रविवार, 30 अप्रैल 2023

मणिरत्नम की फिल्म PS 2 देख

 #फिल्म_समीक्षा_PS2

आज मणिरत्नम की फिल्म PS 2 देख ली । सिनेमाहाल में आज पहली बार बहुत सारे बच्चे देखे । माता-पिता अपने बच्चों के साथ आये हुए थे । देखकर अच्छा लगा कि लोग अपने बच्चों को इस देश के एक हिस्से के गौरवपूर्ण इतिहास से रूबरू कराना चाहते हैं । पता नहीं बच्चे फिल्म को, राजनैतिक छल-छद्मों को, भयंकर मार-पीट को, नागपत्तनम बौद्ध विहार की नीरव शान्ति को कितना समझ पाएंगे पर जितना भी समझेंगे अच्छा ही होगा ।

पूरी फिल्म देखने के बाद कह सकता हूँ कि यह फिल्म तो एक प्रेमकथा होनी चाहिए थी । आदित्य करिकालन और नंदिनी की प्रेमकथा । एश्वर्या राय अनिन्द्य सुन्दरी लगी हैं अपनी भूमिका में और एक मानिनी स्त्री जिसे अपने प्रेम के तिरस्कार का बदला लेना है । वही आदित्य करिकालन की भूमिका में विक्रम एक कठोर, निर्दयी और रुक्ष प्रकृति के राजकुमार लगते हैं जिसे हिमालय तक चोल साम्राज्य का विस्तार करना है ।

जब मैं यह कहता हूँ कि इस फिल्म एक ऐतिहासिक राजवंश की कथा सुनाने वाली फिल्म की जगह एक विशुद्ध प्रेमकथा वाली फिल्म होना था तो इसके पीछे के मेरे अपने तर्क है ।

नंदिनी जिसके प्रेम को चोल राजवंश महज इसलिए स्वीकार नहीं करता क्योंकि उसके कुल का पता नहीं है तो वह समूचे चोल वंश के निर्मूलन का संकल्प ले लेती है । उस चोल वंश के निर्मूलन का संकल्प जिसमे उसका प्रेमी आदित्य करिकालन भी है । कभी वह समय था जब आदित्य और नंदिनी के प्रेम की महक समूचे कावेरी घाटी को सुवासित करती थी और अब उसमे जगह ले ली है प्रेम के तिरस्कार से उपजे नफरत ने । मान,अपमान और नफरत की विषबेल कुछ ऐसी पनपी कि समूचे चोल वंश से लिपटकर उसे सुखा देना चाहती है । फिल्म के मध्यांतर के बाद का एक दृश्य है जिसमे नंदिनी और आदित्य करिकालन का आमना-सामना होता है । नंदिनी अपने संकल्पों में बंधी हुई है और उसे आदित्य को समाप्त करना है, आदित्य भी जीवन से प्रेम के चले जाने के बाद ऐसा विरक्त हो चला है कि उसे अब अपनी प्रेयसी के हाथों मरने में ही मुक्ति दिखती है । जब दोनों सामने होते हैं तो नफरत की दीवारे गिर जाती हैं । आँखे अश्रुपूरित होकर बीते दिनों को याद करने लगती हैं । एक-एक संवाद, एक-एक दृश्य आपको प्रेम में टूट जाने के गहरे मर्म समझाता है । आदित्य करिकालन जिसे दुनिया एक भयंकर और वीर योद्धा के तौर पर जानती है वह अन्दर से कितना टूटा हुआ है यह बस चंद मिनटों के दृश्यों में पता चल जाता है ।

यही तो होता है, अगर आदमी के जीवन से प्रेम गायब हो जाए तो एक अजीब सी शुष्कता भर जाती है,दुनिया बेमानी लगने लगती है और वह बेहिसाब धन-दौलत इकट्ठा करने के बाद  भी चैन नहीं पाता है । प्रेम के एक-एक पल उसे बेतरह याद आते हैं चाहे वह युद्ध भूमि में हो या निर्जन वन में । क्रूर विक्रम के चेहरे के भाव देखकर एक दर्शक के तौर पर मै वाह-वाह करने लगा था । आदित्य करिकालन जब अपनी प्रेमिका से कहता है कि भुलाया नहीं जा सकता तो माफ़ तो किया ही जा सकता है ना ? तो वह सच में सबकुछ हारा हुआ लगता है । पश्चाताप करता हुआ वह कहता है कि तुमने एक ही चीज़ तो मांगी थी मैं वह भी ना दे सका और फिर अपनी जिन्दगी को नियति के भरोसे छोड़ देता है । यह दृश्य पूरे फिल्म की जान है और इसी दृश्य में आदित्य करिकालन भी मारा जाता है ।

बाकी जयम रवि और कार्थी सुरेश ने भी अपनी भूमिकाओं का अच्छा निर्वहन किया है । त्रिशा, चोल राजकुमारी के रूप में अच्छी लगती है । बौद्ध विहार, कावेरी के तट की सुन्दरता, चोलो और पांड्यो की शिवभक्ति मन मोहती है ।

फिल्म की कमियों की बात करें तो फिल्म में कई कहानियाँ एक साथ चलती हैं जिससे कई बार बहुत कुछ समझ में नहीं आता । अगर चोलों, पांड्यो, राष्ट्रकूटों का इतिहास नहीं पढ़ा है तो एकसाथ इतनी कहानियां जोड़कर समझने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है । फिल्म के क्लाइमेक्स में ही इतना दिखा दिया गया है जिसपर एक अलग से फिल्म बन सकती है । गाने भी कुछ खास अच्छे नहीं है ।

इतने के बाद भी मै कहूँगा कि फिल्म देखनी चाहिए, एश्वर्या राय और विक्रम के शानदार अभिनय के लिए,दक्षिण के चोलों के राजनैतिक उत्थान को समझने के लिए... मौका मिले तो देखिए जरुर..

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

 पुष्पक.. 1987 मे बनी पुष्पक फ़िल्म एक मूक कॉमेडी फील है...इस फ़िल्म मे कमला हसन और अमला ने बिना कुछ बोले जबरदस्त एक्टिंग की है भारतीय सिनेमा की मैंने ये ऐसी पहली फ़िल्म देखी जिसमे एक भी डॉयलॉग ना होने के बावजूद ये फ़िल्म आप को बांधे रखती है.. कमला हसन की एक्टिंग मे बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार जिम कैर्री को भी पीछे छोड़ दिया...इस फ़िल्म मे हर एक कलाकार ने अभिनय की पराकाष्ठा का अभिनय किया है... समीर खाकर, टीनू आनंद,फरीदा जलाल,, रमईया,,वसंत कामत,समीर कक्कड़ इन सभी ने जोरदार अभिनय किया है....इस फ़िल्म का डायरेकेशन पुष्पका विमाना ने किया है...

8.6 की imdb रेटिंग के साथ इस फ़िल्म मे काम बजट की होने ke बावजूद रिकॉर्ड तोड़ कमाई की थी... ये फ़िल्म आप को यू ट्यूब पर मिल जायेगी..

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

मन के पुस्तक का किया गया लोकार्पण

 मन के मनके" पुस्तक का किया गया लोकार्पण 


कवि का मन समंदर और आकाश से भी अधिक विस्तृत होता है- सुरिंदर कौर


रांची, "मन के मनके" पुस्तक का लोकार्पण लालपुर स्थित हॉटेल सिटी पैलेस में किया गया। पुस्तक का संपादन डॉ शुभ्रा सिंह एवं प्रतिमा त्रिपाठी ने किया है। साझा काव्य संकलन में कई रचनाकारों की स्वरचित रचनाएं समाहित है।

मंच अध्यक्षता राँची की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुरिंदर कौर 'नीलम' द्वारा किया गया। मुख्य अतिथि के तौर पर कवि और नाटककार राकेश रमन ने मंच को सुशोभित किया। वरिष्ठ कवियत्री रेणु झा 'रेणुका', पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं कवि देव बिहारी शर्मा, निर्मला कर्ण,  कवियत्री, लेखिका लघुकथाकार रंजना वर्मा 'उन्मुक्त' एवं  विभा वर्मा 'वाची' ने मंच पर विराजमान होकर विशिष्ट अतिथि पद की गरिमा बढ़ायी।

 रेणु झा 'रेणुका' के मंत्रोच्चारण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

सरस्वती वंदना, बिंदु प्रसाद रिद्धिमा ने किया। मनीषा सहाय 'सुमन' ने बहुत  कुशलतापूर्वक मंच का संचालन किया। 

 मन के मनके पुस्तक पर सुरिंदर कौर नीलम ने अपने उद्गार में कहा "कि समंदर से निकले भावों के अनमोल शब्दमोती मन के मनके' में गोते लगा रहे हैं। कवि का मन समंदर और आकाश से भी अधिक विस्तार लिए हुए है।" वहीं वरिष्ठ कवियत्री रेणु झा ने कहा कि केवल योजना बना लेने भर से कोई कार्य सफल नहीं होता। उसकी सफलता के लिए अटूट विश्वास, धैर्य, समर्पण और निस्वार्थ मन से प्रतिबद्धता भी आवश्यक है।"

इस मौके पर राकेश रमन ने समय के मूल्य को समझाते हुए कहा कि सबसे पहले रचनाकारों को समय का मान रखना सीखना होगा। एक रचनाकार को अनुशासित आचरण बरतना बहुत आवश्यक होता है।"

मनीषा सहाय ने अक्षर को ब्रम्ह बताते हुए कहा-"इसके साधक को बिना मंच भेद किये, प्रतिस्पर्धा से परे होकर निस्वार्थ भावना से सभी साहित्यिक मंचों को अपनी सेवा और योगदान देते रहना होगा। सबके सहयोग से ही साहित्य सरिता समरसता से प्रवाहित होती है।"

 पुस्तक में राँची की अनेक रचनाकारों पुष्पा सहाय, कविता रानी,ऋतुराज वर्षा, सुनीता अग्रवाल, नीता शेखर, निर्मला सिंह, कृष्णा श्रीवास्तव, सुजाता प्रिय, नीरज वर्मा, मीरा सिंह, रश्मि सिंह, संध्या चौधरी 'उर्वशी' मधुमिता साहा प्रतिभा सिंह एवं सरस्वती गगराई आदि की रचनाएं प्रकाशित हुई है। उक्त सभी साहित्यप्रेमियों और रचनाकारों ने मंच से अपनी रचनाओं का पाठ किया और अपनी उपस्थिति से मंच की गरिमा बढ़ायी।

कार्यक्रम के अंत में प्रतिमा त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

The invention of lying/

 The invention of lying


यह मूवी एक ऐसे शहर की कहानी है जिसमे कोई भी झूठ नही बोलता । जैसा लोग सोचते है, महसूस करते हैं, वो बिल्कुल वेसे ही सच बोलकर अपने आपको जाहिर करते हैं । सच बोलना उनके स्वभाव में आ जाता हैं ।


"मैं आज काम पर नही आ सकता, क्योकि मुझे काम करना बेकार लगता हैं ।"


"तुम्हारा बच्चा कितना भद्दा दिखता है, बिल्कुल एक चूहे की तरह ।"


"वाव !! कितने दिनों बाद मेरा पेट आज अच्छे से साफ हुआ हैं ।"


"तुमसे मिलकर मुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लगा ।"


इसी तरह के मूवी के किरदारों के आपसी सवांद आपको हँसने पर मजबूर करंगे या फिर सोचने पर ?


मार्क बिलिसन इस मूवी के नायक है और इस मूवी में इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वो इस दुनिया का सबसे पहला झूठ बोलते हैं ।

मार्क डेट पर एक लड़की एना से मिलने उसके घर जाते है, वहाँ हुई दोनो की बातचीत से आपको लग जायेगा कि सच बोलना कितना अखरेगा यदि हम उनकी तरह सच बोलने लगे, बजाय इसके की झूठ बोलकर औपचारिकता निभाई जाएं । फिर एक रेस्टोरेंट में डिनर डेट पर भी उनकी आपस में हुई सच्ची, मगर कड़वी बातें भी आपको कुछ अजीब सी लगेंगी ।


मूवी में मार्क एक लेखक होता है लेकिन उसको उसके खराब परफॉर्मेंस की वजह से नौकरी से निकाल दिया जाता हैं, वहाँ मार्क और उसके सहकर्मी के बीच का वार्तालाप भी मजेदार होता हैं, सच बोलने की वजह से । 


नौकरी जाने की वजह से उसके पास घर का रेंट देने के लिए रुपये नही होते है, वो अपने बचे खुचे रुपए लेने और खाता बंद करने की नीयत से बैंक जाता हैं । अचानक वहाँ उसके दिमाग मे कुछ खुरापात होती हैं और वो दुनिया का सबसे पहला झूठ बोलता है की उसके खाते में 800 रुपए हैं, जबकि उसके खाते में 300 रुपए ही होते हैं । बैंक कर्मचारी इसे कंप्यूटर की गलती मानकर उसे 800 रुपए दे देती हैं क्योकि वहाँ सबकी नजरों में झूठ जैसा कुछ होता ही नही हैं, सभी सच ही बोलते हैं, इसलिए बैंककर्मी उसे कंप्यूटर की गलती ही मानती हैं ।


वो अपने दोस्त को उस झुठ बोलने के बारे में बताता है लेकिन उसके दोस्त उसे समझ नही पाते । लेकिन मार्क समझ जाता है कि इस के जरिए वो अपनी नई दुनिया बना सकता हैं । इस तरह वो झूठ बोल बोल कर अपना काम निकालना और रुपया कमाना शुरू कर देता हैं । जैसे कि वर्तमान के लगभग सभी इंसान कर रहे हैं । 


पूरी मूवी के सभी किरदारों का मूवी में सच बोलना, गजब का लगता हैं । उसे देखा जाएं, सुना जाएं, हंसा जाएं या फिर उन बातों पर रोया जाएं । सोचो !! यदि सभी सच बोलने लगे तो आसपास का माहौल कैसा हो जाएं । 😁


मार्क की माँ को हार्ट अटैक आता है वो अंतिम सांसें गिन रही होती है और अपनी मृत्यु को लेकर काफी दुःखी होती हैं । ऐसे में मार्क अपनी माँ को सांत्वना देने के लिए उन्हें झूठे आश्वासन देता है कि मरने के बाद आप अंधेरे में नही जाएगी । मरने के बाद आप अपनी मनपसंद जगह पर जाएंगी । जिन लोगो से आपने प्यार किया, वो सब आपको वहाँ मिलेंगे । आप फिर से युवा होकर उछलकूद मचाएंगी, जो आपको पसंद हैं । कोई कष्ट नही, सिर्फ खुशियां और प्यार इत्यादि कह कर उनका अंतिम सफर आसान कर देता हैं । 


"झूठ इंसान को भुलावे में रखकर ही सही, लेकिन मानसिक रूप से हल्का तो कर ही देता हैं ।"


यह सब बातें हॉस्पिटल का स्टाफ सुन लेता हैं और वो सभी मरने के बाद के बारे में जानने को उत्सुक हो जाते हैं । धीरे धीरे यह खबर पूरे शहर में फैल जाती है कि मार्क एकमात्र ऐसा इंसान है जो मरने के बाद के बाद क्या होता है, सिर्फ वही जानता हैं । आसमान में एक व्यक्ति है जो पूरी दुनिया को नियंत्रित रखता हैं ।  "मेन इन द स्काई"


उस आसमानी इंसान से सिर्फ मार्क ही बात कर सकता हैं । सभी लोगो की जिज्ञासा को शांत करने के लिए मार्क उस आसमानी इंसान की तरफ से 10 बातें एक पेपर पर लिखकर, उसे पिज़्ज़ा बॉक्स पर चिपकाकर, उन सभी इंसानों को बताता है जो उसके घर के बाहर इकट्ठे हो जाते हैं । उनके सवालो के जवाब देता हैं । मूवी का लगभग 6 मिनट्स का यह सीन वाकई में देखने काबिल हैं । जो इंसान ऐसा मानते है कि कही कोई आसमान में बैठा आपके सारी जिंदगी के फैसलों को तय कर रहा हैं, उनको यह सीन जरूर देखना चाहिए ।


"अगर उसने आपके साथ इस जिंदगी में कुछ बुरा भी किया है तो मरने के बाद वो आपको अच्छी जगह ले जाएगा ।

यह जिंदगी सिर्फ एक इम्तिहान हैं ।"


......आगे की स्टोरी आप मूवी में देखिए ।


मूवी में सच बोलने की वजह से जो हास्य भाव पैदा होता है अगर हम उसे असल मे बोलने लगे तो अवसाद में जाने का खतरा हैं । लड़ाई हो जाने का खतरा हैं, बेवजह की दुश्मनी बना लेने का खतरा हैं । शायद हम इंसानों की आदत हो गई है कि झूठ बोलकर ही जिंदगी जीना अब आसान है, सच बोलने की बजाय । इसलिए सच से पल्ला झाड़ने में ही भलाई हैं । बहुत कठिन है डगर इस पनघट की । शायद झूठ बोलने की शुरुआत इसलिए कि गई हो कि जीवन को थोड़ा सुकून से जिया जा सकें । 😊


मूवी में आसमानी इंसान की बात की गई हैं जो आप सबको नियंत्रित करता हैं । मानवीय स्वभाव है कि वो हमेशा आशा की उम्मीद बनाए रखना चाहता हैं, ताकि दुःखी पलो में भी जीवन जीने की लालसा बनी रहें । शायद इसी तरह के आसमानी इंसानों की कभी कल्पना की गई होगी । लेकिन इस दुनिया को देखते हुए लगता नही की कोई आसमानी इंसान इसे नियंत्रित कर रहा हैं । लेकिन फिर भी उम्मीद बरकरार है मरने के बाद के सुखद जीवन की । यहाँ भले ही परेशान हो, लेकिन मरने के बाद, वहाँ रहने को महल और बाकी की सभी सुख सुविधाएं मिलने वाली हैं, जो यहाँ नही मिली । बहुत अजीब बात है ना ।

अजब दुनिया और गजब लोग । 🙄


शुक्रिया 🦋


The Invention of Lying (2009)

 Audio : Hindi & English

Availability : Prime Video, Netflix & Telegram

जीवन का एक रूप संगीत भी / अशोक मेहरा


संगीत हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है । संगीत आत्मा की तृप्ति है । संगीत हमारे दैनिक जीवन की झंकार है ,



 और भी बहुत कुछ लिखा और कहा गया है संगीत के बारे में । संगीत की उत्पत्ति कब और कहां हुई इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है । लेकिन फिर भी ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि मनुष्य जाति की सभ्यता जिस वक्त नए प्रयोग करके कुछ सीख रही थी , तभी पाषाण टुकड़ो उपजी ध्वनियों ने संगीत को जन्म दिया । धीरे-धीरे मनुष्य में सभ्यता का विकास होता गया और उनकी जीवन शैली में भी परिवर्तन हुआ । इंसान धीरे-धीरे भाव प्रधान होने की प्रक्रिया को समझने भी लगा । ईश्वर के प्रति कुछ लगाव भी पैदा होने लगा । प्रभु स्तुति के लिए गाए हुए भजन संगीत के माध्यम से सजाए जाते थे । युगो युगो से चलता हुआ संगीत अनेकों परिवेश से गुजरता हुआ आज वर्तमान में भी अपना अस्तित्व कायम किए हुए हैं । लगभग सभी दौर में गीतकार , संगीतकार और गायक आते रहे और जाते रहे । जिन्होंने संगीत की अखंड साधना की , उन्होंने एक ऐसा मुक़ाम हासिल कर लिया जिसे लोग आज भी याद करते हैं । ऐसा कहा जाता है कि तानसेन ने अपनी गायन शैली से बुझे हुए दीपको  को जला दिया था । लोग गायन की शक्ति को देखकर आश्चर्यचकित रह गए । कितना शक्तिशाली है संगीत का प्रभाव । कुछ इस तरह का भी अनुसंधान किया गया है कि जो पेड़ पौधे खाद पानी के बावजूद सही ढंग से पनप नहीं पा रहे थे ,उन पर संगीत का प्रयोग किया गया और कुछ हफ्तों में उनके उगने की रफ्तार काफी तेज पाई गई । 

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि संगीत हमारे लिए एक शक्ति है , उपहार है ,औषधि है , उपचार है । क्योंकि आप देखिए कि मां की लोरी में वह प्रभाव शामिल है Iजिसको सुनकर एक बालक भी धीरे से निंदिया के आंचल में चला जाता है । एक बेचैन मन बांसुरी की सुरीली तान सुनकर शांति का अनुभव करने लगता है । और भी अनेकों उदाहरण हमें इतिहास में पढ़ने को मिलते हैं । आज के दौर में भी हम संगीत के बिना जीवन की कोई कल्पना नहीं कर सकते । यह संगीत हमें विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होता है जैसे- सुगम संगीत , शास्त्रीय  संगीत फिल्मों में दिए जाने वाला संगीत और भी अनेकों तरह के संगीत है , जो हमारे जीवन पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं ! मैं यह भी कहूंगा कि सभी अच्छे गायक दुनिया में अपना नाम नहीं कमा पाते! जिसका कारण एक उचित प्लेटफार्म का अभाव होना भी है । क्योंकि कुछ लोग तो गायन के लिए इतने शौकीन होते हैं कि वह अपना समय संगीत और गायन की साधना में बिताते हैं । वह भले ही नामचीन कलाकार ना बन सके हो , लेकिन अपने हुनर के कारण अपने अंदर एक आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं । 

मेरे एक मित्र हैं जो पेशे से वकील है । लेकिन संगीत साधना का इतना अधिक शौक है कि वह समय मिलते ही संगीत और गायन की साधना में लग जाते हैं । बरसों बरस से वह अपने इस रुचि को जीवित रखे हुए हैं । आज भी उम्र के दौर की परवाह करे बिना गीत संगीत में समय बिता रहे हैं । चूकिं आज का युग डिजिटल युग है , और मोबाइल में ऐसे-ऐसे ऐप आ चुके हैं जिसके माध्यम से आप गीत को अपने स्क्रीन पर देखते हुए , उसमें दिए गए संगीत को सुनते हुए , अपनी आवाज में गीत रिकॉर्ड कर सकते हैं ।

 मेरे मित्र का नाम है श्री अनिल चंचल, जो कि बिहार के औरंगाबाद जिले से हैं । इनसे मेरी मुलाकात औरंगाबाद में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के माध्यम से हुई । मुझे जब इनके बारे में विस्तृत जानकारी मिली तो मैं भी खुद को इनका मित्र बनने से रोक नहीं पाया । आजकल यह मुंबई में निवास कर रहे हैं । साथ ही साथ अपनी वकालत को भी समय दे रहे हैं मगर संगीत साधना को भूलते नहीं । कुल मिलाकर अगर निष्कर्ष निकाले तो हम देखेंगे की जैसे शरीर के लिए भोजन , हवा  व पानी आवश्यक है उतना ही दिलो-दिमाग एवं आत्म शांति के लिए संगीत की भी आवश्यकता होती है ।

 ऐसा भी देखा गया है कि जो कलाकार गीत संगीत गायन आदि में अपने को व्यस्त रखते हैं , वह नकारात्मक जीवन से बहुत दूर रहकर एक सुंदर सच्चा सकारात्मक जीवन जीते हैं ,और अन्य लोगों के मुकाबले बीमार भी कम पड़ते हैं । इसका अभिप्राय यही हुआ कि  संगीत से हम जीवन को एक खुशहाल रूप में देख सकते हैं । लिखने वालों ने बहुत कुछ लिख दिया है , संगीत इतना गहरा समुंदर है कि इस पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है । मैं अपने इन शब्दों से उन सभी कलाकारों को शुभकामनाएं देना चाहूंगा जो किसी न किसी रूप से इस कला से जुड़े हैं । संगीत हमें प्रेम ,भाईचारा, सद्गुण, सहजता , सहनशीलता  आदि गुण सिखाता है ।


*अशोक मेहरा*

फ़िल्म क्रिटिक ,

रंगकर्मी , निर्देशक , फ़िल्म फेस्टिवल्स ज्यूरी ।



गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

टीएमयू को भारत स्काउट-गाइड की जिला संस्था के रूप में मान्यता

 

टीएमयू को भारत स्काउट-गाइड की जिला संस्था के रूप में मान्यता


तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. रघुवीर सिंह बोले, यूनिवर्सिटी के स्टुडेंट्स में जगेगी जनसेवा और अनुशासन की अलख 


कहते हैं, मेहनत अंततः रंग लाती है। भारत स्काउट-गाइड के कैंपों के प्रति तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी का संकल्प और समर्पण बेमिसाल रहा है। नतीजतन भारत स्काउट और गाइड, उत्तर प्रदेश की ओर से यूनिवर्सिटी को जनपद संस्था के रूप में मान्यता दी गई है। भारत स्काउट और गाइड के बरेली क्षेत्रीय कार्यालय की एएसओसी श्रीमती सितारा देवी ने इस आशय का निदेशक छात्र कल्याण प्रो. एमपी सिंह को प्रमाण पत्र सौंप दिया है। यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. रघुवीर सिंह ने इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा, यूनिवर्सिटी को जनपद संस्था की मान्यता मिलने से टीएमयू के स्टुडेंट्स में जनसेवा और अनुशासन की अलख जगेगी। 



प्रदेश इकाई की ओर से जारी प्रमाण पत्र में उल्लेख है, भारत स्काउट और गाइड नियमावली के नियम संख्या 90 के तहत यूनिवर्सिटी को भारत स्काउट और गाइड, उत्तर प्रदेश की जिला संस्था के रूप में मान्यता दी गई है। जिला मुख्य आयुक्त डॉ. मधुबाला त्यागी कहती हैं, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी को जिला संस्था के रूप में मान्यता देने का उद्देश्य यह  है कि छात्र-छात्राओं में समाज और देश के प्रति त्याग और सेवा की भावना जाग्रत हो सके। उल्लेखनीय है, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में 2008 से स्काउट और गाइड कैंप लगाए जा रहे हैं। इन कैंपों को लेकर विश्वविद्यालय हमेशा संजीदा रहा है। टीएमयू के स्टुडेंट्स ने कैंपों के संग-संग यूनिवर्सिटी के बाहर भी सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर भागीदारी दी है।






सोमवार, 10 अप्रैल 2023

सदमा


सदमा

(आंसुओं के बीच धुँधलाती प्रेमकथा)

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          प्रेम कभी दो तरफ़ा नहीं हो सकता है । दो तरफ़ा तो समझौता या व्यापार ही संभव है ।

       और यह सत्य है .....प्रेम जिसे हो जाता है ..उसे हो जाता है  क्योंकि यह क्षणांश में घट जाने वाली है..... लौ लगने की तरह है ।फिर वहाँ यह प्रश्न ही समाप्त हो जाता है कि सामने वाले को भी तब बदले में प्रेम हुआ या नहीं। ठीक मीरां की तरह । मीरा को कृष्ण से प्रेम हो गया फिर कृष्ण को मीरां से हुआ या नहीं .. नहीं पता मगर वह प्रेम अद्भुत मिसाल बन गया ।

     पर सच यही है कि प्रेम  एक तरफ़ा ही होता है .. सामने वाला तो महज उसे सिर्फ़ स्वीकार या अस्वीकार करता है ….बस ।

         बालू महेन्द्र निर्देशित एक  फ़िल्म थी तामिळ में 'मुंद्रान पिरई '…यानि मानसिक पीड़ा । 1983 में यह फ़िल्म 'सदमा 'के नाम से हिंदी में बनी । जिसमें कमलहसन और श्रीदेवी मुख्यभूमिका में थे ।

          कहानी शुरू होती है ..रईस परिवारों के कुछ  युवक युवतियाँ पिकनिक मनाने से ..और लौटते समय उन मेंसे एक ख़ूबसूरत युवती (श्री देवी )की कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है । उस युवती की याददाश्त चली जाती है ।

           उस दुर्घटना के कारण उसके मस्तिष्क पर आघात पहुँचता है  वह सब कुछ भूल जाती है और उसका व्यवहार 'रेट्रॉगेड एमेनेशिया ' के कारण छ वर्ष के बच्चे जैसा हो जाता है ।

        ट्रीटमेंट के दौरान उसे अपहरण कर रेड लाईट एरिया में बेच दिया जाता है जहाँ से नायक  सोमप्रकाश (कमलहसन )

,जो ऊटी के एक स्कूल में पढ़ाता है ,किसी तरह से बचा लाता है ।

         नायक उसे नया नाम देता है 'रेशमी '।नायक उससे प्रेम करने लगता है लेकिन एक छ बरस के बच्चे की तरह व्यवहार वाली युवती को वो प्रेम कैसे समझाए?       

      बस , वह दिन रात उसकी देखभाल करता है ...उसके मन के पीछे चलता है । रेशमी उस परिवार विहीन नायक सोमू के जीवन का आधार हो जाती है ...जिसके बिना जीने की कल्पना भी नायक के लिए संभव नहीं है ।

       एक दिन नायक को पता लगता है कोई वैद्य है जो खोई याददाश्त लौटने की औषधि करता है । नायक रेशमी को वहाँ ले जाता है ।वैद्य कहता है कि चिकित्सा में पूरा दिन लगेगा ।

       इस बीच पुलिस की सहायता से ढूँढते हुए युवती के माता पिता  उस वैद्य के यहाँ  पहुँच जाते है । शाम तक युवती की याददाश्त लौट आती है मगर मस्तिष्क पर आघात लगने से लेकर याददाश्त लौटने तक का सबकुछ भूल जाती है और वह अपने पैरेण्टस के साथ  घर जाने को स्टेशन को चली जाती है ।

        फ़िल्म का अंत बेहद दर्दनाक है ।भाग कर स्टेशन पहुँचा नायक सोमू हरसंभव कोशिश करता है कि रेशमी उसे पहचान जाए और ना जाए मगर रेशमी को याददाश्त के जाने से लेकर लौटने तक के बीच का कुछ याद नहीं ।नायिका उसकी ओर देखती ज़रूर है मगर उसे लगता है कि वो प्लेटफ़ॉर्म पर अजीबोगरीब हरकतें कर रहा कोई पागल है |

          ट्रेन एक लंबी सीटी देती है और चलने लगती है  व सोमू ऐसे अपने प्यार को हमेशा के लिये जाते  देख अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है....

      तेज़ बारिश में भीग रहे पहाड़ी स्टेशन पर रेल के गुज़र जाने के बाद रोते बिलखते नायक का एक बैंच पर ढह जाना ....पार्श्व में उस लोरी का बजना ,जिसे गा कर वो रेशमी को सुलाता था .. वेदना को चरम पर ले जाता है ।            

         प्रेम के इस अंजाम पर दर्शक की आँखें भीग जाती है ।

         कैमरा धीरे धीरे वाइड एंगल पर शिफ़्ट होता है और  बैच पर निढाल नायक सोमू ..भीगा प्लेटफ़ार्म .... सूनी पटरियाँ .. कड़कती बिजलियाँ .. घने दरख़्तों को समेटते हुए सदैव के लिए ख़ालीपन छोड़ जाता है ।  141 मिनट की इस फिल्म के अन्तिम 41 मिनट में सिर्फ़ दर्द है . अनंत दर्द ।आँसुओं से स्क्रीन धुंधला जाती है । आप विवश से प्रेम का यह अंत देखते है ।नायक के लिये दुआओं में उठे आपके हाथ निष्प्राण से नीचे हो जाते है ।आप जार जार से रो पड़ते है .. कि प्रेम में इतना दर्द क्यों गूँथता है ईश्वर.. ?

           इलयराजा के संगीत में  गुलज़ार के लिखे गीत 'ऐ ज़िंदगी गले लगा ले ' और येशुदास की गाई लोरी 'सुरमई अँखियों में ' अद्भुत है ।कैमेरा उदगमण्डलम (ऊटी ) की ख़ूबसूरती को फ़िल्माने में कामयाब रहा ।

           फ़िल्म ने बेस्ट स्टोरी , बेस्ट एक्टर व बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड भी अपने नाम किए ।

     सदमा उन चंद सिनेमा में से एक है जहां इश्क़ इबादत सा लगता है ।लगता है फिर से किसी ने प्रेम को परिभाषित करने की आंसुओं से लबरेज़ कोशिश की है ।

एक भूली हुई फ़िल्म



 तो आज आपको एक ऐसी भूली हुई फ़िल्म के बारे में बताती हूँ जिसका गाना हमने रेडियो पर फ़रमाईश करवाया था अपनी अंजू मौसी जी के लिए और बजा भी था। हमने फ़रमाईश भेजी थी पीले पोस्ट कार्ड पर चंडीगढ़ से और उन्होंने सुना था इसे मुरादाबाद में। 


इस फ़िल्म के गाने सुपरहिट, फ़िल्म सुपर डुपर हिट थी और हीरोईन ने दो किरदार निभाये थे, माँ का भी और बेटी का भी। 


सुचित्रा सेन और अशोक कुमार के साथ बेहद हैंडसम धर्मेंद्र को हमने पहली बार दूरदर्शन पर देखा था और दिल बैठ गया था की जैसे किसी ग्रीक गॉड को देख लिया हो।उफ़ क्या लगते थे धर्मेंद्र तब! शानदार बेमिसाल! पर अशोक कुमार के अभिनय के सामने किसी उनको नोटिस ही नहीं किया था। उन्होंने ख़ुद ये बात स्टारडस्ट मैगजीन् में कही थी कि मेरा रोल तो कोई भी कर सकता था क्योंकि अशोक कुमार थे इस फ़िल्म में तो मुझे कोई देख ही नहीं पाया। 


अमीर लड़के का गरीब मजबूर लड़की से प्रेम और मढ़के का विदेश पढ़ाई के लिये चले जाना, लड़की के पिता के ऊपर विलेन का क़र्ज़ा होना और लड़की की ज़बरदस्ती उसी से ब्याह कर देना तो सही था पर आगे जो मजबूरियाँ और ट्विस्ट एंड टर्न्स थे उन्होंने कितना रुलाया महिलाओं को की क्या कोई फ़िल्म रुलाएगी। उस प्रेमिका की बच्ची को छाती से लगा के बड़ा करना और वकील बनाना, माँ के हाथ एक हत्या हो जाना और लड़की का माँ को इंसाफ़ दिलाना। फ़िल्म नहीं मानो एक पूरा नावेल था स्क्रीन पर। 


इस फ़िल्म के लयबद्ध कर्णप्रिय गाने इतने ज़्यादा पॉपुलर हैं आज भी की इस फ़िल्म के वीडियो अगर आप यूट्यूब पर देखेंगे तो हफ़्ते दस दिन पहले किसी ना किसी का कॉमेंट पोस्टेड ही होगा पक्का। सोचिए आज भी कितने लाखों दिलों में इसके गीत बसे हुए हैं। 


१- रहे ना रहे हम

२- छुपा को दिल में यूँ प्यार मेरा 

३- रहते थे कभी जिनके 

४- इन बहारों में 


सुचित्रा सेन की भव्य सुंदरता और गंभीर अभिनय के साथ अशोक कुमार की स्क्रीन शेयरिंग और ग़ज़ब का निर्देशन था फ़िल्म का। बहुत ही सेंसेटिव टॉपिक पर बनी थी तो शुरू में जेसी फ़िल्म से डिस्ट्रिब्यूटर डरे पर फिर इस फ़िल्म ने तो सफलता के वो झंडे गाड़े की फ़िल्म बहुत हिट होकर ही पर्दे से उतरी। 


इसके कोर्ट और बँगलो के शूटिंग बहुत अच्छी स्टोरी सेटिंग सीन से भरी हुई है। आप अबकी फ़िल्मों के झूठे ग्राफ़िक सेट्स से कहीं ना कहीं उबा हुआ महसूस करोगे। पुराने जमाने में हर चीज़ में सच्चाई दिखाने का प्रयत्न किया जाता था। आप बिना फिल्टर्स के एक बेहद मंजी हुई और सुंदर हीरोइन को सीधा बिना फिल्टर्स के देख रहे हो इस फ़िल्म में। आप हर सीन के साथ उनके साथ जुड़ते चले जाते हो। 


मैंने अभी दो तीन दिन पहले ही इस फ़िल्म को दोबारा पूरा देखा। कई कई जगह ये आपको रोने पर बेबस कर देती है। इतना अच्छा कम्बिनेशन था भावनाओं का की अभिनेताओं का इसकी स्टोरीलाइन से जुड़ाव साफ़ नज़र आता है। पुरानी फ़िल्मों में मेरी पसंदीद फिल्मों में एक है ये फ़िल्म। 🙏🏻❤️

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

बालू की किल्ल्त और सरकार उदासीन

 बालू की किल्ल्त और सरकार उदासीन

उदासीन रवैया के ख़िलाफ़ इंटक का जनाक्रोश ट्रैक्टर महारैली 06 अप्रैल को...

 


सरकार बालू घाटों की बंदोबस्ती करे या आम लोगों के लिए बालू फ्री करे : बीनू सिंह


     हुसैनाबाद :- झारखंड इंटक के प्रदेश महासचिव विनय कुमार सिंह उर्फ़ बीनू सिंह ने प्रेसवार्ता कर कहा कि बालू को लेकर लगातार दो वर्षों से हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र में भवन निर्माण व विकास कार्य प्रभावित है। लगातार ध्यानाकृष्ट कराने के बावज़ूद सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। अब जनता, मज़दूर, गाड़ी मालिक, दुकानदार सभी के सब्र का बाँध टूट चुका है। सरकार के मुखिया बालू का अवैध कारोबार अपने अधिकारियों के माध्यम कराकर सरकारी ख़ज़ाने में सेंध लगा रहे हैं, यह जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा है, जिसे किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि झारखंड के बालू घाटों की बंदोबस्ती नहीं करने के पीछे बड़ा खेल चल रहा है। बालू घाटों की बंदोबस्ती होने से सरकार को राजस्व भी मिलता और आम लोगों को बालू आसानी से सस्ती दर पर उपलब्ध होता, पर सरकार के मुखिया बालू की कालाबाज़ारी कराकर अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं, वहीं राज्य में भवन निर्माण, सड़क, पीएम आवास समेत सभी विकास के कार्य ठप्प पड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि अब याचना नहीं रण होगा, संघर्ष बड़ा भीषण होगा। आगे उन्होंने कहा कि अगर 06 अप्रैल के बाद बालू घाटों की नीलामी नहीं होती है तो वह खुद बालू घाटों से सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टर लेकर जाएँगे और जनता को बालू उपलब्ध कराएँगे। उन्होंने अधिकारियों को भी चेतावनी दी है कि अगर हिम्मत होगी तो वे ट्रैक्टर को पकड़कर दिखाएँगे। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस की मिलीभगत से बालू का अवैध कारोबार हुसैनाबाद समेत पूरे राज्य में फल-फूल रहा है और यह पैसा ऊपर तक पहुँच रहा है। उन्होंने कहा कि अधिकांश क्षेत्रों में निजी निर्माण कार्य के साथ साथ सरकारी योजनाएँ भी अधर में लटकी हुई हैं। निजी आवास निर्माण कर्तागण पत्थर के डस्ट का उपयोग कर निर्माण कराने को भी मज़बूर हैं। साथ ही, निजी घरों का निर्माण कार्य करा रहे लोग परेशान हैं। बालू के अभाव में उनका भवन निर्माण का काम बंद है। उन्होंने कहा कि बालू के अभाव में विकास कार्य ठप्प हो जाने से राज मिस्त्री, मज़दूर और अन्य कारीगरों का पलायन दूसरे राज्यों में होने लगा है, वहीं सीमेंट, ईंट, छड़ आदि का व्यवसाय करने वाले लोगों की अर्थव्यवस्था चरमरा-सी गई है। दूसरी तरफ़, सरकार रोज़गार देने में विफल है, जिनके पास रोज़गार की व्यवस्था थी, उनका रोज़गार भी बालू के अभाव में ठप्प पड़ा है। इंटक के बैनर तले वे बालू की समस्या को लेकर 06 अप्रैल को अनुमंडल मैदान से विशाल ट्रैक्टर महारैली निकाल कर बड़ेपुर उच्च विद्यालय मैदान में सभा करेंगे। बड़ेपुर मैदान में ही आगे की रणनीति तय की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार जनता की समस्या के प्रति गंभीर नहीं है। आने वाले दिनों में बालू को लेकर पुलिस-प्रशासन और जनता के बीच टकराव की स्थिति बन रही है। उन्होंने कहा कि अभी भी वक़्त है। सरकार और प्रशासन बालू को लेकर निर्णय ले या टकराव से निबटने को तैयार रहे, क्योंकि जनता के हित के लिए कार्य करना ही हमारा परम कर्तव्य व धर्म है।