देश में यह पहला मौका है जब किसी घड़ियाल ने सबसे प्रदूषित समझी जाने वाली यमुना नदी में प्रजनन किया है। निषेचन के उपरांत करीब घड़ियाल के बच्चे नजर आ रहे हैं। पहली बार यमुना नदी में घड़ियाल के बच्चे पाये जाने को लेकर जहां गांव वाले खासे खुश दिख रहे हैं वही पर्यावरणविद भी उत्साहित हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जिस प्रकार घड़ियाल ने यमुना नदी में प्रजनन किया है उससे एक उम्मीद यह भी बंध चली है कि आने वाले दिनों में यमुना नदी भी घड़ियालों के प्रजनन के लिये एक मुफीद प्राकृतिक वास बन सकेगा। घड़ियाल के प्रजनन का यह वाक्या हुआ है उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के हरौली गांव के पास हुआ है जहां इन बच्चों को लेकर गांव वाले खासे उत्साहित दिख रहे है। पहली बार घड़ियाल के प्रजनन को लेकर गांव वालों के साथ-साथ आम इंसान भी गदगद हो गये हैं। एक पखवारे पहले यमुना नदी के किनारे जाने वाले एक स्कूली छात्र मुनेंद्र ने मादा घड़ियाल को अंडे फोड़ कर बच्चो को बाहर निकालने के बाद यमुना नदी में डालने का वाक्या देखा। तब उसे पता चला कि घड़ियाल का यहां पर घोसला है। मुनेंद्र बताता है कि वो अमूमन यमुना नदी के किनारे सुबह शाम आता रहता है और इस मादा घड़ियाल को अक्सर वो इस जगह पर ही देखा करता था।
गांव के ही किनारे यमुना नदी का प्रवाह है इसलिये यमुना नदी के किनारे गांव वाले अक्सर आ जाया करते हैं इसी लिहाज से मुनेंद्र अपने करीब 5 साथियों के साथ आया तब उसने पहली बार घड़ियाल के बच्चों को देखा पहली बार बच्चे देखने के कारण मुनेंद्र इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाया कि ये घड़ियाल या मगर के बच्चे हैं। लेकिन मुनेंद्र की खबर पर सबसे पहले पूरा का पूरा गांव मौके पर आया और इन बच्चों को देखा और अब पूरे इटावा में चर्चा का बाजार गर्म है। जैसे आसपास के गांव वालों को पता चलता है वे सैकडों की तादात में जमा होकर घड़ियाल के बच्चो को देख रहे हैं। गांव के ही अमर सिंह का कहना है कि अब गांव वाले करीब 10 फुट की दूरी से बैठकर इन घड़ियाल के बच्चों को देखने में जुटे हुये हैं क्योंकि गांव वालों ने अपने जीवन में पहली बार यमुना नदी में घड़ियाल के बच्चों को देखा है। करीब 62 साल के अमर सिंह का कहना है कि इससे पहले कभी भी यमुना नदी में घड़ियालों का प्रजनन नही देखा गया था ऐसे मौके मेरे जीवन में पहली बार आया है। वन्यजीव संरक्षण की दिशा में काम कर रही संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ.राजीव चौहान का कहना है कि यमुना नदी में आई बाढ़ से इटावा के आसपास का पानी साफ हो गया है और इसी वजह से घड़ियाल यमुना नदी में प्राकृतिक वास बनाया है। ऐसा लगने लगा है देश में सबसे अधिक प्रदूषण में घिरी यमुना नदी का पानी कहीं ना कहीं अब इटावा के आसपास साफ हो रहा है इसी वजह से अब घड़ियाल यमुना नदी में प्रजनन करने लगे हैं।
इस बदलाव को लेकर ऐसी उम्मीद बंधी है कि अब यमुना नदी भी घड़ियालों को पालने के लिये मुफीद हो गई है। इससे पहले कभी भी यमुना नदी में घड़ियाल ने प्रजनन नहीं किया है। इस बदलाव के बाद ऐसा लगने लगा है कि अभी तक सबसे सुरक्षित समझी जाने वाले चंबल नदी कहीं ना कहीं दूषित हो चली है इस कारण घड़ियाल यमुना नदी की ओर मुखातिब हो रहे हैं। पूरी की पूरी यमुना नदी में एक मात्र एक ही नेस्ट देखा गया जिसमें करीब 46 बच्चे घड़ियाल के देखे जा रहे हैं। अभी तक देश में सिर्फ चंबल एक मुख्य प्राकृतिक वास-स्थल माना जाता है लेकिन अन्य जगहों पर इनकी छोटी-छोटी संख्या भी पाये जाते हैं गिरवा नदी केतरनिया घाट, सतकोशिया महानदी, कार्बेट नेशनल पार्क, सोन नदी व केन में इनकी संख्या कहने भर के लिये रहती है। साल 2007 आखिर के दिनों में इटावा में चंबल नदी में एक सैकड़ा से अधिक घड़ियालों की मौत के बाद इस बात को प्रभावी ढंग से उठाया गया कि यमुना नदी के व्यापक प्रदूषण के कारण दुर्लभ प्रजाति के घड़ियालों की मौत हो गयी है। लेकिन अनगिनत घड़ियाल विशेषज्ञों ने कई लाख रुपये खर्च करके भी घड़ियालों की मौत का पता लगाने में कामयाब नहीं हो सके हैं।
यहां पर इस बात का जिक्र किया जाना बेहद जरूरी होगा कि 2007 में जब इटावा में घड़ियालों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो यह बात घड़ियाल विशेषज्ञों की ओर से प्रभावी तौर पर कही जाने लगी कि यमुना नदी में हुए प्रदूषण की वजह से दुर्लभ प्रजाति के घड़ियालों की मौत हुई है लेकिन इस बात को कोई भी घड़ियाल विशेषज्ञ साबित नही कर पाया कि घड़ियालों की मौत यमुना नदी के प्रदूषण का नतीजा है। इसके अलावा वन्य जीव प्रेमियों के लिए चंबल क्षेत्र से एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। किसी अज्ञात बीमारी के चलते बड़ी संख्या में हुई विलुप्तप्राय घड़ियालों के कुनबे में सैकड़ों की संख्या में इजाफा हो गया है। अपने प्रजनन काल में घडियालों के बच्चे जिस बड़ी संख्या में चंबल सेंचुरी क्षेत्र में नजर आ रहे हैं वही दूसरी ओर यमुना में घड़ियाल के बच्चों ने एक नई राह दिखाई है।
दिसंबर-2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों की संख्या में इन घड़ियालों की मौत हुई थी उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घड़ियाल किताब का हिस्सा बनकर न रह जाएं। घडियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आईं और फ्रांस, अमेरिका सहित तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घड़ियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले। घड़ियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौत ने जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर रिरोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण को घड़ियालों की मौत का कारण माना। वहीं दबी जुबां से घड़ियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घड़ियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घड़ियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घड़ियालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।
जिस यमुना नदी में घड़ियाल ने पहली बार प्रजनन करके एक नया इतिहास लिखा है उसी यमुना नदी को अपने प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखने के लिये देश की राजधानी दिल्ली में सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। उत्तराखंड के शिखरखंड हिमालय से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तक करीब 1,370 किलोमीटर की यात्रा तय करने वाली यमुना को ज्यादा संकट दिल्ली के करीब 22 किलोमीटर क्षेत्र में है, लेकिन बेदर्द दिल्ली को यमुना के आंसुओं पर कोई तरस नहीं आता। यही कारण है कि अभी तक यमुना की निर्मलता वापस नहीं लौट सकी। केन्द्र सरकार व कई राज्यों ने भले ही यमुना की निर्मलता के लिए ढाई दशक के दौरान 1,800 करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च कर दी हो लेकिन यमुना के पानी की निर्मलता वापस लौटना तो दूर, वह साफ तक नहीं हो सका। जाहिर है कि अरबों की धनराशि पानी में बह गयी। विशेषज्ञों की मानें तो विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में यमुना का शीर्ष स्थानो में से एक है लेकिन घड़ियालो के प्रजनन के बाद विशेषज्ञों के पास कोई जवाब इस बात का नही है कि यह चमत्कार आखिरकार कैसे और क्यों हुआ?
यमुना नदी के किनारे दिल्ली, मथुरा व आगरा सहित कई बड़े शहर बसे हैं। ब्लैक वॉटर में तब्दील यमुना में करीब 33 करोड़ लीटर सीवेज गिरता है। ये हालात तब हैं, जब दिल्ली खुद यमुना के पानी से प्यास बुझाती है। पानी को साफ सुथरा व पीने योग्य बनाने के लिए दिल्ली सरकार को भी कम नहीं जूझना पड़ता क्योंकि पीने के लिए यमुना के पानी को साफ करने के लिए उसे काफी बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है। कानपुर, इलाहाबाद व वाराणसी के जल कल विभाग को पानी को पीने योग्य बनाने के लिए एक हजार लीटर पर औसत चार रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड को आठ से नौ रुपये की धनराशि एक हजार लीटर पानी को साफ करने में खर्च करने पड़ते हैं। इससे साफ जाहिर है कि गंगा की तुलना में यमुना अधिक प्रदूषित व मैली है। हालांकि दिल्ली की आबादी के मल-मूत्र व अन्य गंदगी को साफ सुथरा करने के लिए करीब डेढ़ दर्जन ट्रीटमेंट प्लांट संचालित हैं फिर भी यमुना का मैलापन रोकने में कामयाबी नहीं मिल रही है। इसको साफ करने के लिए जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन ने भी भारत सरकार को भारी रकम अदा की है लेकिन उससे भी सफलता नहीं मिली।
देश की राजधानी दिल्ली में यमुना के जल में कोई डेढ़ सौ अवैध आवासीय कालोनियों की गंदगी व कचरा गिरता है। इसके अलावा करीब 1,080 गांव व मलिन बस्तियां भी अपना कचरा व गंदगी यमुना की गोद में डालती हैं। इन हालातों में यमुना जल का धुलित ऑक्सीजन के शून्य होने का खतरा हमेशा बना रहता है। मानकों के अनुसार कोलीफार्म कंटामिनेशन लेबल 500 से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन यमुना में इसका स्तर खतरनाक सीमा से भी आगे बढ़ गया है। यों, यमुना को गंदा करने में केवल आबादी का मलमूत्र का प्रवाह ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि इसके लिए देश के औद्योगिक घराने कम जिम्मेदार नहीं हैं। दिल्ली, आगरा व मथुरा सहित कई शहरों का औद्योगिक कचरा गाहे-बगाहे भी यमुना की निर्मलता को बदरंग करता है। देश के नौकरशाहों को नदी सफाई की योजना बनाकर उसको क्रियान्वित करने पर ध्यान देना होगा। केवल योजना बनाने से ही कुछ नहीं होगा क्योंकि किसी भी योजना पर अपेक्षित अमल न होने से अरबों की धनराशि तो खर्च हो जाती है पर उसका लाभ नहीं मिलता है।
संबंधित नौकरशाहों पर इसकी जिम्मेदारी का निर्धारण होना चाहिए जिससे कार्ययोजना की विफलता पर बचकर निकल न सकें क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप व दोषारोपण योजनाओं को विफल कर देती हैं। इसके साथ ही यमुना किनारे बसी आबादी को भी नदी की निर्मलता के लिए जागरुक होना पड़ेगा क्योंकि आबादी की जागरुकता यमुना की निर्मलता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकेगी। आम आदमी को भी इस मुहिम से जुड़ना होगा क्योंकि तभी यमुना में गंदगी गिरने से रोका जा सकेगा। इस सबके बावजूद यमुना नदी में हुये प्रजनन ने यमुना नदी के प्रदूषण को लेकर एक सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिरकार यह कैसी मैली है यमुना नदी ? अगर हकीकत में यमुना नदी मैली है तो फिर घड़ियाल कैसे प्रजनन कर रहे है? यह कुछ ऐसे सवाल है जो पर्यावरणविदों के लिये खड़े हो गये है और इस शोध की जरूरत है।
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