शनिवार, 23 मई 2020

सब पर भारी सदा बिहारी क्योंकि.......





प्रस्तुति-अमिताभ सिंह

बिहार -जहाँ भगवान राम की पत्नी सीता का जन्म हुआ
बिहार -जहाँ महाभारत के दानवीर करण का जन्म हुआ
बिहार - जहाँ सबसे पहले महाजनपद बना!
बिहार - जहा बुद्ध को ज्ञान मिला
बिहार -जहाँ भगवान महावीर का जन्म हुआ
बिहार -जहाँ सिखों के गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ
बिहार - जहाँ के राजा चन्द्रगुप्त मौर्या से लड़ने की हिम्मत सिकंदर को भी नही हुई
बिहार - जहाँ के राजा महान अशोक ने अरब तक हिंदुस्तान का पताका फहराया
बिहार - राजा जराशंध,पाणिनि(ज
िसने संश्कृत व्याकरण लिखा )
आर्यभट, चाणक्य(महान अर्थशात्री ) रहीम, कबीर का जन्म हुआ !
बिहार - जहाँ के ८० साल के बूढ़े ने अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए (बाबु वीर कुंवर सिंह )
बिहार - जिसने देश को पहला राष्ट्रपति दिया
बिहार - जहाँ के गोनू झा के किस्से पुरे हिंदुस्तान में प्रशिद्ध है !
बिहार - जहाँ महान जय प्रकाश नारायण का जन्म हुआ !
बिहार - जहाँ भिखारी ठाकुर (विदेशिया) का जन्म हुआ !
बिहार - जहाँ शारदा सिन्हा जैसी महान भोजपुरी गायिका का जन्म हुआ !
बिहार - जहाँ - स्वामी सहजानंद सरस्वती, राम शरण शर्मा, राज कमल झा ,
विद्यापति, रामधारी सिंह‘दिनकर' रामवृक्ष बेनीपुरी, देवकी नंदन खत्री,
इन्द्रदीप सिन्हा, राम करण शर्मा, महामहोपाध्याय पंडित राम अवतार शर्मा,
नलिन विलोचन शर्मा, गंगानाथ झा, ताबिश खैर, कलानाथ मिश्र, आचार्य रामलोचन सरन, गोपाल सिंह नेपाली, बिनोद बिहारी वर्मा, आचार्य रामेश्वर झा
राघव शरण शर्मा, नागार्जुन आचार्य जानकी बल्लभ शाश्त्री जैसे महान लेखको का जन्म हुआ !
बिहार - जहाँ बिस्स्मिल्लाह खान का जन्म हुआ
बिहार - जहाँ आज भी दिलो में प्रेम बसता है
बिहार - जहाँ आज भी बच्चे अपने माँ - बाप के पैर दबाये बिना नही सोते
बिहार - जहाँ से सबसे ज्यादा बच्चे देश का सबसे कठिन परीक्षा u .p .s .c. और IIT पास करते है
बिहार - जहाँ के गाँव में आज भी दादा दादी अपने बच्चो को कहानिया सुनाते है
बिहार - जहाँ आज भी भूखे रह के अतिथि को खिलाया जाता है
बिहार - जहाँ के बच्चे कोई सुविधा न होते हुए भी देश में सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी पते है !
हम इसी बिहार के रहने वाले हैं !
बिहार -जहां लोगों ने कोरोना संक्रमण के संकटग्रस्त समय में पूरे भारत को 🚶 पैदल ही नाप दिया,महामारी में भी बिहारी मजदूरों ने सरकार को भी स्वावलम्बन का मतलब बता दिया।।
तो क्यों न करे खुद के बिहारी होने पर गर्व !
और जो नही है वो जानकारी तो जरूर रखे।।
आखिर भारत के बाहर जाके तो बोल ही सकते है।।
जय बिहार तय बिहार।।
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रविवार, 10 मई 2020

लाकडाउन का भगदड़ सच / विकास वर्मा





संपूर्ण लाक डाउन संकट के लिए जिम्मेदार कौन?
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विकास वर्मा
अचानक सबकुछ ला‌‌कडाउन के बाद देशभर में मच रहे अफ़रा-तफ़री और संकट के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? करोना महामारी के संभावित खतरों से बचने के लिए क्या सबकुछ लाक डाउन और तुरंत आनन-फानन में लाक डाउन ही एकमात्र, तात्कालिक और सबसे सही विकल्प था या इससे बेहतर कोई और विकल्प या रास्ता हो सकता था? दिल्ली समेत देश भर के तमाम महानगरों और नगरों से लाखों की संख्या में जब गरीब, मजदूर और मेहनतकशों की भीड़ गरीब और बीमारू राज्यों यूपी, बिहार और झारखंड की तरफ सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा भूखे- प्यासे और पैदल ही चले आ रहे हैं तो ये सवाल उठना लाज़िम है। क्या सचमुच सरकार (प्रधानमंत्री मोदी) के पास और कोई विकल्प नहीं बचे थे? क्या सचमुच 130 करोड़ आबादी को करोना (COVID-19) संक्रमण के संभावित खतरों से बचाने और करोना को हराने के लिए संपूर्ण लाकडाउन करने का फैसला फ़ौरी तौर पर लेना जरूरी था, चाहे आम जनता और देश को इसकी कोई भी क़ीमत चुकानी पड़े? इसका जवाब है शायद नहीं।
मेरे ख्याल से प्रधानमंत्री मोदी के पास देश को करोना संकट के संभावित संक्रमण और महामारी के खतरों से बचाने/ निपटने के लिए संपूर्ण लाक डाउन करने से पहले कई विकल्प थे। और अगर उन विकल्पों पर काम किया जाता तो शायद संपूर्ण लाक डाउन की नौबत भी नहीं आती। भारत में करोना या COVID-19 संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को आया था। इससे पहले यह चीन जहां से यह बीमारी दुनिया भर में इंपोर्ट हुई है वहां के बुहान शहर में महामारी का रूप ले चुका था। भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को इस बीमारी की भयावहता और देश में इसके संक्रमण फैलने के संभावित खतरों के बारे में भली-भांति पता (इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स और WHO की ओर से जारी एडवाइजरीज़ से ) था। यानी प्रधानमंत्री मोदी के पास पूरा फरवरी महीना और मार्च का पौने महीना यानी करीब 50 दिन का वक्त इस बीमारी के खतरों से देश की 130 करोड़ आबादी को बचाने के लिए था। इतने समय में सरकार चाहती तो बहुत कुछ कर सकती थी। लेकिन सरकार तबतक सोई रही, जबतक खतरा सिर से ऊपर बहने की स्थिति में नहीं आ गई यानी जब दुनियाभर के एक्सपर्ट्स ये कहने लगे कि भारत करोना वायरस की महामारी का एपिक सेंटर बनने वाला है। अलबत्ता समय रहते ना तो संक्रमण से बचाव के स्तर पर और ना ही देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की तैयारी के स्तर पर मोदी सरकार ने कुछ किया। एक्सपर्ट्स की मानें तो करोना वायरस का संक्रमण भारत में खुद ही नहीं पनपा है, बल्कि यह चीन और चीन के रास्ते दूसरे मूल्कों से होते हुए भारत की सरजमीं पर पहुंचा है। लिहाजा मोदी सरकार के पास पूरा वक्त था कि वह विदेशों से इस बीमारी/ संक्रमण को लेकर आने वाले पीड़ित लोगों के प्रवेश पर पहले ही पूरी कड़ाई के साथ रोक लगा देती। मसलन, जनवरी/ फरवरी में ही भारत आ रहे लोगों के वीज़ा को रद्द कर दिया जाता या रेस्टिक्ट किया जाता यानी उनकी पूर्ण स्वास्थ्य जांच के बाद ही उन्हें भारत आ रहे विमानों में प्रवेश दिया जाता। विदेश आने-जाने वालों को एडवाइजरी जारी कर दिया जाता कि वह दूसरे देशों की यात्रा नहीं करें और जो देश लौटना चाहते हैं वे जल्द से जल्द भारत वापस लौट आएं। बल्कि फरवरी के अंतिम हफ्ते और मार्च के शुरूआत में ही जब चीन समेत कई देशों में कोरोना के संक्रमण बड़े पैमाने पर फैला गए थे तो भारत की सरजमीं पर किसी भी देश से किसी शख्स की एंट्री पूरी तरह रोक दी जाती। ऐसा होता तो हम इस महामारी के संभावित खतरों से शायद देश को बचा लेते वह भी बिना संपूर्ण लाकडाउन किए। लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। इंटरनेशनल फ्लाइट्स 25 मार्च तक भारत में संक्रमित लोगों को लेकर आती रही, तब भी जब देशभर में संपूर्ण लाक डाउन हो चुका था। हाय-तौबा मचने पर इंटरनेशनल फ्लाइट्स रोकी गई है।
कल्पना कीजिए कि अगर सिर्फ अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स और बंदरगाहों को समय रहते पूरी तरह बंद करके हम कोरोना महामारी के खतरों से देश को बिना लाकडाउन किए बचा लेते तो शायद यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि होती। और फिर भी मान लें कि लाक डाउन करने की नौबत आ ही जाती तो क्या इसे चरणबद्ध रूप में नहीं किया जा सकता था? क्या देशवासियों को पहले ही इसके लिए आगाह नहीं किया जा सकता था? अपने घर-परिवार को छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर मेहनत मज़दूरी कर रहे लाखों लोगों को उन्हें अपने घर-परिवार लौटने का मौका नहीं दिया जा सकता था? क्या सरकार रेलवे स्टेशनों पर लोगों की पूरी स्क्रीनिंग (स्वास्थ्य जांच) कर उन्हें विशेष ट्रेनें चलाकर गांव नहीं भेज सकती थी? क्या सरकारों को इस अफ़रा-तफ़री का अंदाजा नहीं था? मेरे ख्याल से सरकार के पास तमाम विकल्प और रास्ते भी थे और शायद अंदाजा भी।
 लेकिन लगता है कि मोदी सरकार के पास इस संकट से निपटने की ना तो दूरदृष्टी थी और ना ही कोई रोड मैप। बस जो करना है एक झटके में कर देना है, भले ही उसका परिणाम जो हो। 130 करोड़ जनता और देश को इसकी जो क़ीमत चुकानी पड़े। नोटबंदी की तरह देशबंदी कर दी गई। बिना सोचे-विचारे और समझे। अरे साहब, आपकी अक्ल अगर चरने चली गई थी तो कम से कम पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की नकल ही कर लेते, जहां सिंध को छोड़कर अन्य किसी प्रांत में लाक डाउन नहीं किया गया है। अच्छा पाकिस्तान तो हमारा दुश्मन है, इसलिए उसकी नकल हम कैसे कर सकते हैं। अरे साहब,  पाकिस्तान को छोड़िए हम जापान की तो नकल कर ही सकते थे, जहां अभी तक लाक डाउन नहीं किया गया है। क्या जापान में लोगों के जान की कीमत नहीं है? जापान दुनिया का ऐसा देश है जहां हर मौत के लिए सरकार को जवाब देना पड़ता है। लेकिन जापान ने इस महामारी से निपटने के लिए ना सिर्फ खुद को पूरी तरह तैयार कर रखा है, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए लाक डाउन जैसे बेहद सख्त और आत्मघाती कदम उठाने से खुद को अभी तक बचा रखा है। साथ ही देश के नागरिकों को किसी भी संभावित हालात के लिए तैयार रहने का संकेत देकर उन्हें तैयार रहने का मौका दिया है ना कि भारत की तरह जहां रातों-रात लाक डाउन का फरमान सुना कर 130 करोड़ की आबादी को संभलने तक का मौका नहीं दिया गया। क्या एक लोकतांत्रिक देश में इतना कठोर फैसला इस तरह से लिया जाता है? क्या इतनी विविधताओं से भरे देश में जहां करोड़ों लोग दैनिक मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं, वहां उनके और उनके बच्चों के जीवन को इस तरह लाक डाउन कर दिया जाएगा? देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देने वाला और करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर देने वाला फैसला क्या इस तरह लिया जाता है? साहब, सोचिए जरा। आप देश को करोना की महामारी से बचाने के चक्कर में कहीं लाखों लोगों के सामने भूखे पेट भरने की नौबत तो नहीं ला दिए हैं? साहब, माना कि आपको कारपोरेट, शहरी उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग की ज्यादा चिंता है। उन्हें जानमाल की हानी नहीं हो आपकी सरकार को इसकी ज्यादा चिंता है, मगर जब कभी भी आप कोई बड़ा फैसला ले रहे होते हैं मसलन नोटबंदी, देशबंदी तो इस समय महानगरों की सड़कों से देश के गांवों की तरफ सड़कों पर चल रहे लाखों गरीब मजदूर देशवासियों के चेहरे की ओर भी तो एक बार ही सही, देख तो लिया होता। इन गरीब- मजदूर लोगों ने भी तो आपको वोट दिया था। इन्हें गरीब होने की सजा तो नहीं दीजिए। आप लौकडाउन कीजिए। सारी सोसाइटियों के गेट बंद कर दीजिए। अमीर और मध्यम वर्ग के लोग इंटरनेट पर वर्क फ्राम होम करेंगे और जरूरी सामान आनलाईन मंगवा लेंगे।
 मगर जिन लाखों लोगों के पास आज भी कोई मुकम्मल घर नहीं है, जो रोज़ दिहाड़ी पर मज़दूरी करते हैं, खाते हैं और खुले आसमान के नीचे ही सोकर गुजारा करते हैं वो कैसे जीएंगे? और अब तो आप भी देख लिए होंगे साहब यह देश ग़रीबों, मज़दूरों और विस्थापितों का है। करोड़ों लोग रोजी-रोटी और रोजगार के लिए अपना गांव-घर छोड़ हजारों- हजार किलोमीटर दूर दूसरे प्रदेशों में रहते हैं। और अगर आपके "मास्टर स्ट्रोक" टाइप राष्ट्र के नाम संदेश से अजनबी शहर में अचानक करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन जाए और भविष्य पर संकट के बादल मंडरने लगे तो उसके पास अपना गांव लौटने के सिवा कोई और विकल्प है क्या?
कुछ कीजिए साहेब। ऐसे देश नहीं चल सकता है। नहीं तो आपके फरमान को, लाक डाउन को, कर्फ्यू को लाखों गरीब मजदूर ऐसे ही तोड़ देंगे। आप डंडे के दम पर अपने अदूरदर्शी फैसले और नाकामियों को नहीं छिपा सकते। अभी भी वक्त है किसी फैसले को लेने से पहले पूरा होम वर्क कीजिए। फिलहाल जो लोग देशभर में जहां-तहां फंसे हुए हैं उन्हें जांचकर उनके घर तक ट्रेन, प्लेन, बस जैसे हो उन्हें उनके घर तक सुरक्षित पहुंचाइए। खाना और पानी दीजिए।

कोरोना जमात सेंटर दिल्ली



निजामुद्दीन के कोरोना 'संक्रमण सेंटर' के गुनाहगार कौन?
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विकास वर्मा


दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के बगल में तब्लीग़ी जमाअत मरकज़ में 24 शख्स के कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित पाए जाने, करीब 700 लोगों को क्वरंटाइन किए जाने और यहां से अपने-अपने राज्यों को लौटे करीब 10 लोगों की मौत और सैकड़ों लोगों में संक्रमण फैलने की आशंकाओं ने देश भर को हिला दिया है। अब इस मरकज़ को भारत में कोरोना वायरस के 'संक्रमण सेंटर' के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िम है कि आखिर संक्रमण के इस सेंटर का जिम्मेदार कौन है?
क्या इस सबके लिए सिर्फ वे मौलाना जिम्मेदार हैं, जो इस मरकज़ के आयोजक थे और टोटल लाक डाउन के बाद भी गैर कानूनी रूप से वहां भीड़ इकट्ठा कर रखे थे या फिर इस गुनाह के और भी शागिर्द हैं? सवाल कई हैं।
मसलन, जब दुनिया भर के अनेक मुल्कों में कोरोना वायरस ने महामारी का रूप ले लिया था और भारत में भी इसने पांव पसारने शुरू कर दिए थे, ऐसे में देश की राजधानी दिल्ली में 14 मार्च से इस तब्लीग़ी जमाअत मरकज़ की अनुमति किसने दी? इस मरकज़ में पहुंचे दुनिया के 16 मुल्कों के जमाअतियों को 13-14 मार्च को भारत आने का वीज़ा किसने जारी किया? उन्हें लेकर आने वाली इंटरनेशनल फ्लाइट्स को भारत की सरजमीं पर उतरने की इजाजत किसने दी? फिर समय रहते इस मरकज़ को रद्द क्यों नहीं किया गया? जब टोटल लाक डाउन का ऐलान किया गया तो मरकज़ को खाली क्यों नहीं कराया गया? जबकि निजामुद्दीन थाना इस मरकज़ से बिल्कुल सटा हुआ है और थाना और इंटेलिजेंस के लोगों की इस मरकज़ पर खास निगाह रहती है, उन्हें नहीं पता था कि यहां हजार से अधिक लोग रूके हुए हैं? फिर जब मरकज़ की ओर से 25 मार्च को ही जमाअतियों को बाहर निकालने के लिए लिखित रूप में निजामुद्दीन थाना और मैजिस्ट्रेट से कर्फ्यू पास और बस की मांग की गई तो ये मुहैया क्यों नहीं कराए गए? और उस सबसे भी अधिक महत्वपूर्ण ये कि मरकज़ पहुंचने से पहले सभी विदेशी जमाअतियों की स्क्रिनिंग (स्वास्थ्य जांच) क्यों नहीं करवाई गई?
इसका जवाब हम आपको बताते हैं- तब्लीग़ी मरकज़ की अनुमति सरकारी एजेंसियों ने दी। वीज़ा सरकार ने दिया। इंटरनेशनल फ्लाइट्स आने की अनुमति सरकार ने दी। मरकज़ की अनुमति सरकार ने रद्द नहीं की। लाक डाउन के समय मरकज़ सरकार ने ख़ाली नहीं करवाई। पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसी को आन रिकार्ड्स सब पता था। कर्फ्यू पास और बसें सरकार ने मुहैया नहीं करवाई। स्वास्थ्य जांच सरकार ने नहीं करवाई।

मैंने अपने पिछले पोस्ट 'टोटल लाक डाउन संकट के लिए जिम्मेदार कौन' में जिस प्वाइंट को भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने के कारण के रूप में उठाया था, निजामुद्दीन के तब्लीग़ी मरकज़ कांड के बाद अब वही प्वाइंट भारत में इस वायरस से संक्रमण के बड़े पैमाने पर फैलाव के कारण के रूप में दिखने लगा है। उस पोस्ट में बताया था कि कोरोना वायरस का संक्रमण भारत में खुद से नहीं हुआ है बल्कि यह चीन और चीन के रास्ते दूसरे मूल्कों से होते हुए इंपोर्ट की गई महामारी है। तथ्यों के मुताबिक निजामुद्दीन के तब्लीग़ी मरकज़ में भी वहां जुटे बड़े पैमाने पर लोगों में कोरोना  वायरस का संक्रमण वहां मौजूद विदेशी जमाअतियों से ही फैला है। सरकार ने समय रहते अगर इंटरनेशनल फ्लाइट्स कैंसिल कर दी होती तो शायद ना तो ये विदेशी जमाअती भारत और मरकज़ पहुंचते और ना ही ये संक्रमण का सेंटर बनता।
 जाहिर तौर पर कोरोना की महामारी की एंट्री समय रहते देश में रोकी जा सकती थी। और शायद टोटल लाक डाउन जैसा सख्त और आत्मघाती कदम भी उठाने की नौबत नहीं आती। खासतौर पर फरवरी के अंतिम हफ्ते या मार्च के पहले हफ्ते में जब चीन और चीन के रास्ते वाया दूसरे मुल्कों में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से पांव पसार चुका था और एक बड़ी महामारी के रूप में साफ़ तौर पर दिखाई दे रहा था, उसी समय सरकार को दूसरे मुल्कों से भारत आने वालों के वीज़ा रद्द कर देना चाहिए था और सभी इंटरनेशनल फ्लाइट्स की भारत के सरजमीं पर एंट्री पूरी तरह रोक देनी चाहिए थी। विदेशों में रहने वाले भारतीय जो भारत वापस लौटना चाहते थे, उन्हें एडवाइजरी जारी कर वापस लाकर उनका स्वास्थ्य जांच कर क्वरंटाइन में भेज देना चाहिए था। मगर सरकार तब तक सोई रही, जब तक कि दुनिया भर के एक्सपर्ट्स ने यह कहना शुरू नहीं कर दिया कि भारत कोरोना वायरस के संक्रमण का नया एपिक सेंटर बनने जा रहा है। जाहिर तौर पर 'लाकडाउन' से पहले इंटरनेशनल फ्लाइट्स रोकी गई होती तो शायद निजामुद्दीन का तब्लीग़ी मरकज़ कोरोना वायरस के 'संक्रमण का सेंटर' नहीं बनता। और देश के कई राज्यों के सैकड़ों नागरिक इस संक्रमण के शिकार नहीं होते।
अभी भी वक्त है भारत की सरजमीं पर मौजूद सभी विदेशी नागरिकों को सरकार तुरंत ख़ोज निकाले और उसकी पूरी स्वास्थ्य जांच कर उसे क्वरंटाइन करे। वरना और कई निजामुद्दीन, मरकज़ और ऐसे धार्मिक केंद्र हो सकते हैं, जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटी हुई हो और महामारी फ़ैला रहे हों। सरकार के पास दिसंबर 2019 से लेकर अभी तक भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों का पूरा डाटा होगा, इसलिए देर किस बात की सभी को खोजें, जांच कराएं।



सोमवार, 4 मई 2020

मदद हो इन सबकी




मजदूर बन गयी लाकडाउन में दिल्ली की 10 लडकियां

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