी तक माल पहुंचने में बहुत से बिचौलियों और दलालों की जेबें गरम जो चुकी होती हैं।


वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था अब सटोरियों और बिचौलियों के हाथों में ही खेल रही है। अपना खून-पसीना एक करके उत्पादन करने वाले किसानों की कमर कर्ज से झुक चुकी है। रिटेल बाजार में खाद्य पदार्थों के दाम चाहे कुछ भी क्यों न बढ़ जाएँ, किसान वर्ग को इसका फायदा कदाचित नहीं पहुंचता। इतना ही नहीं, धीरे-धीरे उनके हाथ से उनकी जमीन भी छिनती जा रही है।


हिन्दुस्तान के आजाद होने के बावजूद कृषि और कृषक संबंधी ब्रिटिश राज की रीति-नीति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया। आज भी लगभग वही कानून चल रहे हैं जो अंग्रेजों के शासनकाल में चल रहे थे। देश का 80 करोड़ किसान शासकीय नीति से बाकायदा उपेक्षित है। गत दो वर्षों के दौरान देश का किसान और अधिक गरीब हुआ है जबकि उसके द्वारा उत्पादित खाद्य पदार्थों के दामों में भारी इजाफा दर्ज किया गया। यह समूचा मुनाफा अमीरों की जेबों में चला गया। देश के अमीरों की अमीरी ने अद्भुत तेजी के साथ कुलांचें भरीं। मंत्रियों और प्रशासकों के वेतन में जबरदस्त वृद्धि हो गई। दूसरी ओर साधारण किसानों में गरीबी का आलम है। आम आदमी की रोटी-दाल किसानों ने नहीं, वरन बड़ी तिजोरियों के मालिकों ने दूभर कर दी है।


वस्तुतः समस्त देश में आर्थिक-सामाजिक हालात में सुधार का नाम ही वास्तविक विकास है। एक वर्ग के अमीर बनते चले जाने और किसान-मजदूरों के दरिद्र बनते जाने का नाम विकास नहीं बल्कि देश का विनाश है। निरंतर गति से बढ़ती महंगाई और शोषण के बीच चोली-दामन का संबंध है। महंगाई वास्तव में ताकतवर अमीरों द्वारा गरीबों को लूटने का एक अस्त्र है। इस खतरनाक साजिश में सरकारें भी अमीरों के साथ बाकायदा शामिल हैं। वास्तव में सरकार ने बाजार की ताकतों को इतना प्रश्रय और समर्थन प्रदान कर दिया है कि घरेलू बाजार व्यवस्था नियंत्रण से बाहर होकर बेकाबू हो चुकी है। सटोरिए, दलाल और बिचौलिए इसमें सबसे अहम किरदार हो गए हैं।


देश में दुग्ध उत्पाद की कमी है किंतु केसिन चीज और मिल्क पावडर का निर्यात बदस्तूर जारी है। देश के लोग कृषि उत्पादों की महंगाई से बेहद त्रस्त हैं, किंतु कृषि उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है।


दो साल से सरकार दावा रही है कि मूल्यवृद्धि पर काबू पा लिया जाएगा किंतु नतीजा एकदम शून्य रहा। अधिक मांग का दबाव न होने एवं फसलों के भरपूर होने के बावजूद कीमतों की उड़ान क्यों जारी रही है? वायदा बाजार बाकायदा पल्लवित हो रहा है। काले बाजार और काले अघोषित गोदामों में किसान को चावल, चीनी, दाल, गेहूं आदि के जखीरे को दबाकर बाजार में चालू आपूर्ति कम कर दी गई। कुछ अनचाहे अधमने सरकारी छापों में ही गोदामों में बाकायदा दबा पड़ा विशाल भंडार दिखाई दे गया। राजकाज और बाजार की मिलीभगत ने अब ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि राज्य व्यवस्था और बाजार के बीच फर्क महज औपचारिकता ही बन कर रह गया है। काली राजनीति का काले धंधे के साथ अवैध समीकरण भारत की जम्हूरियत और राज व्यवस्था का खास चेहरा बन गए हैं। वायदा बाजारों के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें कम नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि कीमतें कम होने से बिचौलियों और कृषि कंपनियों को घाटा हो सकता है। हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि एक तरफ गोदामों में अनाज सड़ रहा है और दूसरी तरफ लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। बिचौलिए मालामाल हो रहे हैं और किसान बदहाल हैं। वर्तमान राजनैतिक समीकरण ने संभवत: शाशक वर्ग को कुछ अधिक ही आश्वस्त कर दिया है कि आम आदमी के रोष से निकट भविष्य में उसकी सत्ता को कोई खतरा नहीं, किन्तु वे ऐतिहासिक सच्चाई को विस्मृत कर चुके हैं कि...