रविवार, 9 सितंबर 2012

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल - 13




    09 सितम्बर     

ठाकरे परिवार है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग

हिन्दी कवि नागार्जुन ने करीब 50 साल पहले एक टैक्सी यूनियन नेता के रूप में अपनी पहचान बना रहे युवा बाल ठाकरे पर एक कविता में कहा था …...और बाल ठाकरे है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग. इसी कविता की कुछ लाईनों में हेरफेर करके यदि इसे इस तरह भी देखा जाए कि....  बाल (राज और उद्धव) ठाकरे परिवार है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग.., तो शायद यह कविता और मारक एंव प्रासंगिक सा दिखने लगे। नागार्जुन की कविता का मूल सार इस प्रकार है...बाल ठाकरे .. बाल ठाकरे.... बाल ठाकरे /  नोंच लेगा / खाल ठाकरे.... खाल ठाकरे... खाल ठाकरे../.. थर... थर... थर... कांप रहे है यहां के लोग / और बाल ठाकरे है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग।
शायद अपनी कविता को इस तरह 100 फीसदी साकार होते देख कर कवि नागार्जुन भी फूले नहीं समाते। आज तो हालत ये है कि बाल ताऊ की चाल से भी दो चार कदम आगे निकलने को बेताब भतीजा राज तो कभी कभी बाल पर भी भारी दिखने लगे है। बाल और राज की जुबांनी जंग के बीच खामोश उद्धव भी कूद पड़े और पिता पुत्र और ताऊ ने यह साबित कर दिया कि भाड़ में जाए लोकतंत्र और कानून व्यवस्था / क्योंकि हम ठाकरे परिवार ( बाल राज और उद्धव) हैं महाराष्ट्र के सबसे बड़े लोग  (रोग )

 बिहार को शर्मसार ना करो ठाकरे परिवार

अपना बिहार है सोने का बिहार,  माना कि है गरीब उपेक्षित और कमजोर है। मगर राज और उद्धव ठाकरे जी के दादाजी (बाल ठाकरे के पिताजी ) ने अपनी किताब में जो तथ्य दिए है उसके अनुसार मगध नरेश के यहां नौकरी करने वाले ठाकरे वंशज किस प्रकार वाया भोपाल होते नासिक से मुबंई में जा बसे। मुबंई को अपनी जागीर मानकर जब चाहा बंधक बनाकर छोड़ दिया। खासकर इस खुलासे से ठाकरे परिवार सकते में है। .बिहारी और उतर भारतीयों को मुबंई से खदेड़ने की पोलटिक्स करने वाला यह परिवार फिलहाल बौखलाया है। पर सच तो यह है ठाकरे एंड संस (कंपनी लिमिटेड जैसा कोई मामला हो तो ) कि इस खुलासे के बाद पूरा बिहार बड़ा ही शर्मिंदा सा महसूस कर रहा है, और किसी भी बिहारी को यह तनिक भी नही सोहा रहा है कि ठाकरे परिवार को बिहार से कोई कनेक्शन निकले। अपने पूर्व     स(क) पूतों  के इस लीला से ही पूरा बिहार बडा शर्मसार हो रहा है


दिल्ली में शिवसेना की इमेज

भला हो (बाल उद्धव राज) ठाकरे परिवार के ताजा गेमप्लान का कि मुझे  करीब 15 साल पहले के एक वाक्या को  जो आज ज्यादा ताजा और प्रासंगिक सा लग रहा है, बताना जरूरी लग रह है।दिल्ली सदर बाजार इलाके के एक सी ग्रेड नेता से मेरा परिचय था। कमल छाप पार्टी का यह नेता एकाएक शिवसेना का झंड़ा लेकर बाजार में घूमता हुआ दिखा। युवा नेताजी में आए इस बदलाव और पार्टी बदलने की वजह जानने पर शिव सैनिक नेता ने जोरदार ठहाका लगाया। कमल छाप की निंदा करते हुए उसने  कहा कि यह पार्टी हरामखोरों की हो गई है, इसके बड़े-बड़े नेता कुछ करे तो शिष्टाचार और हम कार्यकर्ता कुछ करे तो भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनताय। । शिव सैनिक नेताजी ने दुख जताया कि पार्टी की इमेज भी इतनी नरम है, कि पुलिस वाला भी माहवारी वसूल लेता था। तभी अपना सीना चौड़ा करके उसने कहा कि जबसे शिवसेना का नेता बनकर चारो तरफ घूम रहा हूं तब से अपन माहवारी का झझंट तो खत्म हो ही गया।  ज्यादा हंगामा ना करने और पुलिस का नाम नहीं लपेटने के नाम पर पुलिस वाले ही अब चाय पानी के नाम पर दो चार सौ रूपए जेब में ठूंस देते है। शिवसेना की दिल्ली में इस इमेज को सुनकर मैं अवाक रह गया था।     
 बेबस लाचार मनमौनी मोहन प्यारे.बाबा
अपने सज्जन दब्बू कमजोर कायर और परजीवी मोहन बाबा भी कमाल के है। अरनी खामोश रहने की आदत पर मन मोहन जी ने एक शैर से अपनी बात कही। .हजारों जबावों से बेहतर है मेरी खामोशी /  न जाने कितने सवाल बेआबरू होते। सवा अरब लोगों वाले इस देश का नेता मन मौनी मोहन बाबा सा मस्त होना भी हैरत से ज्यादा जिल्लत की बात है। कोल घोटाला पर मलाल जताते हुए मनमौनी मोहन बाबा ने कहा विपक्ष के चलते पूरा सत्र बेकार चला गया। कमल छाप से तो एक सत्र इसलिए बेकार चला गया कि सरकार कोल घोटाला पर कोई बात करने का राजी नही हो रही थी, मगर मन मौनी बाबा को यह कौन बताएं कि एक ईमानदार इकोनॉमिस्ट के मैं चुप्प रहूंगां शैली से यह पूरा देश कितना हताश निराश और शर्मसार है।

ममता दीदी का (अ) ममता मय चेहरा
तुनक मिजाज और दुरंतो एक्सप्रेस रेल की तरह बेधड़क मुंहफट बोलने में माहिर ममता की दादागिरी गाथा के सामने मायावती और जयललिता भी 19 साबित हो रही है। सचमुच सत्ता भी मौसम की तरह बड़ी बेईमान और रंग बदलने में गिरगिट को भी शर्मसार कर देती है। सत्ता से बाहर रहने पर तो ममता का ममतामय चेहरा और प्रचार पाने की भूख से सब मीडिया वालो अवगत है। पर सत्ता में आते ही किसी को नक्सल बत्ताकर जेल में ठूंसना और सवाल पूछने पर पत्रकार तक को अपना गुस्सा दिखाने वाली ममता का पूरा नेचर ही बदल गया है। बात बात पर कभी मनमोहन तो कभी सोनिया जी के सामने फट पड़ने के लिए कुख्यात ममता शायद यह भूल गयी कि जब किसी के सामने जनता फटती है तो बड़े बड़े सूरमा भी पाताल में जाने से खुद को रोक नहीं पाते।  

और कितने यूपी
अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि से बेआबरू हो रहे कांग्रेस के 40 साला अधेड हो रहे युवराज भी बसपा सुप्रीमों मायावती के रास्ते पर निकल गए है.। यूपी को चार भाग में बॉटने का सूर अलापना नाया के लिए इतना भापी पड़ा कि वो अपना राग ही भूल गई। मगर अब .पी को अपनी अंगूलियों पर नचाने के लिए बेताब युवराज ने पूरे यूपी को कांग्रेसी बूगोल की नजर में आठ भागो में बॉटने का मन बना लिया है। सभी क्षेत्रों में एक एक प्रदेशाध्यक्ष सा क प्रधान होगा और आठो  क्षेत्रीय प्रदेशाध्यक्ष सीमूहिक तौर पर अपनी रपट और काम धाम का ब्यौंरा यूपी के अध्यक्ष को दिया करेंगे। जो महोदय युवराज को बताएंगे कि अपना यूपी में पंजा कितना ताकतवर हो रहा है। इन रपटो और विकास की सूचनाओं पर ही युवराज महोदय अपने यूपी में संगठन के विकास को लेकर भावी रणनीति तैयार करेगे।

कब  तक होंगे दिल्ली  में  कितने सीएम ?
 एमसीडी को तीन भाग में बॉटने के बाद दिल्ली की सीएम को कोई भी विभाग एब एक सोहा नहीं रहा है। पूर्व होम मिनिस्टर पीसी से थोड़ा दब कर रहने वाली अपनी सीएम शीला दीक्षित तो पूर्व पावर मंत्री रह चुके होम मिनिस्टर शिंदे पर भारी पड़ती है। होम मिनिस्टर के सामने जाकर एमसीडी के विभाजन के बाद अब दिल्ली पुलिस को भी तीन हिस्सों में करने की वकालत करती हुई शीला ने दिल्ली में तीन तीन पुलिस कमीश्नर होने की वकालत की है। शीला के तर्को के सामने असबाय हो गए शिंदे ने केवल भरोसा देकर मामले को टाल दिया है, पर वे भी शीला के पावर और पहुंचको जानते है, लिहाजा मामले को समझने की कोशिश में लगे है। दिल्ली को तीन तीन भाग में बॉटने और तीन तीन कमीश्नर की नियुक्ति के तर्क को करारा जवाब देने का बीजेपी ने मन बना लिया है। बीजेपी नेताओ ने भी कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं और मंत्रियो से मितकर यह सुझाव देने का मन बना. है कि पुलिस और एमसीजी के बाद अब बारी सरकार को तीन भाग में बॉटकर दिल्ली में तीन तीन सीएम बहाल करने की सिफारिश करने का मन बनाया है। क्या होगा शीला जी जब कभी तीन एमसीडी कमीश्नर पुलिस कमीश्नर की तरह तीन तीन सीएम भी जब दिल्ली में होंगी ?

केजरीवाल के हसीन सपने

धन्य हो महाराज, अन्नाटीम के हेड कर्ता-धर्ता रहे पूर्व नौकरशाह रहे अरविंद केजरीवाल साहब जी महाराज। टीम अन्ना बिखर गयी,  फिर भी मुंगेरीलाल की तरह हसींन सपने देखने में आपका कोई सानी नहीं। जनता से पूछकर जनता के लिए जनता द्वारा जनता पार्टी बनाने की कवायद में लगे केजरीवाल एकदम राम राज लाने की कोशिश में जुट गए है। ईमानदार चरित्रवान और नेक आदमियों को टिकट देने पर जोर दिया है। और जब कभी किसी पर बेईमान होने की शिकायत मिली तो उसे तत्काल उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। बहुत खूब केजरीवाल साहब नेक सपना है, मगर कैरेक्टर सर्टिफिकेट के आधार पर टिकट और जनता पार्टी बनाने का यह सपना कब तक जीवित रह पाएगा। सबों की तरह केजरीवाल भी जानते है कि चुनाव जीतने के पीछे कौन कौन से बल काम करते है यानी अन्ना हजारे और केजरीवाल के सपनों का क्या होगा भगवान ।

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