रविवार, 26 मार्च 2017

रुस्तम की असली कहानी








प्रस्तुति- कृति शरण

Thursday, June 30, 2016 6:52:48 PM - By एजेंसी



उस दौर की तस्वीर
1959 में विवाहेत्तर संबंधों में हुए इस कत्ल की कहानी ने पूरे देश को हिला के रख दिया था। सत्ता के गलियारों से लेकर सेना के बैरकों तक में चर्चित रही।
पारसी नौजवान कवास मनेकशॉ नानावटी नौसेना में कमांडर थे। अपनी खूबसूरत बीवी और तीन बच्चों के साथ वो बेहद खुश थे। एक बार वो छुट्टी पर घर पहुंचे तो उनके सामने खुला ऐसा राज़ जिसने उनकी जिंदगी में भूचाल खड़ा कर दिया। उनको पता चला कि उनकी पत्नी सेल्विया किसी के साथ इश्क में गिरफ्तार है। बीवी की बेरुखी ने उनके दिल पर गहरी चोट की और फिर एक रोज पत्नी ने इस बात को मान भी लिया कि वह प्रेम आहूजा से प्यार करती है।

बता दे कि, प्रेम आहूजा एक सिंधी नौजवान व्यापारी था। वह पार्टियों की शान था और शानदार लाइफस्टाइल के लिए जाना जाता था। नानावटी ने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या वह उससे शादी करेगा? पत्नी खामोश थी, और नानावटी भी लेकिन उसके दिमाग में क्या चल रहा था कोई समझ नहीं पाया। एक दिन नानावटी ने अपनी पत्नी को फिल्म देखने भेजा और प्रेम आहूजा से मिलने चले गए। तीन बार गोली चली और प्रेम आहूजा की लाश फर्श पर थी। नानावटी इसके बाद सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचे और सरेंडर कर दिया।
लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती, कहानी तो यहीं से शुरु होती है। चलिए सबसे पहले कहानी के पात्रों से मिल लीजिए।

कवास मनेकशॉ नानावटी- नौसेना में काम करने वाला पारसी
नानावटी नेवी के होनहार अफसर थे। ब्रिटेन के रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र रहे नानावटी INS मैसूर के सेकेंड इन कमांड थे। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कई मोर्चों पर लड़ चुके थे और ब्रिटेन द्वारा कई वीरता पुरुस्कारों से भी उन्हें नवाजा जा चुका था।
लॉर्ड माउंटबेटन ने तब भी उनकी तारीफ की थी जब अंग्रेज भारत छोड़ कर जा रहे थे। कहते हैं कि सफेद वर्दी में वह इतने खूबसूरत लगते थे कि लड़कियां उन पर मरती थीं। जब उनके ऊपर केस चलाया जा रहा था तो भी महिलाएं तैयार होकर उनकी एक झलक देखने के लिए कोर्ट के बाहर जमा रहती थीं।

प्रेम आहूजा - अमीर सिन्धी व्यापारी
अमीर, खूबसूरत, लहराते घुंघराले बाल, पार्टियों की शान, शानदार डांसर और गाड़ियों के शोरूम का मालिक प्रेम आहूजा के बारे में कहा जाता है कि कई महिलाएं उसके इश्क में गिरफ्तार थीं।
नानावटी की पत्नी सेल्विया के साथ भी उसका अफेयर था, लेकिन वह सेल्विया के साथ शादी नहीं करना चाहता था। सेल्विया ने कोर्ट में बयान भी दिया था कि प्रेम आहूजा ने उसके साथ शादी करने से इंकार कर दिया था।
BLITZ अखबार ने तो काफी कुछ खराब प्रेम के बारे में छापा था, हालांकि सिन्धी समाज के लोग खुल कर उसके साथ थे।

सेल्विया- इश्क के दोराहे पर खड़ी औरत
सेल्विया के पास सब कुछ था। पति, बच्चे, परिवार और पैसा लेकिन शायद उसकी जिंदगी में एक अकेलापन भी था जिसे दूर करने के लिए वह प्रेम के नजदीक आ गई थी। उसने पति से भी कुछ नहीं छुपाया और विवाहेत्तर संबंधों को उजागर कर दिया।

अंग्रेजी मूल की सेल्विया, अपने पति नानावटी से प्यार करती थी लेकिन पति शिप पर महीनों दूर रहता था। बच्चों के बाद तो दोनों के बीच दूरी और भी बढ़ गई थी।
नानावटी से उससे प्रेम के बारे में पूछा तो उसने छुपाया नहीं। बता दिया कि वह आहूजा से प्यार करती है लेकिन जब नानावटी ने सवाल किया कि क्या वह उससे शादी करेगा तो वह खामोश हो गई। उसने पति को अपने प्यार के बारे में बता तो दिया लेकिन जो होने वाला था वह उससे अनजान थी।

हत्याकांड का दिन
नानावटी ने अपनी पत्नी और बच्चों को मेट्रो सिनेमा पर छोड़ा, मैटिनी शो का देखा जाना पहले से तय था। इसके बाद वह बॉम्बे हार्बर पहुंचे, अपने कैप्टन से उन्होंने बंदूक और गोलियां लीं जिन्हें उन्होंने एक पैकेट में रखा और फिर यूनिवर्सल मोटर्स पहुंचे। इस शोरूम का मालिक प्रेम आहूजा था। आहूजा अपने फ्लैट पर था यह जानकारी मिलने के बाद वह उसके घर पहुंचा। आहूजा नहा रहा था, उसकी नौकरानी नानावटी को उसके अपार्टमेंट तक लाई। वह सीधे उसके बेडरूम में गए। चंद मिनटों के सन्नाटे के बाद गोली चलने की तीन आवाजें आईं। सिर्फ तौलिया पहने आहूजा की लाश फर्श पर थी। प्रेम की बहन रो रही थी लेकिन नानावटी अपार्टमेंट से बाहर निकल गए। उन्होंने पुलिस स्टेशन में समर्पण कर दिया। पुलिसवाले हैरान परेशान थे।

मीडिया ट्रायल
कहते हैं कि इस केस में पहली बार मीडिया ट्रायल हुआ। BLITZ नाम का अखबार पारसी संपादक वीके करांजिया चलाते थे जिन्होंने खुल कर नानावटी के पक्ष में खबरें छापीं।
कहा जाता है कि 25 पैसे का ये अखबार 2 रुपये तक में बिकता था और इसकी बुकिंग एक दिन पहले ही हो जाती थी। माना जाता है कि नानावटी और करांजिया दोनों ही पारसी थे और यही कारण था कि संपादक, नानावटी को पसंद करते थे।

नानावटी के पक्ष में भीड़
कहा जाता है कि हत्या जैसा अपराध करने के बाद भी नानावटी के पक्ष में समाज खड़ा हो गया था। नौसेना भी अपने अफसर को सपोर्ट कर रही थी और कई अखबार भी उनके समर्थन में लिख रहे थे।
बताया जाता है कि भीड़ अदालत के बाहर जमा हो जाती थी और नानावटी के समर्थन में नारे लगा करते थे। लोग अपने हाथों में तख्तियां लेकर आते थे जिन पर नानावटी के पक्ष में लिखा होता था।
पारसियों ने इस केस पर पैसा और पावर दोनों लगाया। पारसियों की भीड़ ने हर संभव कोशिश की कि नानावटी बरी हो जाएं और अंत में जीत उन्हीं को मिली।

फैसला नानावटी के हक में
ज्यूरी ने नानावटी केस पर सुनवाई की थी। ज्यूरी में 9 लोग थे, आठ नानावटी के पक्ष में थे और एक विपक्ष में। इस केस के बाद ही ज्यूरी सिस्टम को खत्म कर दिया गया। कहा जाता है कि ज्यूरी के लोग मीडिया और कोर्ट के बाहर जुट रही भीड़ से प्रभावित थे।
ज्यूरी ने नानावटी के पक्ष में फैसला सुनाया और फिर मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के हवाले कर दिया। हाईकोर्ट से ये केस सुप्रीम कोर्ट गया जहां से नानावटी को जेल भेज दिया गया। हालांकि कुछ दिन बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
कहते हैं कि नानावटी वीके कृष्ण मेनन के करीबी थी और मेनन नेहरू के। नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित महाराष्ट्र की राज्यपाल थीं और ये सब बातें नानावटी के हक में थीं।
अंतत: रिहा होने के बाद नानावटी परिवार के साथ कनाडा शिफ्ट हो गए। 2003 में उनकी मौत हो गई।

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