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दिल्ली (ब्यूरो)। ग्रीन पिजन के समूह ने आज कल नोएडा का ओखला पक्षी विहार में डेरा डाला है। एक बरगद पेड़ पर करीब 150 कबूतर दिख रहे हैं। इन खूबसूरत कबूतरों को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी है। इस कबूतर के बारे में पक्षी विशेषज्ञ सालेम अली ने भी काफी लिखा है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि ये कबूतर यहां वसंत तक रहेंगे। हल्की गरमी पड़ते ही यहां से फुर्र हो जाएंगे।
ट्रेरोन साइनीकोप्टेरा को पीले पंजों वाले खूबसूरत हरे कबूतर (हरियल) के नाम से भी जाना जाता है। फलों पर निर्भर रहने वाले हरे कबूतरों का इन दिनों डेरा नोएडा का ओखला पक्षी विहार बना हुआ है। करीब सवा सौ की संख्या में हरियल कबूतर पक्षी विहार में स्थित बरगद के पेड़ पर डेरा डाले हुए हैं। ओखला पक्षी विहार में खूबसूरत कबूतरों के अजब रंग को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आ रहे हैं। इनकी खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करने की ललक इन पर्यटकों को ओखला पक्षी विहार खींच ला रही है। हालांकि, अपने रंग के अनुरूप यह बरगद के विशालकाय पेड़ के पत्तों पर कुछ इस तरह घुल मिल जाते हैं कि इनको देखना आसान नहीं होता।
‘हरियल’ महाराष्ट्र का स्टेट बर्ड है। ओखला पक्षी विहार के रेंजर जीएम बनर्जी ने बताया कि कई अलग-अलग प्रजातियों के होते हैं और फलों को अपना आहार बनाते हैं। बरगद के पेड़ पर निकलने वाले लाल रंग का फल (गूलर) इनका विशेष आहार है। रेंजर ने बताया कि इस वर्ष यह पक्षी बड़ी संख्या में ओखला पक्षी विहार पहुंचे हैं। आमतौर पर नीले कबूतरों के स्थान पर हरे कबूतरों का दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में दिखना अपवाद है। हरियल घने जंगलों में एकदम सुबह के समय पेड़ की टहनियों में बैठे दिखाई देते हैं। इन कबूतरों के मार्च के अंत तक पक्षी विहार में रहने का अनुमान है।
रेंजर बनर्जी ने बताया कि हरियल कबूतर ओखला पक्षी विहार में सुरक्षित रूप से अंडे देने आए हैं। यह जनवरी में अंडे देते हैं। 21 से 25 दिनों के बीच में अंडे में से बच्चे निकल आते हैं। इस दौरान नर कबूतर खाने और अन्य इंतजाम रखता है और घोंसले के पास हमेशा बना रहता है। वहीं, मादा कबूतर घोंसला छोड़कर नहीं जाती है। लगभग दो महीने या मार्च तक ये बच्चे घोंसले से निकलकर उड़ने के काबिल हो जाएंगे।
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ट्रेरोन साइनीकोप्टेरा को पीले पंजों वाले खूबसूरत हरे कबूतर (हरियल) के नाम से भी जाना जाता है। फलों पर निर्भर रहने वाले हरे कबूतरों का इन दिनों डेरा नोएडा का ओखला पक्षी विहार बना हुआ है। करीब सवा सौ की संख्या में हरियल कबूतर पक्षी विहार में स्थित बरगद के पेड़ पर डेरा डाले हुए हैं। ओखला पक्षी विहार में खूबसूरत कबूतरों के अजब रंग को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आ रहे हैं। इनकी खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करने की ललक इन पर्यटकों को ओखला पक्षी विहार खींच ला रही है। हालांकि, अपने रंग के अनुरूप यह बरगद के विशालकाय पेड़ के पत्तों पर कुछ इस तरह घुल मिल जाते हैं कि इनको देखना आसान नहीं होता।
‘हरियल’ महाराष्ट्र का स्टेट बर्ड है। ओखला पक्षी विहार के रेंजर जीएम बनर्जी ने बताया कि कई अलग-अलग प्रजातियों के होते हैं और फलों को अपना आहार बनाते हैं। बरगद के पेड़ पर निकलने वाले लाल रंग का फल (गूलर) इनका विशेष आहार है। रेंजर ने बताया कि इस वर्ष यह पक्षी बड़ी संख्या में ओखला पक्षी विहार पहुंचे हैं। आमतौर पर नीले कबूतरों के स्थान पर हरे कबूतरों का दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में दिखना अपवाद है। हरियल घने जंगलों में एकदम सुबह के समय पेड़ की टहनियों में बैठे दिखाई देते हैं। इन कबूतरों के मार्च के अंत तक पक्षी विहार में रहने का अनुमान है।
रेंजर बनर्जी ने बताया कि हरियल कबूतर ओखला पक्षी विहार में सुरक्षित रूप से अंडे देने आए हैं। यह जनवरी में अंडे देते हैं। 21 से 25 दिनों के बीच में अंडे में से बच्चे निकल आते हैं। इस दौरान नर कबूतर खाने और अन्य इंतजाम रखता है और घोंसले के पास हमेशा बना रहता है। वहीं, मादा कबूतर घोंसला छोड़कर नहीं जाती है। लगभग दो महीने या मार्च तक ये बच्चे घोंसले से निकलकर उड़ने के काबिल हो जाएंगे।
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सत्ता पलट की संभावनाओं के बीच मीरा जाएंगी पाक
दिल्ली (ब्यूरो)। पाकिस्तान में तख्ता पलट की संभावनाओं के बीच पड़ोसी देश में लोकतंत्र की बयार के लिए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार पहली बार पाक दौरे पर जा रही हैं। 21 फरवरी से शुरू हो रहे पांच दिवसीय पाकिस्तानी दौरे में वह देश की आंतरिक राजनीति पर भी चर्चा करेंगी कि कैसे यहां लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया जाए।
यह महज संयोग ही है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में इस वक्त महिला स्पीकर हैं। और दोनों ही स्पीकरों में रिश्ते भी काफी मधुर हैं। मीरा कुमार को पाकिस्तान दौरे का न्योता मार्च 2011 में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने भारत यात्रा के दौरान दिया था। वैसे भारत की लोकसभा अध्यक्ष भले ही पहली बार पाकिस्तान जा रही हों, लेकिन पाकिस्तान की नेशनल असेंबली स्पीकर फहमीदा मिर्जा 2010 में भारत आ चुकी हैं। कॉमनवेल्थ देशों के पीठासीन अधिकारियों की बैठक में मिर्जा भारत आई थी। इतना ही नहीं गत वर्ष त्रिनिदाद-टोबेगो में गत वर्ष आयोजित कॉमनवेल्थ देशों के संसदीय अधिकारियों के कार्यक्रम में भी मीरा कुमार और फहमीदा मिर्जा की मुलाकात हुई थी।
उधर, रक्षा मंत्री रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल सउदी अरब के सोमवार को रवाना हो गया। यह प्रतिनिधिमंडल द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों, खास कर रक्षा क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं पर सउदी अरब में अपने समकक्षों के साथ विचार विमर्श करेगा।
एंटनी आज सउदी अरब के रक्षा मंत्री शहजादा सलमान से मुलाकात करेंगे। उनके साथ रक्षा सचिव शशि के शर्मा, सेना उप प्रमुख एस के सिंह, नौसेना उप प्रमुख वाइस एडमिरल सतीश सोनी और एयर वाइस मार्शल एम आर पवार भी रहेंगे।
यह महज संयोग ही है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में इस वक्त महिला स्पीकर हैं। और दोनों ही स्पीकरों में रिश्ते भी काफी मधुर हैं। मीरा कुमार को पाकिस्तान दौरे का न्योता मार्च 2011 में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने भारत यात्रा के दौरान दिया था। वैसे भारत की लोकसभा अध्यक्ष भले ही पहली बार पाकिस्तान जा रही हों, लेकिन पाकिस्तान की नेशनल असेंबली स्पीकर फहमीदा मिर्जा 2010 में भारत आ चुकी हैं। कॉमनवेल्थ देशों के पीठासीन अधिकारियों की बैठक में मिर्जा भारत आई थी। इतना ही नहीं गत वर्ष त्रिनिदाद-टोबेगो में गत वर्ष आयोजित कॉमनवेल्थ देशों के संसदीय अधिकारियों के कार्यक्रम में भी मीरा कुमार और फहमीदा मिर्जा की मुलाकात हुई थी।
उधर, रक्षा मंत्री रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल सउदी अरब के सोमवार को रवाना हो गया। यह प्रतिनिधिमंडल द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों, खास कर रक्षा क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं पर सउदी अरब में अपने समकक्षों के साथ विचार विमर्श करेगा।
एंटनी आज सउदी अरब के रक्षा मंत्री शहजादा सलमान से मुलाकात करेंगे। उनके साथ रक्षा सचिव शशि के शर्मा, सेना उप प्रमुख एस के सिंह, नौसेना उप प्रमुख वाइस एडमिरल सतीश सोनी और एयर वाइस मार्शल एम आर पवार भी रहेंगे।
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पीओके की विवादित जगह चीन को दे सकता है पाक
वाशिंगटन। पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन अब सीधे तौर पर दबंगई पर उतर आए हैं। ची और पाकिस्तान ने भारत को घेरने की रणनीति बनाई है। जिसके लिए पाकिस्तान ने कश्मीर की अपने कब्जे की गिलगित-बाल्टिस्तान की 72,971 वर्ग किलोमीटर की विवादास्पद जगह को चीन को 50 साल के लिए लीस पर देने की रणनीति बनाई है।
यह रिपोर्ट मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने जारी की है। जिसके लिए उसने इस क्षेत्र के उर्दू अखबारों में छपी खबरों का हवाला दिया है। गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी चीन के दौरे पर गए थे। उसी दौरान दोनों देशों ने मिलकर इस रणनीति को अंजाम दिया था।
पाकिस्तान और चीन की यह रणनीति भारत के लिए चिंता का कारण हो सकती है। दोनों देश मिलकर इस क्षेत्र में विकास के बहाने हथियारों का जखीरा तैयार कर सकते हैं। इस तरीके से चीन भारत को घेरने में भी कामयाब हो सकता है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को लीज पर देने के पीछे विकास का बहाना बना रहा है।ट
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यह रिपोर्ट मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने जारी की है। जिसके लिए उसने इस क्षेत्र के उर्दू अखबारों में छपी खबरों का हवाला दिया है। गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी चीन के दौरे पर गए थे। उसी दौरान दोनों देशों ने मिलकर इस रणनीति को अंजाम दिया था।
पाकिस्तान और चीन की यह रणनीति भारत के लिए चिंता का कारण हो सकती है। दोनों देश मिलकर इस क्षेत्र में विकास के बहाने हथियारों का जखीरा तैयार कर सकते हैं। इस तरीके से चीन भारत को घेरने में भी कामयाब हो सकता है। पाकिस्तान इस क्षेत्र को लीज पर देने के पीछे विकास का बहाना बना रहा है।ट
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गौरेया के लिए मुसीबत बन चुकीं ऊंची इमारतें
दिल्ली (ब्यूरो)। देश के सभी शहर कबूतरों के लिए आश्रय स्थल बनते जा रहे हैं। दूसरी ओर यह गौरेया के लिए मुसीबत बन गए हैं। नतीजा है कि गौरैया कम होती जा रही है और कबूतर अपनी आबादी बढ़ाने में कामयाब हो रहे हैं। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं। लगातार सिकुड़ती हरियाली और भोजन की कमी से गौरेया भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के महानगरों से गायब होती जा रही है। शहरों में छोटे मकानों की जगह गगनचुंबी इमारतें बढ़ने से गौरेया की जगह लगातार कबूतर लेते जा रहे हैं।
केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय भी मानता है कि देशभर में गौरेया की संख्या में कमी आ रही है। देश में मौजूद पक्षियों की 1200 प्रजातियों में से 87 संकटग्रस्त की सूची में शामिल हैं। हालांकि बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने गौरेया (पासेर डोमेस्टिक) को अभी संकटग्रस्त पक्षियों की सूची में शामिल नहीं किया है, लेकिन सलीम अली पक्षी विज्ञान केंद्र कोयंबटूर और प्राकृतिक विज्ञान केंद्र मुंबई समेत विभिन्न संगठनों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इनकी तादाद लगातार घट रही है। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय के एक अफसर का कहना था कि जैसे-जैसे शहरों में छोटे-छोटे मकानों की जगह ऊंची इमारतें लेती जाएंगी, गौरेया की जगह कबूतर बढ़ेंगे। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं।
गौरेया और कबूतर उन पक्षियों में हैं जो मनुष्य के आसपास आसानी से रह सकते हैं। खास बात यह है कि गौरेया को ज्यादातर लोग पसंद करते हैं जबकि कबूतर को भगाना चाहते हैं। पक्षी प्रेमी संगठनों के अध्ययन महानगरों में गौरेया की संख्या में कमी आने के कई कारण गिनाते हैं। प्रदूषण और शहरीकरण को इसका प्रमुख कारण माना गया है। इसके अलावा गौरेया के रहने व घोेंसले बनाने की जगह लगातार घट रही है। छोटे मकानों में तो उन्हें ठिकाना मिल जाता था, लेकिन ऊंची इमारतों में नहीं मिल पा रहा। खेती खत्म होने व शहरों में रहन-सहन की शैली बदलने से उन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा है। खास बात यह है कि गौरेया के संरक्षण को लेकर 20 मार्च को विश्व घरेलू गौरेया दिवस मनाया जाता है लेकिन इसके बावजूद इस पक्षी पर संकट कायम है। पूरी दुनिया में गौरेया का यही हाल है। ब्रिटेन में तो ज्यादातर गौरेया अब गायब हो चुकी हैं।
केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय भी मानता है कि देशभर में गौरेया की संख्या में कमी आ रही है। देश में मौजूद पक्षियों की 1200 प्रजातियों में से 87 संकटग्रस्त की सूची में शामिल हैं। हालांकि बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने गौरेया (पासेर डोमेस्टिक) को अभी संकटग्रस्त पक्षियों की सूची में शामिल नहीं किया है, लेकिन सलीम अली पक्षी विज्ञान केंद्र कोयंबटूर और प्राकृतिक विज्ञान केंद्र मुंबई समेत विभिन्न संगठनों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इनकी तादाद लगातार घट रही है। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय के एक अफसर का कहना था कि जैसे-जैसे शहरों में छोटे-छोटे मकानों की जगह ऊंची इमारतें लेती जाएंगी, गौरेया की जगह कबूतर बढ़ेंगे। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं।
गौरेया और कबूतर उन पक्षियों में हैं जो मनुष्य के आसपास आसानी से रह सकते हैं। खास बात यह है कि गौरेया को ज्यादातर लोग पसंद करते हैं जबकि कबूतर को भगाना चाहते हैं। पक्षी प्रेमी संगठनों के अध्ययन महानगरों में गौरेया की संख्या में कमी आने के कई कारण गिनाते हैं। प्रदूषण और शहरीकरण को इसका प्रमुख कारण माना गया है। इसके अलावा गौरेया के रहने व घोेंसले बनाने की जगह लगातार घट रही है। छोटे मकानों में तो उन्हें ठिकाना मिल जाता था, लेकिन ऊंची इमारतों में नहीं मिल पा रहा। खेती खत्म होने व शहरों में रहन-सहन की शैली बदलने से उन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा है। खास बात यह है कि गौरेया के संरक्षण को लेकर 20 मार्च को विश्व घरेलू गौरेया दिवस मनाया जाता है लेकिन इसके बावजूद इस पक्षी पर संकट कायम है। पूरी दुनिया में गौरेया का यही हाल है। ब्रिटेन में तो ज्यादातर गौरेया अब गायब हो चुकी हैं।
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आखिर प्रियंका के बच्चे क्यो बनें सेन्टर ऑफ अटरैक्शन?
अंकुर शर्मा
कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी जब भी यूपी की सरजमीं पर कदम रखती हैं तो वो मीडिया और लोगों के लिए चर्चा का विषय बन जाती हैं। लोग उनके बोलने से लेकर चलने-फिरने, उठने-बैठने से लेकर हर चीज में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसीलिए प्रियंका गांधी ने क्या कहा, इस बारे में कहने से पहले कहा जाता है कि प्रियंका गांधी ने अपनी दादी इंदिरा जी की साड़ी पहनकर यह बयान दिया।
लेकिन उसी प्रियंका गांधी ने गुरूवार को लोगों को बात करने का दूसरा टॉपिक दे दिया और वो है उनके क्यूट बच्चे। अपने दोनों बच्चों रिहान और मिराया के साथ वो रायबरेली के मंच पर नजर आयीं। जिसके बाद से सेन्टर ऑफ अटरैक्शन उनके बच्चे बन गये। चैनल वाले प्रियंका औऱ प्रियंका के बयान को छोड़कर उनके बच्चों की ओर मुड़ गये। लोगों की नजर में भी गांधी परिवार की छठीं पीढ़ी मंच पर खड़ी थी। टीवी स्क्रीन पर मोतीलाल नेहरू से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक सारे रिश्ते गिना दिये गये। और तो और सियासी दलों ने भी प्रियंका के बच्चों को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी।
जहां कांग्रेसी, प्रियंका के बच्चों के लिए बोल रहे थे, कि वो गांव देखने आये हैं और अपनी मम्मी के साथ वो भी देश को करीब से देख रहे हैं, तो वहीं विरोधियों का कहना था कि प्रियंका देश की बदहाली अपने बच्चों को दिखा रही हैं। जिस तरह से पर्यटक नेशनल पार्क में बच्चों को बाघ दिखाने ले जाते हैं, अंडमान में लोग आदिवासियों को देखने जाते है, उसी तरह प्रियंका भी अपने बच्चों को उत्तरप्रदेश में गरीबों और गरीबी दिखाने आयी हैं और उनको बता रही है कि जो आपको सत्ता का सुख देते हैं, वो ऐसे रहते हैं। वो अपने बच्चों के साथ मिलकर जनता का मजाक उड़ा रही हैं।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हम स्वतंत्र देश के बाशिंदे हैं, हर किसी को अधिकार है कि वो अपने बच्चों के साथ कहीं भी जाये। प्रियंका गांधी ने भी तो वो ही किया तो फिर इस तरह की बातें क्यों शुरू हो गयी?
लोग चुनावी रैली में अपने पूरे परिवार, दोस्तों के साथ घूम रहे हैं। चाहे वो सपा नेता मुलायम सिंह का परिवार हो या फिर भाजपा नेताओं की फैमिली। चुनाव प्रचार में हर परिवार,हर रिश्ता अपनों के लिए वोट मांग रहा है लेकिन कहीं कोई जिक्र नहीं होता तो फिर आखिर प्रियंका गांधी वाड्रा में ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो चर्चा का विषय बन जाते हैं।
कभी उनके पति राबर्ट वाड्रा की बात होती है तो कभी उनके मासूम बच्चों की। गौर करने वाली बात यह है कि प्रियंका गांधी के चुनावी मंच पर उनके बच्चे जरूर थे, लेकिन उन्होंने मंच से भाषण में कहीं भी अपने परिवार और बच्चों का जिक्र नहीं किया। उनकी बातों में केवल कांग्रेस की ही बात थी, जिसके लिए वो कह रही थीं कि अगर प्रदेश में तरक्की चाहिए तो कांग्रेस को वोट कीजिये। अपने भाई राहुल और मां सोनिया का जिक्र भी देश और प्रदेश के कामों के लिए उन्होंने किया ना कि अपने पर्सनल रिश्तो को वो बताने के लिए चुनावी मंच पर खड़ी थीं। तो फिर प्रियंका के बच्चों पर इतना बवाल और चर्चा क्यों? अब जवाब आप दीजिये।
कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी जब भी यूपी की सरजमीं पर कदम रखती हैं तो वो मीडिया और लोगों के लिए चर्चा का विषय बन जाती हैं। लोग उनके बोलने से लेकर चलने-फिरने, उठने-बैठने से लेकर हर चीज में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसीलिए प्रियंका गांधी ने क्या कहा, इस बारे में कहने से पहले कहा जाता है कि प्रियंका गांधी ने अपनी दादी इंदिरा जी की साड़ी पहनकर यह बयान दिया।
लेकिन उसी प्रियंका गांधी ने गुरूवार को लोगों को बात करने का दूसरा टॉपिक दे दिया और वो है उनके क्यूट बच्चे। अपने दोनों बच्चों रिहान और मिराया के साथ वो रायबरेली के मंच पर नजर आयीं। जिसके बाद से सेन्टर ऑफ अटरैक्शन उनके बच्चे बन गये। चैनल वाले प्रियंका औऱ प्रियंका के बयान को छोड़कर उनके बच्चों की ओर मुड़ गये। लोगों की नजर में भी गांधी परिवार की छठीं पीढ़ी मंच पर खड़ी थी। टीवी स्क्रीन पर मोतीलाल नेहरू से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक सारे रिश्ते गिना दिये गये। और तो और सियासी दलों ने भी प्रियंका के बच्चों को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी।
जहां कांग्रेसी, प्रियंका के बच्चों के लिए बोल रहे थे, कि वो गांव देखने आये हैं और अपनी मम्मी के साथ वो भी देश को करीब से देख रहे हैं, तो वहीं विरोधियों का कहना था कि प्रियंका देश की बदहाली अपने बच्चों को दिखा रही हैं। जिस तरह से पर्यटक नेशनल पार्क में बच्चों को बाघ दिखाने ले जाते हैं, अंडमान में लोग आदिवासियों को देखने जाते है, उसी तरह प्रियंका भी अपने बच्चों को उत्तरप्रदेश में गरीबों और गरीबी दिखाने आयी हैं और उनको बता रही है कि जो आपको सत्ता का सुख देते हैं, वो ऐसे रहते हैं। वो अपने बच्चों के साथ मिलकर जनता का मजाक उड़ा रही हैं।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हम स्वतंत्र देश के बाशिंदे हैं, हर किसी को अधिकार है कि वो अपने बच्चों के साथ कहीं भी जाये। प्रियंका गांधी ने भी तो वो ही किया तो फिर इस तरह की बातें क्यों शुरू हो गयी?
लोग चुनावी रैली में अपने पूरे परिवार, दोस्तों के साथ घूम रहे हैं। चाहे वो सपा नेता मुलायम सिंह का परिवार हो या फिर भाजपा नेताओं की फैमिली। चुनाव प्रचार में हर परिवार,हर रिश्ता अपनों के लिए वोट मांग रहा है लेकिन कहीं कोई जिक्र नहीं होता तो फिर आखिर प्रियंका गांधी वाड्रा में ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो चर्चा का विषय बन जाते हैं।
कभी उनके पति राबर्ट वाड्रा की बात होती है तो कभी उनके मासूम बच्चों की। गौर करने वाली बात यह है कि प्रियंका गांधी के चुनावी मंच पर उनके बच्चे जरूर थे, लेकिन उन्होंने मंच से भाषण में कहीं भी अपने परिवार और बच्चों का जिक्र नहीं किया। उनकी बातों में केवल कांग्रेस की ही बात थी, जिसके लिए वो कह रही थीं कि अगर प्रदेश में तरक्की चाहिए तो कांग्रेस को वोट कीजिये। अपने भाई राहुल और मां सोनिया का जिक्र भी देश और प्रदेश के कामों के लिए उन्होंने किया ना कि अपने पर्सनल रिश्तो को वो बताने के लिए चुनावी मंच पर खड़ी थीं। तो फिर प्रियंका के बच्चों पर इतना बवाल और चर्चा क्यों? अब जवाब आप दीजिये।
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