कल्पना शर्मा
सिनेमा में कभी दर्शक 70 एमएम पर आंखे फाड़े हीरो को देखता था और सोचता था काश! मैं भी ऐसा होता और एक आज का वक्त है जब फिल्म देखते हुए दर्शक सोचता है अरे! ये हीरो तो मेरे जैसा ही है.
अहम बात ये है कि ग्लैमरस चेहरों के साथ साथ ये साधारण चेहरे फिट है और हिट भी है.
पान सिंह तोमर के निर्देशक और बैंडिट क्वीन में कास्टिंग डायरेक्टर रहे तिग्मांशु धूलिया कहते हैं "बात कास्टिंग की नहीं है, बात ये है कि कौन लोग है जो साधारण चेहरों को लेकर ऐसी लीक से हटकर फिल्में बना रहे हैं और साथ में पैसा भी कमा रहे हैं".
"लोग मेरी तस्वीर देखकर मुझे बुला लेते थे पर जब मैं ऑफिस पहुंचता था तो लोग कहते थे, अरे ये तो काला है और हाइट भी कम है इसकी. कभी कभी ऐसा लगता था कि हाई हिल्स के जूते पहनने लगूँ या इस स्किन को चीर के थोड़ा सा गोरा कर लूँ."
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, अभिनेता

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने पीपली लाइव और कहानी में काफी प्रशंसा बटोरी
"हमारे देश में बहुत टैलेंटेड कलाकार हैं जिनको गोरे रंग, सिक्स पैक्स वाले के सामने नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. एक स्टार अपने आपको ही फिल्म में दिखाता है लेकिन एक्टर, किरदार में घुस जाता है""
दिबाकर बनर्जी, निर्देशक,शांघाई
पर सवाल ये भी है कि इस बिना मैकअप और बिना चकाचौंध वाले कलाकार को दर्शक की हरी झंडी मिल रही है या नहीं. गैंग्स ऑफ वासेपुर में नगमा का रोल निभाने वाली ऋचा चड्डा कहती हैं "अब लोग हर तरह के कलाकारों को स्वीकार कर रहे हैं. मैं कोई स्टार किड तो नहीं हूँ पर फिर भी मुझे गैंग्स में इतना जरुरी रोल मिला और लोगों को मैं पसंद भी आ रही हूँ. मैं अपने स्पॉट बॉय के लिए टिकट लेने गई तो लोगों ने कहा टिकट बाद में लेना,पहले ऑटोग्राफ दो"
नवाज़ कहते हैं "दर्शक को मुझ जैसे आदमी को स्वीकार करने में वक्त लगता है. वो सोचता है ये तो मेरे जैसा ही है ये हीरो कैसे बन सकता है. पर एक बार जब वो स्वीकार कर लेता है तो यही चेहरा उसके लिए एक प्रेरणा बन जाता है. वो सोचता है जब ये सफल हो सकता है तो मैं भी अपने क्षेत्र में सफल हो सकता हूँ"
"शांघाई के लिए हमने कई ऐसे लोगों को फिल्म में लिया जो एक्टर थे ही नही, यहां तक की एक चेहरा जो हमने चुना था वो असल में भी एक राजनितिक पार्टी का लीडर है ""
अतुल मोंगिया, कास्टिंग डायरेक्टर, शांघाई
तो क्या ये चेहरे,सिनेमा का चेहरा भी बदल रहे है? तिग्मांशु की माने तो जब थ्री इडियट्स या मुन्नाभाई जैसी फिल्में आम चेहरों के साथ बनाई जाएं, तब लगेगा कि वाकई में कमर्शियल सिनेमा बदल रहा है. तब तक, कहीं जाइएगा नहीं, तमाशा अभी खत्म नहीं हुआ.
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