शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

कौन है सिनेमा के असली चेहरा य हीरो




कल्पना शर्मा
सिनेमा में कभी दर्शक 70 एमएम पर आंखे फाड़े हीरो को देखता था और सोचता था काश! मैं भी ऐसा होता और एक आज का वक्त है जब फिल्म देखते हुए दर्शक सोचता है अरे! ये हीरो तो मेरे जैसा ही है.
हिंदी सिनेमा में अब चेहरों की परिभाषा बदल रही है. यहां हीरो शंघाई का जोगी परमार जैसा दिखता है जिसके दांत हर वक्त पान से सने रहते हैं और हीरोइन,गैंग्स ऑफ वासेपुर की नगमा जैसी जो अपने कर्व से नहीं बल्कि अपनी नर्व तड़काने वाली बातों और अदाओं के लिए पहचानी जा रही है.
अहम बात ये है कि ग्लैमरस चेहरों के साथ साथ ये साधारण चेहरे फिट है और हिट भी है.
कमर्शियल हिंदी सिनेमा में ग्लैमरस लुक्स का हमेशा ही बोलबाला रहा है. पर समानांतर सिनेमा ने ऐसे चेहरे दिखाए जो भीड़ से अलग नहीं, भीड़ का हिस्सा लगें. फिर वो अर्ध सत्य के ईमानदार पुलिस अफसर अनंत वालेणकर के रोल में ओमपुरी हो या फिर मिर्च मसाला की सोनबाई के रोल में स्मिता पाटिल. समांतर सिनेमा ने कला भी दी औऱ कलाकार भी पर पैसा कमाने में कामयाबी हाथ नहीं लगी.
पान सिंह तोमर के निर्देशक और बैंडिट क्वीन में कास्टिंग डायरेक्टर रहे तिग्मांशु धूलिया कहते हैं "बात कास्टिंग की नहीं है, बात ये है कि कौन लोग है जो साधारण चेहरों को लेकर ऐसी लीक से हटकर फिल्में बना रहे हैं और साथ में पैसा भी कमा रहे हैं".
"लोग मेरी तस्वीर देखकर मुझे बुला लेते थे पर जब मैं ऑफिस पहुंचता था तो लोग कहते थे, अरे ये तो काला है और हाइट भी कम है इसकी. कभी कभी ऐसा लगता था कि हाई हिल्स के जूते पहनने लगूँ या इस स्किन को चीर के थोड़ा सा गोरा कर लूँ."
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, अभिनेता
पीपली लाइव और कहानी जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का दम दिखाने वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, गैंग्स ऑफ वासेपुर के पहले भाग में फैज़ल के रोल में नज़र आए थे. अपने शुरुआती अनुभव बांटते हुए नवाज़ कहते हैं "लोग मेरी तस्वीर देखकर मुझे बुला लेते थे क्योंकि तस्वीर को तो फोटोशॉप से गोरा किया जा सकता है ना पर जब मैं ऑफिस पहुंचता था तो लोग कहते थे, अरे ये तो काला है और हाइट भी कम है इसकी. और इस तरह वो मुझे रिजेक्ट कर देते थे. कभी कभी ऐसा लगता था कि हाई हिल्स के जूते पहनने लगूँ या इस स्किन को चीर के थोड़ा सा गोरा कर लूँ".

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने पीपली लाइव और कहानी में काफी प्रशंसा बटोरी
"हमारे देश में बहुत टैलेंटेड कलाकार हैं जिनको गोरे रंग, सिक्स पैक्स वाले के सामने नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. एक स्टार अपने आपको ही फिल्म में दिखाता है लेकिन एक्टर, किरदार में घुस जाता है""
दिबाकर बनर्जी, निर्देशक,शांघाई
हाल ही में आई फिल्म शंघाई के निर्देशक दिबाकर बनर्जी कहते हैं "हमारे देश में बहुत टैलेंटेड कलाकार हैं गावं में,छोटे शहरों में, नाटकों में, जिनको पाउडर, गोरे रंग, गोरी चमड़ी, सिक्स पैक्स वाले के सामने नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. पर कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिनको कहने के लिए एकदम मिट्टी से जुड़े किरदार चाहिए होते हैं जिन्होंने दुनिया देखी हो और जो साथ ही अच्छे एक्टर भी हो. एक स्टार और एक एक्टर में फर्क होता है, स्टार अपने आपको ही फिल्म में दिखाता है लेकिन एक्टर, किरदार में घुस जाता है".
पर सवाल ये भी है कि इस बिना मैकअप और बिना चकाचौंध वाले कलाकार को दर्शक की हरी झंडी मिल रही है या नहीं. गैंग्स ऑफ वासेपुर में नगमा का रोल निभाने वाली ऋचा चड्डा कहती हैं "अब लोग हर तरह के कलाकारों को स्वीकार कर रहे हैं. मैं कोई स्टार किड तो नहीं हूँ पर फिर भी मुझे गैंग्स में इतना जरुरी रोल मिला और लोगों को मैं पसंद भी आ रही हूँ. मैं अपने स्पॉट बॉय के लिए टिकट लेने गई तो लोगों ने कहा टिकट बाद में लेना,पहले ऑटोग्राफ दो"
नवाज़ कहते हैं "दर्शक को मुझ जैसे आदमी को स्वीकार करने में वक्त लगता है. वो सोचता है ये तो मेरे जैसा ही है ये हीरो कैसे बन सकता है. पर एक बार जब वो स्वीकार कर लेता है तो यही चेहरा उसके लिए एक प्रेरणा बन जाता है. वो सोचता है जब ये सफल हो सकता है तो मैं भी अपने क्षेत्र में सफल हो सकता हूँ"
"शांघाई के लिए हमने कई ऐसे लोगों को फिल्म में लिया जो एक्टर थे ही नही, यहां तक की एक चेहरा जो हमने चुना था वो असल में भी एक राजनितिक पार्टी का लीडर है ""
अतुल मोंगिया, कास्टिंग डायरेक्टर, शांघाई
अच्छी बात ये है कि सिर्फ मुख्य भूमिका में ही नहीं, फिल्म के छोटे छोटे किरदारों के चयन में भी कास्टिंग का ख़्याल रखा जा रहा है. फिल्म शंघाई के कास्टिंग डायरेक्टर अतुल मोंगिया कहते हैं " पहले फिल्मकार जाना पहचाना चेहरा लेना पसंद करते थे,पर कास्टिंग डायरेक्टर के आने से ये चीज़ बदली है. हम तो छोटे से छोटे किरदार के लिए भी ऑडिशन करते हैं ताकि सीन और बेहतर बनें". शंघाई का उदाहरण देते हुए अतुल बताते हैं "हमने कई ऑडिशन लिए, कई ऐसे लोगों को फिल्म में लिया जो एक्टर थे ही नही, यहां तक की एक चेहरा जो हमने चुना था वो असल में भी एक राजनितिक पार्टी का लीडर है "
तो क्या ये चेहरे,सिनेमा का चेहरा भी बदल रहे है? तिग्मांशु की माने तो जब थ्री इडियट्स या मुन्नाभाई जैसी फिल्में आम चेहरों के साथ बनाई जाएं, तब लगेगा कि वाकई में कमर्शियल सिनेमा बदल रहा है. तब तक, कहीं जाइएगा नहीं, तमाशा अभी खत्म नहीं हुआ.

रविवार, 9 सितंबर 2012

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल - 13




    09 सितम्बर     

ठाकरे परिवार है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग

हिन्दी कवि नागार्जुन ने करीब 50 साल पहले एक टैक्सी यूनियन नेता के रूप में अपनी पहचान बना रहे युवा बाल ठाकरे पर एक कविता में कहा था …...और बाल ठाकरे है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग. इसी कविता की कुछ लाईनों में हेरफेर करके यदि इसे इस तरह भी देखा जाए कि....  बाल (राज और उद्धव) ठाकरे परिवार है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग.., तो शायद यह कविता और मारक एंव प्रासंगिक सा दिखने लगे। नागार्जुन की कविता का मूल सार इस प्रकार है...बाल ठाकरे .. बाल ठाकरे.... बाल ठाकरे /  नोंच लेगा / खाल ठाकरे.... खाल ठाकरे... खाल ठाकरे../.. थर... थर... थर... कांप रहे है यहां के लोग / और बाल ठाकरे है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग।
शायद अपनी कविता को इस तरह 100 फीसदी साकार होते देख कर कवि नागार्जुन भी फूले नहीं समाते। आज तो हालत ये है कि बाल ताऊ की चाल से भी दो चार कदम आगे निकलने को बेताब भतीजा राज तो कभी कभी बाल पर भी भारी दिखने लगे है। बाल और राज की जुबांनी जंग के बीच खामोश उद्धव भी कूद पड़े और पिता पुत्र और ताऊ ने यह साबित कर दिया कि भाड़ में जाए लोकतंत्र और कानून व्यवस्था / क्योंकि हम ठाकरे परिवार ( बाल राज और उद्धव) हैं महाराष्ट्र के सबसे बड़े लोग  (रोग )

 बिहार को शर्मसार ना करो ठाकरे परिवार

अपना बिहार है सोने का बिहार,  माना कि है गरीब उपेक्षित और कमजोर है। मगर राज और उद्धव ठाकरे जी के दादाजी (बाल ठाकरे के पिताजी ) ने अपनी किताब में जो तथ्य दिए है उसके अनुसार मगध नरेश के यहां नौकरी करने वाले ठाकरे वंशज किस प्रकार वाया भोपाल होते नासिक से मुबंई में जा बसे। मुबंई को अपनी जागीर मानकर जब चाहा बंधक बनाकर छोड़ दिया। खासकर इस खुलासे से ठाकरे परिवार सकते में है। .बिहारी और उतर भारतीयों को मुबंई से खदेड़ने की पोलटिक्स करने वाला यह परिवार फिलहाल बौखलाया है। पर सच तो यह है ठाकरे एंड संस (कंपनी लिमिटेड जैसा कोई मामला हो तो ) कि इस खुलासे के बाद पूरा बिहार बड़ा ही शर्मिंदा सा महसूस कर रहा है, और किसी भी बिहारी को यह तनिक भी नही सोहा रहा है कि ठाकरे परिवार को बिहार से कोई कनेक्शन निकले। अपने पूर्व     स(क) पूतों  के इस लीला से ही पूरा बिहार बडा शर्मसार हो रहा है


दिल्ली में शिवसेना की इमेज

भला हो (बाल उद्धव राज) ठाकरे परिवार के ताजा गेमप्लान का कि मुझे  करीब 15 साल पहले के एक वाक्या को  जो आज ज्यादा ताजा और प्रासंगिक सा लग रहा है, बताना जरूरी लग रह है।दिल्ली सदर बाजार इलाके के एक सी ग्रेड नेता से मेरा परिचय था। कमल छाप पार्टी का यह नेता एकाएक शिवसेना का झंड़ा लेकर बाजार में घूमता हुआ दिखा। युवा नेताजी में आए इस बदलाव और पार्टी बदलने की वजह जानने पर शिव सैनिक नेता ने जोरदार ठहाका लगाया। कमल छाप की निंदा करते हुए उसने  कहा कि यह पार्टी हरामखोरों की हो गई है, इसके बड़े-बड़े नेता कुछ करे तो शिष्टाचार और हम कार्यकर्ता कुछ करे तो भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनताय। । शिव सैनिक नेताजी ने दुख जताया कि पार्टी की इमेज भी इतनी नरम है, कि पुलिस वाला भी माहवारी वसूल लेता था। तभी अपना सीना चौड़ा करके उसने कहा कि जबसे शिवसेना का नेता बनकर चारो तरफ घूम रहा हूं तब से अपन माहवारी का झझंट तो खत्म हो ही गया।  ज्यादा हंगामा ना करने और पुलिस का नाम नहीं लपेटने के नाम पर पुलिस वाले ही अब चाय पानी के नाम पर दो चार सौ रूपए जेब में ठूंस देते है। शिवसेना की दिल्ली में इस इमेज को सुनकर मैं अवाक रह गया था।     
 बेबस लाचार मनमौनी मोहन प्यारे.बाबा
अपने सज्जन दब्बू कमजोर कायर और परजीवी मोहन बाबा भी कमाल के है। अरनी खामोश रहने की आदत पर मन मोहन जी ने एक शैर से अपनी बात कही। .हजारों जबावों से बेहतर है मेरी खामोशी /  न जाने कितने सवाल बेआबरू होते। सवा अरब लोगों वाले इस देश का नेता मन मौनी मोहन बाबा सा मस्त होना भी हैरत से ज्यादा जिल्लत की बात है। कोल घोटाला पर मलाल जताते हुए मनमौनी मोहन बाबा ने कहा विपक्ष के चलते पूरा सत्र बेकार चला गया। कमल छाप से तो एक सत्र इसलिए बेकार चला गया कि सरकार कोल घोटाला पर कोई बात करने का राजी नही हो रही थी, मगर मन मौनी बाबा को यह कौन बताएं कि एक ईमानदार इकोनॉमिस्ट के मैं चुप्प रहूंगां शैली से यह पूरा देश कितना हताश निराश और शर्मसार है।

ममता दीदी का (अ) ममता मय चेहरा
तुनक मिजाज और दुरंतो एक्सप्रेस रेल की तरह बेधड़क मुंहफट बोलने में माहिर ममता की दादागिरी गाथा के सामने मायावती और जयललिता भी 19 साबित हो रही है। सचमुच सत्ता भी मौसम की तरह बड़ी बेईमान और रंग बदलने में गिरगिट को भी शर्मसार कर देती है। सत्ता से बाहर रहने पर तो ममता का ममतामय चेहरा और प्रचार पाने की भूख से सब मीडिया वालो अवगत है। पर सत्ता में आते ही किसी को नक्सल बत्ताकर जेल में ठूंसना और सवाल पूछने पर पत्रकार तक को अपना गुस्सा दिखाने वाली ममता का पूरा नेचर ही बदल गया है। बात बात पर कभी मनमोहन तो कभी सोनिया जी के सामने फट पड़ने के लिए कुख्यात ममता शायद यह भूल गयी कि जब किसी के सामने जनता फटती है तो बड़े बड़े सूरमा भी पाताल में जाने से खुद को रोक नहीं पाते।  

और कितने यूपी
अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि से बेआबरू हो रहे कांग्रेस के 40 साला अधेड हो रहे युवराज भी बसपा सुप्रीमों मायावती के रास्ते पर निकल गए है.। यूपी को चार भाग में बॉटने का सूर अलापना नाया के लिए इतना भापी पड़ा कि वो अपना राग ही भूल गई। मगर अब .पी को अपनी अंगूलियों पर नचाने के लिए बेताब युवराज ने पूरे यूपी को कांग्रेसी बूगोल की नजर में आठ भागो में बॉटने का मन बना लिया है। सभी क्षेत्रों में एक एक प्रदेशाध्यक्ष सा क प्रधान होगा और आठो  क्षेत्रीय प्रदेशाध्यक्ष सीमूहिक तौर पर अपनी रपट और काम धाम का ब्यौंरा यूपी के अध्यक्ष को दिया करेंगे। जो महोदय युवराज को बताएंगे कि अपना यूपी में पंजा कितना ताकतवर हो रहा है। इन रपटो और विकास की सूचनाओं पर ही युवराज महोदय अपने यूपी में संगठन के विकास को लेकर भावी रणनीति तैयार करेगे।

कब  तक होंगे दिल्ली  में  कितने सीएम ?
 एमसीडी को तीन भाग में बॉटने के बाद दिल्ली की सीएम को कोई भी विभाग एब एक सोहा नहीं रहा है। पूर्व होम मिनिस्टर पीसी से थोड़ा दब कर रहने वाली अपनी सीएम शीला दीक्षित तो पूर्व पावर मंत्री रह चुके होम मिनिस्टर शिंदे पर भारी पड़ती है। होम मिनिस्टर के सामने जाकर एमसीडी के विभाजन के बाद अब दिल्ली पुलिस को भी तीन हिस्सों में करने की वकालत करती हुई शीला ने दिल्ली में तीन तीन पुलिस कमीश्नर होने की वकालत की है। शीला के तर्को के सामने असबाय हो गए शिंदे ने केवल भरोसा देकर मामले को टाल दिया है, पर वे भी शीला के पावर और पहुंचको जानते है, लिहाजा मामले को समझने की कोशिश में लगे है। दिल्ली को तीन तीन भाग में बॉटने और तीन तीन कमीश्नर की नियुक्ति के तर्क को करारा जवाब देने का बीजेपी ने मन बना लिया है। बीजेपी नेताओ ने भी कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं और मंत्रियो से मितकर यह सुझाव देने का मन बना. है कि पुलिस और एमसीजी के बाद अब बारी सरकार को तीन भाग में बॉटकर दिल्ली में तीन तीन सीएम बहाल करने की सिफारिश करने का मन बनाया है। क्या होगा शीला जी जब कभी तीन एमसीडी कमीश्नर पुलिस कमीश्नर की तरह तीन तीन सीएम भी जब दिल्ली में होंगी ?

केजरीवाल के हसीन सपने

धन्य हो महाराज, अन्नाटीम के हेड कर्ता-धर्ता रहे पूर्व नौकरशाह रहे अरविंद केजरीवाल साहब जी महाराज। टीम अन्ना बिखर गयी,  फिर भी मुंगेरीलाल की तरह हसींन सपने देखने में आपका कोई सानी नहीं। जनता से पूछकर जनता के लिए जनता द्वारा जनता पार्टी बनाने की कवायद में लगे केजरीवाल एकदम राम राज लाने की कोशिश में जुट गए है। ईमानदार चरित्रवान और नेक आदमियों को टिकट देने पर जोर दिया है। और जब कभी किसी पर बेईमान होने की शिकायत मिली तो उसे तत्काल उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। बहुत खूब केजरीवाल साहब नेक सपना है, मगर कैरेक्टर सर्टिफिकेट के आधार पर टिकट और जनता पार्टी बनाने का यह सपना कब तक जीवित रह पाएगा। सबों की तरह केजरीवाल भी जानते है कि चुनाव जीतने के पीछे कौन कौन से बल काम करते है यानी अन्ना हजारे और केजरीवाल के सपनों का क्या होगा भगवान ।

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

कम उम्र में मां बन जाती है भारतीय लड़कियां

समाज को आईना दिखाती रिपोर्ट


हाल में यूनीसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 22 फीसदी लड़कियां कम उम्र में ही मां बन जाती हैं और 43 फीसदी पांच साल से कम उम्र के बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर बच्चे कमज़ोर और एनीमिया से ग्रसित हैं. इन क्षेत्रों के 48 प्रतिशत बच्चों का वज़न उनकी उम्र के अनुपात में बहुत कम है. यूनिसेफ द्वारा चिल्ड्रन इन अर्बन वर्ल्ड नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी ग़रीबों में यह आंकड़ा और भी चिंताजनक है, जहां गंभीर बीमारियों का स्तर गांव की तुलना में अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार शहरों में रहने वालों की संख्या तक़रीबन 37 करोड़ है. इनमें अधिकतर संख्या गांव से पलायन करने वालों की है. इन शहरों में हर तीन में से एक व्यक्ति नाले अथवा रेलवे लाइन के किनारे रहता है.
देश के बड़े शहरों में कुल मिलाकर क़रीब पचास हज़ार ऐसी बस्तियां हैं, जहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. ऐसी बस्तियों में रहने वाले बच्चों में बीमारियां अधिक होती हैं, क्योंकि न तो उन्हें उचित वातावरण मिल पाता है और न ही सही ढंग से इनका लालन-पालन होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में कम उम्र के बच्चों की मौतों में 20 प्रतिशत भारत में होती है और इनमें सबसे अधिक अल्पसंख्यक तथा दलित समुदाय प्रभावित हैं. रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सरकार ने जिस तरह से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए योजनाएं चला रखी हैं, वैसी ही योजनाएं शहरों में रहने वाले ग़रीब बच्चों के लिए भी शुरू की जानी चाहिए. दुनिया भर में बच्चों के विकास के लिए कार्य करने वाली इस संस्था ने अपनी रिपोर्ट के माध्यम से भारतीय समाज को आईना दिखाने का प्रयास किया है, जो सराहनीय है.
हिंदुस्तान सदियों से एक ऐसा देश रहा है, जो अपनी सांस्कृतिक विरासत और उन्नत सामाजिक चेतना के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, जहां महिलाओं और बच्चों को भगवान का दर्जा दिया जाता है. ऐसे में यदि यूनिसेफ हमें यह आईना दिखाता है तो यूं ही नहीं बल्कि इसके पीछे कुछ न कुछ वास्तविकता होगी. जिस देश में आज भी नारी की देवी के रूप में पूजा की जाती है, उसी देश की राजधानी में बलात्कार, अत्याचार और खुलेआम सेक्स के बाज़ार चलाए जाते हैं. शायद ही कोई ऐसा दिन होता है, जब समाचार पत्रों में किसी महिला के साथ गैंगरेप या शोषण की कोई खबर प्रकाशित नहीं होती है. जब देश की राजधानी का यह हाल है तो छोटे शहरों और क़स्बों की स्थिति क्या होती होगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. क्योंकि इन सभी जगहों पर या तो मीडिया की पहुंच नहीं होती है अथवा समाज में बदनामी के डर से लोग मामले पर चुप्पी साध लेते हैं. यदि किसी ने हिम्मत दिखाकर शोषण और अत्याचार के खिला़फ आवाज़ बुलंद करने की कोशिश की और थाने में रिपोर्ट लिखानी चाही तो थानेदार साहब अपनी रिपोटेशन बचाने के लिए एफआईआर दर्ज करने से बचने की कोशिश करते हैं. कभी-कभी स्वयं अभिभावक सामाजिक प्रतिष्ठता के नाम पर अपनी बेटी को मार डालने से भी नहीं हिचकते हैं. इसकी ताज़ा मिसाल हाल में घटित हुई मेरठ की घटना है, जहां पिछले माह राजमिस्त्री का काम करने वाले एक पिता ने अपनी दो जवान बेटियों की गर्दन रेत कर स़िर्फ इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि उसे इन दोनों के चाल-चलन पर शक था और इसके कारण उसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठता गिरती नज़र आ रही थी. अपनी इस करतूत पर उसे ज़रा भी अ़फसोस नहीं था. दिल्ली से सटे हरियाणा में आए दिन खाप पंचायत के फैसले नारी शोषण की कहानी बयां करते हैं, जहां ज़बरदस्ती पति-पत्नी को भाई-बहन साबित कर दिया जाता है.
यदि देश के नौनिहालों विशेषकर जन्म लेनी वाली बच्चियों की बात करें तो आज भी हमारा समाज लड़कियों के मुक़ाबले लड़कों को तरजीह देता है. दिल्ली की फलक और बंगलुरू की आ़फरीन इसकी मिसाल है, जिन्होंने ज़िंदगी की परिभाषा को समझने से पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया. दोनों का क़सूर सिर्फ इतना था कि वे लड़कियां थीं. फलक को उसकी मां पर पिता द्वारा किए गए ज़ुल्म और फिर महिला व्यापार का धंधा चलाने वालों ने मौत के मुंह तक धकेला, तो वहीं तीन माह की आ़फरीन को स्वयं उसके पिता ने पटक-पटक कर स़िर्फ इसलिए मार डाला, क्योंकि उसे लड़की नहीं लड़का चाहिए था. दूसरा उदाहरण बिहार के दरभंगा शहर का है, जहां एक नामी अस्पताल के बग़ल के कूड़ेदान में एक नवजात बच्ची को फेंक दिया गया और कुत्ते उसे नोंच-नोंच कर खा गए. इस दौरान किसी ने भी पुलिस को बुलाने का कष्ट नहीं किया और न ही यह खबर मीडिया में बहस का विषय बनी, क्योंकि मामला दिल्ली अथवा इसके आसपास घटित नहीं हुआ था. शायद समाज को भी इस प्रकार की आदत सी हो गई है, जो इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जगह इसे दिनचर्या मान चुका है.
ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जो यह साबित करते हैं कि यहां कथनी और करनी में एक बड़ा अंतर है. हम नारी को देवी के रूप में सम्मान देने की बात तो करते हैं, परंतु उसे समान दर्जा नहीं देना चाहते हैं. हम बच्चों को भगवान का रूप तो मानते हैं, परंतु उनका ख्याल नहीं रखना चाहते हैं. यूनिसेफ की रिपोर्ट हमें कहीं न कहीं इसका आईना ही दिखाती है. इतनी सारी योजनाएं चलाई जा रही हैं. इसके बावजूद कुपोषित बच्चों के प्रतिशत में संतोषजनक गिरावट क्यों नहीं आ रही है? जब हमारे देश में बाल विवाह क़ानून लागू है, फिर कैसे बच्चियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है? यह सवाल भी हमारे बीच से उठा है तो जवाब भी हमारे बीच मौजूद है. शायद इसका सीधा जवाब यही है कि जब तक समाज जागरूक नहीं होगा, तब तक इस तरह के आंकड़े हमें शर्मिंदा करते रहेंगे.

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शनिवार, 1 सितंबर 2012

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल - 12







02 सितम्बरर 2012

कोयले की कालिख में मन की (अ) सहाय ईमानदारी

ब्लैक स्टोन कोयले को भले ही लोग नापंसद करते हो, मगर कोयले के खान में लोटपोट करके सुदंर बनने की ख्वाईश ज्यादातर सफेद कपड़ों में लैस रहने वाले नेताओं के मन में रहती ही है। अपनी ईमानदारी के लिए ग्लोबल लेबल पर (कु) ख्यात अपने मनमोहन साहब भी इस बार सीधे सीधे आरोपों की जद में आ ही गए। सरल कोमल सुकोमल से प्रतीत होने वाले मन साहब के मुखारबिंद को देखते ही लगता है मानो बस अब रोकर ही दम लेंगे । मगर खासकर शायराना अंदाज में तो खुद को ईमानदार और सीएजी की रिपोर्ट को खारिज करते हुए मन साहब ने दहाड़ा कि मुझे तो प्रधानमंत्री पद की गरिमा रखनी है , भला मैं क्यों दूं इस्तीफा ? विपक्ष पर चुटकी लेते हुए मन साहब ने विपक्ष को पीएम की कुर्सी के लिए 2014 तक इंतजार करने की नसीहत तक दे डाली। सचमुच मन साहब जनता से तो आपका निकट का रिश्ता है नहीं अन्यथा यह जानकर शायद आप भी शर्मसार हो जाते कि आपके सुशोभित होने से यह पद कितना और किस तरह शर्मसार हो रहा है।

सुबोध सफाई

बिहार विभाजन से पहले केवल रांची के लिमिट में रहने वाले लालाजी झारखंड राज्य बनते के बाद भी पावर (लेस) के मामले में हमेशा असहाय से ही दिखने वाले अपने सुबोधकांत सहाय जी पर किस्मत मेहरबान है। मन साहब की ही तरह ही पपेट मिनिस्टर (अ) सहायजी कोल घोटाला के बाद एकाएक पावरफुल हो गए। मन साहब भी भीतर से काफी संतुष्ट से है कि चलो कोल स्कैम में कमसे कम सहाय का सहारा तो मिला। अपने रिश्तेदारों के लिए पत्र लिखकर सिफारिश करने वाले सुबोध की कलई खुलते ही वे पहले तो असहाय से हो गए मगर अगले ही दिन मन साहब की तरह ही पावर दिखाते हुए अपने उपर लगे या लगाए गए तमाम आरोपों को सिरे से नकार कर अपने आपको चंद्रगुप्त वंशी लाला होने का ला ला ला राग से ईमानदारी का सुबोध सफाई दे डाली।
अमेठी और रायबरेली से बाहर भी यूपी है
आमतौर पर सोनिया गांधी संसद में अपनी शान को हमेशा मेनटेन रखती है, मगर सबको हैरान करके वे सपा के पापाजी मुलायम के पास जाकर कई मिनट तक कनफुसियाती रही। मीडिया में जोरदार हंगामा मचा और इसे कई तरह से प्रस्तुत किया गया, मगर देर रात तक सब पर्दाफाश हो गया। अमेठी और रायबरेली में खराब बिजली संकट को फौरन बहाल करते हुए इन जिलो में 24x7 यानी हमेशा और लगातार बेरोकटोक बिजली देने के सरकारी फरमान जारी हो गया। जाहिर है कि कांग्रेस के कुतुबमीनारों को खुश रखने के लिए यूपी दूसरे जिलों को अंधेरे में रखा जाएगा। पहले से ही अंधेरे में रहने के आदी हो गए यूपी के लाखो लोगों का गुस्सा अखिलेश वाया सपा के पापा की तरफ ही जाएगा। मौके के मुताबिक समय को अपने लिए मैनेज करने में सपाई पापाजी को अमेठी और रायबरेली के अलावा भी यूपी के नागरिको के मन पर हाथ रखकर ही गांधी वंदना करना सुखद रहेगा।

मुलायम मन

पहलवान की तरह राजनीति करने वाले सपा के नेताजी मुलायम सिंह यादव अपने नफा और नुकसान का रोजाना हिसाब किताब करके ही अपना नया दांव चलते है। कुश्ती शैली से राजनीति करने वाले मुलायम बस केवल नाम भर के लिए ही मुलायम है। इसीलिए मौसम की तरह विश्वसनीय माने जाने वाले मुलायम तो कभी ममता दीदी पर भी भारी पड़ जाते है। मनमोहन से भला रिश्ता होने के बाद भी मन को कभी प्रमोट करके प्रेसीडेंट का दांव चलने वाले नेताजी दूसरे ही दिन पीएम के इस्तीफे का राग अलाप कर पंजा सुप्रीमों सोनिया के तापमान को गरमा दिया। समय समय पर अपने मुहाबरों से लोगों को बेचैन करने में माहिर नेताजी के मन में कोल करप्शन के बाद क्या दाल पक रही है इसको लेकर पंजा से लेकर कमल तक में दिलटस्पी बनी हुई है।

मन का (अ) घोषित आपात (काल)

मन साहब के चारो तरफ इस तरह के लोगों का जमावड़ा फैला है कि मन चाहे या ना चाहे पर मन साहब के मन को मन ही मन में (गमगीन) होकर भी बात माननी ही पड़ती है। मन के क्रोधी सिपहसालारों के आदेश संकेत और निर्देश पर दो दो बार रामदेव और अन्ना और पोलटिक्स में सुपर स्टार बनने का ड्रीम देख रहे अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी को सरकार विरोध का खामियाजा चुकाना पड़ रहा है। काला धन का नारा देते देते राम देव पर जांच का शिंकजा इस तरह कसता दिख रकहा है कि योग गुरू देव राम राम राम राम कहते (चिल्लाते कहना जल्दबाजी होगी) थक नहीं रहे है। टीम अन्ना का पुरा कुनवा ही बेघर हो गया और अन्ना नंबर टू बनने का सपना देख रहे केजरीवाल साहब अपने लिए ही सबसे बड़े चीन की दीवार बन गए है।

.युवराज में किसका इंटरेस्ट (बचा) है ?

रामदेव प्रकरण के खत्म होते ही अपने पंजा के अधेड़ युवराज ने फरमाया कि मुझए रामदेव में कोई इंटरेस्ट नहीं है, क्योंकि मेरे पास देश के लिए बहुत सारी योजनाएं है। धन्य हो युवराज कि देश के लिए तमाम डायरी प्रोग्राम पन्नों से बाहर आ नहीं पा रहे है, फिर भी वे बिजी है, मगर काला धन के मुद्दे को हवा देकर मनमोहन सो लेकर पंजा सुप्रीमो को बेहाल करने वाले बाबा के प्रति राहुल बाबा के पास वक्त ही नहीं है। पिछले 10 साल से देश को सुधारने के चक्कर में खुद लाईन से उतर चुके राहुल बाबा को अपवे चम्मचो की भीड़ से यह पता ही नहीं लग पा रहा है कि अब उनमें पूरे देश का ही इंटरेस्ट खत्म होता जा रहा है।

प्रियंका के हवाले रायबरेली

करीब 20 माह का समय शेष होने के बाद भी लोगों में लोकसभा चुनाव 2014 में होगा या 2013 में का सट्टा लगने लगा है। मीडिया में भी इस बात की चरचा ए आम गरम होने लगा है कि क्या होगा मन साहब का और क्या राहुल बाबा पीएम की कुर्सी पर (चाहे जितने भी दिन के लिए हो) आसीन होंगे ? इस बीच पंजा सुप्रीमों ने अपनी लगातार खराब होती सेहत का हवाला देकर अपनी पुत्री को रायबरेली के काम काज का दायित्व सौंप दिया है। लगातार बिगड़ती सेहत को देखते हुए तो यही लग रहा है कि बस अब पुत्री को राजनीति में लाकर धृतराष्ट्र की कुर्सी पर फुल टाईम बाठने का मन सोनिया जी बना रही है। यानी लोकसभा (भले ही मध्यावधि चुनाव क्यों ना हो जाए) के लिए प्रियंका बेबी का टिकट अभी से कनफर्म दिख रहा है।

प्रियंका VS डिंपल

समय की नब्ज को भांपने में जगत विख्यात मुलायम सिंह यादव के खजाने में सबकी काट मौजूद है। प्रोफेसर और पहलवानों से लेकर हीरो हिरोईनों और मवालियो के समाजवाद में एक यंग लेड़ीज नेता की कमी काफी दिनों से खल रही थी। कांग्रेसी घराने में प्रियंका की धूम को कुतरने के लिए अब मुलायम खजाने में अब डिंपल शस्त्र है। अपनी बहू को अंग्रेजी और नेतागिरी का ककहरा और पोलिटिक्स के गूर सीखाने और बताने का बाकायदा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके पीछे अपन मुलायम भैय्या मुनाव तक अपनी बहू को मांजकर एक सपा के एक नए स्टार फेस के तौर पर सामने लाने की राजीति और रणनीति पर बाकायदा काम कर रहे है, ताकि पंजा बेबी के सामने साईकिल की रफ्तार बनी रहे।

पंजा प्रवक्ता है या ........

आमतौर पर पार्टी और सरकार के मुखिया को अपने चेहरे पर मुस्कान लपेट कर रखना पड़ता है, ताकि लोगों में अपनी इमेज के साथ साथ पार्टी की भी इमेज कायम रहे। खासकर कांग्रेस में तो सोनिया राहुल औऍर अपने मौनी बाबा मनजी तो इतने शालीन और सुसंस्कृत है कि कभी कभी तो पंजा में लीडर का ही अकाल सा लगने लगता है। मगर आमतौर पर प्रेस से बेहतर रिश्ता बनाए रखने के लिए प्रवक्ता इस तरह का रखा जाता है कि मीडिया के लोग घुलमिल जाए, मगर इस मामले में अपन कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी सबसे अलग है। बोलने का लहजाऔर लट्ठमार तरीके से जबाव देना और हावी होकर बात करने का लड़ाका अंदाज को टीवी पर देखकर अक्सर लगता है कि ये महोदय तो किसी कोण से प्रवक्ता नजर ही नहीं आते। लगता है कि सोनिया जी के आक्रामक होने के आदेश को मनीष बाबू शुरू से ही बांधकर सेवा कर रहे है।

.... और लालू बोले मोटा माल....
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रिन साबुन लगाकर भी चारा दाग मिटाने में विफल रहे अपन यादव (राज-द) सुप्रीमो लालू यादव की ईमानदारी कमाल की है। मनमोहन और बीजेपी के बीच ईमानदारी की वाकयुद्ध में मोटा माल खाने का जिक्र सामने आया। मोटा माल का जिक्र आते ही चारा माल के लिए (दागी) सेलेब्रेटी बने लालू ने भी मीडिया के सामने मोटा माल खाने की सफाई मांगने लगे। लालू द्वारा मोटा माल का हिसाब मांगने पर ज्यादातर उनके ही साथी खिलखिला उठे। मोटा माल के चक्कर में लगता है कि अपन लालू भाई चारा मामले को भल से गए होंगे। यानी लगता है कि आने वाले दिनों में इडियट बॉक्स के सामने धीरे धीरे चारा छाप लालू की ईमानदारी भरे प्रवचन को भी झेलना पड़ेगा।

शौचालय (सचिवालय) चलो

अंगूठाटेक सीएम के तौर पर पूरे बिहार में मशहूर राबड़ी देवी के नाम पर आज दिल्ली में राबड़ी भवन है। जिसमें राजद का राष्ट्रीय पार्टी का दफ्तर है। चारा के चलते सीएम पद से हटने वाले लालू ने अपने घर की रसोई से अपनी पत्नी राबड़ी को निकाल कर सीधे मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया। नीतिश कुमार के कारण राजनीतिक बेरोजगारी झेल रही राबड़ी आजकल चरचे से नदारद है। पिछले दिनों बिहार भवन में लालू के बहुत ही करीब रह चुके और आज भी करीबी ही माने जाने वाले एक नेता ने यह बताकर पूरे माहौल को खिलखिला दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद एक दिन राबड़ी ने अपने –ड्राईवर को शौचालय
चलने का आदेश दिया। सीएम के आदेश पर ड्राईवर बेचारा हैरान कि कहां चले। वो कुछ देर तक तो सहमा सा खड़ा रहा । तभी सीएम के सहायक ने ड्राईवर के पास आकर कान में फटकारा कि शौचालय नहीं रे मूरख सचिवालय चलो सचिवालय। सीएम भी सचिवालय चलने को ही कह रही है। इस घटना के करीब 114-15 साल हो गए है। मगर बिहार भवन में बैठे दर्जनों एमएलए अपनी भूत (पूर्व) सीएम के ज्ञान और कौशल को जानकर खिलखिला उठे।