शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

कुतुब मीनार से ऊंचा है जैतखाम मीनार

 

 

 

 

5175-161210

प्रस्तुति- कृति शरण ,सृष्टि शरण

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्म भूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के जरिए बन रहा 243 फीट की ऊंचाई का जैतखाम दुनिया में आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा का एक शानदार उदाहरण होगा। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित लगभग आठ सौ वर्ष पुराना 237.8 फीट (72.5 मीटर) ऊंची कुतुब मीनार भारतीय इतिहास और पुरातत्व की बहुमूल्य धरोहर के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारक सूची में शामिल है, जिसकी ऊंचाई छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी में 51 करोड़ रूपए से भी अधिक लागत से बन रहे विशाल जैतखाम से लगभग पांच मीटर कम है। गिरौदपुरी में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनवाए जा रहे इस गगन चुम्बी जैतखाम की ऊंचाई 243 फीट (करीब 77 मीटर) होगी। इस प्रकार कुतुब मीनार से करीब पांच मीटर ऊंचे इस जैतखाम का निर्माण पूर्ण होने पर इसकी गिनती भी इतिहास और आधुनिक स्थापत्य कला की दृष्टि से दुनिया की एक अनमोल धरोहर के रूप में होने लगेगी और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों के समकक्ष आ जाएगा।
    सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास का जन्म गिरौदपुरी में लगभग ढाई सौ साल पहले, 18 दिसम्बर 1756 को हुआ था। उन्होंने इसी गांव के नजदीक छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और अपने आध्यात्मिक ज्ञान के जरिए देश और दुनिया को सत्य, अहिंसा, दया, करूणा, परोपकार जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की शिक्षा देकर सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। इसके फलस्वरूप यह गांव विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की जनता की आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया, जहां बाबा घासीदास के महान विचारों के साथ-साथ उनकी यश-कीर्ति को जन-जन तक पहुंचाने और दूर-दूर तक फैलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग ने गिरौदपुरी में करीब तीन वर्ष पहले कुतुब मीनार से भी ऊंचे इस विशाल जैतखाम का निर्माण शुरू किया था, जो अब तेजी से पूर्णता की ओर अग्रसर है। प्रति दिन वहां आने वाले श्रध्दालुजन और पर्यटक इस विशाल जैतखाम की निर्माण्ा प्रक्रिया को उत्सुकता से निहारते नजर आते हैं। गिरौदपुरी धाम के सौन्दर्यीकरण और वहां निर्मित विभिन्न बुनियादी सुविधाओं के फलस्वरूप अब स्कूली बच्चे भी बड़ी संख्या में शैक्षणिक भ्रमण के लिए वहां आने लगे हैं। छायादार वृक्षों के नीचे इन हंसते-खेलते बच्चों को तीर्थ यात्रा में एक साथ बैठकर भोजन करते और घूमते-फिरते देखने पर सचमुच काफी सुखद अनुभूति होती है।
    बाबा घासीदास जैसे महान संत के प्रखर व्यक्तित्व और उनके कृतित्व ने छत्तीसगढ़ सहित सम्पूर्ण भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गिरौदपुरी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कर दिया है। इसे ध्यान में रखकर वहां इस विशाल जैतखाम का निर्माण किया जा रहा है। डॉ. रमन सिंह ने जहां 23 दिसम्बर 2007 को जनप्रतिनिधियों और समाज प्रमुखों की उपस्थिति में इस विशाल जैतखाम के निर्माण कार्य का शुभारंभ किया था। यह विशाल जैतखाम भारत की आधुनिक इंजीनियरिंग प्रतिभाओं का एक शानदार कमाल भी होगा। छत्तीसगढ़ सरकार के लोक निर्माण विभाग द्वारा इसका निर्माण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.), रूड़की के वरिष्ठ और अनुभवी विशेषज्ञों से बनवाए गए नक्शे और डिजाईन के अनुरूप किया जा जा रहा है। यह सम्पूर्ण रूप से भूकम्परोधी और अग्निरोधी होगा। सतनाम पंथ के गौरवशाली प्रतीक के रूप में दुनिया को मानव कल्याण और विश्व शांति संदेश देने के लिए इस पर परम्परागत श्वेत ध्वज भी फहराया जाएगा।
    वर्ष 2004 में गिरौदपुरी के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इस गांव के समग्र विकास के लिए समाज प्रमुखों और जनप्रतिनिधियों की बैठक में सलाह-मशविरा कर एक समन्वित विशेष कार्य योजना बनाने का निर्णय लिया। वित्तीय वर्ष 2004-05 में इस कार्य योजना पर अमल शुरू किया गया। इसके क्रियान्वयन के लिए आदिम जाति और अनुसूचित जाति विकास विभाग को नोडल विभाग के रूप में जिम्मेदारी दी गयी। विशेष कार्ययोजना के तहत गिरौदपुरी धाम के विकास के लिये वर्ष 2004 से अब तक लगभग 18 करोड़ रूपये की धनराषि मंजूर की जा चुकी है। यह राशि वहां बनाए जा रहे कुतुब मीनार से भी ऊंचे जैतखाम के लिए निर्धारित 51 करोड़ 43 लाख रूपए की धनराशि से अलग है। इस तीर्थ भूमि के विकास के लिए प्रथम वर्ष में विशेष कार्य-योजना के तहत पांच करोड़ रूपए आवंटित किए गए और यह सम्पूर्ण राशि विभिन्न विकास कार्यों पर खर्च की गयी। अगले वर्ष 2005-06 में भी लगभग पांच करोड़ रूपए का आवंटन दिया गया और बुनियादी सुविधाओं के विकास पर शत-प्रतिशत राशि व्यय की गयी। वर्ष 2006-07 में तीन करोड़ रूपए आवंटन किए गए। इसमें से विभिन्न निर्माण कार्यों पर लगभग दो करोड़ 13 लाख रूपए खर्च हुए। पिछले साल करीब दो करोड़ 35 लाख रूपए का आवंटन जारी किया गया।
    समन्वित विकास की कार्य-योजना के तहत हुए विभिन्न निर्माण कार्यों के फलस्वरूप गिरौदपुरी की तस्वीर एकदम से बदल गयी है। पहाड़ी पर स्थित मुख्य मंदिर और मेला परिसर काफी व्यवस्थित हो गया है। गुरू दर्शन मेले में वहां हर साल आने वाले लाखों श्रध्दालुओं के लिए अब पगडंडी नहीं, बल्कि साफ-सुथरी चौड़ी और पक्की सड़कें हैं, जिन पर मार्ग विभाजक बनाकर सूर्य किरणों पर आधारित सौर ऊर्जा प्रणाली सहित परम्परागत विद्युत प्रकाश की भी व्यवस्था है। समन्वित विकास कार्यों से इस तपोभूमि की छटा अब आकर्षक और मनोरम हो गयी है। मेला और मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे लगाये गये हैं। इन हरे-भरे पौधों से जहां मन को षांति मिलती है, वहीं मंदिर परिसर के आध्यात्मिक वातावरण से बाबा गुरू घासीदास के सद्भावना, भाईचारा, सच्चाई,सादगी, दया, करूणा, अहिंसा और परोपकार का संदेष भी मिलता है।
लगभग चार सौ एकड़ में फैले इस विषाल परिसर में विशेष कार्य-योजना के तहत अनेक विकास कार्य सम्पन्न हुए है। मंदिर परिसर साफ सुथरा है और वहां कांक्रीटीकरण किया गया है। मेला परिसर में सघन वृक्षारोपण, विद्युतीकरण्ा, यात्री षेड, पेयजल की व्यवस्था और पार्किंग स्थल विकसित किया गया है। मुख्य मंदिर, जैतखाम और विषाल प्रवेष द्वार को संगमरमर जड़ कर बेहद आकर्षक और वैभवपूर्ण बनाया गया है। सभी पवित्र स्थलों को जोड़ने सड़क, सीढ़ी और सुरक्षा दीवाल बनाये गये हैं। गिरौदपुरी मेला परिसर वृक्षारोपण से आच्छादित है। मुख्य मंदिर के पास हाई मास्ट लाईट की व्यवस्था है। दूरस्थ अंचलों से आने वाले श्रध्दालुओं के ठहरने के लिये 09 विषाल यात्री षेड बनाये गये हैं। यह स्थल पहले की तुलना में कई गुना आकर्षक, सुविधायुक्त और मनोरम स्थल के रूप में विकसित हो गया है। तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए अब तक नौ विशाल प्रतीक्षालय भवनों (शेडों) का निर्माण हो चुका है, जहां श्रध्दालुजन आराम से रात्रि में भी रूक सकते हैं।
    कार्य-योजना के प्रथम वर्ष में सम्पूर्ण मंदिर परिसर की साज-सज्जा की गई और आस-पास के क्षेत्र में भूमि समतलीकरण, मुरमीकरण और वृक्षारोपण भी किया गया। मुख्य बस्ती से मंदिर स्थल तक चौड़ी कांक्रीट सड़क और प्रवेष द्वार बनाया गया। सड़क के बीचों-बीच विद्युत के खम्भे लगाये गये। मंदिर परिसर में आकर्षक मुख्य प्रवेष द्वार और निर्गम द्वार बनाया गया। मंदिर परिसर में अहाते का निर्माण और जैतखाम का पुनर्निर्माण किया गया। मेला परिसर को आकर्षक बनाने समतली करण एवं मुख्य प्रवेष द्वार का विस्तार किया गया। गिरौदपुरी बस्ती के भीतर सीमेंट कांक्रीट की सड़कें बनवायी गयी हैं। ग्राम महराजी से पंचकुण्डी तक मार्ग बनाया गया। मंदिर से चरण कुण्ड तक कांक्रीट का सीढ़ीदार मार्ग एवं प्रवेष द्वार बनाया गया। इसी प्रकार चरण कुण्ड से अमृत कुण्ड तक सीढ़ीदार कांक्रीट का मार्ग और सुरक्षा दीवार बनाया गया। मुख्य प्रवेष द्वार से मंदिर तक के मार्ग का कांक्रीटीकरण और मंदिर क्षेत्र का कांक्रीटीकरण किया गया। यहां बड़ी संख्या में आने वाले श्रध्दालुओं के ठहरने के लिये तीन विश्राम गृह का निर्माण किया गया। महराजी से पवित्र छातापहाड़ तक सीमेंट कांक्रीट सड़क बनाया गया। गिरौदपुरी धाम से मात्र छह किलोमीटर पर स्थित छातापहाड़ में ही गुरू घासीदासजी ने कठोर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था। वहां पर फाल्गुन शुक्ल षष्ठी के दिन जैतखाम में जगत गुरू द्वारा ध्वजारोहण भी किया जाता है। गिरौदपुरी धाम के मेला स्थल पर पेयजल व्यवस्था के साथ ही पंचकुण्डी में भी पेयजल व्यवस्था के साथ ही पौध रोपण के रखरखाव के लिये ड्रिप कोर्स सिंचाई की व्यवस्था की गयी है। इसके अलावा ग्राम महराजी से छाता पहाड़ तक नल जल योजना भी प्रारंभ की गयी है। गिरौदपुरी बस्ती और मेला सड़क, मेला स्थल, मुख्य मंदिर परिसर, चरणकुण्ड का विद्युतीकरण किया गया। गिरौदपुरी बस्ती से मंदिर प्रवेष द्वार तक के क्षेत्र में पार्किग स्थल विकसित किया गया। पूरे क्षेत्र में आकर्षक ग्लो साइन बोर्ड लगाया गया। मेला बाजार स्थल का भी समतलीकरण किया गया। मेला स्थल और मंदिर परिसर में 10 हजार पौधों का रोपण किया गया।
    विशेष कार्य-योजना के तहत वर्ष 2005-06 में मेला परिसर, चरणकुण्ड और अमृतकुण्ड में विद्युतीकरण और वृक्षारोपण के रखरखाव एवं महराजी से छाता पहाड़ तक डब्ल्यू.बी.एम. सड़क और श्रध्दालुओं की सुविधा के लिये चबूतरा निर्माण किया गया। गिरौदपुरी में लगभग 55 लाख रूपये की लागत से विश्राम गृह, सिविक सेन्टर में अतिरिक्त कमरों का निर्माण, 10-10 लाख रूपये की लागत से हाई स्कूल और माध्यमिक षाला, 55 लाख रूपये की लागत से चार यात्री षेड का निर्माण और 59 लाख रूपये की लागत से गिरौदपुरी धाम में पेयजल और निस्तार की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही हेलीपेड स्थल तक पहुंच मार्ग, 59.28 लाख रूपये की लागत से मुख्य मार्ग से जन्म स्थली और मुख्य मार्ग से मंदिर पहुंच मार्ग तक कांक्रीटीकरण, साढे 26 लाख रूपये की लागत से डब्ल्यू.बी.एम. सड़क और वन्य जीवों के पेयजल के लिये स्टापडेम का निर्माण कराया गया है। 79 लाख 76 हजार रूपये की लागत से गिरौदपुरी बस्ती की आंतरिक मार्गों का कांक्रीटीकरण कराया गया।
इसके बाद वर्ष 2006-07 में इस विशेष कार्य-योजना के तहत मेला क्षेत्र में 10 लाख रूपये की लागत से पार्किंग स्थल विकसित किया गया। करीब 43 लाख 31 हजार रूपये की लागत से तीन यात्री षेड बनवाए गए, 23 लाख रूपये की लागत से महराजी से छातापहाड़ मार्ग में पुलिया सह स्टाप डेम का निर्माण कराया गया और महराजी तालाब का गहरीकरण कार्य भी हुआ। इसी प्रकार छातापहाड़ के पास स्थित तालाब का राहत कार्य में गहरीकरण कराया गया। सात लाख रूपये की लागत से सुलभ षौचालय का निर्माण कराया गया। छोटे षेरपंजा मंदिर से बछिया जीवन दान षोरपा तालाब तक कांक्रीट सड़क 24 लाख 83 हजार रूपये में पूर्ण किया गया है। इसके अलावा 18 लाख 17 हजार रूपये की लागत से मुख्य मार्ग से मटियाटोली तक पहुंच मार्ग और छाता पहाड़ मार्ग में डामरीकरण कराया गया। मेला क्षेत्र में 32 लाख 21 हजार रूपये की लागत से पार्किंग स्थल विकसित किया गया। महराजी के पास तालाब और ब्रिज का निर्माण किया गया। साथ ही गिरौदपुरी में 29 लाख रूपये की लागत से तालाब गहरीकरण एवं पिचिंग का कार्य पूर्ण कराया गया है। छाता पहाड़ के सौंदर्यीकरण पर 6 लाख और अनुसूचित जाति कन्या आश्रम के जीर्णोध्दार पर 10 लाख रूपये की राषि व्यय की गई है। वर्ष 2007-08 में 13 लाख 77 हजार रूपये की लागत से यात्री निवास षेड का निर्माण कराया गया है।
      वर्ष 2007-08 में 27 लाख 54 हजार रूपये की लागत से मेला परिसर में दो यात्री षेड का निर्माण किया गया। इनमें प्रत्येक पर 13 लाख 77 हजार रूपये की राषि व्यय की गई है।  वर्ष 2008-09 में गिरौदपुरी के समन्वित विकास कार्यों के लिये दो करोड़ 34 लाख रूपये की राषि आबंटित की गई है। इनमें मुख्य रूप से गिरौदपुरी में हाई मास्ट लाइट पर 19 लाख और मेला परिसर पर सीमेंन्ट कांक्रीट सड़क निर्माण पर साढे 24 लाख रूपये की राषि व्यय की गई है। मेला परिसर, महराजी से पंचकुण्डी, छाता पहाड़ एवं पंचकुण्डीय महराजी बायपास से गिरौदपुरी से छातापहाड़ तक सीमेंट कांक्रीट रोड का कार्य एक करोड़ 67 लाख रूपये की लागत से पूर्ण कर लिया गया है।
    गिरौदपुरी धाम में हर रोज दूर-दूर से आने वाले श्रध्दालुजन इस विशाल जैतखाम की निर्माण प्रक्रिया को भी काफी उत्साह और उत्सुकता से निहारते नजर आते हैं। पहले यहां पर यात्री प्रतीक्षालयों की काफी कमी थी, लेकिन अब राज्य सरकार ने इस अभाव को दूर करते हुए विशाल यात्री शेडों का निर्माण करवा दिया है। निस्तारी की भी अच्छी सुविधा विकसित की गयी है। यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों के अनुसार कुछ वर्ष पहले तक यहां चरण कुण्ड, अमृत-कुण्ड और छाता पहाड़ आने-जाने के लिए पगडंडीनुमा उबड़-खाबड़ रास्ते हुआ करते थे, लेकिन अब चरण कुण्ड से अमृत कुण्ड तक सीढ़ीदार सुन्दर और सुगम रास्ता बन चुका है, वहीं छाता पहाड़ जाने के लिए पक्की सड़क भी बनवा दी गयी है। छाता पहाड़ चढ़ने के लिए सीढ़ीदार मार्ग तथा सौर ऊर्जा आधारित विद्युत खंभों सहित सुरक्षा की दृष्टि से रेलिंग और नाले पर पुलिया निर्माण के फलस्वरूप यहां का सौन्दर्य और भी बढ़ गया है। एक तीर्थ यात्री ने कहा कि गिरौदपुरी तक आने-जाने के लिए राज्य सरकार द्वारा बनवायी गयी सड़कों का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे अब हमारी तीर्थ यात्रा काफी सुगम हो गयी है।

इतिहास के पन्नों में गिरौदपुरी धाम

    ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार मानवता के पुजारी संत गुरू घासीदास जी का जन्म गिरौदपुरी में 18 दिसम्बर सन 1756 को हुआ था। युवा अवस्था में उन्होंने इसी गांव से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों से परिपूर्ण छाता-पहाड़ के नाम से प्रसिध्द पर्वत पर कठोर तपस्या की और गिरौदपुरी पहुंचकर लोगों को सत्य, अहिंसा, दया, करूणा और परोपकार के उपदेशों के साथ मानवता का संदेश देने लगे। उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार इस ऐतिहासिक घटना को यादगार बनाने के लिए समाज की ओर से जगद्गुरू गद्दीनशीन स्वर्गीय श्री अगम दास जी (पूर्व सांसद) द्वारा वहां लगभग 74 वर्ष पहले (वर्ष 1935 में) माघ-पूर्णिमा के दिन गुरू दर्शन मेले की शुरूआत की गयी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मेले की शुरूआत 1935 से भी पहले हो चुकी थी, लेकिन गुरू अगम दास जी ने समाज प्रमुखों से सलाह-मशविरा कर 1935 में जनसहयोग से विधिवत पाम्पलेट छपवा कर प्रचार-प्रसार के साथ इसे और भी अधिक सुव्यवस्थित रूप से आयोजित करना प्रारंभ किया था। लगभग तीन दशक बाद वर्ष 1966 में समाज प्रमुखों द्वारा आम सहमति से लिए गए निर्णय के अनुसार गुरू दर्शन मेला हर साल फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक आयोजित किया जा रहा है। राज्य सरकार की विशेष कार्ययोजना के तहत विकास कार्यो के फलस्वरूप इस गरिमामय मेले की रौनक और भी ज्यादा बढ़ गयी है। अब तो इस तीन दिवसीय वार्षिक मेले में आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या दस लाख से पन्द्रह लाख तक पहुंच जाती है। मेले में श्रध्दालुओं के लिए बिजली, पानी, सड़क आदि जरूरी सुविधाओं की जरूरत लम्बे समय से महसूस की जा रही थी। रमन सरकार ने इस दिशा में तत्परता से कदम उठाया और लोगों की वर्षो पुरानी मांगे पूरी हुई।

कुतुब मीनार : कुछ ऐतिहासिक तथ्य

    इतिहासकारों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुददीन एबक ने सन 1193 ईस्वी में प्रारंभ करवाया था, लेकिन निर्माण पूर्ण होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी। उनके बाद इल्तुतमिश ने दिल्ली के शासक के रूप में इसके निर्माण को आगे बढ़ाया और इसमें तीन मंजिले जुड़वायी। कुतुब मीनार में किसी दुर्घटना के बाद सन 1386 ईस्वीं में उसका पुनर्निर्माण फिरोज शाह तुगलक के समय किया गया। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक कुतुब मीनार का नाम कुतुबुददीन एबक के नाम पर हुआ, जबकि कुछ इतिहासकारों का यह कहना है कि इसका नामकरण बगदाद के संत कुतुबुददीन बख्तियार काकी के नाम पर हुआ, जो इल्तुतमिश के समय भारत आए थे। इल्तुतमिश उनसे काफी प्रभावित थे।

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