रविवार, 28 जुलाई 2013

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल- 16








........ .....मनमोहन और मोंटेक जैसा हो  
वाकई मानना पड़ेगा कि पिछले 60- 65 सालों में जो अचरच अचंभा चमत्कार और देश को आगे ले जाने की दुहाई देने वाले हमारे सर्वमान्य नेता नेहरू, लालबहादुर, इंदिरा गांधी राजीव गांधी या अटल बिहारी बाजपेयी ने जो कारनामा नहीं दिखाया , वहीं काम अपने मौनी बाबा ने खामोशी से केवल आठ नौ साल में ही कर दिया। इनके पास गुरू घंटाल मोंटेक सिंह अहलूवालिया नामक एक इंटरनेशनल योजना जादूगर है, फिर ये दोनों सतश्री अकाल की जोड़ी भी राजन इकबाल वाली है। गरीबी दूर करने का नारा बुलंद करते करते हमारे कई नेता दिवंगत हो गए, मगर गरीबी है कि कम होने का नाम नहीं ले रही। हमारे प्रात :स्मरणीय वंदनीय मनमोहन सिंह और योजना आयोग के सबसे बड़े जादूगर मोंटेक के साथ मिलकर गरीबी की इतनी अच्छी और शानदार मुहाबरा सामने रखा है कि एकाएक देश में 21 फीसदी गरीब सरकारी गरीबी रेखा से उपर आ गए। बीपीएल को भी शर्मसार करने में उस्ताद मोंटेक ने 33 रूपये और 27 रूपयो में गरीबी का इतना शानदार ककहरा सामने रखा है कि शायद यूपीए सरकार भी इस मुहाबरे को अपने चुनावी प्रचार में शामिल करना पसंद ना करे। मान गए उस्ताद की यदि मनमोहन मोंटेक एंड संस को खुली छूट दे दी जाए तो गरीबी दूर हो या ना हो यह तो पंजा जाने मगर गरीबों को बेइज्जत करने में द ग्रेट एमएमएस कोई कोर कसर छोड़ने वाले नहीं है।   
द ग्रेट एमएमएस का माजरा  .......
इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का कैरियर शानदार रहा है। तमाम देशी विदेशी संस्थानों में अपनी सेवाएं देने वाले अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मोंटेक का नाता जन्म जन्म का है। मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक में रहे हो  या वित मंत्रालय में हर जगह हर समय मोंटेक इनके साथ इनके बतौर मैनेजर की तरह शैड़ो बने रहते है। पूरी दुनियां में एमएमएस की जोड़ी मशहूर है। आमतौर पर माना जाता है कि मोंटेक की योजनाओं को मनमोहन दा अपनी जुबांन देते है। चंद दिनों के लिए यूजीसी में भी रहने वाले मनमोहन बिना मोंटेक अधूरे से लगे, क्योंकि वहां पर मोटेंक को खपाना आसान नहीं था। अब देखना है कि गरीबी रेखा की नयी परिभाषा के बाद एमएमएस की इस जोड़ी को लेकर यूपीए में अब कौन सा नया पावर गेम चालू होता है। वैसे मानना पड़ेगा कि इस एमएमएस ने देश के गरीबों को गरीबी की पीड़ा से मुक्त कराने की जितनी कोशिश की है, वह अकेले कांग्रेस से ब्लू स्टार ऑपरेशन का के इंतकाम को शांत करने के लिए काफी है।
और उल्टा पड़ रहा है मोदी विरोध  

जनता के बीच जाकर रैली करने निकालने या जनसभा करने में लाखों रूपये खर्च करने पड़ते है, इसके बावजूद उसका इम्पैक्ट क्या होता या रहता है, इसको लेकर तमाम नेतागण अंधेरे में ही रहते है। मगर जबसे खबरिया चैनलों की देश में धूम मची है तबसे सभी दलो के नेताओं के मजे हो गए है। सजसंवर के स्टुडियों में जाकर बैठ गए और दे दन दना दन दन एक दूसरे पर बोफोर्स से निशाना साधने लगते है। रोजाना रात को प्राइम टाईम पर नेताओं का वाक युद्ध होता है। खासकर जबसे गुजरात वाले नरेन्द्र मोदी का नेशनल अवतार हुआ है तबसे सभी चैनलों मे होने वाले इस महाभारत में मोदी ही छाए हुए है। विरोध करना है और गुजराती को वापस गांधीनगर भेजने या किसी लायक नहीं साबित करने की इस मुहिम में नेताओं ने तो चैनलों को इस तरह मोदीमय बना दिया कि आह मोदी वाह मोदी गाय मोदी चाय मोदी से लेकर किलर मोदी तो सुपर मोदी की छवि से मोदी को नवाजा गया. तमाम नेतागण समझ तो यह रहे थे कि मोदी को इस तरह ड्रैकूला साबित किया जाए कि जनता को मोदी से हेट होने लगे, मगर जनता के बीच आजमाए गए तमाम नेताओं का मोदी विलाप से जनता के बीच मोदी एक हीरो की तरह पेश हुए। ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि आखिर क्या बात है इस मोदी में कि लोग इकठ्टे हो गए है। विकास की बात करने वाले मोदी के सामने तमाम युवराजों की इमेज मलीन होती दिख रही है। देश के अपने महान नेताओं की दूरदर्शिता पर क्या आपको कोई शक है ?

चुनावी सर्वेक्षणों से नेता हैरान

एनडीए को मैदान से बाहर मानकर चल रहे ज्यादातर नेता मोदी की मुखियागिरी को चार दिन की चांदनी मान रहे थे। पीएम पोस्ट को हमेशा नकारने वाले युवराज बाबा भी भारी दबाव से इसबार पीएम के लिए राजी होकर कांग्रेसियों पर अहसान जता रहे थे। यानी यूपीए में चुनाव से पहले ही मामला खुशगवार बनता दिख रहा था। कि अचानक कई सर्वेक्षणों ने यूपीए के टेस्ट को खराब कर दिया है।  एक तरफ मोदी के अगुवाई में एनडीए को सबसे ज्यादा सीटे मिलने की उम्मीद से कईयों को यह बात पच नहीं रही है। वहीं दूसरी तरफ एनडीए एंड मोदी ग्रूप में उर्जा का संचार हुआ है।. वहीं एक और सर्वेक्षण में मोदी को मनमोहन और राहुल गांधी से ज्यादा लोकप्रिय बताया गया। बात मोदी तक भी रहती तो युवराज के लिए खास चिंता की बात नहीं थी, मगर हद तो तब हो गयी जब अपने मनमौनी मनमोहन सिंह को भी युवराज से ज्यादा लोकप्रिय बताया गया। यानी खिचड़ी दाढ़ी से इमेज बनने की बजाय और बिगड़ने लगे तो यह समझ लेना ही पड़ेगा कि बाबा की ट्रेन स्टेशन से खुलती जा रही है और....

.........और रायबरेली की प्रियंका
और ना ना ना ना ना करते करते अंतत :  सोनिया राजीव गांधी पुत्री प्रियंका गांधी अपने परिवार की परंपरा का आदर करते हुई देशहित में जनसेवा करने 2014 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली से चुनाव लड़ेगी। वे कांग्रेस सुप्रीमों और अपनी प्यारी मम्मी सोनिया गांधी की जगह पर मैदान में उतरेंगी। क्योंकि अपनी सेहत को लेकर सोगा अब जनसेवा नहीं कर पा रही है, लिहाजा जनसेवा का परम धर्म पुत्री प्रियंका बेबी को निभाना पड़ेगा। सोगा की खराब सेहत को देखते हुए यह सब पहले ही फिक्स हो गया था. जिसको पूरे इमोशनल नौटंकी के साथ जल्द ही रायबरेलियों से आंसू के साथ बेटी को साथ देने की सिपारिश सोगा करेंगी और प्रिगा वाड्रा मैडम देश हित के लिए परिवारवाद की नयी फसल की तरह लोगों पर अपना चुनावी ड्रामा करने के लिए अवतरित होंगी।

किराये की पहचान वाले मैंगों (मैन)  पीपल

प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में बतौर प्रत्याशी के नवीन स्वरूप में जाहिर है कि वे गरीबी विकास और लोगों को बेहतर जिंदगी दिलाने के लिए दिल खोलकर जुबानी प्रयास करंगी। एकदम खासमखास परिवार से होने के बाद भी सामान्य नागरिकों और आम जनता के बीच अपनी इमेज बनाने के लिए प्रिगा दम लगा देंगी, मगर बहुत लोंगों को शायद यह पत्ता नहीं है कि प्रिगा के मुरादाबादी पतिदेव को मैंगों मैन से हेट है। वे अपने साथ रहने वाले वाले लोगों से अक्सर सामान्य जनता को मैंगों मैन या मैंगो पीपल कहकर उपहास उड़ाते है। अब इस मैंगोमैन पीपल की बात करने वाले दामाद जी को कौन समझाए कि मैंगोमैन की भी तो एक अपनी पहचान है पर किराये के मकान की तरह किराये की पहचान ओढ़ने वाले इस मुरादाबादी मैंगो को कौन बताए कि अपनी बीबी से पहचाने जाने वाले मैगों के मुंह से मैंगों पीपल की यह बात तो मुरादाबादी ब्रास को भी रास नहीं आएगी। .

लालू का तंत्र मंत्र जंतर मंतर
रंगरूप और आकार प्रकार से लेकर रीति कुरीति अनीति की बात करने वाले अपने चरम काल में बिहार के भूत सीएम लालू प्रसाद यादव  अपने सुहावने काल में भगवानों से भी टक्कर लेने लगे थे। पूजा पाठ का मजाक या खिल्ली उड़ाने वाले लालू पर चारा की इतनी कृपा हुई कि वो बेचारा बनकर बेकार हो गए। हालांकि अपनी पत्नी को सीएम बनाकर सत्ता की राबड़ी खाने में मशगूल रहे लालू  अपने प्राणप्रिय परम मित्र मुलायम के स्टार से सुलगते रहे है। खासकर जब नेताजी का बेटा सीएम बन गया तब तो लालू भी खुद को परास्त महसूसने लगे। अपने बिगड़े हुए सितारों को लाईन पर लाने के लिए लालू ने अब धार्मिक चादर ओढ़ लिया है, और विध्यांचल के एक बाबा से जमकर डॉट खाने के बाद पीएम बनने का आर्शीवाद पाया..। यह प्रति फलित होगा या नहीं यह तो 2014 या इसके बाद ही पता चलेगा, मगर चारा से बेचारा बने लालू फिलहाल खुश है।
कंस मामा के श्रेणी में  बंसल मामा

आमतौर पर मामा को अपने भांजे बहुत प्रिय होते है, मगर मामाओं के भी दो प्रकार होते है। एक तो कंस मामा होते है, जो अपने भांजे को मारने के लिए पूरा दम लगा देते है, और दूसरे मामा शकुनी मामा की श्रेणी में आते है, जो अपने भांजे को राज काज दिलाने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देते है। 21वी सदी में बंसल मामा मे दोनो मामा के गुण है। एक तरफ तो वे शकुनी की तरह अपने भांजे को बचाना भी चाहते है, मगर अपनी जान और साख इमेजे के लिए भांजे की कुर्बानी देने के लिए भी राजी हो गए लग रहे है। मामा की हरी झंड़ी मिलने के बाद ही 90 लाख लेने वाले सिंगला को अपने बंसल मामा से क्या उम्मीद है इसका राज केवल बंसल मामा ही जानते है।
एनसीआर यानी नो कनेक्शन रीजन
एनसीआर का दायरा पिछले 28 साल में बढते बढ़ते भरतपुर से लेकर हरियाणा के ज्यादातर शहरों को भी अपने जद में ले लिया है। एनसीआर का मतलब होता है नेशनल कैपिटल रीजन ( राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ) जिसे दिल्ली इतना ही बेहतर और विकसित करने का टारगेट है। सरकारी आकंड़ो में तो एनसीआर  का फैलता दायरा सुकून देता है  एनसीआर का एक नया अर्थ यह भी माने तो नो कनेक्शन रीजन भी कहा जाता है। दिल्ली से 50 किलोमीटर दूर तक तो लोग बसने के लिए तो सोचते नहीं है,। वहां पर 150 किलोमीटर दूर जाकर रहते हुए दिल्ली में रहने का भ्रम पालना तो कोई नेता ही देख और कर सकता है। गुड़गांव के पड़ोस में मेवात इलाके को नॉर्थ इंडिया को कालाहांड़ी कहा जाता है। यानी एनसीआर बनने के बाद भी इलाके में सबकुछ पहले जैसा ही हाल है, तो लोगों को एनसीआर का दायरा फैलाना क्या कोई दॉव सा नहीं लगता ?

आप के साथ हम आपके है कौन

आप बनाकर और रामदेव अन्ना से पंगा लेकर दिल्ली की सीएम को बेदखल करने का सपना देख रहे एके 47 नुमा अरविंद केजरीवाल को चुनाव से पहले ही पसीने छूटने लगे है। दिल्ली के ज्यादातर ऑटो रिक्शा के पीछे शीला के खिलाफ पोस्टर लगाकर सत्ता से बेदखल करने और सती में आने का सपना देख रहे है। अपने मुंगेरीलाल के सपने में पहला कील अन्ना चुभो रहे है। एके को आप भंग करने की सलाह दे रहे है। वहीं आप के कई भावी उम्मीदवार सत्याग्रह पर उतारू होकर बगावती लहजा दिखा रहे है।आप में बाप बनने वाले कार्यकर्तीओं से निपटना क्या इतना आसान है ?

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