मंगलवार, 31 जुलाई 2012

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद-जन्मदिन


Special Days
व्रत-त्यौहार, सितारों के जन्म दिन, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के घोषित दिनों पर आधारित ब्लॉग
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पोस्टेड ओन: 31 Jul, 2011 जनरल डब्बा में
munshi premchandप्रेमचंद का जीवन-परिचय
हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. वह एक कुशल लेखक, जिम्मेदार संपादक और संवेदशील रचनाकार थे. प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी से लगभग चार मील दूर लमही नामक ग्राम में हुआ था. इनका संबंध एक गरीब कायस्थ परिवार से था. इनके पिता अजायब राय श्रीवास्तव डाकमुंशी के रूप में कार्य करते थे. प्रेमचंद ने अपना बचपन असामान्य और नकारात्मक परिस्थितियों में बिताया. जब वह केवल आठवीं कक्षा में ही पढ़ते थे, तभी इनकी माता का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया. बालक प्रेमचंद इस दुर्घटना को सहन करने के लिए बहुत छोटा थे. माता के दो वर्ष बाद प्रेमचंद के पिता ने दूसरा विवाह कर लिया. लेकिन उनकी नई मां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी. स्पष्ट तौर पर वह प्रेमचंद के जीवन में मां की कमी को पूरा नहीं कर सकीं. पंद्रह वर्ष की छोटी सी आयु में प्रेमचंद का विवाह एक ऐसी कन्या से साथ करा दिया गया. जो ना तो देखने में सुंदर थी, और ना ही स्वभाव की अच्छी थी. परिणामस्वरूप उनका संबंध अधिक समय तक ना टिक सका और टूट गया. प्रेमचंद का जीवन काल वह समय था जब समाज में अनेक प्रकार की कुप्रथाओं का बोल-बाला था. बहु-विवाह, बाल-विवाह, बेमेल विवाह आदि ऐसी प्रथाएं थी, जो प्रमुख रूप से अपनी जड़ें जमा चुकी थीं. विधवा विवाह पूर्ण रूप से निषेध और निंदनीय कृत्य माना जाता था. लेकिन अपना पहला विवाह असफल होने और उसके बाद अपनी पूर्व पत्नी की दयनीय दशा देखते हुए, प्रेमचंद ने यह निश्चय कर लिया था कि वह किसी विधवा से ही विवाह करेंगे. पश्चाताप करने के उद्देश्य से उन्होंने सन 1905 के अंतिम दिनों में शिवरानी देवी नामक एक बाल-विधवा से विवाह रचा लिया. गरीबी और तंगहाली के हालातों में जैसे-तैसे प्रेमचंद ने मैट्रिक की परीक्षा पास की. जीवन के आरंभ में ही इनको गांव से दूर वाराणसी पढ़ने के लिए नंगे पांव जाना पड़ता था. इसी बीच उनके पिता का देहांत हो गया. प्रेमचंद वकील बनना चाहते थे. लेकिन गरीबी ने उन्हें तोड़ दिया. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, पर्सियन और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की थी.

प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन
धनपत राय ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए अपना नाम बदलकर ‘प्रेमचंद’ रख लिया था. इससे पहले सरकारी नौकरी करते हुए वह अपनी रचनाएं ‘नवाब राय’ के रूप में प्रकाशित करवाते थे. लेकिन जब सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, ‘सोज़े वतन’ जब्त किया, तब उन्हें अपना नाम परिवर्तित कर प्रेमचंद रखना पड़ा. सोजे-वतन के बाद उनकी सभी रचनाएं प्रेमचंद के नाम से ही प्रकाशित हुईं. जब प्रेमचंद के पिता गोरखपुर में डाकमुंशी के पद पर कार्य कर रहे थे उसी समय गोरखपुर में रहते हुए ही उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी. यह रचना एक अविवाहित मामा से सम्बंधित थी जिसका प्रेम एक छोटी जाति की स्त्री से हो गया था. वास्तव में कहानी के मामा कोई और नहीं प्रेमचंद के अपने मामा थे, जो प्रेमचंद को उपन्यासों पर समय बर्बाद करने के लिए निरन्तर डांटते रहते थे. मामा से बदला लेने के लिए ही प्रेमचंद ने उनकी प्रेम-कहानी को रचना में उतारा. हालांकि प्रेमचंद की यह प्रथम रचना उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके मामा ने क्रुद्ध होकर पांडुलिपि को अग्नि को समर्पित कर दिया था. गोरखपुर में प्रेमचंद को एक नये मित्र महावीर प्रसाद पोद्दार मिले और इनसे परिचय के बाद प्रेमचंद और भी तेजी से हिन्दी की ओर झुके. उन्होंने हिन्दी में शेख सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया. इसके अलावा वह ‘प्रेम-पचीसी’  की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे.

प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएं
प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे. उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास की झलक साफ दिखाई देती है. यद्यपि प्रेमचंद के कालखण्ड में भारत कई प्रकार की प्रथाओं और रिवाजों, जो समाज को छोटे-बड़े और ऊंच-नीच जैसे वर्गों में विभाजित करती है, से परिपूर्ण था इसीलिए उनकी रचनाओं में भी इनकी उपस्थिति प्रमुख रूप से शामिल होती है. प्रेमचंद का बचपन बेहद गरीबी और दयनीय हालातों में बीता. मां का चल बसना और सौतेली मां का बुरा व्यवहार उनके मन में बैठ गए थे. वह भावनाओं और पैसे के महत्व को समझते थे. इसीलिए कहीं ना कहीं उनकी रचनाएं इन्हीं मानवीय भावनाओं को आधार मे रखकर लिखे जाते थे. उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया था. उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं. इसके अलावा प्रेमचंद ने लियो टॉल्सटॉय जैसे प्रसिद्ध रचनाकारों के कृतियों का अनुवाद भी किया जो काफी लोकप्रिय रहा.

प्रेमचंद को दिए गए सम्मान
प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया. गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना भी की गई है. वहां प्रेमचंद से संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है. उनके ही बेटे अमृत राय ने ‘क़लम का सिपाही’ नाम से पिता की जीवनी लिखी है. उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं. उनकी बेजोड़ रचनाओं और लेखनशैली से प्रभावित होकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से नवाजा था.

प्रेमचंद का निधन
अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर प्रेमचंद का पूरा समय वाराणसी और लखनऊ में ही गुजरा, जहां उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे. 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ. इस तरह वह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर भारतीयों का पथ आलोकित किया.

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2 प्रतिक्रिया

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नवीनतम प्रतिक्रियाएंLatest Comments
j l singh के द्वारा
August 1, 2011
मुन्सी प्रेमचंद के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद!
कलम के सिपाही, महान उपन्यास सम्राट, कथाकार को सलाम!
उनकी काफी रचनायें आज भी प्रासंगिक है!
संदीप के द्वारा
August 1, 2011
मुंशी प्रेमचन्द्र हिन्दी साहित्य में गरीबों की छवि को करुणामयी तरीके से अपनी रचनाएं में लाने वाले एक महान नायक थे. उन्होंने खुद गरीबी को महसुस किया था और इसी कारण वह गरीबों को इतनी अच्छी तरह समझ पाएं थे. साहित्य के जादुगर को एक सलाम




  • ज्यादा चर्चित
  • ज्यादा पठित
  • अधि मूल्यित



शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

45 जेजे कालोनियों को मालिकाना हक देने का रास्ता साफ



दिल्ली व एनसीआर (Delhi And NCR)


नई दिल्ली। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अध्यक्षता में सोमवार को कैबिनेट की बैठक में 45 जेजे कालोनियों को मालिकाना हक देने की स्वीकृति दे दी गई है। इसके साथ दिल्ली मंत्रिमंडल ने बुजुर्ग महिलाओं की पेंशन व लड़की की शादी के दौरान दी जाने वाली आर्थिक सहायता बढ़ा दी है। इसके अलावा कैबिनेट ने चाचा नेहरू बाल चिकित्साय को स्वायत संस्थान के रूप में चलाने, दिल्ली के 11 राजस्व जिले गठित करने और स्कूलों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी स्कीम लागू करने को भी मंजूरी दे दी है।


मंत्रिमण्डल की बैठक के बाद जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि मंत्रिमण्डल ने 45 जेजे पुनर्वास काॅलोनियों के आंवटियों और वहां रह-रहे परिवारों को फ्री-होल्ड मालिकाना हक देने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि 1950 के बाद डीडीए और भारत सराकार ने झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर हटाने के बाद इन्हें 25 से 80 वर्ग गज के प्लाट आवंटित कर यहां विस्थापित किया था, लेकिन तब इस इन कालोनियों में विकास नहीं हो पाया। इनकी दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने पांच दशक से अधिक समय से इन कालोनियों में रह रहे लोगों को फ्री होल्ड मालिकाना हक देने का फैसला किया है।


शीला ने कहा कि इससे लगभग 2.50 लाख प्लाॅट धारकों को फायदा होगा। लगभग तीन लाख परिवार यानी 30 लाख लोगों को इन 45 काॅलोनियों में राहत की सांस मिलेगी। ये पुनर्वास काॅलोनियां दिल्ली के विभिन्न स्थानों में स्थित हैं। उन्होंने कहा कि मंत्रिमण्डल ने मालिकाना हक दिए जाने की शर्तों आदि को अंतिम रूप देते हुए सहानुभूतिपूर्वक रवैया अपनाया है। यह तय किया गया है कि मूल आंवटियों और उनके वैधानिक उत्तराधिकारियों से सर्किल रेट का केवल पांच प्रतिशत और खरीद-फरोख्त के कारण इन प्लाॅटों में 31 मार्च, 2007 से पहले निवास कर रहे परिवारों से सर्किल रेट का 30 प्रतिशत लिया जाएगा। 31 दिसम्बर, 2011 से पहले किरायेदारों के अलावा रह-रहे अन्य परिवारों से मालिकाना हक के लिए सर्किल रेट का शत्-प्रतिशत लिया जाएगा। शहरी विकास विभाग शीघ्र इस विषय पर विस्तृत अधिसूचना जारी करेगा।


शीला ने आगे जानकारी देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार ने विभिन्न कल्याण योजनाओं के लाभार्थियों को अधिक मदद देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि कैबिनेट ने विधावाओं, तलाकशुदा, परित्यक्त और अलग रह रही सभी महिलाओं की पेंशन एक हजार रुपए से बढ़ाकर 1500 रुपए कर दी है। इसके अलावा सभी श्रेणियों की विधावाओं को उनकी बेटी की शादी के समय तीस हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी, जो पहले पच्चीस हजार रुपए थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन याोजनाओं के लिए सरकार पहले से 116 करोड़ रुपए खर्च कर रही थी जो अब बढ़कर 172 करोड़ रुपए हो जाएगी।


मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि दिल्ली सरकार चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय को सर्वश्रेष्ठ बाल चिकित्सालय के रूप में विकसित करना चाहती है इसलिए मंत्रिमण्डल ने इस अस्पताल को स्वायत्त संस्थान के रूप में संचालित करने की मंजूरी दी है। यह देश का पहला ऐसा सरकारी अस्पताल है जिसे एनएबीएच से मान्यता मिली है। इस अस्पताल को बच्चों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने की बढ़ती मांग पूरी करने और उन्हें बाल उपचार के विभिन्न क्षेत्रों में कुशल और विशेषज्ञता प्राप्त स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए किया गया था। इसमें बाल चिकित्सा से संबंधित आंत्रशोथ, श्वास की बीमारियां, सघन देखभाल, बाल शल्य क्रिया, अस्थि रोग, ईएनटी आदि क्षेत्रों में विकसित स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के रूप में उन्नत बनाया गया।


शीला ने कहा कि सरकार ने इसे स्वायत्त संस्थान बनाने की मंजूरी देते हुए महसूस किया कि इससे डाॅक्टरों और अन्य जरूरी स्टाॅफ की भर्ती जल्द करने और अस्पताल के संचालन में लचीलापन लाने, जल्द निर्णय लेने और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने में मदद मिलेगी। इससे इस अस्पताल को सुपर-स्पेशलिटी बाल चिकित्सालय की श्रेणी में भी सर्वश्रेष्ठ बनाया जा सकेगा। इसे बाल चिकित्सा शिक्षण केन्द्र भी बनाया गया है जहां विभिन्न क्षेत्रों में स्नातक और सुपर-स्पेशलिटी शिक्षा दी जाती है। यह महसूस किया गया है कि इहबास, आईएलबीएस, मौलाना आजाद दंत महाविद्यालय और दिल्ली राज्य कैंसर इंस्टीट्यूट जैसे संस्थान सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं। इन संस्थानों में तेजी से निर्णय लिए जाते हैं। प्रक्र्रिया जटिल नहीं है और रिक्तियां भरने का काम आसान और तीव्र है। स्वायत्त संस्थान में अधिक नवीनता लाई जा सकती है और मरीजों की जरूरतों के अनुरूप तेजी से काम किया जा सकता है। मंत्रिमण्डल के फैसले के अनुसार चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय को सोसायटी के अंतर्गत संचालित किया जाएगा। सरकार सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक सोसायटी का पंजीकरण करायेगी। प्रमुख रूप से निर्णय लेने के लिए एक शासी परिषद होगी जिसके पास पर्याप्त शक्तियां होंगी।


मंत्रीमंडल के अन्य फैसलों पर प्रकाश डालते हुए सीएम ने कहा कि मंत्रिमण्डल ने दिल्ली में 11 राजस्व/सेशन जिले गठित करने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। नौ जिलों और 27 सब-डिविजन का वर्तमाना ढांचा 01 जनवरी, 1997 में अस्तित्व में आया। अब भी मंडलायुक्त पूरी दिल्ली के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं। वह मजेस्ट्रियल कार्य के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट माने जाते हैं। कहां जाता है कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के कार्य का विकेन्द्रयीकरण नहीं हुआ और इसे 1997 में नियुक्त उपायुक्त के कार्यालयों को वितरित नहीं किया गया। दिल्ली सरकार के विधि विभाग ने इस मुद्दे को भारत सरकार के पास उठाया और अब तक एक रहे महानगर क्षेत्र को जनता की सहूलियत और बढ़ती जनसंख्या की दृष्टि से राज्य सरकार के विवेक के अनुरूप विभाजित करने का अनुरोध किया। इसके बाद अतिरिक्त सचिव विधि एवं न्याय और अन्य सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि दिल्ली सरकार आम आदमियों के घर के निकट न्याय उपलब्ध कराने और प्रशासन को कारगर बनाने के लिए 11 राजस्व/न्यायिक सिविल और सेशन जिले बनाएं। समिति की सिफारिशों और मौजूदा नौ जिलों में असमान जनसंख्या के मद्देनजर नौ जिलों की सीमाओं को संशोधित करने और इन्हें 11 राजस्व और सेशन जिलों में विभाजित करना आवश्यक हो गया।


दीक्षित ने कहा कि मंत्रिमण्डल ने दिल्ली में स्कूलों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी लागू करने का फैसला किया है क्योंकि सीबीएससी पाठ्यक्रम में कम्प्यूटर शिक्षा को शामिल किया गया है। केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की इस योजना को लागू करने से विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा कम्प्यूटर साक्षर और आईटी प्रशिक्षित बनाया जा सकेगा। मंत्रिमण्डल ने इस योजना को दिल्ली में छठी से बाहरवीं कक्षा में बिल्ड, ओन, आॅपरेट और ट्रांसफर माॅडल के अनुरूप टीसीआईएल के जरिए लागू करने का फैसला किया है। कम्प्यूटर शिक्षा दिल्ली में अगस्त, 2000 में 115 स्कूलों में शुरू की गई थी। जिसे बाद में 727 सरकारी स्कूलों और 161 सहायता प्राप्त स्कूलों में लागू किया गया। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुरोध पर शिक्षा निदेशालय ने भारत सरकार को दिल्ली के सभी 194 सरकारी और सहायता प्राप्त सैकण्डरी और सीनियर सैकण्डरी स्कूलों में नई संशोधित योजना लागू करने का प्रस्ताव दिया। दिल्ली सरकार सभी सरकारी स्कूलों और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा छह से बारह के विद्यार्थियों के लिए कम्प्यूटर लैब स्थापित करेगी। इनमें उन्नत कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर, प्रिंटर लगाए जाएंगे जिनमें इंटरनेट और गुणवत्तापूर्ण साॅफ्टवेयर भी होगा। दिल्ली सरकार ने बच्चों के सभी विषयों के लिए बेहतरीन साॅफ्टवेयर विकसित किया है। ऐसा काॅलटून्स परियोजना के अंतर्गत किया गया है।

शनिवार, 14 जुलाई 2012

महानगरों में बेची जा रही है बालाघाट की लड़कियां

मध्य प्रदेश:
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प्रकाशन तरीख : 11-Dec-2011 01:49:03 द्वारा: रहीम खान एवं संजीव भाऊ अग्रवाल Font Size:
मध्य प्रदेश: महानगरों में बेची जा रही है बालाघाट की लड़कियां
-- आदिवासी क्षेत्रों से गायब होती है लड़कियां
-- अतीत में भी कई मामले उजागर हुए
-- गरीबी और बेबसी पहुंचाती है नर्क में
-- दलालों को असानी से मिलता है काम
-- पुलिस प्रशासन की भूमिका संदिग्ध
-- अनेक गुमशुदा का अभी भी पता नहीं
बालाघाट (मध्यप्रदेश): इसे विडंबना कहे या दुर्भाय की एक ओर मध्यप्रदेश सरकार बेटी बचाओं का डंका बजाकर शासन का करोड़ों रूपये प्रसार बाजी में पानी की तरह बहाकर जनता की वाहीवाही लूटने के लिये लगी हुई है । वहीं दूसरी ओर आदिवासी क्षेत्रों में गरीबी बेंबसी की मारी लड़कियों को दलाल प्रवृत्ति के लोग महानगरों में ले जाकर बेच देते है या फिर उन्हें बड़े बड़े घरों में नौकरानियों के रूप में काम दिलाते है और उनका कमीशन खूद खाते है । पिछले 5 वर्ष के भीतर बालाघाट जिले में ऐसे अनेक प्रकरण दृष्टिगोचर हुए जिसमें यह प्रमाण मिला की यहां की लड़कियों को ले जाकर महानगरों में बेचा गया । इस संबंध में 2 सप्ताह पूर्व मानव अधिकार आयोग मित्र श्रीमती फिरोजा खान ने भी आदिवासी क्षेत्रों से लड़कियां गायब होने होने और महानगरों में बेचे जाने की शिकायत पुलिस महानिरीक्षक से करते हुए संपूर्ण मामलों के विस्तृत जांच की मांग की थी और बकायदा उन्होंने गायब लडकियों की सूची भी सौंपी थी जिसमें दो महिला सहित अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया है । दूसरे राज्यों में बिकने से बची भाग कर वापस आई युवती की रिपोर्ट पर झुग्गी झोपड़ी निवासी पदमावती बंशकार, मोनू जोशी, मन्तुरा बाई, मनीराम बंशकार, राधेश्याम शर्मा को गिरफ्तार किया गया । जिस पर पुलिस महानिरीक्षक नेताम ने एक अधिकारी की नियुक्ति करते हुए पूरे मामले की जांच का आश्वासन दिया । यह समस्या लंबे समय से बालाघाट जिले के बैहर आदिवासी तहसील में चर्चा का विषय बनी हुई परन्तु गंभीरता पूर्वक कोई कदम आज तक नहीं उठाया गया है ।
बालाघाट पुलिस कोतवाली में दो युवतियों के अपहरण के मामले में 29 नवम्बर को एक गिरोह को गिरफ्तार किया जिसमें अलग अलग बयान से यह जाहिर हो गया कि यह भी युवतियों को ले जाकर बेचने का मामला है । जानकारी के अनुसार नगर के डेन्जर रोड के समीप टहलने गई दो युवतियों को अगवा कर ले जा रहे छः आरोपियों को पुलिस ने घेरा बंदी कर गिरफ्तार कर लिया है । जानकारी के अनुसार युवतियों स्थानीय झुग्गी झोपड़ी निवासी है जिनमें एक नाबालिग है जिसकी उम्र 16 वर्ष बताई जा रही है । वहीं एक अन्य युवती 25 वर्षीय है जो कि शाम 6 बजे करीब टहलने के इरादे से डेन्जर रोड पर गई थे । इसी बीच मार्शल क्रमांक एम.पी. 15 बीए 1125 में सवार 6 आरोपी जो स्वयं को सागर जिले के अंतर्गत छपरा एवं अन्नतपुरा के निवासी बता रहे है जिनके द्वारा द्वारा जबरन युवतियों को मार्शल में बैठाकर ले जाने का प्रयास किया तभी मुखबिर की सूचना की सूचना पर कोतवाली चीता मोबाइल के पुलिस कर्मियों ने घेराबंदी कर वाहन सहित गिरफ्तार कर लिया । पुलिस के अनुसार आरोपियों के नाम जगदीश पिता भंदी ठाकुर 35 वर्ष, चन्द्रभान उर्फ चिन्टु पिता पुरूषोत्तम कुर्मी 22 वर्ष, नर्मदा प्रसाद पिता लक्ष्मण कुर्मी 22 वर्ष रामेश्वर पिता मिटठु कुर्मी 27 वर्ष रामप्रसाद पिता लक्ष्मण कुर्मी 35 वर्ष, हरिसिंह पिता ज्वाला प्रसाद लोधी आदि है । आरोपियों ने बताया कि उनमें से एक नर्मदा प्रसाद कुर्मी की शादी को लेकर वे पहुंचे थे । यहां उन्होंने नर्मदा प्रसाद की शादी 25 वर्ष वर्षीय युवती से गर्रा स्थित एक मंदिर में कराई है जिसके बाद वे अपने गांव लौट रहे है तभी उन्हें पुलिस ने लालबर्रा गर्रा मार्ग पर गिरफ्तार किया। आरोपियों के अनुसार उक्त 25 वर्षीय युवती की मां ने उन्हें यहां बुलाया था जिसके द्वारा 25 हजार रूपये भी लिये गये है । उनमें से एक आरोपी रामप्रसाद कुर्मी वे अत्यंत गरीब लोग है । उनके यहां शादियों के लिये लड़कियां नहीं मिलती जिसके चलते उन्होंने यहां एक सम्पर्क सूत्र के माध्यम से युवती की मां से चर्चा कर यह कदम उठाया है ।
घेराबंदी कर किया गिरफ्तार - शर्मा
कोतवाली थाना प्रभारी श्याम चन्द्र शर्मा ने बताया की शाम 7 बजे करीब मुखबिर की सूचना पर चीता मोबाइल एवं महिला कांस्टेबल के माध्यम से डेन्जर रोड के समीप घेराबंदी कर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। जिसमें दो युवतियों एवं 6 आरोपी मार्शल में सवार पाये गये । जहां पूछताछ के दौरान युवतियों ने जबरदस्ती अपहरण किया जाना बताया । जिसके आधार पर आरोपियों के खिलाफ धारा 363, 366, 366ए, 34 आईपीसी के तहत मामला पंजीबद्ध कर जांच में लिया गया ।
एक जानकारी के अनुसार जनवरी,2011 से अब तक जिले के विभिन्न थानों में 642 गुम इंसान के प्रकरण पंजीबद्ध किये गये है । जिसमेें से 364 लोगों को ढुंढ लिया गया है । इनमें कुछ लोगों की लाशे पाई गई शेष 52 प्रतिशत इंसान को कोई अता पता नहीं है । आदिवासी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में महानगर भेजे जाने वाली लड़कियों के माताा-पिता पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करा पाते कारण यह होता है कि जो लोग इनको ले जाते है वह एक मोटी रकम उनके माता-पिता को सौंप देते है। जिसके कारण यह स्थिति निर्मित होती है ।  गुम लड़कियों की सूचना पुलिस में दर्ज कराई भी जाती है तो पुलिस भी उतनी गंभीरता से जांच नहीं करती । जिसकी आवश्यकता है । आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चर्चा में बताया कि लड़कियों की खरीद फरोख्त की घटनाएं लगातार बढ रही है । इसके पीछे भी मुख्य कारण अपनी आर्थिक सम्पन्नता बढ़ाना है । बड़े घरों में नौकरानी के रूप में काम करने ले जाने के बहाने इन्हें अन्य अनैतिक कार्यो में भी ढकेल दिया जाता है । वहीं दूसरी ओर पुलिस विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि परिवार के सदस्य इतनी पुष्ठ जानकारी उपलब्ध नहीं कराते जिस आधार पर एक गाईड लाईन बनाकर काम करके आरोपियों तक पहुंचा जाय । इस प्रकार के घटनाक्रम में वृद्धि एक चिंतनीय विषय है परन्तु इसका समाधान भी उसी समय ठोस रूप ले सकता है । प्रभावी परिवार भी खुलकर सामने आये । चूंकि बालाघाट का बहुत बड़ा भाग गरीब आदिवासी क्षेत्रों से प्रभावित है यहां के लोग काम के अभाव में प्रतिवष्र हजारों की संख्या में पलायन करके महानगर जाते हे तो कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी बेटियां भी महानगर में बेची जाती है ।
इस संबंध में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रकाश सिंह परिहार ने प्रेस के साथ चर्चा में कहा कि जिले के थानों के स्टाफ को बीट में बांटा जाता है । जिस क्षेत्र से गुमशुदा की रिपोर्ट आती है । उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारी उसकी जांच करते है । सवाल लड़कियों के महानगरों में बेचे जाने का है तो यह उनके मिलने के बाद ही स्पष्ट होता है वह अपनी मर्जी से गई थी या दलालों के चंगुल में फंस कर । कई मामलों में लड़कियों के लापता होने पर उनके माता पिता भी पुलिस को सही जानकारी नहीं दे पाते । शायद इसका कारण यह होता है कि उनकी कहीं सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ठ हो जाय । परन्तु मुझे इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है कि गुमशुदा या गायब होने की जो भी सूचनाएं पुलिस तक आती है उन पर पुलिस अपने स्तर पर सच्चाई तक पहुंचने में कोई कमी नहीं छोड़ती ।
बहरहाल आदिवासी क्षेत्रों से लड़कियों के गायब होने की घटनाएं बालाघाट जिले में आम बनते जा रही है । बेटी बचाओं अभियान का ढीढोरा पीटने वाले राजनेता शहरी क्षेत्र के आसपास घुमकर अपने कार्यो की इतिश्री करते है । इनके पास सुदूर अंचल में रहकर गरीबी बेबसी की जीवन काटने वाली लड़कियों के दुख दर्द को समझने का समय नहीं है ।
रहीम खान
पत्रकार
गुजरी चौक, भरवेली
बालाघाट (म.प्र.)
मो. 09301210541
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    भरवेली, मध्य प्रदेश: भारत में वर्तमान समय में महिलाएं प्रगति के पथ पर पुरूष के साथ कंधे से कंधा म�... Read Story
    Mon, 25-Jul-2011
    भोपाल। म.प्र. शासन के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं सहकारिता मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन ने 24 जु�... Read Story
    Mon, 25-Jul-2011
    अबोहर। नई दिल्ली की लब्ध प्रतिष्ठित कवियत्री पूनम माटिया की कविताओं के संकलन ‘स्वपन श्रृंगा�... Read Story
    Sat, 02-Apr-2011
    कितने हैं ये प्यारे फूल एक चमन में सारे फ़ूलकितने हैं ये प्यारे फ़ूलरोज़ ही आते,रोज़ ही जातेहो�... Read Story
    Fri, 01-Apr-2011
    लाचारगी झलकती है आँखों मेंमाथे पर शिकन कुछ ज्यादा हैंजिंदगी थोड़ी छोटी है,और काँधे पर बोझ कुछ ज्�... Read Story
    Tue, 15-Mar-2011
    कहाँ तक गर्दिशें पीछा करेंगी न होंगे हम तो फिर ये क्या करेंगी क्या कोई राह में लूटा गया है हव�... Read Story
    Tue, 15-Mar-2011
    Tue, 22-Feb-2011
    जब तक रहती है आत्मा विराजमान मानव देखता है स्वप्न नए रचता रहता है नए कीर्तिमान अंतकाल फिर मिल�... Read Story
    Sun, 09-Jan-2011
    किसी शायर ने क्या खूब लिखा है- ‘हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है �... Read Story
    Mon, 03-Jan-2011
    यह सर्वविदित है कि समय के साथ व्यक्ति की रूचियां भी परिवर्तित होती हैं। परिवर्तन एक शाश्वत सत्�... Read Story