गुरुवार, 27 अगस्त 2015

हनुमानजी से नाराज है महिलाएं




हनुमानजी की इस गलती की सजा आजतक 

भुगत रही हैं इस गांव की महिलाएं 

प्रस्तुति- राजेश सिन्हा 

उत्तराखण्ड के चमोली जिले का द्रोणागिरी गांव 14000 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है. इस दुर्गम गांव में सभी भगवान की पूजा होती है शिवाय एक के. ये हैं हमारे सीधे-साधे, भोले-भाले बजरंग बली. संजीवनी बूटी वाला पर्वत उठाकर ले जाने के लिए हनुमानजी वानर सेना और भगवान श्रीराम की नजरों में तो हीरो बन गए लेकिन इस गांव के लोग उनसे नाराज हो गए.


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द्रोणागिरी के लोग आजतक हनुमानजी को उनके इस गलती के लिए माफ नहीं कर पाए हैं. दरअसल हनुमान जी मुर्छित लक्ष्मण के उपचार के लिए जिस पहाड़ को उठा ले गए थे यहां के लोग उस पहाड़ की पूजा किया करते थे. इस गांव में हनुमान जी की नाराजगी का यह आलम है कि इस गांव में हनुमानजी का प्रतीक लाल झंडा भी लगाने की मनाही है.



रामायण से जुड़ी इस घटना को लेकर द्रोणागिरी के निवासी यह कहानी सुनाते हैं-
जब हनुमान जी संजीवनी बूटी खोजते हुए इस गांव में पहुंचे तो वे चारों तरफ पहाड़ देखकर भ्रम में पड़ गए. वे तय नहीं कर पा रहे थे कि संजीवनी बूटी किस पहाड़ पर हो सकती है. उन्होंने गांव के एक वृद्ध महिला से संजीवनी बूटी का पता पूछा. वृद्धा ने एक पहाड़ की तरफ इशारा किया. हनुमान जी उड़कर इस पहाड़ पर पहुंचे लेकिन यहां पहुंचकर भी वे तय नहीं कर पाए कि संजीवनी बूटी कौन सी है.

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असमंजस की स्थिति में बजरंगबली पूरा का पूरा पहाड़ ही उठाकर उड़ चले. दूर लंका में मेघनाद के शक्ति बाण का चोट खाकर लक्ष्मण मुर्छित पड़े थे. राम विलाप कर रहे थे और पूरी वानर सेना मायूस थी. जब हनुमान पहाड़ उठाए रणभूमि में पहुंचे तो सारी वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी. पूरी वानर सेना में हनुमानजी की जयजयकार होने लगी. सुषेण वैद्य ने तुरंत औषधियों से भरे उस पहाड़ से संजीवनी बूटी को चुनकर लक्ष्मण का इलाज किया जिसके बाद लक्ष्मण को होश आ गया.


लेकिन लंका से दूर उत्तराखण्ड के इस गांव के निवासियों को हनुमान जी का यह कार्य नागवार गुजरा. यहां के लोगों में नाराजगी इस कदर थी कि उन्होंने उस वृद्ध महिला का भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया जिसकी मदद से हनुमानजी उस पहाड़ तक पहुंचे थे. लेकिन उस वृद्ध महिला कि गलती की सजा आजतक इस गांव की महिलाओं को भी भुगतना पड़ता है.

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इस गांव में आराध्य देव पर्वत की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. इस दिन यहां के पुरूष महिलाओं के हाथ का दिया भोजन नहीं खाते. यहां कि महिलाओं ने भी इस बहिष्कार के प्रतिकार का तरीका ढ़ूढ लिया है. वे इस विशेष पूजा में ज्यादा रूची नहीं दिखाती हैं. Next…
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