प्रस्तुति-- अशोक सुमन, प्यासा रुपक
कांजीवरम् नटराजन् अन्नादुरै तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता, अपने प्रदेश के प्रथम गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री एवं द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम दल के संस्थापक थे। इनके नाम का संक्षिप्त रूप अन्ना का तमिल में अर्थ है, आदरणीय बड़ा भाई। उनका जन्म एक बेहद साधारण परिवार में हुआ। तंबाकू से रचे दांत, खूंटीदार दाढ़ी और लुभावनी शुष्क आवाज वाले तकरीबन सवा पांच फीट कद के इस शख्स के साथ ही आधुनिक तमिलनाडु की कहानी जुड़ी है। अन्ना स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे नेता थे जिनकी स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी।
जीवन चरित
अन्नादुरै का जन्म १५ सितंबर १९०९ को कांजीवरम् के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। मद्रास विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् उन्होंने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में प्रारंभ किया, पर शीघ्र ही ये पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए। तमिल
जागरण में इनके निबंधों ने महत्वपूर्ण योगदान किया। श्री अन्नादुरै ने
'जस्टिस' नामक तमिल पत्र के सहायक संपादक एवं बाद में 'विदुघलाई' नामक पत्र
के संपादक के पद पर कार्य किया। इन्होंने सन् १९४२ में तमिल साप्ताहिक
'द्रविड़नाड़' सन् १९५७ में अंग्रेजी साप्ताहिक 'होमलैंड' तथा एक वर्ष
पश्चात् 'होमरूल' नामक पत्रिका निकाली थी। ये हिंदी के प्रबल विरोधी तथा
तमिल भाषा और साहित्य के पुनरुत्थानकर्ता थे।
श्री अन्नादुरै प्रारंभ में द्रविड़ कड़गम के सदस्य थे, पर अपने राजनीतिक गुरु से असंतुष्ट होने के कारण इन्होंने सन् १९४९ में अपने सहयोगियों के साथ द्रविड़ कड़गम से संबंध विच्छेद कर लिया और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की स्थापना की। सन् १९५७ में विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के पश्चात् अन्नादुरै सक्रिय राजनीति में आए। इन्होंने द्रविड़ों के लिए पृथक् 'द्रविड़स्तान' का नारा दिया और प्रदेश से कांग्रेस शासन को समाप्त करने का व्रत लिया। द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम ने इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनेक आंदोलन किए। दस वर्ष पश्चात् राज्य की बागडोर अन्नदुरै के हाथ में आ गई। यद्यपि इनकी असामयिक मूत्यु ने इन्हें मुख्य मंत्री के रूप में दो वर्ष से भी कम अवधि तक प्रदेशवसियों की सेवा करने का ही अवसर दिया, तथापि यह अल्पावधि भी अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण रही है।
ये प्रतिभासंपन्न राजनेता, कुशल प्रशासक एवं सिद्धहस्त समाजशिल्पी थे। जनतांत्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना और पददलितों के उत्थान के लिए ये जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे। इनके सबल नेतृत्व में कड़गम ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। ये जीवनपर्यंत दल के महासचिव बने रहे। दल पर अपने असाधारण प्रभाव के कारण ही ये दल की पृथक्तावादी नीतियों को राष्ट्रीय अखंडता के हित में रचनात्मक मोड़ देने में सफल रहे। सन् १९६२ में चीनी आक्रमण के समय श्री अन्नादुरै ने कड़गम से सदस्यों को राष्ट्रीय सुरक्षा में हर संभव योगदान करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये दल के अतिवादियों को शनैः शनैः सहिष्णुता के मार्ग पर ला रहे थे। प्रारंभ में कड़गम में उत्तर भारतीय एवं ब्राह्मणों का प्रवेश निषिद्ध था, पर अन्नाकी प्रेरणा से द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम के सिद्धांतों में विश्वास रखनेवालों के लिए दल की सदस्यता का द्वार खुल गया। संविधान की होली खेलने की योजना बनानेवालों के नेता ने तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करते समय संविधान में पूर्ण निष्ठा व्यक्त की। कड़गम के सत्तारूढ़ होने पर केंद्र से विरोध के संबंध में अनेक आशंकाएँ व्यक्त की गई थीं, पर श्री अन्नादुरै ने किसी प्रकार का संवैधानिक संकट नहीं उत्पन्न होने दिया। उनका हिंदीविरोध अवश्य चिंत्य था, लेकिन जिस प्रकार उनके दृष्टिकोण क्रमिक परिवर्तन आ रहा था और क्षेत्रीयता के संकुचित मोह का स्थान राष्ट्रीयता की भावना लेती जा रही थी, उससे यह अनुमान हो चला था कि भविष्य में उनका हिंदीद्रोह भी समाप्त हो जाएगा और तमिलनाडु के विद्यालयों में त्रिभाषा सिद्धांत के अनुसार हिंदी की पढ़ाई प्रारंभ हो जाएगी।
श्री अन्नादूरै राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में तमिल के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मद्रास राज्य का नामकरण तमिलनाडु करने का श्रेय भी इन्हीं को है। तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करने के पूर्व राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की थी। सन् १९६७ के महानिर्वाचन में तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की अभूतपूर्व सफलता ने अन्ना को अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित करने की प्रेरणा प्रदान की थी। यदि असमय ही ये कालकवलित न हो गए होते तो संभवतः भविष्य में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम का स्थान भारत मुन्नेत्र कड़गम ने ले लिया होता।
कैंसर के असाध्य रोग से पीड़ित अन्नादुरै की इहलीला ३ फ़रवरी १९६९ को समाप्त हो गई।
श्री अन्नादुरै प्रारंभ में द्रविड़ कड़गम के सदस्य थे, पर अपने राजनीतिक गुरु से असंतुष्ट होने के कारण इन्होंने सन् १९४९ में अपने सहयोगियों के साथ द्रविड़ कड़गम से संबंध विच्छेद कर लिया और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की स्थापना की। सन् १९५७ में विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के पश्चात् अन्नादुरै सक्रिय राजनीति में आए। इन्होंने द्रविड़ों के लिए पृथक् 'द्रविड़स्तान' का नारा दिया और प्रदेश से कांग्रेस शासन को समाप्त करने का व्रत लिया। द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम ने इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनेक आंदोलन किए। दस वर्ष पश्चात् राज्य की बागडोर अन्नदुरै के हाथ में आ गई। यद्यपि इनकी असामयिक मूत्यु ने इन्हें मुख्य मंत्री के रूप में दो वर्ष से भी कम अवधि तक प्रदेशवसियों की सेवा करने का ही अवसर दिया, तथापि यह अल्पावधि भी अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण रही है।
ये प्रतिभासंपन्न राजनेता, कुशल प्रशासक एवं सिद्धहस्त समाजशिल्पी थे। जनतांत्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना और पददलितों के उत्थान के लिए ये जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे। इनके सबल नेतृत्व में कड़गम ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। ये जीवनपर्यंत दल के महासचिव बने रहे। दल पर अपने असाधारण प्रभाव के कारण ही ये दल की पृथक्तावादी नीतियों को राष्ट्रीय अखंडता के हित में रचनात्मक मोड़ देने में सफल रहे। सन् १९६२ में चीनी आक्रमण के समय श्री अन्नादुरै ने कड़गम से सदस्यों को राष्ट्रीय सुरक्षा में हर संभव योगदान करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये दल के अतिवादियों को शनैः शनैः सहिष्णुता के मार्ग पर ला रहे थे। प्रारंभ में कड़गम में उत्तर भारतीय एवं ब्राह्मणों का प्रवेश निषिद्ध था, पर अन्नाकी प्रेरणा से द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम के सिद्धांतों में विश्वास रखनेवालों के लिए दल की सदस्यता का द्वार खुल गया। संविधान की होली खेलने की योजना बनानेवालों के नेता ने तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करते समय संविधान में पूर्ण निष्ठा व्यक्त की। कड़गम के सत्तारूढ़ होने पर केंद्र से विरोध के संबंध में अनेक आशंकाएँ व्यक्त की गई थीं, पर श्री अन्नादुरै ने किसी प्रकार का संवैधानिक संकट नहीं उत्पन्न होने दिया। उनका हिंदीविरोध अवश्य चिंत्य था, लेकिन जिस प्रकार उनके दृष्टिकोण क्रमिक परिवर्तन आ रहा था और क्षेत्रीयता के संकुचित मोह का स्थान राष्ट्रीयता की भावना लेती जा रही थी, उससे यह अनुमान हो चला था कि भविष्य में उनका हिंदीद्रोह भी समाप्त हो जाएगा और तमिलनाडु के विद्यालयों में त्रिभाषा सिद्धांत के अनुसार हिंदी की पढ़ाई प्रारंभ हो जाएगी।
श्री अन्नादूरै राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में तमिल के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मद्रास राज्य का नामकरण तमिलनाडु करने का श्रेय भी इन्हीं को है। तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करने के पूर्व राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की थी। सन् १९६७ के महानिर्वाचन में तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की अभूतपूर्व सफलता ने अन्ना को अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित करने की प्रेरणा प्रदान की थी। यदि असमय ही ये कालकवलित न हो गए होते तो संभवतः भविष्य में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम का स्थान भारत मुन्नेत्र कड़गम ने ले लिया होता।
कैंसर के असाध्य रोग से पीड़ित अन्नादुरै की इहलीला ३ फ़रवरी १९६९ को समाप्त हो गई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें