'सेस' के भेष में कैसे कटती है आपकी जेब?
- 18 दिसंबर 2015
पिछले हफ़्ते सड़क परिवहन मंत्री ने संसद में सरकारी आंकड़े का एक हिस्सा पेश किया जिसपर शायद लोगों की नज़र नहीं गई होगी.
राज्य
मंत्री पी राधाकृष्णन ने बताया कि पेट्रोल और डीज़ल पर सेस या उपकर से
अप्रैल 2014 और मार्च 2015 के बीच सरकारी ख़ज़ाने में 21,054 करोड़ रुपए
जमा हुए.इससे एक साल पहले सरकार ने इस उपकर के ज़रिए 17,331 करोड़ रुपए इकठ्ठा किए थे और एक साल के अंदर ही इसमें करीब 22 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है. इससे एक साल पहले (2012-13) में सरकार ने 16,402 करोड़ रुपए इकठ्ठा किए थे.
पिछले कारोबारी साल में पेट्रोल और डीज़ल पर सरकार ने हर दिन 57 करोड़ रुपए से ज़्यादा सेस से कमाया. ये कमाई सरकार के खाते में गई.
लेकिन जब तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें बाज़ार की क़ीमतों के बराबर करने को कहा तो सरकार ने अक्सर वैसा नहीं किया.
टैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारों को डायरेक्ट टैक्स यानी प्रत्यक्ष कर पर हमेशा ज़ोर देना चाहिए और उससे ज़्यादा कमाने की सोचना चाहिए.
इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स और कैपिटल गेन टैक्स प्रत्यक्ष कर हैं. इनडायरेक्ट टैक्स या अप्रत्यक्ष कर गरीबों के हित के ख़िलाफ़ माना जाता है क्योंकि, कई बार, ये उन सभी चीज़ों पर भी लागू होता है जिनको गरीब लोग बड़ी संख्या में इस्तेमाल करते हैं.
सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, कस्टम्स या एक्साइज ड्यूटी - ये सभी अप्रत्यक्ष कर का उदहारण हैं. सेस या उपकर भी अप्रत्यक्ष कर हैं.
जैसे पिछले हफ्ते सरकार ने संसद में एक बिल पेश किया जिसका मक़सद है चीनी के उत्पाद पर उपकर को बढ़ाया जाए. खाद्य मंत्री राम विलास पासवान चाहते हैं कि 25 रुपए प्रति क्विंटल उपकर की सीमा को बढ़ाकर 200 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया जाए.
चूंकि क़ानूनन सरकार 25 रुपए से ज़्यादा का उपकर नहीं लगा सकती है इसीलिए ये बिल ज़रूरी हो गया था.
जब स्वच्छ भारत उपकर सरकार ने लगाने की घोषणा की थी, तब ये अनुमान लगाया गया था कि पूरे साल में सरकार 1,16,000 करोड़ रुपए तरह-तरह के उपकर से इकठ्ठा करती है.
आपकी जेब से ऐसे उपकर के रूप में सरकार की करीब 318 करोड़ रुपए की कमाई रोज़ाना होती है.
2014 में चुनावी रैलियों के समय जब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने अच्छे दिन का वादा किया था तो ज़्यादा टैक्स देकर सरकार की झोली भरने का शायद किसी ने नहीं सोचा होगा.
अब सवाल ये उठता है कि क्या सरकार मनमाने ढंग से लोगों पर टैक्स थोप रही है?
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