रविवार, 11 अगस्त 2013

दिल्ली का प्राचीनतम: पार्लियामेंट स्ट्रीट थाना


 
Image Loading अन्य फोटो इस थाने में एक से एक पुरानी एफआईआर रखी हुई हैं, जिनमें कई प्राचीनतम एवं महत्त्वपूर्ण केस दर्ज हैं,

फिरोज बख्त अहमद
:26-11-09
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दिल्ली का इतिहास केवल स्मारकों में ही नहीं, बल्कि यहां की एक प्राचीनतम कोतवाली में भी सुरक्षित है। इस  थाने का नाम था-रायसीना हिल पुलिस स्टेशन, जिसकी नींव 1913 में अंग्रेजों द्वारा डाली गयी थी। आज यह थाना पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन के नाम से जाना जाता है। सन्  1962 में इस पुलिस स्टेशन का नाम बदल दिया गया था। इस थाने में एक से एक पुरानी एफआईआर रखी हुई हैं, जिनमें कई प्राचीनतम एवं  महत्त्वपूर्ण केस दर्ज हैं, जैसे बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह द्वारा दिल्ली की विधान सभा गैलरी में 1929 में बम फेंका जाना।
बकौल वीर किशन पाल सिंह यादव, थानाध्यक्ष सनलाइट कालोनी पुलिस स्टेशन, जिन्हें थानों के इतिहास एकत्र करने का चाव है,‘पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने के रिकॉर्ड रूम में आज भी इन दोनों स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध दर्ज की गई एफआईआर मौजूद है, जो कि उर्दू में लिखी हुई है। पहले अदालतों एवं थानों में उर्दू में ही लिखा जाता था। इस एफआईआर का जो समय थाने में दर्ज है, वह है दोपहर 12:30 बजे, 18 अप्रैल 1929। इसमें यह भी लिखा है कि बटुकेश्वर और भगत सिंह ने दो बम चलती हुई असेंबली पर फेंके, गोलियां दागीं और उसके बाद तुरंत आत्मसर्मपण कर दिया। तत्काल दोनों को सजा-ए-काला पानी दी गई। एफ आईआर में दोनों के पते इस प्रकार से लिखे हैं, बटुकेश्वर दत्त, पुत्र गौतम बिहारी और भगत सिंह, पुत्र किशन सिंह, जात- कायस्थ, जालंधर।
वैसे आजादी के बाद भी इस थाने ने बड़े-बड़े केस और रैलियां देखी हैं, जिनमें सबसे बड़ी रैली 1988 में भारतीय किसान यूनियन के महेंद्र सिंह टिकैत द्वारा की गई थी। उस समय टिकैत बोट क्लब पर अपने साथियों के साथ 20 दिन से भी अधिक दिन तक रहे थे और वे वहां से तभी हटे, जब 30 अक्टूबर 1988 को पुलिस ने उन्हें जोर-जबर्दस्ती के साथ खदेड़ा। थाने के एक पुराने कार्यकर्ता बताते हैं, ‘वह रैली वास्तव में सबसे भीषण रैली थी, क्योंकि रैली में आने वाले न केवल पत्थर फेंक रहे थे, बल्कि फायरिंग भी कर रहे थे, जिसके कारण 20 पुलिस वाले जख्मी हुए, जिनमें डीसीपी एवं एसीपी भी थे। वैसे कुछ दिन पहले जो किसानों की रैली दिल्ली में 19 नवंबर को हुई, उसमें भी थानाध्यक्ष के अनुसार पुलिस के जवानों को बड़ी कठिनाई आई। आज इस थाने का स्वरूप बदल चुका है। खेद की बात यह है ऐतिहासिक महत्त्व की बहुत सी पुरानी चीजों का रंग-रूप भी बदल गया है।

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