पुलिसिया दोस्ती
अलीपुर और कल्याणपुरी के सहायक पुलिस आयुक्त मोती राम गोठवाल
अनामी शरण बबल
यह संस्मरण एक पुलिसिया की है। दुख की तो यह बात है कि इतना जिंदादिल इंसान मोतीराम गोठवाल अब जीवित नहीं है। 50 से भी कम उम्र में संसार छोड़ने वाले गोठवाल की पत्नी की भी बहुत याद आती है । हालांकि मैं उनसे कभी मिला नहीं मगर मेरी आवाज सुनते ही सबसे पहले भईया बोलनी और गोठवाल जी कहं पर है यह बताते हुए वहां का नंबर दे देती थी । बात 1994 की है। दैनिक अखबार राष्ट्रीय सहारा में नार्थ ईस्ट का क्राईम भी मैं ही देखता था। दो चार बार गोठवाल से बात हुई तो उन्होने कहा कभी अलीपुर आओ यार गप्प भी करेंगे और क्राईम की ऐसी खबरे दूंगा जो किसी के पास नहीं होगी। एक दो दिन में ही उसने गाड़ी भेज दी तो मैं अपने पुलिसिया मित्र से अलीपुर निकल पड़ा। बहुत ही गरमजोसी के साथ मेल मिलाप हुआ दिल्ली पुलिस में सहायक पुलिस आयुक्त( एसीपी) अलीपुर के प्यार जोश और मिलने की लालसा के चलते हम गहरे दोस्त से बन गए। बिना काम के भी केवल हाल चाल जानने के लिए हमलोग आपस में बात कर ही लेते थे।
मगर अलीपुर एसीपी और किसी पेपर का क्राईम रिपोर्टर के बीच तो आंख मिचौली वाला नाता होता है। जरूरत बे जरूरत बात करने और संपंर्क मे तो रहना ही होता है। लगभग एक दर्जन बार ऐसा हुआ कि जब मुझे गोठवाल से रात में बात करनी हो तो वे घऱ पर नहीं होते। ( उस समय तक मोबइल की पैदाईश नहीं हुई ती। मैं भाभी से पूछता कहां है अपना हीरो? भाभी ने केवल एक बार मुझसे कहा था कि भैय्या मैं आपको हमेशा बता दिया करूंगी कि हीरो कहां पर हैं, मगर आपको कभी भी यह नहीं बताना होगा कि नंबर किसने दिया है । श्रीमती गोठवाल कहें य भाभी या बहन मैने पूछा कि क्या आपको मेरे उपर विश्वास है ? आपने तो मुझे देखा तक नही है कि मैं कैसा हूं ? इस पर उन्होने कहा कि विश्वास होने पर आदमी को देखने की जरूरत नहीं पड़ती आप एक नेक इंसान है यही मेरे अटल विश्वास का संबल है। मैं एक इतने सीनियर पुलिस अधिकारी की बीबी की बातें सुनकर दंग रह गया।
करीब दो साल में ऐसे सात आठ बार मौके आए जब रात में मैं बात करना चाह रहा था और वे घर या दफ्त कहीं नहीं थे। तो अंतत एक ही शरण था। फोन करते ही वे कहां हैं और वहां का नंबर क्या है सब मेरे पास होता। और जब मैने उनके घर पर फोन करके गोठवाल के बारे में पूछता तो बात हो जाती थी और एक दो संयोग पर ध्यान नहीं दिया मगर बाद में फोन आने पर गोठवाल एकदम चौक जाता और सबसे पहले यही पूछता कि नंबर कहां से पाए कि मैं यहां पर हूं। बाद मे जब कभी गोठवाल कहीं अपने घर से बाहर किसी मित्र के यहां बैठे हो और मैने फोन कर दिया तो वे सीधे लाईन पर आने की बजाय यह पूछने को कहते कि कहीं कोई अनामी शरण का तो फोन नहीं है ? जब मैं इधर से कहता कि हां अनामी तो बेचैन होकर गोठवाल मेरी बात सुने बगैर ही यही पूछते कि तुमको यह कैसे पता कि मैं यहां पर हूं। मैं बार बार हंसकर टाल देता। मगर उस दिन गोठवाल तैश में थे नहीं अनामी फोन पर बता न। मैंने हंसते हुए कहा कि तेरे भीतर मैने एक ट्रांसमीटर एडजस्ट करा दिया है जिसमें जहं कहीं भी रहो वहां का फोन नंबर और शक्ल दिखने लगती है। मेरी बातों से खीझते हुए गोठवाल फिर पूछते बोलो अनामी क्या काम है। एक बार वो कहीं बेहद गोपनीय बैठक में था और बीच में ही मेरा फोन टपक गया। इस बार तैश में आकर गोठवाल चीख पड़ा। अनामी यार तुम्हें खबरिया का नाम बताना होगा साला है कौन भाई जो मेरी जासूसी करता है और तुम तक नंबर आ जाता है। इस बार वो गुस्से में था तो बात नहीं हो सकी।
1995 में किसी एक दिन मैं अशोक विहार में नार्थ इस्ट जिले के पुलिस कमीश्नर करनैल सिंह के कमरे में घुसा ही था कि गोठवाल पहले से मौजूद थे। थोडी देर में काम निपटने के बाद मैं बाहर निकलने लगा तो गोठवाल ने कहा कि मैं भी चल रहा हूं बस मेरा इंतजार करना। दो चार मिनट में ही गोठवाल बाहर निकले और जबरन मुझे अपनी गाड़ी में चलने को कहा। मैने हंसकर पूछा कहीं थर्ड डिग्री का तो इस्तेमाल नहीं करना। मेरी बातों को सुनकर वो केवल हंसता रहा। जब अलीपुर मै उसके कमरे में बैठा तो वह एकदम पुलिसिय अंदाज में बोला अनामी तुम्हें आज नाम बताना होगा कि तुम्हें यह नंबर कौन देता है कि मैं कहं पर हूं। मैने भी आगाह किया कि पुलिसिया धौंस, पर तो कुछ नहीं बताउंगा और पुलिस की तरह नहीं एकदम जो याराना है उसी लय में बात करो। गोठवाल ने फिर पूछा तो मैने कहा कि एक बार बताया था न कि तेरे अंदर एक ट्रांसमीटर फिट है। इस पर वो उखड़ गया। कमाल है यार एक तरफ दोस्त भी कहता है और मेरी जासूसी भी करता है। मैंने हंसते हुए कहा चोर की दाढी में तिनका। साले किन चोरों से मिलने जाते हो कि हवा खराब है। मेरी बात से वो परेशान होकर कुर्सी पर बैठ गया। मैने बात मोड़ने के लिए पूछा कि चाय बगैरह पीलाओगे तो पीला नहीं तो वापस दफ्तर भिजवाइए। मेरी बात सुनते ही उसने कहा कि चलो। गाड़ी में जब हमलोग बैठ गए तो मैने पूछ किधर ? इस पर गोठवाल ने कहा चलो घर चलते हैं वहीं चाय भी पीएंगैं और उधर से ही तुमको भिजवा भी देंगे। घर क नाम सुनते ही मैं अंदर से थोडा कंपित हुआ कि कहीं गोठवाल को अपनी बीबी पर तो शक नहीं है कि वो नंबर देती हो। घर का नाम सुनते ही मैं खुश हो गया। उसने मेरे चेहरे के भाव को देखर ही कहा क्या बात है। मैने फौरन कहा कि गुस्से में लाल पीला टमाटर हो रहे गोठवाल को देखने तो भला है कि भाभी को देखूंगा। मैने चुटकी ली गोठवाल भईया कल तुम इस आरोप में पकड़ ना लेना कि साले मेरी बीबी से बात करता है। मेरी इस चुहल पर गोठवाल के चेहरे पर मुस्कान आ गयी। मगर एक बार फिर उसने पूछा कि यार लेकिन तुमको यह पता कैसे चलता है कि कहां पर हूं। मैने जोर से गोठवाल को कह कि गाड़ी रोको अगर मेरे उपर विश्वास है तो बात करो नहीं तो बार बार बच्चों वाली लालीपॉप देने के नाम पर एक ही सवाल को बार बार दोहरा रहे हो । अभी घर ले जा रहे हो बाद में पता नहीं क्या क्या इल्जाम लगा दो। मैं नहीं जाता यार गाड़ी रूकवा दो। मेरे यह कहने पर वो एकदम ठंडा सा हो गया। तुरंत माफी मंगने लगा। मैने कहा माफी की जरूरत नहीं है यर पर अब मैं कभी फोन ही नहीं करूंगा। बिना बात किए क्य तेरी तरफ से टिप्पणी डालना मैं नहीं जानता। पर जब हमलोग में विश्वस ही नहीं है तो चाय फाय क्या। मैं घर पर चलकर भी नहीं लूंगा ।
खैर घर के पास ही यह तकरर हो रही थी लिहाजा घर तो जाना ही पडा। उसने अपनी पत्नी से मेरी मुलाकात कराई। मैं भी अनजान सा देखकर खामोश रह। दफ्तर लौटते समय गोठवाल ने फिर माफी मांगी। तब मैने कहा कि अब मैं फोन नहीं करूंगा जब आपका गुस्सा शांत हो जाए तो फोन करना नहीं तो यह हमलोग की अंतिम भेट है। कई माह के बाद गोठवाल का फोन आया और फिर से बात चालू करने का आग्रह किया। मैने कहा कि अब तो मेरे पास क्राईम रहा नहीं मगर जरूरत पड़ी तो जरूर बात होगी। दो तीन साल के बाद एक बार फिर गोटवाल का फोन आया कहां हो अनामी भाई। बोली में पुलिसिय रौब और धमक आ गयी थी। एकदम पुलिसिया प्यार दिखाते हुए बोला साले कहां रहे सालो साल । यही दोस्ती करता है। अब मैं कल्याणपुरी का एसीपी बनकर आया हूं। तेरे कार्ड में नंबर देखा तो यार यह तो तेरा ही इलाका है। एकदम चहकते हुए खुशी जाहिर कर रहा था। मैने पूछा कहां है । तपाक से गोठवाल ने कहा दफ्तर में । मैं उसके पास आधे घंटे मे पहुंच गया। कमरे में घुसते ही गोठवाल ने मुझे अपनी बांहो में दबोच लिया, अभी तक नाराज हो क्या अनामी। मैने हंसते हुए कहा नहीं नाराज क्यों रहूंग। गोठवाल मुझे बांहों मे लिए लिए ही बीच के शक तकरार के लिए माफी मांगी। मैने गोठवाल से कहा कि तेरी बांहों में यदि मेरा दम टूट गया न तो सच मान मेरी बीबी तुमसे जरूर नाराज हो जएगी। फिर एक ठहाके के साथ मैं बंधन मुक्त हुआ।
कल्याणपुरी में रहते हुए उनसे कई बार मुलाकात होती रही। जब भी घर चलने को कह तो उसने हमेश कहा कि नहीं पत्नी को साथ लेकर ही आउंगा। मगर काल की क्रूर नियति और संयोग के बीच इतना निश्छल दोस्त कब भगवान को रास आया है। उसके निधन की खबर भी मुझे बहुत बाद में ज्ञात हुआ। तो मैं उसके घर जाकर अपनी शोक संवेदना भी जाहिर नहीं कर सका।
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