'ख़ुद मियां फ़ज़ीहत, औरों को नसीहत'
सहारा इंडिया परिवार
के मुखिया सुब्रत राय दो साल से भी ज़्यादा समय तक जेल में बिताने के बाद
एक महीने के लिए पैरोल पर रिहा हो रहे हैं. उनकी मां की निधन के बाद उन्हें
पैरोल पर रिहाई मिली है.
हालांकि इससे उनकी मुश्किलें कम होंगी, ऐसी
कोई संभावना नहीं है. सेबी के शिकंजे में फंसे सुब्रत राय मार्च, 2014 से
ही तिहाड़ जेल में बंद हैं.अपने चढ़ते दिनों में नई योजनाएं शुरू करते वक़्त सहारा इंडिया के संस्थापक चेयरमैन सुब्रत रॉय सहारा की टाइमिंग अचूक हुआ करती थी.
लेकिन कामयाबी के नुस्ख़े बताने वाली अपनी ताज़ा किताब “लाइफ़ मंत्रा” के मामले में वक़्त का ख़्याल नहीं रखा गया है.
हताशा में इस तथ्य की भी परवाह नहीं की गई है कि उस किताब से कौन प्रेरित होना चाहेगा, जिसका लेखक ग़रीब निवेशकों से धोखाधड़ी के आरोपों में दो साल से जेल में है?.
ज़मानत की बड़ी रक़म का इंतज़ाम करने में हलकान कंपनी में कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हुए हैं. हमेशा विश्वस्त समझे जाने वाले व्यापारिक साझेदार और राजनेता पल्ला झाड़ चुके हैं.
ऐसे में किताब की जानकारी रखने वाले साधारण पाठकों के मुंह से “ख़ुद मियां फ़ज़ीहत, औरों को नसीहत” कहावत सुनाई दे रही है.
लखनऊ में हर कोई सुब्रत रॉय को जानता है क्योंकि वे कभी खुली गाड़ी में अपने वक़्त के सबसे बड़े फ़िल्मी सितारों के साथ हज़रतगंज में शॉपिंग किया करते थे.
उनके पारिवारिक आयोजनों में प्रधानमंत्री आया करते थे.
इसके अलावा 370 एकड़ का सहारा शहर किवदंती था, जहां शपथ लेने के बाद यूपी की सरकार नाश्ता करने जाया करती थी.
अब सहारा शहर के उपेक्षित बग़ीचों में लंबी घास उग आई है, जहां जानवर चरते दिखते हैं. व्यवस्था की जगह अनिश्चित भविष्य की आशंकाएं हैं, डेढ़ साल से कर्मचारी कामचलाऊ एडवांस पर काम कर रहे हैं. यह एडवांस भी कई महीने बाद मिलता है.
जब सिक्योरिटीज़ एंज एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) और अदालत से निर्देश आते थे, वे अख़बारों में लाखों के विज्ञापन देकर बताया करते थे कि उन्हें क़ानून न सिखाया जाए, यह कि उन्हें बेवजह प्रताड़ित किया जा रहा है जबकि वे कट्टर देशभक्त हैं.
मुक़दमा जब निर्णायक दौर में पहुंच गया तब भी वे बहाने कर अदालत में हाज़िर होने से बचते रहे. कई मौक़ों पर उन्होंने ऑन रिकार्ड कहा कि वे ख़ुद जजों को बहस में हरा सकते हैं.
इन सब वजहों से अपनी साख बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए मजबूर हो गया.
जिन दिनों मुसीबत की शुरूआत हो रही थी, मुझे सुब्रत रॉय सहारा का एक लंबा इंटरव्यू करने का मौक़ा मिला था. मेरे लिए यह दुर्लभ मौक़ा था.
मैं उनकी जीवनी लिखना चाहता था.
साल 2005 में बहुत दिनों तक किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं दिखे. अफ़वाह उड़ी कि वे एड्स से मर गए, उनकी डमी से काम चलाया जा रहा है.
इसका नतीजा यह हुआ कि निवेशक अपना पैसा वापस मांगने लगे, कुछ कलेक्शन सेंटरों पर पथराव हुआ था.
उन्होंने अपनी मौजूदगी और कंपनी पर नियंत्रण का सबूत देने के लिए एक पूरे दिन का फ़ोटो सेशन रखा था. वे इसमें योग करते, गोल्फ़ खेलते और दौड़ते हुए दिखाए गए थे.
सुब्रत रॉय ने यह इंटरव्यू प्रायोजित किया था. वह इंटरव्यू कभी नहीं छपा, क्योंकि कंपनी के क़ाबिल अफ़सरों ने उसे कई दिनों तक पढ़ा और आख़िरकार विज्ञापनों की ताज़ा खेप के साथ अख़बार में छापने के लिए एक नया इंटरव्यू थमा दिया.
वे मुक़दमेबाज़ी और कंपनी की माली हालत पर छपी ख़बरों से ख़ासा ख़फ़ा थे.
उन्होंने कहा, "आज इतनी मीडिया कंपनियां हो गई हैं कि सिर्फ़ साक्षर लोगों को पकड़ कर काम चलाना पड़ रहा है. इसलिए ऐसी गप्पें छपती हैं."
वे कह तो यह रहे थे कि बेटे बड़े हो गए हैं और वे संन्यास लेकर हिमालय जा सकते हैं. लेकिन साथ ही वे 2 लाख करोड़ की अनुमानित लागत वाले 25 नई परियोजनाओं का ब्यौरा देते हुए दूसरी पारी खेलने के मूड में लग रहे थे.
वे सुंदरवन को अमीर पर्यटकों का स्वर्ग बनाना चाहते थे और प्रवासी भारतीयों के यहां छूट गए मां-बाप के लिए एक केयर सर्विस लॉन्च करने वाले थे.
सहारा एयरलाइन्स की नाकामी पर उन्होंने कहा, हमने सरकार से कहा, "हमको जमाई बोलो, टांग खिंचाई मत करो, भारत को एविएशन में अग्रणी बना देंगे. लेकिन राजनेताओं में जिगरा नहीं है, वे दृढ़ निश्चय से कुछ नहीं कर पाते."
उनकी कई परियोजनाओं से पर्यावरण को ख़तरा बताया गया था, लिहाज़ा वे पर्यावरणविदों से भी ख़फ़ा थे.
शाहरुख़ ख़ान का पैर टूटने पर उन्हें सारी व्यस्तताओं के बीच इलाज के लिए लंदन से डा. अली को भेजना याद रहा. अफ़सोस कि अमर सिंह के बच्चों के मुंडन में नहीं जा पाये. एक जगह जाता तो हर ऐसे आयोजन में जाना पड़ता, जिसके लिए समय नहीं है.
तीन घंटे के इंटरव्यू और डिनर के बीच मैंने अचानक देखा कि वे एक खंभे से टेक लगाए बांग्ला में कुछ अंसबद्ध सा बड़बड़ा रहे हैं. मैंने क़रीब जाकर कहा, कुछ अपने बारे में बताइए. उन्होंने जो कहा, वह संसार का आठवां आश्चर्य था.
पहले तो यक़ीन ही नहीं हुआ.
लेकिन वे कह रहे थे- “इतना ग्लैमर हर कोई नहीं झेल सकता. कोई बिज़नेस प्रतिद्वंदी नहीं है. मैंने लड़कों से कहा है कि ऐसा काम करो कि राइवल नहीं, फ़ॉलोअर पैदा हों. हम लोग थोड़ा अक्खड़पन, क्वालिटी और क्लास मेन्टेन करते हैं."
सभी जानते हैं कि गोरखपुर में सहारा की शुरूआत एक मेज़, एक लम्ब्रेटा स्कूटर और दो हज़ार की पूंजी से हुई थी. इस किवदंती पर यक़ीन दिलाने के लिए कंपनी ने वह स्कूटर और मेज़ आज तक एक शो केस में सजा रखी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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