मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

 सूर्य के अशुभ होने के पूर्व संकेत-

 

* सूर्य अशुभ फल देने वाला हो तो घर में रोशनी देने वाली वस्तुएं नष्ट होंगी या प्रकाश का स्रोत बंद होगा, जैसे जलते हुए बल्ब का फ्यूज होना, तांबे की वस्तु खोना। 

 

* किसी ऐसे स्थान पर स्थित रोशनदान का बंद होना जिससे सूर्योदय से दोपहर तक सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता हो। 

 

* ऐसे रोशनदान के बंद होने के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे अनजाने में उसमें कोई सामान भर देना या किसी पक्षी के घोंसला बना लेने के कारण उसका बंद हो जाना आदि।

 

* सूर्य के कारकत्व से जुड़े विषयों के बारे में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

 

* सूर्य जन्म कुंडली में जिस भाव में होता है, उस भाव से जुड़े फलों की हानि करता है। 

 

* यदि सूर्य पंचमेश, नवमेश हो तो पुत्र एवं पिता को कष्ट देता है। 

 

* सूर्य लग्नेश हो तो जातक को सिरदर्द, ज्वर एवं पित्त रोगों से पीड़ा मिलती है। 

 

* मान-प्रतिष्ठा की हानि का सामना करना पड़ता है। 

 

* किसी अधिकारी वर्ग से तनाव, राज्यपक्ष से परेशानी आदि। 

 

* यदि न्यायालय में विवाद चल रहा हो, तो प्रतिकूल परिणाम। 

 

* शरीर के जोड़ों में अकड़न तथा दर्द। 

 

* किसी कारण से फसल का सूख जाना। 

 

* व्यक्ति के मुंह में अक्सर थूक आने लगता है तथा उसे बार-बार थूकना पड़ता है। 

 

* सिर किसी वस्तु से टकरा जाता है। 

 

* तेज धूप में चलना या खड़े रहना पड़ता है।

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

बिहार में कोरोना पाबंदिया खत्म / कुमार सूरज

 * बिहार में जन जीवन सामान्य होने की पहल


कोरोना संक्रमण को लेकर बिहार  राज्य में लागू सभी तरह की पाबंदियों को खत्म कर दिया* गया है। कोरोना में लगातार आ रही कमी को देखते हुए राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है। यह निर्णय 14 फरवरी से अगले आदेश होने तक प्रभावी होगा। वर्तमान में लागू पाबंदियां छह से 13 फरवरी तक के लिए लागू हैं। 


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में शनिवार को आपदा प्रबंधन समूह की बैठक में यह निर्णय लिया गया। बैठक में कोरोना संक्रमण की स्थिति पर विचार-विमर्श करने के बाद उक्त फैसला लिया गया है। इसको लेकर गृह विभाग ने आदेश भी जारी कर दिया है। गौरतलब हो कि छह फरवरी से ही राज्य में लागू अधिकांश पाबंदियों को समाप्त कर दिया गया था। हालांकि, इसके बाद भी कक्षा आठ तक के स्कूल-कोचिंग, सिनेमा हॉल आदि को 50 प्रतिशत क्षमता के साथ ही खोलने का निर्णय था, पर अब ये भी सामान्य रूप से खुल सकेंगे। 


वहीं, सभी दुकानें, प्रतिष्ठान, शॉपिंग मॉल, धार्मिक स्थल वर्तमान की भांति आगे भी सामान्य रूप से खुलेंगे। सभी सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय भी सामान्य रूप से पहले ही खोलने की अनुमति दी गई थी। पर, इन कार्यालयों में टीका प्राप्त व्यक्ति को ही प्रवेश मिलेगा। सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का उपयोग अनिवार्य रूप से करना होगा। जिला प्रशासन को अधिकार दिया गया है कि वह स्थानीय परिस्थितियों की समीक्षा कर वहां अतिरिक्त प्रतिबंध लगा सकेंगे। 


14 फरवरी से कक्षा आठ तक के स्कूल और कोचिंग भी पूरी क्षमता के साथ खुल सकेंगे। नौंवीं और इससे ऊपर के स्कूल और कॉलेज पहले ही पूरी क्षमता के साथ खोल दिये गये थे। इसी प्रकार अब सभी पार्क व उद्यान भी सामान्य रूप से खुल सकेंगे। अब-तक दोपहर दो बजे तक ही इनके खोलने की अनुमति थी। सिनेमा हॉल,  रेस्टोरेंट और खाने की दुकानें भी अब सामान्य रूप से खलेंगे। पर, कोरोना नियमों का अनुपालन सभी को करना अनिवार्य होगा। क्लब, जिम, स्टेडियम और स्विमिंग पूल सामान्य रूप से खुलेंगे, पर कोविड टीका प्राप्त व्यक्ति ही इस सुविधा का लाभ लेंगे। सभी प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक, मनोरंजन, खेल-कूद, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन हो सकेंगे, पर जिला प्रशासन को अनुमान्य व्यक्ति की अधिकतम संख्या और शर्तों का निर्धारण करने का अधिकार होगा।  


शादी समारोह, अंतिम संस्कार और श्राद्ध कार्यक्रम में भी लोगों के शामिल होने की संख्या की सीमा को समाप्त कर दिया गया है। 13 फरवरी तक के लिए लागू निर्देश में इन सभी कार्यक्रमों में 200 व्यक्तियों तक की शामिल होने की इजाजत मिली थी। अब इन सभी का आयोजन भी सामान्य रूप से हो सकेगा।

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

ज्योतिष ज्ञान : शंका समाधान / सिन्हा आत्म स्वरूप

 नक्षत्रो के प्रभाव से बाढ़ और अतिवृष्टि ,भुकम्प आता हैं...

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वर्षा- बाढ और अतिवृष्टि लाते हैं यह योग : अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, ये सात नक्षत्र वर्षा से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने की संभावना हो तो सात दिन पूर्व से ही भारी वर्षा होती है। बिजली चमकती है।


रेवती, पूर्वाषाढ़ा, आद्रा, अश्लेषा, मूल, उत्तराभाद्रपद, शतभिषा, ये सात नक्षत्र जल से संबंधित है। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से समुद्र एवं नदी के तट पर भारी वर्षा होती है।




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ज्योतिष में पंचमहापुरुष योग की चर्चा बहुत होती है। पंच मतलब 5, महा मतलब महान और पुरुष मतलब सक्षम व्यक्ति। पंच में से कोई भी एक योग होता है तो व्यक्ति सक्षम हो जाता है और उसे जीवन में संघर्ष नहीं करना होता है। आओ जानते हैं कि यह पंच महापुरुष योग से एक मालव्य योग के बारे में संक्षिप्त जानकारी।


क्या होता है मालव्य योग : यह योग शुक्र से संबंधित है। जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित है अर्थात शुक्र यदि कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित है तो कुंडली में मालव्य योग बनता है।

 

असर : मालव्य योग का जातक सौंदर्य और कला प्रेमी होता है। काव्य, गीत, संगीत, फिल्म, कला और इसी तरह के कार्यों में वह सफलता अर्जित करता है। उसमें साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है।


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Good Moon in Fifth House – पंचम भाव में चंद्रमा संतान सुख देता है। आपके बच्चे आपको ख़ुशी प्रदान करेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है। आपको कन्या संतान का सुख अवश्य मिलेगा। आप अपने बच्चो तथा पत्नी से अत्यधिक प्यार करेंगे। आप विशेष रूप से तेजस्वी और बलवान होंगे। सभी कार्यो के प्रति सावधान रहना तो कोई आप से सीखे। यदि चन्द्रमा शुभ स्थिति में है तो आप उत्तम आचरण वाले होंगे।


आप बहुत ही खुश मिजाज इंसान होंगे। प्रेम करना तो कोई आप से सीखे। कहा जाय कि आप प्रेम के पुजारी है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मौज मस्ती करना तो आपके स्वभाव में ही है। आप बुद्धिमान होने


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Sun in 3rd house


सूर्य तृतीय भाव में हों तो जातक अत्यन्त पराक्रमी, प्रबल प्रतापी, धनी, क्षमाशील, मधुरभाषी, मित्रों का हितकारी, स्त्री-पुत्रवान्, सहोदर भाइयों से कष्ट पाने वाला, वाहन-सुख-युक्त, युद्धजयी, सदैव सुन्दरी स्त्रियों के साथ विहार करने वाला, शत्रुओं का विनाशक, शूरवीर, उदार स्वभाव वाला, तीक्ष्ण-बुद्धि, शास्त्रीय विषयों में रुचि रखने वाला, सुन्दर शरीर वाला, उद्योगी, दृढ़-निश्चली, प्रवास-प्रिय, धुड़सवारी तथा युद्ध विद्या में प्रीति रखने वाला, स्पष्टवादी, सब काम डंके की चोट करने वाला, लब्ध प्रतिष्ठित, अनुयायी शिष्य एवं सेवकों से युक्त, तेजस्वी, राजमान्य, कवि, नैतिक साहस युक्त, सुकर्मी, स्वच्छ हृदय वाला तथा प्रिय भाषी होता है। ऐसा जातक प्रायः धन से सुखी रहता है। विशेष अशुभ होने पर बड़े भाई की हानि, सहोदरों की संख्या में अल्पता तथा सूर्य अशुभ हो तो भाई अथवा कुटुम्ब से अल्प सुख मिलता है तथा विष-अग्नि से भय, हड्डी टूटने, अथवा चर्म रोग होने की संभावना बनी रहती हैं। सूर्य पाप ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो किसी भाई, बहिन की मृत्यु होती है अथवा भाई पुत्र-रहित होता है अथवा बहिन विधवा होती है। कभी किसी भाई की विष अथवा शस्त्र द्वारा मृत्यु भी हो सकती है तथा भाई-बहिन को सन्तान-विषयक कष्ट भी होता है।


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कुंडली में राहु की शुभ-अशुभ स्थिति

अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि, शुक्र और बुध लग्न भाव के स्वामी हैं तो राहु शुभ फल दे सकता है। राहु शुक्र, शनि और बुध का मित्र माना जाता है।

वहीं अगर कुंडली में सूर्य, चंद्र, मंगल या चंद्रमा लग्न भाव के स्वामी हैं तो राहु से अशुभ फल मिल सकते हैं। क्योंकि राहु इन ग्रहों का शत्रु है।

 कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में राहु शुभ फल देता है।


शुभ राहु का व्यक्ति पर असर...


कुंडली में राहु शुभ होने पर उस व्यक्ति का स्वभाव कठोर और तेज बुद्धि वाला व्यक्ति होता है।

जिन व्यक्तियों की कुंडली में राहु शुभ जगह पर आता है वह व्यक्ति धार्मिक स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्तियों का धर्म-कर्म के कार्यों में मन लगने लगता है।

राहु के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ने लगता है।

राहु का शुभ प्रभाव यश और सम्मान के साथ-साथ धनवान भी बना देता है। राहु के शुभ प्रभाव से आर्थिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।



सिन्हा आत्म स्वरूप 




सुंदर कांड की रोचक प्रश्नोत्तरी*

 *प्रस्तुति - कृष्ण मेहता 

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1 :- सुंदरकाण्ड का नाम सुंदरकाण्ड क्यों रखा गया?


हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटांचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे।

पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था।

दुसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे।

तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी।

इस काण्ड की सबसे प्रमुख घटना यहीं हुई थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया।


2 :- शुभ अवसरों पर सुंदरकाण्ड का पाठ क्यों?


शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का पाठ किया जाता है। शुभ कार्यों की शुरूआत से पहले सुंदरकाण्ड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है।

जबकि किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियाँ हों, कोई काम नहीं बन पा रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकाण्ड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं, कई ज्योतिषी या संत भी विपरित परिस्थितियों में सुंदरकाण्ड करने की सलाह देते हैं।


3 :- सुंदरकाण्ड का पाठ विषेश रूप से क्यों किया जाता है?


माना जाता हैं कि सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी प्रशन्न होते हैं।

सुंदरकाण्ड के पाठ में बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है।

जो लोग नियमित रूप से सुंदरकाण्ड का पाठ करते हैं, उनके सभी दुखः दुर हो जाते हैं, इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता माता की खोज की है।

इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है।


4 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ?


वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड की कथा सबसे अलग है, संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरूषार्थ को दर्शाती है, सुंदरकाण्ड एक मात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का काण्ड है।


मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड है, सुंदरकाण्ड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।


5 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है धार्मिक लाभ?


सुंदरकाण्ड के वर्णन से मिलता है धार्मिक लाभ, हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है। बजरंगबली बहुत जल्दी प्रशन्न होने वाले देवता हैं, शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक उपाय सुंदरकाण्ड का पाठ करना है, सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है।


किसी भी प्रकार की परेशानी हो सुंदरकाण्ड के पाठ से दूर हो जाती है, यह एक श्रेष्ठ और सरल उपाय है, इसी वजह से काफी लोग सुंदरकाण्ड का पाठ नियमित रूप से करते हैं, 


हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांlघकर लंका पहुंच गए वहां सीता माता की खोज की, लंका को जलाया सीता माता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए, यह एक भक्त की जीत का काण्ड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है, सुंदरकाण्ड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं, इसलिए पुरी रामायण में सुंदरकाण्ड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है, इसी वजह से सुंदरकाण्ड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।


।।  जय श्री राम ।।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

थायोराइड का आयुर्वेदिक इलाज*

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  थायोराइड अन्तःस्रावी ग्रन्थियों (एंडोक्राइन ग्लैंड) में से एक है ।


प्रस्तुति = कृष्ण मेहता


गले में मौजूद तितली जैसे आकार वाली यह ग्लैंड थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाती है जो हमारी बॉडी की ऊर्जा खर्च करने की क्षमता और कई क्रियाओं पर असर डालता है।


थाइरोइड के घरेलू उपाय

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उपाय 1 👇

काली मिर्च से वजन और हाइपोथायरॉयड दोनो ठीक करें।

पिपेराईन 👉 एक खास रसायन है जो काली मिर्च में खूब पाया जाता है और ये कमाल का फ़ैट बर्नर है । 

अक्सर महिलाओं में थायरॉक्सिन लेवल कम होने से तेजी से वजन बढ़ता है, पेपेराईन इस समस्या से छुटकारा दिला सकता है । 


जिन्हें हाईपोथायरॉइड की समस्या है 

सिर्फ 21 काली मिर्च कुचलकर 15 दिनों तक रोज सुबह एक बार में एक साथ खा लें,सकारात्मक परिणाम आना निश्चित है।


उपाय 2 👇

25 ग्राम शुद्ध दालचीनी लें, यह जितनी तीखी हो उतना अच्छा रहेगा।

इसे पीस कर चूर्ण बना एक चुटकी चूर्ण को प्याज के रस में मिला सेवन करें।

यह प्रयोग बासी मुंह 21 दिन करें।

21 दिन सेवन से थाइरोइड सामान्य हो जाएगा- फिर कभी नहीं बढ़ेगा।

03 महीने बाद में प्रयोग दोहराइए- अचूक लाभ होगा।


उपाय 3👇

अगर किसी को थाईराईड से मुक्ति पानी है तो रसाहार थैरापी प्रयोग से १००% ठीक किया जा सकता है।


हाईपर थाईरोडीजम का ईलाज उपाय

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👉 हाईपर थाईरोडीजम मे अगर ग्रीन टी का प्रयोग दिन मे 4 बार 2-2 कप लीया जाऐ 4-6 महिने मे तो थाईरोड से मुक्ति मिल सकती है।


👉 रोज रात को 2 कप लौकी का रस मे 2 चम्मच अदरक का रस डालकर रोज रात को सोने से घन्टे पहले ले।


👉 धनिया 1 चम्मच + सौंफ 1 चम्मच + जीरा 1 चम्मच लेकर सुबह 3 ग्लास पानी मे उबाले। जब 1 ग्लास पानी बचे तब छानकर सुबह पीले 30 मिनिट तक कुछ भी ना खाऐ।


 आयुर्वेदिक औषधियां 

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1.👉 त्रिकुट चुर्ण + त्रिफला चुर्ण + वायबिडंग + अजवायन + चित्रकमूल + ताम्र भस्म + लोह भस्म + रस सिन्दुर  आदि ख़ास अनुपात में डालकर तैंयार की जाती हैं। वैद्य के परामर्श से बना सकते है।

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शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

सियासत, साहित्य और सिनेमा में गधे का दखल / आलोक यात्री

 

  चार्ल्स डार्विन ने बंदर को हमारा पूर्वज बताया है। लेकिन एक रामायण को छोड़ कर किसी अन्य ग्रंथ या साहित्य में बंदर का मानव से उतना सामंजस्य देखने को नहीं मिलता जितना गधे का देखने को मिलता है। आज बैठे बिठाए गधे का तसव्वुर दिमाग में ‌न जाने कहां से आ गया? कामगारों की दुनिया में गधे को बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। उसकी संज्ञा निकृष्ट कोटि के प्राणियों के तौर पर देखने को मिलती है। तुच्छता के स्तर पर तुलना करने ‌के लिए इससे बेहतर उदाहरण दूसरा कोई देखने में नहीं आता। यूं तो गधा पूरी दुनिया में विचरण करता है लेकिन इतिहास में इसके दो ही स्वामी दर्ज हैं। एक धोबी और दूसरा कुम्हार। वैसे यह ऐसा जीव है जो प्रतीक स्वरूप दुनिया के लगभग हर घर, स्कूल, सरकारी व निजी दफ्तर में किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है। डिक्शनरी हिंदी की हो या अंग्रेजी की इसके पर्यायवाची नामों से भरी पड़ी है। मसलन गधा, खर, खच्चर, गर्दभ, टट्टू, डौंकी, पौनी और न जाने क्या-क्या...?

   वेद-पुराणों में भी गधे का उल्लेख मिलता है।ऋग्वेद के ३:५३:२३ तथा ऐतरेय ब्राह्मण-४:९ तैत्तिरीय संहिता-५:१:२:१ में इसका उल्लेख बताया जाता है। ऐसा ऐसा प्रतीत होता है कि गधा भी बेचारा कालसर्प से पीड़ित है। जिसकी कुंडली में कालसर्प दोष होता है, वह व्यक्ति भी जीवन भर गधे की तरह अथाह मेहनत करके भी कुछ भी हासिल नहीं कर पाता है।

  गधे के व्यापक पालतू और उपयोग के कारण, दुनिया भर में मिथक और लोककथाओं में गधे का उल्लेख मिलता है। शास्त्रीय और प्राचीन संस्कृतियों में गधों की भागीदारी थी। मिस्र में गधा सूर्य देवता 'रा' का प्रतीक था। बाइबिल में गधों का कई बार उल्लेख किया गया है। जो पहली किताब से शुरू होता है और पुराने और नए नियम दोनों के माध्यम से जारी रहता है। इसलिए गधा वहां जूदेव-ईसाई परंपरा का हिस्सा बन गया। 


  भारतीय पुराण कहते हैं कि अंतिम समय में गऊ माता की पूंछ पकड़ने से भवसागर पार हो जाता है। लेकिन भारतीय साहित्य सहित दुनिया के किसी भी शास्त्र में इस मान्यता का प्रमाण नहीं ‌मिलता। जबकि एक शब्द "पौनी टेल" ऐसा है जिसे हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। हमारे बचपन में अक्सर मां, बहन, बुआ, चाची, मामी बच्चियों से बड़े दुलार से कहती थीं 'आ तेरी पोनी टेल बना दूं...'।

  थोड़े बड़े हुए ‌तो लंदन से आए पिताश्री के मित्र श्रीराम विद्यार्थी अंग्रेजी का एक बाल उपन्यास 'ब्लैक ब्यूटी' ले आए। अब साहित्य में गधे के योगदान विषय पर शोध करने बैठा तो पता चला कि इस उपन्यास की रचना ब्रिटिश लेखिका आन्ना सेवेल ने की थी। 1877 में प्रकाशित इस उपन्यास को लिखने में उन्हें छह साल लंबा अर्सा लगा। सोचिए करीब डेढ़ सौ साल पहले कोई व्यक्ति गधे की किसी प्रजाति की कल्पना के साथ छह साल व्यतीत कर दे। उपन्यास का कथानक तो मुझे याद नहीं लेकिन हां कथा के केंद्र ‌में एक पौनी (गधे का बच्चा) था। यह पुस्तक ब्लैक ब्यूटी नाम के पौनी द्वारा आत्मकथात्मक संस्मरण के साथ शुरू होती है। आज यह पुस्तक विश्व के दस सर्वश्रेष्ठ बाल उपन्यासों में शामिल है। पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि इस नन्हे पौनी ने लेखिका को आज के हिसाब से डेढ़ सौ साल पहले लगभग साढ़े तीन लाख रुपए का पारिश्रमिक दिलवाया था। 

  गधे की महिमा यहीं खत्म नहीं होती।‌ हिन्दी के प्रख्यात लेखक कृशन चंदर ने तो गधे को केंद्र में रखकर 'एक गधे की आत्मकथा', 'गधे‌ की वापसी' और 'गधा नेफा में' शीर्षक से तीन उपन्यास ही लिख मारे। जो दुनिया भर में काफी चर्चित हुए। 'एक गधे की‌ आत्मकथा' व्यंग्य उपन्यास है। जिसके माध्यम से कृशन चंदर सन 1950-60 के भारत के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, जातिवाद व भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर एक गधे के माध्यम से कटाक्ष करते हैं। जो मौजूदा दौर में भी उतने ही सटीक नजर आते हैं। उपन्यास की पटकथा गधे की नज़रों और शब्दों से देखने और सुनने को मिलती है।  उपन्यास का नायक गधा जो विभिन्न भाषाएं बोलता और समझता है, वह समाज के दोनों वर्ग ‘समझदार’ (पढ़े-लिखे और सभ्य, भाषा और संस्कृति का ज्ञान रखने वाले) 'मूर्ख' (अशिक्षित, असभ्य और अज्ञानी) समझे जाने वाले मनुष्यों का प्रतीक है। गधा कहलाने वाला जानवर दरअसल हम मनुष्यों से कितना अलग, बेहतर और समझदार है यह उपन्यास के विभिन्न हिस्सों, घटनाओं और संवादों में समय-समय पर प्रकट होता है। अन्य किसी भी जानवर को छोड़कर गधे को नायक के रूप में चुनकर कृशन चंदर ने बड़े ही साहस का काम किया है। गधा (नायक) नायक लिबास में जिस तरह से मनुष्यों के दोगले व्यवहार, कटुता, पक्षपात को दर्शाता है वह पढ़ना बहुत ही रोचक है। कृशन चंदर ने बहुत ही सरल और सीधे तरीके से अपनी बात कहकर समाज के हर वर्ग से जुड़े व्यक्ति और व्यवहार पर चुटकी ली है। पूरा उपन्यास पढ़कर भी पाठक इसी पाशोपेश में रहता ही कि यह आदमी के रूप में गधा है या गधे के रूप में आदमी? 

  उपन्यास की एक पंक्ति 'एक मुसलमान या हिन्दू गधा हो सकता है लेकिन एक गधा हिंदू या मुसलमान नहीं हो सकता' इस उपन्यास के मर्म को समझने के लिए पर्याप्त है। कहानी के केंद्र में एक गधा है। जो हिन्दू मुस्लिम दंगो से बचकर दिल्ली पहुंच जाता है। रामू धोबी उसे अपने खूंटे से बांध लेता है। रामू के पास रह कर वह कई अनुभव पाता है। जिसमें कई जगह वह पाता है कि लाखों मनुष्यों की जिंदगी गधे से भी तुच्छ है। एक दिन मगरमच्छ रामू की टांग खींच लेता है जिससे उसकी मौत हो जाती है। अपने मालिक के मर जाने के बाद उसके बीवी बच्चों को मुआवजा दिलवाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटता है। ठीक वैसे ही जैसे आम नागरिक अपने छोटे छोटे कामों के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते है। 'एक गधे

गधे की आत्मकथा में आम नागरिक द्वारा किया जाने वाला संघर्ष है। 

  गधे को लेकर लिखे गए‌ व्यंग्यों की फेहरिस्त काफी लंबी है। लेकिन सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी ने गधे को केंद्र में रखकर एक बेहतरीन नाटक 'एक था गधा उर्फ अलादाद खां' रच डाला। नाटक में दर्शाया गया है कि राजनैतिक दल अपने स्वार्थ की खातिर सामान्य जनता को कैसे मूर्ख बनाए रखते हैं? इसी राजनीतिक परिवेश के कारण देश में घट रही मूल्यहन्ता त्रासदी को दर्शाना ही इस नाटक का मुख्य उद्देश्य है। यह नाटक शरद जोशी जी ने उस समय लिखा था, जब देश में आपातकाल के कारण आम जनता शोषित थी। इस नाटक को उसी सच्चाई का दर्पण माना जा सकता है।

  नाटक में दर्शाया गया है कि विरासत में मिली सियासत व नवाबी में कुछ लोग नेतृत्व में सक्षम न होने के बावजूद ऐसे फैसले लेते रहते हैं जो कि आवाम के लिए सही नहीं होते। नाटक में कई पात्र हैं। लेकिन मुख्य पात्र नवाब साहब व कोतवाल हैं। दोनों ही राजनैतिक व प्रशासनिक शक्ति के प्रतीक हैं। अलादाद खां जनसाधारण का प्रतीक है। जो दुखी है, परेशान है, जिनकी कोई नहीं सुनता। नवाब साहब जिनके पूर्वज भी नवाब थे, एक नाकामयाब सियासतदान व लोगों का भला करने में सक्षम नहीं होने के बावजूद विरासत में मिली नवाबशाही के ऐसे-ऐसे फरमान जारी करते थे, जिन्हें मानना लोगों की मजबूरी थी। नवाब साहब चाहते हैं कि हर तरफ उन्हीं के जयकारे गूंजे और जनता में केवल उन्हीं की चर्चा हो। 

  एक दिन कोतवाल नवाब साहब के पास देर से पहुंचता है। नवाब साहब उससे देरी से आने की वजह पूछते हैं। कोतवाल झूठ बोलते हुए कहता है कि अलादाद खां मर गया। वह तो उसके परिवार को दिलासा देने गया था। नवाब साहब उससे पूछते हैं कि इस मामले में उन्हें क्या करना चाहिए? जिससे उनकी भी वाहवाही हो सके। कोतवाल सुझाव देता है कि नवाब साहब शवयात्रा में अलादाद की अर्थी को कंधा दे दें। जिससे नवाब साहब की शोहरत पूरे इलाके में फैला जाएगी। नवाब साहब अलादाद की शवयात्रा को कंधा देने की सार्वजनिक घोषणा करने के साथ-साथ कई और इंतजामात भी करते हैं। शव यात्रा का आंखों देखा हाल टेलीविजन पर प्रसारित करने की तैयारी भी पूरी हो जाती है। 

  इसी बीच पता चलता है कि अलादाद खां नाम का कोई आदमी नहीं मरा बल्कि अलादाद एक धोबी के गधे का नाम है। नवाब साहब परेशान हो उठते हैं। नवाब साहब सोचते हैं कि एक गधे के जनाजे को कंधा कैसे दें? क्योंकि वह खुद ही इलाके में इसकी चर्चा कर चुके थे। वह सोचते हैं कि सारी तैयारियां हो गईं, प्रचार भी हो गया, लेकिन जनाजा किसका निकाला जाए? 

  वह कोतवाल को बुलाते हैं। जिसने यह खबर दी थी कि अलादाद खां मर गया। कोतवाल अपनी जान बचाने की जुगत में ‌लग जाता है।

इसी दौरान उसकी मुलाकात एक व्यक्ति से होती है। जिसका नाम अलादाद खां है। नवाब साहब की इज्जत बचाने के लिए अलादाद नाम के व्यक्ति का कत्ल करवा दिया जाता है और नवाब साहब जाकर उसकी शवयात्रा में कंधा देते हैं। नाटक में दर्शाया गया है कि विरासत में सियासत के बावजूद कुछ लोग जोकि लोगों का भला करने में सक्षम नहीं है। मात्र अपने स्वार्थ व वाहवाही के लिए गलत कदम उठाते हैं। जोकि समाज के लिए घातक साबित होते हैं। 

  तो... कौन कहता है कि गधा किसी नायक से कम है। भारतीय सिनेमा में भी गधे ने झंडे गाडे़ हैं। 1967 में एक फिल्म आई थी 'मेहरबान'। सुनील दत्त और नूतन अभिनित इस फिल्म का बचपन में सुना एक गाना भी जेहन में खरदौड़ कर रहा है। जिसके बोल थे 'मेरा गधा गधों का लीडर...।' मेरे ख्याल से इस गीत का आज के या तब के राजनैतिक दौर से कोई लेना-देना नहीं है। तो... अब गीत के बोल पर आते हैं-

'मेरा गधा गधों का लीडर, कहता है के दिल्ली जाकर

सब मांगे अपनी कौम की मैं, मनवा कर आऊंगा

नहीं तो घास न खाऊंगा, मेरा गधा गधों का लीडर...

सबसे पहली मांग हमारी, धोबी राज़ हटा दो

अब न सहेंगे डंडा चाहे, फांसी पर लटका दो

अगर न मानी सरकार, किया इंकार तो यूएनओ तक जाऊंगा

नहीं तो घास न खाऊंगा...

दूजी मांग के जात हमारी, मेहनत करने वाली

फिर क्यों यह इंसान, गधे का नाम समझते गाली

न बदला यह दस्तूर, तो हो मजबूर,

मैं इन पर केस चलाऊंगा, नहीं तो घास न खाऊंगा...

तीजी मांग हमारी,  हमको दे दो एक एक क्वार्टर

हफ्ते में एक बार घास के बदले मिले टमाटर

अगर कर दो यह एहसान, ओ मेरी जान, दुआएं देता जाउंगा

कभी न दिल्ली जाऊंगा, मेरा गधा गधों का लीडर...'

  कहना न होगा कि यह गीत अपने समय के श्रेष्ठ हास्य अभिनेता महमूद पर फिल्माया गया था। जिसने कई साल रेडियो पर धूम मचाए रखी। इस गीत के बारे में एक रोचक ‌तथ्य यह भी है कि सत्तर से नब्बे के दशक में देश में चुनाव के दौरान इस गीत के प्रसारण पर‌ पाबंदी लगा दी जाती थी। जबकि गीत के बोल‌ ऐसे नहीं हैं जो राजनीति पर सीधे- सीधे ‌प्रहार करते हों।

  बात गीत की निकली ही है तो यह जानना भी रोचक है कि संगीत के क्षेत्र में भी गधे का बड़ा सम्मान है। गधे के सम्मान में संगीतज्ञों ने 'गर्दभ राग' की रचना कर डाली। वैसे अपनी अब तक की जिंदगी में मैंने गर्दभ राग सुना नहीं है लेकिन हिंदी अदब में इस राग का उल्लेख कई जगह हुआ है।

  मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि हमारे सभ्य समाज ने गधे की महिमा और क्षमता को कम कर आंका है। मेरा मानना है कि धरती के इस सर्वश्रेष्ठ जीव जिसकी महिमा के वृतांत से हिंदी साहित्य और फिल्में ही नहीं विदेशी‌ साहित्य भी भरा पड़ा‌ है, का आकलन नए सिरे से किया जाना आवश्यक है।


- आलोक यात्री

वृद्धावस्था की स्थिति

 वृद्धावस्था की स्थिति का वर्णन करते हुए कपिल भगवान कहते हैं कि बुढ़ापा सरस बनना चाहिए। 

     आजकल लोग बुढ़ापे को एक शाप मानते हैं, जबकि बुढ़ापा तो दैवी उपहार (डिवाइन गिफ्ट) है:- 


     आँखों से दिखाई नहीं देता तो अपने अन्दर झांक कर ईश्वर का दर्शन करना चाहिए। 


    कानों से कुछ सुनाई नहीं देता तो कृष्ण की वंशी की मधुर आवाज़ सुननी चाहिए। 


    जब बुढ़ापे में दाँत उखड़ जाते हैं तो मुख से बोलना कुछ चाहते हैं और निकलता कुछ और है, क्योंकि दाँतों के न होने से हवा निकल जाती है। अतः बुढ़ापे में कम बोलना चाहिए और मौन रहकर साधना करनी चाहिए। 


    बुढ़ापे में पैरों से चला नही जाता इसलिये एकांत में बैठकर ठाकुर का भजन करना चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि हमें सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि ईश्वर के विधान के पीछे कोई न कोई हितपूर्ण कारण होता है। 


    यानी कि बाल्यावस्था में जैसे-जैसे जिन चीजों की आवश्यकता होती गई, मेरे ठाकुर देते जाते हैं और जब बुढ़ापे में जरुरत नहीं है तो हटाते जाते हैं। यह ईश्वर का अनुग्रह है।


हरे कृष्ण❤️🙏


राधे राधे ❤️🙏

अकाल चिंतन /:महात्मा गांधी कौन थे?- अमन त्यागी

 


महात्मा गाँधी कौन थे?/

- रहने दो मत पूछो, बहुत सवाल होते रहे हैं बीते सालों में।

- महात्मा गांधी को क्यों मारा गया? इसका भी अब कोई मतलब नहीं रहा।

- महात्मा गांधी ने देश के लिए क्या किया? छोड़ो मत याद करो।

- देश ने महात्मा गांधी के लिए क्या किया? यह भी कोई मुद्दा नहीं है।

- मुसलमान उन्हें कितने प्रिय थे और हिंदू कितने? मुद्दा तो अब यह भी नहीं होना चाहिए।

- महात्मा गांधी कैसे महात्मा बने और किसने बनाया? यह बात भी याद रखने की क्या जरूरत है? छोड़ दीजिए ना।

- महात्मा गांधी कहाँ पैदा हुए और कहाँ पढे? यह भी कोई महत्वपूर्ण बात नहीं रह गई है।

- महात्मा गांधी क्या पहनते थे और क्या खाते थे? अब कोई जरूरत नहीं है बहस करने की।

- विरोध और पक्ष में उलझ कर यातना सहने और सहाने से किसका भला होने वाला है? सोचो...

- महात्मा गांधी थे भी कि नहीं? जानता हूँ परेशान कर देगा यह सवाल।

- ठीक वैसे ही जैसे राम का अस्तित्व नकारने का प्रयास किया गया ।

- मैं तो दोनों को ही नहीं मानना चाहता मगर क्या करूँ कोई तो बताए? 

एक दिल से नहीं जाता और दूसरा जेब से नहीं जाता।


-अमन त्यागी