बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

एक्सप्रेस खबरें





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दिल्ली में मॉक ड्रिल
दिल्ली में मॉक ड्रिल, मानो सचमुच में आया भूकम्प



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दिल्ली में मॉक ड्रिल, का ड्रामा
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) मेट्रो स्टेशन पर बुधवार को 11 बजे सायरन की आवाज ने सभी यात्रियों को चौंका दिया.देखते ही देखते कई लोग जमीन पर गिर गए तो कुछ ने अपना सिर ढंक लिया और कई लोगों ने कुर्सी के नीचे शरण ली. ऐसा लग रहा था जैसे भूकम्प आया हो., लेकिन यह भूकम्प नहीं, बल्कि इससे निपटने की तैयारियों का जायजा लेने तथा लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने के लिए किया गया 'मॉक ड्रिल' का ड्रामा था,। जिसे लोगों ने दहशत के साथ देखा और बाद में सराहा। इसका आयोजन पूरी दिल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने मिलकर किया था.
'मॉक ड्रिल' का आयोजन स्कूलों, मॉल, बाजार सहित राजधानी के सैकड़ों स्थानों पर अब तक किया किया जा चुका है। दिल्ली पुलिस और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के अधिकारियों ने बताया कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं साथ ही उन्होंने 'घायलों' और अन्य को भी सुरक्षित बाहर निकालने का अभ्यास किया, ताकि विकट हालात से निपटने की तैयारियों का दाजा लगाया जा सके।
दिल्ली मेट्रो रेल निगम के प्रवक्ता हिमांशु शर्मा ने कहा कि हम जानते हैं कि प्राकृतिक आपदा से लोगों में भय व आतंक पैदा होता है, लेकिन हम व्यवस्था और शांति बनाए रखने की तैयारी कर सकते हैं.'मॉक ड्रिल' अब तक 218 सरकारी व 24 निजी स्कूलों, 31 कॉलेजों, 11 सरकारी व 11 निजी अस्पतालों, चार सिनेमा हॉल, 19 रेजीडेंट वेल्फेयर एसोसिएशन, 13 सरकारी दफ्तरों के भवन, आठ बाजार/व्यापार एसोसिएशन और दो पेट्रोल पम्पों पर आयोजित किया जा चुका है।
छह मेट्रो स्टेशनों पर यात्रियों को बाहर निकाल लिया गया. बहुत से लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं थी और ऐसे में वे एक-दूसरे से इस बारे में पूछते पाए गए.।  इस 'मॉक ड्रिल' ड्रामा से मेट्रो रेल सेवा करीब आधे घंटे तक बाधित रही,जिससे लोगों में काफी नाराजगी भी जाहिर की। इस मॉक ड्रिल में करीब 1,500 कर्मचारियों ने हिस्सा लिया.
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पानी की बर्बादी में दिल्ली मुंबई व चेन्नाई से कम नहीं इंदौर
इंदौर पानी की बर्बादी के मामले में मध्यप्रदेश के दो शहर इंदौर और भोपाल,  दिल्ली मुंबई चेन्नई से भी आगे हैं। भोपाल में 35 फीसद पानी लीकेज की वजह से फालूत बह जाता है, जबकि इंदौर में 30 फीसद पानी बर्बाद होता है। इसके अलावा ग्वालियर, उज्जैन व देवास में भी 15-20  फीसद से ज्यादा पानी बर्बाद होता है।
यह खुलासा दिल्ली स्थित पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली देश की प्रतिष्ठित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में हुआ है। संस्था ने देश के 71 शहरों का सर्वे कर यह रिपोर्ट तैयार की है। 70 किलोमीटर दूर बहने वाली नर्मदा से शहर तक पानी लाने में निगम को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करना पड़ते हैं। ऐसे में 30 प्रतिशत पानी की बर्बादी होना वाकई गंभीर मसला है।
शहर में लीकेज होने का सबसे बड़ा कारण शहर में बिछी पुरानी नर्मदा वितरण लाइन है। पश्चिमी क्षेत्र के इलाकों में तो 30-40 वर्ष पुरानी लाइन से ही सप्लाई की जा रही है। इसके अलावा पंप व वितरण नेटवर्क की क्षमता भी कम हो गई है। फिल्टर प्लांट में जलशुद्धिकरण से नर्मदा कंट्रोल रूम के मध्य भी लिकेज के कारण काफी पानी व्यर्थ हो जाता है।
शहर में लिकेज खोजने के लिए अभी भी परंपरागत तरिका अपनाया जाता है। लिकेज खोजने के लिए राड साऊंड, इलेक्ट्रो ईको साउंड व अन्य तकनीकें अपनाई जा सकती है, लेकिन कभी इस दिशा में पहल नहीं की गई। जल वितरण की पुरानी व्यवस्था के चलते पानी के फालतू बर्बादी को रोकना संभव नहीं हो पा रहा है। इस दिशा में के गए सारे पहल और मशीन खरीद का सारा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
अलबता दिल्ली में रोजाना 35-40 फीसदी पानी फालतू बह जाता है, मगर राज्य सरकार इसे रोकने की बजाय दिल्ली जल बोर्ड को निजी हाथो में सौंपने की तैयारी में लगी है। देश के तमाम महानगरो की हालत एक बराबर ही है। जिससे निपटने में सरकारी पहल की उदासीनता के चलते ही गरमी के मौसम में देश भपॉर में गंभीर जल संकट पैदा हो जाता है।








 

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मार्च में पेश होगा केंद्रीय बजट

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वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कई राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह संकेत दिया है केंद्रीय बजट मार्च के मध्य तक पेश किया जा सकता है। वित्त मंत्री ने कहा कि संसद के बजट सत्र की तारीखों के निर्धारण के लिए संसदीय मामलों वाली कैबिनेट कमेटी की बैठक होगी।
उल्लेखनीय है कि 9 मार्च तक चुनावी आचार संहिता लागू रहने के कारण संसद के बजट सत्र में होने वाला परंपरागत राष्ट्रपति का अभिभाषण चुनावी प्रक्रिया के खत्म होने के बाद ही संभव है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक रूप से दो तिथियां महत्वपूर्ण हैं। आमतौर पर फरवरी के तीसरे सप्ताह में रेल बजट और 28 फरवरी को संसद में केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया जाता है।


पहली, 31 मार्च जिससे पहले बजट पर वोट हो जाना चाहिए ताकि नए वित्तीय वर्ष में धन निकालने में परेशानी न हो और दूसरी कर प्रस्ताव के बाद वित्त विधेयक पास होने के लिए 75 दिनों की समयसीमा है। विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों पर कानूनी कार्रवाई पर पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा कि इस पर कानूनी प्रक्रिया जारी है।

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न्यूज-4

अब बिहार के महादलितों को मुफ्त में रेडियो

राज्य में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में वर्ष 2009 से ही महादलित परिवारों के बीच रेडियो योजना के तहत रेडियो बांटे जा रहे हैं। इस समुदाय के बीच कुल 22 लाख रेडियो बांटने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। रेडियो योजना में तेजी लाने के लिए सरकार प्रखंड स्तर पर अब एक मेला लगाएगी, जहां महादलित सरकार की ओर से दिए जाने वाले कूपन से रेडियो खरीद सकेंगे। यदि कोई व्यक्ति 400 रुपये से ज्यादा के रेडियो लेना चाहता है तो वह अतिरिक्त रुपये अपने पास से खर्च कर ऐसा कर सकता है।
बिहार में महादलित समुदाय के लोगों को अब रेडियो कार्यक्रमों के जरिये मनोरंजक तरीके से साक्षरता, स्वच्छता सहित सरकारी विकास योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। इसके जरिये लोगों को शराब और तम्बाकू की लत छोड़ने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। राज्य के अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव रवि परमार ने बताया कि सरकार ने जुलाई से यह विशेष रेडियो कार्यक्रम शुरू करने की योजना बनाई है। इससे महादलितों को शिक्षित और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाएगा। यह कार्यक्रम 15 मिनट का होगा, जो ऑल इंडिया रेडियो के पटना केंद्र से संचालित होगा। यह एक तरह से कम्युनिटी रेडियो की तरह काम करेगा।
देश में बिहार पहला राज्य है, जहां सबसे पहले महादलित आयोग का गठन किया गया, जो महादलितों के उत्थान के लिए कार्यरत है। सामाजिक संस्था से जुड़े लोगों का हालांकि मानना है कि राज्य में महादलितों के उत्थान के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। स्वयंसेवी संस्था में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनवर हुसैन के अनुसार महादलित परिवार के लोगों के लिए शिक्षा आज भी सपना है। पटना में महादलितों के मुहल्ले में जाकर इनकी स्थिति देखी जा सकती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल 10 करोड़ 40 लाख की आबादी में 15 प्रतिशत महादलित हैं। दलितों की 22 में से 21 उप जातियों को महादलित का दर्जा दिया गया है।


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गूगल का ऑनलाइन हार्ड ड्राइव मुफ्त में


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 लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल ,, जल्द ही मुफ्त ऑनलाइन हार्ड ड्राइव स्टोरेज सिस्टम लांच करने जा रहा है। यह पर्सनल कंप्यूटर के हार्ड ड्राइव की तुलना में अधिक फाइलों को स्टोर कर सकेगी। अभी ड्रॉपबॉक्स कंपनी ग्राहकों को ऑनलाइन फाइल स्टोरेज सर्विस उपलब्ध करा रही है। गूगल ने इस कंपनी को टक्कर देने के लिए इस तरह की योजना बनाई है। वर्तमान में ड्रॉपबॉक्स का 4 अरब डॉलर का कारोबार है। वॉल स्ट्रील जर्नल ने बताया कि गूगल की इस सेवा का नाम ड्राइव होगा और यह गूगल के सभी अकाउंट होल्डर के लिए निःशुल्क होगी। वीडियो, दस्तावेज और संगीत पर्सनल कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव की बजाए गूगल के डाटा केंद्र में स्टोर किए जा सकेंगे। वैसे तो गूगल की ड्राइव सेवा को निःशुल्क रखा जाएगा, लेकिन बड़ी मात्रा में डाटा स्टोर करने वाले यूजर्स को फीस चुकानी होगी।
इस समय गूगल की दूसरी ऑनलाइन डाटा स्टोरेज सर्विस गूगल डॉक्यूमेंट भी यूजर को एक जीबी तक डाटा स्टोर करने की सुविधा देती है। इस समय एपल कंपनी भी आइ क्लाउड नाम से डाटा को ऑनलाइन स्टोर करने की सुविधा दे रही है। यह उसकी मोबाइल ऑपरेटिंग सर्विस के नवीनतम वर्जन आइओएस 5 के यूजर्स के लिए निःशुल्क है। माइक्रोसॉफ्ट भी इस प्रकार की सेवा देती रही है, किन्तु, इसके बदले शुल्क लेती है। यूजर्स के लिए गूगल की सेवा उसी तरह आसान होगी, जैसी ड्रॉपबॉक्स की है। ड्रॉपबॉक्स यूजर्स को किसी भी चीज को कहीं भी स्टोर करने की सुविधा देता है।
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भारत पर टिकी फेसबुक की उम्मीद

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फेसबुक पूरे विश्व में भारत को सबसे तेजी से उभरते हुए अपार संभावनाओं वाले बाजार के रूप में देखता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि पिछले एक साल में इसके यूजर्स की संख्या दोगुनी हो गई है वहीं दूसरी ओर पड़ोसी देश चीन में नाम मात्र की ग्रोथ देखी गई है। फेसबुक ने अपने शेयरों के जरिए पांच अरब डॉलर बाजार से जुटाने का लक्ष्य रखा है। सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक को भारत से मिले जबर्दस्त रिस्पांस से अपने सपनों को साकार होने की उम्मीद है।
फेसबुक की ओर से कहा गया है कि अमेरिका और अन्य देशों की तुलना में भारत में यूजर्स की संख्या में सबसे अधिक 132 फीसदी ग्रोथ देखा गया है, जबकि अनुमानित निवेश 20-30 फीसदी है। कई अन्य देशों के इंटरनेट यूजर्स के अलग-अलग आंकड़े देखने को मिले हैं। यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) में दिए गए दस्तावेजों में फेसबुक ने बताया है कि चीन में फेसबुक के सीमित उपयोग के कारण वहां यूजर्स की संख्या में नाम मात्र की ग्रोथ दर्ज की गई है। फेसबुक हर महीने सक्रिय यूजर्स की संख्या के आधार पर अपने सदस्यों की देख-रेख करता है। हालांकि अलग-अलग देशों में यूजर्स की संख्या में अलग-अलग  है। जिसमें भारत और ब्राजील में सबसे अधिक ग्रोथ हुई है। 31 जनवरी  2012 तक भारत में महीने में एक्टिव यूजर्स की संख्या 5 करोड़ हो गई है।

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आश्चर्यजनक किन्तु सत्य: एक ही महिला का 14 बार बंध्याकरण

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क्या आप यह यकीन करेंगे कि बिहार के कैमूर जिले में एक ही महिला का एक वर्ष में 14 बार नसबंदी की गयी? यह रोचक मामला बिहार के जिला स्वास्थ्य समिति कैमूर के अभिलेखों में दर्ज है। समिति द्वारा तैयार किये गये अभिलेखों को देखने से पता चलता है कि श्यामा (बदला हुआ नाम) का एक वर्ष में परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत 14 बार बंध्याकरण किया गया। यह सिर्फ एक मामला नहीं है, इसी तरह कई ऐसे महिलाओं के नाम हैं जिनका एक ही वर्ष के अंतराल में कई-कई बार बंध्याकरण किया गया। यह सनसनीखेज खुलासा राज्य स्वास्थ्य समिति की चार सदस्यीय दल द्वारा किया गया है। समिति के कार्यकारी निदेशक संजय कुमार के अनुसार करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये इस मद में खर्च किये गये हैं। रिकार्डों के अनुसार वास्तविक लाभान्वितों की संख्या काफी कम है, जबकि बड़ी राशि आयोजकों की जेब में चली गयी है। नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के अंतर्गत चलाये जा रहे इस योजना में 600 रुपये उन महिलाओं को दिये जाते हैं जिन्होंने नसबंदी करायी है। यह योजना जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए चलायी जा रही है।

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मुखिया का कमाल उम्र 27 फिर भी वृद्धावस्थापेंशन

पटना. बिहार के सिमरी-बख्तियारपुर प्रखंड की खजुरी पंचायत की नवनिर्वाचित मुखिया रीता देवी (27) पिछले दो सालों से वृद्धावस्था पेंशन ले रही हैं। पेंशनधारियों की सूची में रीता देवी का उम्र 66 वर्ष अंकित है, जबकि पंचायत चुनाव के लिए दाखिल शपथ-पत्र व अन्य कागजात में उनकी उम्र 27 वर्ष है। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन के लिए भरे गये आवेदन में रीता देवी ने अपनी जगह एक अन्य बुजुर्ग महिला की तसवीर लगा रखी है। नौ मार्च को मुखिया प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिला के समय शपथ-पत्र में रीता की उम्र 27 वर्ष दिखायी गयी है। उनकी जन्म तिथि पहली जनवरी, 1983 अंकित है। पंचायत आम निर्वाचन नामावली 2011 के क्रम संख्या 112, गृह संख्या 71 के कालम में उनके पति का नाम नवीन राम और अभ्यर्थी की आयु 27 वर्ष दर्ज है। पति के नाम में राम छप जाने को टंकण की भूल बातकर रीता ने शपथपत्र दायर जाति प्रमाण-पत्र बनवाया था, जिसमें पति का नाम नवीन राय लिखा है। चुनाव की घोषणा से काफी पहले रीता देवी ने जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन के लिए आवेदन दिया था। सामाजिक कोषांग द्वारा सिमरी-बख्तियारपुर प्रखंड की खजुरी पंचायत के लिए जारी पेंशन लाभुकों की सूची में रीता देवी का नाम क्रम संख्या 55 पर दर्ज है जिसमें उनकी उम्र 66 वर्ष है। खजुरी डाकघर में रीता देवी के खाते (712535) में पिछले दो वर्षों से पेंशन का भुगतान हो रहा है।
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न्यूज-8 पेज एक की पहली खबर और शेष 2-3 पर

( sub Heading)-बाढ़ और सरकार की कहर से बेहाल बदहाल कंगाल होते लोग

(मुख्य हेडिंग) कोशी बाढ़ में प्रति वर्ष बह जाते हैं एक लाख घर

बिहार की प्रलयंकारी बाढ़ में हर साल औसतन एक लाख से ज्यादा मकान बह जाते हैं वही एक लाख से ज्यादा घर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। बाढ़ से एक लाख परिवारों का मकान इतना ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाता है कि वह कभी भी ध्वस्त हो सकता है। इसके बावजूद लाखों परिवार इन क्षतिग्रस्त जर्जर मकानों में ही खतरे के बीच जीवन-बसर करते हैं।
बिहार की प्रलयंकारी बाढ़ एवं कटाव ने 1989 से 2009 तक 20 वर्षों में लगभग 69 लाख मकानों को नुकसान पहुंचाया है। इसमें लगभग 35 लाख मकान पानी में बह गये तो लगभग 34 लाख क्षतिग्रस्त हो गये। बाढ़ से लाखों परिवार बेघर हुए जिन्हें बसाने के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये अब तक खर्च किये गये। किन्तु गिने-चुने लोगों का ही आशियाना बन पाया। बाढ़ से बेघर होनेवाले लाखों परिवार आज भी खुले आसमान के नीचे ही जीवन-बसर कर रहे हैं।
हर साल सरकार बाढ़ से निपटने के लिए राज्य सकता तरह-तरह के दावे करते हैं और करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं मगर हकीकत है कि हर साल राज्य बाढ़ की चपेट में आता है और जान-माल एवं मकान के साथ अरबों रुपये की सम्पत्ति का नुकसान होता है। इस बार भी मानसून के आने में देरी के बाद भी बाढ़ से निपटने के कारगर सरकारी उपाय के दावे  पहले की तरह ही अभी से ही किए किये जा रहे हैं। आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सूबे में प्रतिवर्ष एक लाख से ज्यादा मकान कटाव एवं बाढ़ में बह जाते हैं। बाढ़ के इतिहास पर नजर डाली जाये तो 1987 की बाढ़ में सबसे ज्यादा 6 लाख 68 हजार 27 मकान बह गये थे तो 10 लाख 36 हजार 472 मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। बाढ़ से सबसे कम नुकसान वर्ष 1992 में हुआ था। इस साल मात्र 1278 मकान ही बाढ़ में बहे थे।
आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बाढ़ में बहने एवं क्षतिग्रस्त मकानों की संख्या वर्ष 1979 में 27816 मकान तो साल 1980 में 118507मकान साल 1981 में 75776 मकान तो साल1982 में 68242 मकान बहगए थे।  इसी प्रकार 1983 में 38679मकान, साल 1984 में 3 लाख 10 हजार 405मकान साल 1985 में 103279मकान तो साल 1986 में 13774 मकान, साल 1987 में 17 लाख 4 हजार 999 मकान साल  1988 में 14759 मकान साल 1989 में 7746 मकान और साल 1990 में 11009 मकान पानी में बह गए थे। इसी प्रकार साल 1991 में 27324  मकान साल  1992 में 1281 मकान  तो साल 1993 में 2 लाख 19 हजार 826, मकान और साल 1994 में 33876, एंव 1995 में 2 लाख 97 हजार 826,मकान पानी में डूब गए थे। साल 1994 में 33876, और 1995 में 2 लाख 97 हजार 765 मकान और साल 1996 में एक लाख 16 हजार 194 घर और साल  1997 में एक लाख 74 हजार 379 मकान पानी की भेट स्वाहा हो गए थे। साल 1998 में एक लाख 99 हजार 611 तथा साल 1999 में 91813 मकान बाढ़ में बह गये या क्षतिग्रस्त हुए। इसी प्रकार साल 2000 में 3 लाख 43 हजार 91मकान  साल 2001 में 2 लाख 22 हजार 74 मकान,  साल 2002 में 4 लाख 19 हजार 14 मकान और साल 2003 में 45262, 2004 में 9 लाख 29 हजार 773 मकान जबकि साल  2005 में 5538 साल 2006 में 18673 मकान साल  2007 में 7 लाख 84 हजार 328 मकान और साल  2008 में 2 लाख 97 हजार 916 मकान तथा 2009 में 7674 मकान बाढ़ में बह गये और क्षतिग्रस्त हुए।
इन सरकारी आंकडों को ही मानकर चले तो बाढ़ और सरकारी राहत की सच्चाई की पोल खुलती है। बाढ़ की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर साल मानसूनके आगमन के साथ ही लाखों परिवारों की बदहाली का नाता है. जिसे रोकने में सरकार अभी तक पूरी तरह नाकाम रही है।
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अमेरिकी विदेश विभाग अब देगा हिंदी में जवाब

भारतीयों के साथ हिंदी में नाता जोड़ने की पहल करते हुए अमेरिका का विदेश विभाग अब हिंदी में सवालों का जवाब हिंदी में देने जा रहा है। अमेरिकी दूतावास के सूत्रों ने बताया कि अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर हिंदी में पूछे गए सवालों का हिंदी में ही जवाब देंगी। अमेरिका ने भारतीयों से हिंदी में बात करने का यह कदम ऐसे समय उठाया है जब वहां के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में एशिया प्रशांत क्षेत्र को अपनी रणनीति में खास तवज्जो देने की घोषणा की है। अमेरिका भारत के रक्षा सौदों में बडे़ पैमाने पर हिस्सा ले रहा है और आने वाले वर्ष में वह भारत के लिए रूस और इजरायल के बाद तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बनने जा रहा है।
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चीन में बारिश तो भारत में सूखा

अगर चीन में भारी बारिश हो रही है तो भारतीय किसानों के लिए वह चिंता का विषय है। इंडियन इंस्टीच्यूट आफ ट्रापिकल मीटियरोलाजी (आईआईएमटी) के हालिया अध्ययन के मुताबिक भारत में कमजोर मानसून और चीन में भारी वर्षा के बीच गहरा संबंध है।
जैसे-जैसे पड़ोसी मुल्क में बारिश धीमी पड़ती जाती है, भारत में मानसून जोर पकड़ने लगता है। करंट साइंसमें छपी रिसर्च रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत और चीन में बारिश व सूखे के बीच सीधा संबंध होने की जानकारी पहले से ही थी। नया शोध इसकी पुष्टि करता है। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने भारत में 1974 से 2002 के बीच मानसून की सक्रियता का विश्लेषण किया। इस अंतराल में 12 ‘एक्टिवऔर 15 ‘ब्रेकसाइकिल शामिल हैं। उन्होंने पाया कि भारत में मानसून कीएक्टिवऔर ब्रेकसाइकिल तथा चीन में भारी वर्षा के कारण सीधा संबंध है। चीन में एक हफ्ते तक हुई भारी वर्षा के बाद भारत में 16-60 सेमी के बीच बारिश दर्ज की गयी है।
रिसर्च टीम से जुड़े प्रोफेसर एन. पंचवाघ ने बताया कि पिछले साल भारत में सामान्य बारिश हुई थी, जबकि चीन के कई प्रांतों में सूखा पड़ा था। पंचवाघ की मानें तो मध्य भारत और पश्चिमी तट पर बसे राज्यों में सामान्य से 30 फीसदी कम बारिश होने पर मानसून में ब्रेकमान लिया जाता है। इन इलाकों में 75-80 प्रतिशत की बारिश होती है। इसी तरह यहां सामान्य से अधिक बारिश को मानसून का एक्टिवरूप मान लिया जाता है। मानसून में दस दिन का ब्रेक लगने से ऐसे राज्यों में उत्पादन प्रभावित होता है। जहां खेती पूरी तरह मानसून पर निर्भर करती है। भारत का 60 फीसदी कृषि क्षेत्र मानसून पर टिका है। इस साल जून में अच्छी बारिश के बाद जुलाई के पहले हफ्ते में मानसून कमजोर पड़ गया। इससे गुजरात में रूई की बुवाई में 25 फीसदी की कमी आई।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

हरियल कबूतरों ने पक्षी विहार में बनाया बसेरा



 

 


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दिल्ली (ब्यूरो)। ग्रीन पिजन के समूह ने आज कल नोएडा का ओखला पक्षी विहार में डेरा डाला है। एक बरगद पेड़ पर करीब 150 कबूतर दिख रहे हैं। इन खूबसूरत कबूतरों को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी है। इस कबूतर के बारे में पक्षी विशेषज्ञ सालेम अली ने भी काफी लिखा है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि ये कबूतर यहां वसंत तक रहेंगे। हल्की गरमी पड़ते ही यहां से फुर्र हो जाएंगे।


ट्रेरोन साइनीकोप्टेरा को पीले पंजों वाले खूबसूरत हरे कबूतर (हरियल) के नाम से भी जाना जाता है। फलों पर निर्भर रहने वाले हरे कबूतरों का इन दिनों डेरा नोएडा का ओखला पक्षी विहार बना हुआ है। करीब सवा सौ की संख्या में हरियल कबूतर पक्षी विहार में स्थित बरगद के पेड़ पर डेरा डाले हुए हैं। ओखला पक्षी विहार में खूबसूरत कबूतरों के अजब रंग को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आ रहे हैं। इनकी खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करने की ललक इन पर्यटकों को ओखला पक्षी विहार खींच ला रही है। हालांकि, अपने रंग के अनुरूप यह बरगद के विशालकाय पेड़ के पत्तों पर कुछ इस तरह घुल मिल जाते हैं कि इनको देखना आसान नहीं होता।


हरियलमहाराष्ट्र का स्टेट बर्ड है। ओखला पक्षी विहार के रेंजर जीएम बनर्जी ने बताया कि कई अलग-अलग प्रजातियों के होते हैं और फलों को अपना आहार बनाते हैं। बरगद के पेड़ पर निकलने वाले लाल रंग का फल (गूलर) इनका विशेष आहार है। रेंजर ने बताया कि इस वर्ष यह पक्षी बड़ी संख्या में ओखला पक्षी विहार पहुंचे हैं। आमतौर पर नीले कबूतरों के स्थान पर हरे कबूतरों का दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में दिखना अपवाद है। हरियल घने जंगलों में एकदम सुबह के समय पेड़ की टहनियों में बैठे दिखाई देते हैं। इन कबूतरों के मार्च के अंत तक पक्षी विहार में रहने का अनुमान है।


रेंजर बनर्जी ने बताया कि हरियल कबूतर ओखला पक्षी विहार में सुरक्षित रूप से अंडे देने आए हैं। यह जनवरी में अंडे देते हैं। 21 से 25 दिनों के बीच में अंडे में से बच्चे निकल आते हैं। इस दौरान नर कबूतर खाने और अन्य इंतजाम रखता है और घोंसले के पास हमेशा बना रहता है। वहीं, मादा कबूतर घोंसला छोड़कर नहीं जाती है। लगभग दो महीने या मार्च तक ये बच्चे घोंसले से निकलकर उड़ने के काबिल हो जाएंगे।
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सत्ता पलट की संभावनाओं के बीच मीरा जाएंगी पाक

दिल्ली (ब्यूरो)। पाकिस्तान में तख्ता पलट की संभावनाओं के बीच पड़ोसी देश में लोकतंत्र की बयार के लिए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार पहली बार पाक दौरे पर जा रही हैं। 21 फरवरी से शुरू हो रहे पांच दिवसीय पाकिस्तानी दौरे में वह देश की आंतरिक राजनीति पर भी चर्चा करेंगी कि कैसे यहां लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया जाए।


यह महज संयोग ही है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में इस वक्त महिला स्पीकर हैं। और दोनों ही स्पीकरों में रिश्ते भी काफी मधुर हैं। मीरा कुमार को पाकिस्तान दौरे का न्योता मार्च 2011 में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने भारत यात्रा के दौरान दिया था। वैसे भारत की लोकसभा अध्यक्ष भले ही पहली बार पाकिस्तान जा रही हों, लेकिन पाकिस्तान की नेशनल असेंबली स्पीकर फहमीदा मिर्जा 2010 में भारत आ चुकी हैं। कॉमनवेल्थ देशों के पीठासीन अधिकारियों की बैठक में मिर्जा भारत आई थी। इतना ही नहीं गत वर्ष त्रिनिदाद-टोबेगो में गत वर्ष आयोजित कॉमनवेल्थ देशों के संसदीय अधिकारियों के कार्यक्रम में भी मीरा कुमार और फहमीदा मिर्जा की मुलाकात हुई थी।


उधर, रक्षा मंत्री रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल सउदी अरब के सोमवार को रवाना हो गया। यह प्रतिनिधिमंडल द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों, खास कर रक्षा क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं पर सउदी अरब में अपने समकक्षों के साथ विचार विमर्श करेगा।


एंटनी आज सउदी अरब के रक्षा मंत्री शहजादा सलमान से मुलाकात करेंगे। उनके साथ रक्षा सचिव शशि के शर्मा, सेना उप प्रमुख एस के सिंह, नौसेना उप प्रमुख वाइस एडमिरल सतीश सोनी और एयर वाइस मार्शल एम आर पवार भी रहेंगे।

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पीओके की विवादित जगह चीन को दे सकता है पाक

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वाशिंगटन। पड़ोसी देश पाकिस्‍तान और चीन अब सीधे तौर पर दबंगई पर उतर आए हैं। ची और पाकिस्‍तान ने भारत को घेरने की रणनीति बनाई है। जिसके लिए पाकिस्‍तान ने कश्‍मीर की अपने कब्‍जे की गिलगित-बाल्टिस्‍तान की 72,971 वर्ग किलोमीटर की विवादास्‍पद जगह को चीन को 50 साल के लिए लीस पर देने की रणनीति बनाई है।


यह रिपोर्ट मिडिल ईस्‍ट मीडिया रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ने जारी की है। जिसके लिए उसने इस क्षेत्र के उर्दू अखबारों में छपी खबरों का हवाला दिया है। गौरतलब है कि पाकिस्‍तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी चीन के दौरे पर गए थे। उसी दौरान दोनों देशों ने मिलकर इस रणनीति को अंजाम दिया था।


पाकिस्‍तान और चीन की यह रणनीति भारत के लिए चिंता का कारण हो सकती है। दोनों देश मिलकर इस क्षेत्र में विकास के बहाने हथियारों का जखीरा तैयार कर सकते हैं। इस तरीके से चीन भारत को घेरने में भी कामयाब हो सकता है। पाकिस्‍तान इस क्षेत्र को लीज पर देने के पीछे विकास का बहाना बना रहा है।ट
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गौरेया के लिए मुसीबत बन चुकीं ऊंची इमारतें

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दिल्ली (ब्यूरो)। देश के सभी शहर कबूतरों के लिए आश्रय स्थल बनते जा रहे हैं। दूसरी ओर यह गौरेया के लिए मुसीबत बन गए हैं। नतीजा है कि गौरैया कम होती जा रही है और कबूतर अपनी आबादी बढ़ाने में कामयाब हो रहे हैं। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं। लगातार सिकुड़ती हरियाली और भोजन की कमी से गौरेया भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के महानगरों से गायब होती जा रही है। शहरों में छोटे मकानों की जगह गगनचुंबी इमारतें बढ़ने से गौरेया की जगह लगातार कबूतर लेते जा रहे हैं।


केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय भी मानता है कि देशभर में गौरेया की संख्या में कमी आ रही है। देश में मौजूद पक्षियों की 1200 प्रजातियों में से 87 संकटग्रस्त की सूची में शामिल हैं। हालांकि बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने गौरेया (पासेर डोमेस्टिक) को अभी संकटग्रस्त पक्षियों की सूची में शामिल नहीं किया है, लेकिन सलीम अली पक्षी विज्ञान केंद्र कोयंबटूर और प्राकृतिक विज्ञान केंद्र मुंबई समेत विभिन्न संगठनों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इनकी तादाद लगातार घट रही है। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय के एक अफसर का कहना था कि जैसे-जैसे शहरों में छोटे-छोटे मकानों की जगह ऊंची इमारतें लेती जाएंगी, गौरेया की जगह कबूतर बढ़ेंगे। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं।


गौरेया और कबूतर उन पक्षियों में हैं जो मनुष्य के आसपास आसानी से रह सकते हैं। खास बात यह है कि गौरेया को ज्यादातर लोग पसंद करते हैं जबकि कबूतर को भगाना चाहते हैं। पक्षी प्रेमी संगठनों के अध्ययन महानगरों में गौरेया की संख्या में कमी आने के कई कारण गिनाते हैं। प्रदूषण और शहरीकरण को इसका प्रमुख कारण माना गया है। इसके अलावा गौरेया के रहने व घोेंसले बनाने की जगह लगातार घट रही है। छोटे मकानों में तो उन्हें ठिकाना मिल जाता था, लेकिन ऊंची इमारतों में नहीं मिल पा रहा। खेती खत्म होने व शहरों में रहन-सहन की शैली बदलने से उन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा है। खास बात यह है कि गौरेया के संरक्षण को लेकर 20 मार्च को विश्व घरेलू गौरेया दिवस मनाया जाता है लेकिन इसके बावजूद इस पक्षी पर संकट कायम है। पूरी दुनिया में गौरेया का यही हाल है। ब्रिटेन में तो ज्यादातर गौरेया अब गायब हो चुकी हैं।

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आखिर प्रियंका के बच्चे क्यो बनें सेन्टर ऑफ अटरैक्शन?


अंकुर शर्मा
कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी जब भी यूपी की सरजमीं पर कदम रखती हैं तो वो मीडिया और लोगों के लिए चर्चा का विषय बन जाती हैं। लोग उनके बोलने से लेकर चलने-फिरने, उठने-बैठने से लेकर हर चीज में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसीलिए प्रियंका गांधी ने क्या कहा, इस बारे में कहने से पहले कहा जाता है कि प्रियंका गांधी ने अपनी दादी इंदिरा जी की साड़ी पहनकर यह बयान दिया।


लेकिन उसी प्रियंका गांधी ने गुरूवार को लोगों को बात करने का दूसरा टॉपिक दे दिया और वो है उनके क्यूट बच्चे। अपने दोनों बच्चों रिहान और मिराया के साथ वो रायबरेली के मंच पर नजर आयीं। जिसके बाद से सेन्टर ऑफ अटरैक्शन उनके बच्चे बन गये। चैनल वाले प्रियंका औऱ प्रियंका के बयान को छोड़कर उनके बच्चों की ओर मुड़ गये। लोगों की नजर में भी गांधी परिवार की छठीं पीढ़ी मंच पर खड़ी थी। टीवी स्‍क्रीन पर मोतीलाल नेहरू से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक सारे रिश्ते गिना दिये गये। और तो और सियासी दलों ने भी प्रियंका के बच्चों को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी।


जहां कांग्रेसी, प्रियंका के बच्चों के लिए बोल रहे थे, कि वो गांव देखने आये हैं और अपनी मम्मी के साथ वो भी देश को करीब से देख रहे हैं, तो वहीं विरोधियों का कहना था कि प्रियंका देश की बदहाली अपने बच्चों को दिखा रही हैं। जिस तरह से पर्यटक नेशनल पार्क में बच्चों को बाघ दिखाने ले जाते हैं, अंडमान में लोग आदिवासियों को देखने जाते है, उसी तरह प्रियंका भी अपने बच्चों को उत्तरप्रदेश में गरीबों और गरीबी दिखाने आयी हैं और उनको बता रही है कि जो आपको सत्ता का सुख देते हैं, वो ऐसे रहते हैं। वो अपने बच्चों के साथ मिलकर जनता का मजाक उड़ा रही हैं।


लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हम स्वतंत्र देश के बाशिंदे हैं, हर किसी को अधिकार है कि वो अपने बच्चों के साथ कहीं भी जाये। प्रियंका गांधी ने भी तो वो ही किया तो फिर इस तरह की बातें क्यों शुरू हो गयी?


लोग चुनावी रैली में अपने पूरे परिवार, दोस्तों के साथ घूम रहे हैं। चाहे वो सपा नेता मुलायम सिंह का परिवार हो या फिर भाजपा नेताओं की फैमिली। चुनाव प्रचार में हर परिवार,हर रिश्ता अपनों के लिए वोट मांग रहा है लेकिन कहीं कोई जिक्र नहीं होता तो फिर आखिर प्रियंका गांधी वाड्रा में ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो चर्चा का विषय बन जाते हैं।


कभी उनके पति राबर्ट वाड्रा की बात होती है तो कभी उनके मासूम बच्चों की। गौर करने वाली बात यह है कि प्रियंका गांधी के चुनावी मंच पर उनके बच्चे जरूर थे, लेकिन उन्होंने मंच से भाषण में कहीं भी अपने परिवार और बच्चों का जिक्र नहीं किया। उनकी बातों में केवल कांग्रेस की ही बात थी, जिसके लिए वो कह रही थीं कि अगर प्रदेश में तरक्की चाहिए तो कांग्रेस को वोट कीजिये। अपने भाई राहुल और मां सोनिया का जिक्र भी देश और प्रदेश के कामों के लिए उन्होंने किया ना कि अपने पर्सनल रिश्तो को वो बताने के लिए चुनावी मंच पर खड़ी थीं। तो फिर प्रियंका के बच्चों पर इतना बवाल और चर्चा क्यों? अब जवाब आप दीजिये।