रविवार, 20 मार्च 2016

आसमान की छतपर बसा है गांव किब्बर


इस गांव में रात गुजारी तो जिंदगी भर रखेंगे याद

गुरुवार, 17 मार्च 2016

पिता के बचाव में, खुशवंत सिंह की बेशर्मी



मेरे पिता ने तो सिर्फ भगत सिंह की शिनाख्त की थी। उसे फांसी हो गई तो इसमें उनका क्या कसूर…? : खुशवंत सिंह

भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले ‘ सर ‘ शोभा सिंह के नाम पर नई दिल्ली के विंडसर प्लेस का नामकरण करने की दिल्ली और केंद्र सरकार की कोशिशों के विरुद्ध मीडिया दरबार की मुहिम पर अभूतपूर्व रिस्पॉन्स मिल रहा है। देश भर से लोगों की प्रतिक्रियाएं न सिर्फ इस वेबसाइट पर बल्कि फेसबुक, ऑरकुट व गूगल प्लस पर भी बड़ी तादाद में आ रही हैं। हजारों लोग हर दिन इन लेखों के तथा उनपर हुई टिप्पणियों को पसंद कर रहे हैं और खुद ही इसे विभिन्न संचार माध्यमों पर प्रचारित कर रहे हैं।
खुशवंत सिंह और उनके पिता ‘ सर ‘ शोभा सिंह
जहां इस सीरीज़ के प्रकाशित होने से आम पाठक सर शोभा सिंह के लिए अपमानजनक टिप्पणियां कर रहा है, वहीं कई ऐसे भी हैं जो खुशवंत सिंह तथा उनके पिता को पाक-साफ ठहरा रहे हैं।
क्योंकि खुशवंत सिंह ने अपने कॉलम में यह दावा किया है कि नई दिल्ली सिख बिल्डरों को उनका कर्ज़ नहीं चुका रही है, इसलिए हमने कुछ नामचीन सिख हस्तियों से इस मसले पर बात की।
एमएस बिट्टा
कांग्रेस नेता मनिंदर जीत सिंह बिट्टा ने दिल्ली सरकार के इस कदम को बेहद अफसोस-जनक और गैर जरूरी करार दिया। उन्होंने मीडिया दरबार से बातचीत करते हुए कहा कि वे ऐसा हरगिज़ होने नहीं देंगे और सड़कों पर उतरकर इसका विरोध करेंगे। बिट्टा ने कहा कि विंडसर प्लेस से उन्हें खास लगाव है क्योंकि उसी चौराहे पर उनपर हमला हुआ था।
शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष व दिल्ली के निगम पार्षद जीतेंद्र सिंह शंटी ने भी सरकार के इस कदम का विरोध किया है। उन्होंने बताया कि
जितेन्द्र सिंह शंटी
जल्दी ही उनका सेवा दल विंडसर प्लेस और संसद पर धरना देने की तैयारी कर रहा है।
उधर कुछ हस्तियां ऐसी भी हैं जो इतिहास को सिरे से नकारने मं लगी हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटि के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना  ने
परमजीत सरना
कहा कि उन्होंने पूरा इतिहास खंगाल लिया है, लेकिन इस तथ्य में कोई दम नही मिला कि शोभा सिह ने भगत सिंह के खिलाफ गवाही दी थी। हालांकि उन्होंने मीडिया दरबार को यह भरोसा दिलाया कि जैसे ही उन्हें ठोस सुबूत मिल जाएंगे, वह भी इस मुहिम में खुल कर साथ देंगे। यह अलग बात है कि बार-बार संपर्क करने और इतिहास की किताबों के सदर्भ देने के बावजूद सरना ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया।
दिलचस्प बात यह है कि खुद खुशवंत सिंह ने  कुबूल किया है कि उनके पिता ने भगत सिंह के किलाफ गवाही दी थी। उन्होंने यह स्वीकारोक्ति 1997  में मचे ऐसे ही हंगामे के बाद अंग्रेजी पत्रिका आउटलुक की एक प्रशनोत्तरी में की थी। यह स्वीकारोक्ति 13 अक्तूबर सन् 1997 के  अंक में छपी थी। हिंदी पाठकों की सुविधा के लिए सवाल-जवाब का हिंदी अनुवाद भी साथ ही प्रकाशित किया जा रहा है:-
Did you know about the existence of records where your father deposed against Bhagat Singh?
(क्या आपको उन दस्तावेज़ों का पता था जिनके मुताबिक आपके पिता ने भगत सिंह के खिलाफ़ गवाही दी थी?)
Of course, I knew.It was an open trial.
(निस्संदेह, मुझे पता था। यह एक खुला मुकद्दमा था।)

Were you aware of these events as they unfolded?
(क्या जो बातें सामने आईं उनका आपको पता था ?)
All this was published openly in the papers.
(यह सबकुछ खुलेआम अखबारों में छप चुका था।)

खुशवंत के पिता की गवाही से फांसी हुई थी भगत सिंह की







शोभा सिंह का और कितना ‘कर्ज़’ रह गया है नई दिल्ली पर 



खुशवंत सिंह ने शोभा सिंह और उसके साथियों की तुलना पंज प्यारे से की
मशहूर स्तंभकार खुशवंत सिंह ने अपने साप्ताहिक कॉलम (विद मैलिस टूवार्ड्स वन एंड ऑल) के शीर्षक  में मांग की है  “ दिल्ली के निर्माताओं को उनका कर्ज़ वापस लौटाओ ” (Give the builders of New Delhi their due)। 10 जुलाई को हिंदुस्तान टाइम्स में छपे इस लेख के मुताबिक दिल्ली को बनाने में पांच सिख बिल्डरों का अहम योगदान था। खुशवंत सिंह ने तो उन पांचों की तुलना `पंज प्यारों’ (गुरु गोविंद सिंह के पांच शिष्यों) तक से कर डाली है जो कि एक अलग धार्मिक बहस का मुद्दा हो सकता है। अहम सवाल यह है कि आखिर और कितना ‘ कर्ज़ ’ वापस चाहिए एक देश के गद्दार को?
खुशवंत सिंह ने अपने लेख में बाकी चार बिल्डरों का जिक्र तो किया है, लेकिन यह नहीं बताया कि आखिर वो ऐसी क्या खास चीज थी जिसने उनके पिता को ‘ आधी दिल्ली का मालिक ’ बना डाला और दूसरे बिल्डरों का कोई अता-पता भी नहीं रहा। ऐसा क्या रहा कि सिर्फ शोभा सिंह को आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरह का फायदा मिला। इतना ही नहीं, उसके पूरे परिवार का बेड़ा पार कर दिया गया।
शोभा सिंह को अंग्रेजों ने ‘ सर ’ की उपाधि  दी थी। खुशवंत सिंह ने खुद भी लिखा है कि ब्रिटिश सरकार ने उनके पिता को न सिर्फ महत्वपूर्ण ठेके दिए बल्कि उनका नाम नॉर्थ ब्लॉक में लगे पत्थर पर भी खुदवाया था। इतना ही नहीं, खुशवंत सिंह के ससुर यानि शोभा सिंह के समधी पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (सीपीडब्ल्यूडी) का प्रमुख बनने का ‘ अवसर ’ प्राप्त हुआ था। कहते हैं ‘ सर ’ शोभा सिंह और उसके परिवार को दो रुपए प्रति वर्ग गज पर वह जमीन मिली थी जो कनॉट प्लेस के पास है और आज दस लाख रुपए वर्ग गज पर भी उपलब्ध नहीं है।
सरदार उज्जल सिंह
शोभा सिंह के छोटे भाई उज्जल सिंह, जो पहले से ही राजनीति में सक्रिय थे, को 1930-31 में लंदन में हुए प्रथम राउंड टेबल कांफ्रेंस और 1931 में ही हुए द्वितीय राउंड टेबल कांफ्रेंस में बतौर सिख प्रतिनिधि लंदन भी बुलाया गया। उज्जल सिंह को वाइसरॉय की कंज्युलेटिव कमेटि ऑफ रिफॉर्म में रख लिया गया था। हालांकि जब सिखों ने कम्युनल अवार्ड का विरोध किया तो उन्होंने इस कमेटि से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन फिर 1937 में उन्हें संसदीय सचिव बना दिया गया। 1945 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कनाडा में यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर कांफ्रेंस में प्रतिनिधि बना कर भेजा और जब 1946 में संविधान बनाने के लिए कॉन्सटीच्युएंट असेंबली बनी तो उसमें भी शोभा सिंह के इस भाई को शामिल कर लिया गया।
अंग्रेजों ने तो जो किया वह ‘ वफादारी ’ की कीमत थी, लेकिन आजादी के बाद भी कांग्रेस ने शोभा सिंह के परिवार पर भरपूर मेहरबानी बरपाई। उज्जल सिंह को न सिर्फ कांग्रेसी विधायक, मंत्री और सांसद बनाया गया बल्कि उन्हें वित्त आयोग का सदस्य और बाद में पंजाब तथा तमिलनाडु का राज्यपाल भी बनाया गया। अभी हाल ही में दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर मौजूद उनकी 18,000 वर्गफुट की एक कोठी की डील तय हुई तो उसकी कीमत 160 करोड़ आंकी गई थी।
खुशवंत सिंह का जीवन भी कम अमीरी में नहीं बीता। उन्होंने अपने पिता के बनाए मॉडर्न स्कूल और सेंट स्टीफेंस के बाद लंदन के किंग्स कॉलेज व इनर टेंपल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ाई की थी, जिसके बाद उन्होंने लाहौर में वकालत भी की, लेकिन आजादी के बाद दिल्ली आ गए और लेखन तथा पत्रकारिता शुरु कर दी। उन्होंने सरकारी पत्रिका ‘योजना’ का संपादन किया और फिर साप्ताहिक पत्रिका इलसट्रेटेड वीकली तथा नैश्नल हेराल्ड और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों के ‘सफल’ कहलाने वाले संपादक रहे। कहा जाता है कि खुशवंत सिंह ने अधिकतर उन्हीं अखबारों का संपादन किया जो कांग्रेस के करीबी माने जाते थे।
इसके बाद उन्होंने दर्ज़नों किताबें लिखीं जिन्हें कईयों ने सर आंखों पर बिठाया तो कईयों ने रद्दी की टोकरी के लायक समझा। हालांकि उन किताबों से भारी रॉयल्टी आती है, लेकिन खर्च करने के मामले में खुशवंत सिंह कंजूस ही माने जाते रहे हैं। उन्होंने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि पांच सितारा होटल ली मेरीडियन की मालकिन उनकी किताबों के लांच की पार्टी आयोजित करती हैं जिनके लिए उन्हें कोई खर्च नहीं करना पड़ता। अभी भी उनकी लेखनी के चाहने वालों की संख्या लाखों में है। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जिनका मानना है कि खुशवंत सिंह का लेखन तिकड़म भरा और भौंडा होता है।
उनके परिवार से जुड़े कई लोग देश की सेवा में फौज़ में भी रहे और सोसायटी के दूसरे क्षेत्रों में भी। संजय गांधी की करीबी मानी जाने वाली सोशलाइट रुखसाना सुलताना (फिल्म अभिनेत्री अमृता सिंह की मां) भी खुशवंत सिंह की रिश्तेदार थीं। कहा जाता है कि संजय गांधी की बदौलत ही खुशवंत सिंह राज्य सभा के सदस्य चुने गए थे। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि उनके खानदान को उम्मीद से बढ़ कर दौलत और ‘ शोहरत ’ मिली जो किस्मत और अक्लमंदी की मिली-जुली मिसाल है जो कम ही परिवारों को हासिल हुई। ऐसे में अगर खुशवंत सिंह किसी और ‘ कर्ज़  ’ की बात करते हैं तो भला किसको आश्चर्य नहीं होगा।

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मंगलवार, 15 मार्च 2016

न्यूज बैंक / भडास 4 मीडिया



शुक्रवार, 11 मार्च 2016

हाशिमपुरा की कथा व्यथा / विभूति नारायण राय






हाशिमपुरा - उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास का एक काला अध्याय




जीवन के कुछ अनुभव ऐसे होतें हैं जो जिन्दगी भर आपका पीछा नहीं छोडतें . एक दु:स्वप्न की तरह वे हमेशा आपके साथ चलतें हैं और कई बार तो कर्ज की तरह आपके सर पर सवार रहतें हैं. हाशिमपुरा भी मेरे लिये कुछ ऐसा ही अनुभव है. 22/23 मई सन 1987 की आधी रात दिल्ली गाजियाबाद सीमा पर मकनपुर गाँव से गुजरने वाली नहर की पटरी और किनारे उगे सरकण्डों के बीच टार्च की कमजोर रोशनी में खून से लथपथ धरती पर मृतकों के बीच किसी जीवित को तलाशना- सब कुछ मेरे स्मृति पटल पर किसी हॉरर फिल्म की तरह अंकित है.
उस रात द्स-साढे दस बजे हापुड से वापस लौटा था. साथ जिला मजिस्ट्रेट नसीम जैदी थे जिन्हें उनके बँगले पर उतारता हुआ मैं पुलिस अधीक्षक निवास पर पहुँचा. निवास के गेट पर जैसे ही कार की हेडलाइट्स पडी मुझे घबराया हुआ और उडी रंगत वाला चेहरा लिये सब इंसपेक्टर वी•बी•सिंह दिखायी दिया जो उस समय लिंक रोड थाने का इंचार्ज था. मेरा अनुभव बता रहा था कि उसके इलाके में कुछ गंभीर घटा है. मैंने ड्राइवर को कार रोकने का इशारा किया और नीचे उतर गया.
वी•बी•सिंह इतना घबराया हुआ था कि उसके लिये सुसंगत तरीके से कुछ भी बता पाना संभव नहीं लग रहा था. हकलाते हुये और असंबद्ध टुकडों में उसने जो कुछ मुझे बताया वह स्तब्ध कर देने के लिये काफी था. मेरी समझ में आ गया कि उसके थाना क्षेत्र में कहीं नहर के किनारे पी•ए•सी• ने कुछ मुसलमानों को मार दिया है. क्यों मारा? कितने लोगों को मारा ? कहाँ से लाकर मारा ? स्पष्ट नहीं था. कई बार उसे अपने तथ्यों को दुहराने के लिये कह कर मैंने पूरे घटनाक्रम को टुकडे-टुकडे जोडते हुये एक नैरेटिव तैयार करने की कोशिश की. जो चित्र बना उसके अनुसार वी•बी•सिंह थाने में अपने कार्यालय में बैठा हुआ था कि लगभग 9 बजे उसे मकनपुर की तरफ से फायरिंग की आवाज सुनायी दी. उसे और थाने में मौजूद दूसरे पुलिस कर्मियों को लगा कि गाँव में डकैती पड रही है. आज तो मकनपुर गाँव का नाम सिर्फ रेवेन्यू रिकार्ड्स में है . आज गगनचुम्बी आवासीय इमारतों, मॉल और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों वाले मकनपुर में 1987 में दूर-दूर तक बंजर जमीन पसरी हुयी थी. इसी बंजर जमीन के बीच की एक चक रोड पर वी•बी•सिंह की मोटर सायकिल दौडी. उसके पीछे थाने का एक दारोगा और एक अन्य सिपाही बैठे थे. वे चक रोड पर सौ गज भी नहीं पहुँचे थे कि सामने से तेज रफ्तार से एक ट्रक आता हुआ दिखायी दिया. अगर उन्होंने समय रहते हुये अपनी मोटर सायकिल चक रोड से नीचे न उतार दी होती तो ट्रक उन्हें कुचल देता. अपना संतुलन संभालते-संभालते जितना कुछ उन्होंने देखा उसके अनुसार ट्रक पीले रंग का था और उस पर पीछे 41 लिखा हुआ था, पिछली सीटों पर खाकी कपडे पहने कुछ लोग बैठे हुये दिखे.किसी पुलिस कर्मी के लिये यह समझना मुश्किल नहीं था कि पी•ए•सी• की 41 वीं बटालियन का ट्रक कुछ पी•ए•सी• कर्मियों को लेकर गुजरा था. पर इससे गुत्थी और उलझ गयी. इस समय मकनपुर गाँव में पी•ए•सी• का ट्रक क्यों आ रहा था ? गोलियों की आवाज के पीछे क्या रहस्य था ? वी•बी•सिंह ने मोटर सायकिल वापस चक रोड पर डाली और गाँव की तरफ बढा. मुश्किल से एक किलोमीटर दूर जो नजारा उसने और उसके साथियों ने देखा वह रोंगटे खडा कर देने वाला था मकनपुर गाँव की आबादी से पहले चक रोड एक नहर को काटती थी. नहर आगे जाकर दिल्ली की सीमा में प्रवेश कर जाती थी. जहाँ चक रोड और नहर एक दूसरे को काटते थे वहाँ पुलिया थी. पुलिया पर पहुँचते- पहुँचते वी•बी•सिंह के मोटर सायकिल की हेडलाइट जब नहर के किनारे उस सरकंडे की झाडियों पर पडी तो उन्हें गोलियों की आवाज का रहस्य समझ में आया. चारों तरफ खून के धब्बे बिखरे पडे थे. नहर की पटरी, झाडियों और पानी के अन्दर ताजा जख्मों वाले शव पडे थे. वी•बी•सिंह और उसके साथियों ने घटनास्थल का मुलाहिजा कर अन्दाज लगाने की कोशिश की कि वहाँ क्या हुआ होगा ? उनकी समझ में सिर्फ इतना आया कि वहाँ पडे शवों और रास्ते में दिखे पी•ए•सी• की ट्रक में कोई संबन्ध जरूर है. साथ के सिपाही को घटनास्थल पर निगरानी के लिये छोडते हुये वी•बी•सिंह अपने साथी दारोगा के साथ वापस मुख्य सडक की तरफ लौटा. थाने से थोडी गाजियाबाद-दिल्ली मार्ग पर पी•ए•सी• की 41वीं बटालियन का मुख्यालय था. दोनो सीधे वहीं पहुँचे. बटालियन का मुख्य द्वार बंद था .काफी देर बहस करने के बावजूद भी संतरी ने उन्हें अंदर जाने की इजाजत नहीं दी. तब वी•बी•सिंह ने जिला मुख्यालय आकर मुझे बताने का फैसला किया.जितना कुछ आगे टुकडों टुकडों में बयान किये गये वृतांत से मैं समझ सका उससे स्पष्ट हो ही गया था कि जो घटा है वह बहुत ही भयानक है और दूसरे दिन गाजियाबाद जल सकता था. पिछले कई हफ्तों से बगल के जिले मेरठ में सांप्रादायिक दंगे चल रहे थे और उसकी लपटें गाजियाबाद पहुँच रहीं थीं.मैंने सबसे पहले जिला मजिस्ट्रेट नसीम जैदी को फोन किया. वे सोने ही जा रहे थे. उन्हें जगने के लिये कह कर मैंने जिला मुख्यालय पर मौजूद अपने एडिशनल एस•पी•, कुछ डिप्टी व्स•पी• और मजिस्ट्रेटों को जगाया और तैयार होने के लिये कहा. अगले चालीस-पैंतालीस मिनटों में सात-आठ वाहनों में लदे-फंदे हम मकनपुर गाँव की तरफ लपके. नहर की पुलिया से थोडा पहले हमारी गाडियाँ खडीं हो गयीं. नहर के दूसरी तरफ थोडी दूर पर ही मकनपुर गाँव की आबादी थी लेकिन तब तक कोई गाँव वाला वहाँ नहीं पहुँचा था. लगता था कि दहशत ने उन्हें घरों में दुबकने को मजबूर कर दिया था. थाना लिंक रोड के कुछ पुलिस कर्मी जरूर वहाँ पहुँच गये थे. उनकी टार्चों की रोशनी के कमजोर वृत्त नहर के किनारे उगी घनी झाडियों पर पड रहे थे पर उअनसे साफ देख पाना मुश्किल था. मैंने गाडियों के ड्राइवरों से नहर की तरफ रुख करके अपने हेडलाइट्स ऑन करने के लिये कहा. लगभग सौ गज चौडा इलाका प्रकाश से नहा उठा. उस रोशनी में मैंने जो कुछ देखा वह वही दु;स्वप्न था जिसका जिक्र मैंने शुरु में किया है.
गाडियों की हेडलाइट्स की रोशनियाँ झाडियों से टकरा कर टूट टूट जा रहीं थीं इसलिये टार्चों का भी इस्तेमाल करना पड रहा था. झाडियों और नहरों के किनारे खून के थक्के अभी पूरी तरह से जमे नहीं थे , उनमें से खून रिस रहा था. पटरी पर बेतरतीबी से शव पडे थे- कुछ पूरे झाडियों में फंसे तो कुछ आधे तिहाई पानी में डूबे. शवों की गिनती करने या निकालने से ज्यादा जरूरी मुझे इस बात की पडताल करना लगा कि उनमें से कोई जीवित तो नहीं है. सबने अलग-अलग दिशाओं में टार्चों की रोशनियाँ फेंक फेंक कर अन्दाज लगाने की कोशिश की कि कोई जीवित है या नहीं. बीच बीच में हम हांक भी लगाते रहे कि यदि कोई जीवित हो तो उत्तर दे. हम दुश्मन नहीं दोस्त हैं. उसे अस्पताल ले जाएेंगे. पर कोई जवाब नहीं मिला. निराश होकर हममें से कुछ पुलिया पर बैठ गये.मैंने और जिलाधिकारी ने तय किया कि समय खोने से कोई लाभ नहीं है. हमें दूसरे दिन की रणनीति बनानी थी इसलिये जूनियर अधिकारियों को शवों को निकालने और जरूरी लिखा-पढी करने के लिये कह कर हम लिंक रोड थाने के लिये मुडे ही थे कि नहर की तरफ से खाँसने की आवाज सुनायी दी. सभी ठिठक कर रुक गये. मैं वापस नहर की तरफ लपका. फिर मौन छा गया. स्पष्ट था कि कोई जीवित था लेकिन उसे यकीन नहीं था कि जो लोग उसे तलाश रहें हैं वे मित्र हैं. हमने फिर आवाजें लगानी शुरू कीं, टार्च की रोशनी अलग-अलग शरीरों पर डालीं और अंत में हरकत करते हुये एक शरेर पर हमारी नजरें टिक गयीं. कोई दोनो हाथों से झाडियाँ पकडे आधा शरीर नहर में डुबोये इस तरह पडा था कि बिना ध्यान से देखे यह अन्दाज लगाना मुश्किल था कि वह जीवित है या मृत ! दहशत से बुरी तरह वह काँप रहा और काफी देर तक आश्वस्त करने के बाद यह विश्वास करने वाला कि हम उसे मारने नहीं बचाने वालें हैं, जो व्यक्ति अगले कुछ घंटे हमे इस लोमहर्षक घटना की जानकारी देने वाला था, उसका नाम बाबूदीन था.गोली उसे छूते हुये निकल गयी थी.भय से वह नि;श्चेष्ट होकर वह झाडियों में गिरा तो भाग दौड में उसके हत्यारों को यह जाँचने का मौका नहीं मिला कि वह जीवित है या मर गया. दम साधे वह आधा झाडियों और आधा पानी में पडा रहा और इस तरह मौत के मुँह से वापस लौट आया. उसे कोई खास चोट नहीं आयी थी और नहर से चलकर वह गाडियों तक आया. बीच में पुलिया पर बैठकर थोडी देर सुस्ताया भी. लगभग 21 वर्षों बाद जब हाशिमपुर पर एक किताब लिखने के लिये सामग्री इकट्ठी करते समय मेरी उससे मुलाकात हुयी जहाँ पी•ए•सी• उसे उठा कर ले गयी थी तो उसे याद था कि पुलिया पर बैठे उसे किसी सिपाही से माँग कर बीडी दी थी. बाबूदीन ने जो बताया उसके अनुसार उस दिन अपरान्ह तलाशियों के दौरान पी•ए•सी• के एक ट्रक पर बैठाकर चालीस पचास लोगों को ले जाएा गया तो उन्होंने समझा कि उन्हें गिरफ्तार कर किसी थाने या जेल ले जाएा जा रहा है. मकनपुर पहुँचने के लगभग पौन घण्टा पहले एक नहर पर ट्रक को मुख्य सडक से उतारकर नहर की पटरी पर कुछ दूर ले जाकर रोक दिया गया. पी•ए•सी• के जवान कूद कर नीचे उतर गये और उन्होंने ट्रक पर सवार लोगों को नीचे उतरने का आदेश दिया. अभी आधे लोग ही उतरे थे कि पी•ए•सी• वालों ने उनपर फायर करना शुरु कर दिया. गोलियाँ चलते ही ऊपर वाले गाडी में ही दुबक गये. बाबू दीन भी उनमें से एक था.बाहर उतरे लोगों का क्या हुआ वह सिर्फ अनुमान ही लगा सकता था. शायद फायरिंग की आवाज आस पास के गाँवों में पहुँची जिसके कारण आस पास से शोर सुनायी देने लगा और पी•ए•सी• वाले वापस ट्रक में चढ गये. ट्रक तेजी से बैक हुआ और वापस गाजियाबाद की तरफ भागा. यहाँ वह मकनपुर वाली नहर पर आया और एक बार फिर सबसे उतरने के लिये कहा गया. इस बार डर कर ऊपर दुबके लोगों ने उतरने से इंकार कर दिया तो उन्हें खींच खींच कर नीचे घसीटा गया. जो नीचे आ गये उन्हें पहले की तरह गोली मारकर नहर में फेंक दिया गया और जो डर कर ऊपर दुबके रहे उन्हें ऊपर ही गोली मारकर नीचे ढकेला गया. बाबूदीन जब यह विवरण बता रहा था तो हमने पहले घटनास्थल का अन्दाज लगाने की कोशिश की . किसी ने सुझाव दिया कि पहला घटनास्थल मेरठ से गाजियाबाद आते समय रास्ते में मुरादनगर थाने में पडने वाली नहर हो सकती है. मैंने लिंक रोड थाने के वायरलेस सेट से मुरादनगर थाने को कॉल किया तो स्पष्ट हुआ कि हमारा सोचना सही था. कुछ देर पहले ही मुरादनगर थाने को भी ऐसी ही स्थिति से गुजरना पडा था . वहाँ भी कई मृत शव नहर में पडे मिले थे और कुछ लोग जीवित थाने लाये गये थे.
इसके बाद की कथा एक लंबा और यातनादायक प्रतीक्षा का वृतांत है जिसमें भारतीय राज्य और अल्पसंख्यकों के रिश्ते, पुलिस का गैर पेशेवराना रवैया और घिसट घिसट कर चलने वाली उबाऊ न्यायिक प्रणाली जैसे मुद्दे जुडे हुयें हैं. मैंने 22 मई 1987 को जो मुकदमें गाजियाबाद के थाना लिंक रोड और मुरादनगर पर दर्ज कराये थे वे पिछले 21 वर्षों से विभिन्न बाधाओं से टकराते हुये अभी भी अदालत में चल रहें हैं और अपनी तार्किक परिणति की प्रतीक्षा कर रहें हैं

गुरुवार, 3 मार्च 2016

विकास / बालिका कल्याण / बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना



  • अवस्था संपादित करने के स्वीकृत

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना


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पृष्ठभूमि

0-6 साल वर्ग में 1000 लड़कों के बीच परिभाषित बाल लिंग अनुपात में प्रति लड़कियों की संख्या में गिरावट की प्रवृत्ति, 1961 से लगातार देखी जा रही है। 1991 के 945 संख्या के 2001 में 927 पहुँचने और 2011 में इस संख्या के 918 पहुँचने पर इसे खतरे में मानते हुए इसे सुधारने के प्रयास शुरु किये गये हैं। लिंग अनुपात में गिरावट सीधे तौर पर महिलाओं के समाज में स्थान की और इशारा करता है जोBBBP जन्म पूर्व लिंग भेदभाव और उसके चयन को लेकर किये जा रहे पक्षपात की बात करता है। चिकित्सीय सुविधाओं की सरल उपलब्धता और नवीन तकनीक जन्म पूर्व बच्चे के चयन को संभव बनाकर निम्न लिंग अनुपात घटाने में आलोचनात्मक रुप में सामने आई है।
महिलाओं एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल के रुप में समन्वित और अभिसरित प्रयासों के अंतर्गत बालिकाओं को संरक्षण और सशक्त करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP) की शुरुआत की गई है और जिसे लिंग अनुपात वाले 100 जिलों में प्रारंभ किया गया है।

समग्र लक्ष्य

बालिका का गुणगान करें और उसे शिक्षा ग्रहण के लिए सक्षम बनाएं।

जिलों की पहचान

सभी राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों को कवर 2011 की जनगणना के अनुसार निम्न बाल लिंग अनुपात के आधार पर प्रत्येक राज्य में कम से कम एक जिले के साथ 100 जिलों का एक पायलट जिले के रुप में चयन किया गया है और जिलों के चयन के लिए तीन मानदंड इस प्रकार हैं: -
  • राष्ट्रीय औसत से नीचे जिले (87 जिले/23 राज्य)
  • राष्ट्रीय औसत के बराबर गिरावट का रुख (8 जिले/8 राज्य)
  • राष्ट्रीय औसत से और लिंगानुपात की बढ़ती प्रवृत्ति वाले राज्यों के जिले
    (5 जिले/5 राज्यों का चुनाव जिन्होंने अपने लिंगानुपात के स्तर को बनाए रखे और जिनके अनुभव से सीख कर अन्य स्थानों पर दोहराया जा सकें।
द्वितीय चरण
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को 61 अतिरिक्त जिलों में (11 राज्य शामिल) विस्तारित कर दिया है। नए जिलों के बारे में जानने के लिए क्लिक करें।

उद्देश्य

  • पक्षपाती लिंग चुनाव की प्रक्रिया का उन्मूलन
  • बालिकाओं का अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना
  • बालिकाओं की शिक्षा सुनिश्चित करना

रणनीतियाँ

  • बालिका और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक आंदोलन और समान मूल्य को बढ़ावा देने के लिए जागरुकता अभियान का कार्यान्वय करना ।
  • इस मुद्दे को सार्वजनिक विमर्श का विषय बनाना और उसे संशोधित करने रहना सुशासन का पैमाना बनेगा।
    निम्न लिंगानुपात वाले जिलों की पहचान कर ध्यान देते हुए गहन और एकीकृत कार्रवाई करना।
  • सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए महत्वपूर्ण स्त्रोत के रुप में स्थानीय महिला संगठनों/युवाओं की सहभागिता लेते हुए पंचायती राज्य संस्थाओं स्थानीय निकायों और जमीनी स्तर पर जुड़े कार्यकर्ताओं को प्रेरित एवं प्रशिक्षित करते हुए सामाजिक परिवर्तन के प्रेरक की भूमिका में ढालना ।
  • जिला/ ब्लॉक/जमीनी स्तर पर अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-संस्थागत समायोजन को सक्षम करना ।

संघटक


बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ पर जनसंचार अभियान

देशव्यापी अभियान 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ शुरु करने के साथ यह कार्यक्रम प्रारंभ होगा जिसमें बालिका के जन्म को जश्न के रुप में मनाने के साथ उसे शिक्षा ग्रहण करने में सक्षम बनाया जाएगा। अभियान का उद्देश्य लड़कियों का जन्म,पोषण और शिक्षा बिना किसी भेदभाव के हो और समान अधिकारों के साथ वे देश की सशक्त नागरिक बनें।

राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के निम्न लिंगानुपात वाले 100 संकटग्रत जिलों में बहुक्षेत्रीय शुरुआत

महिलाओं एवं बाल विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के परामर्श से बहुक्षेत्रीय कार्यों को तैयार किया गया है। बहुक्षेत्रीय कार्यों का संज्ञान लेते हुए संदर्भित क्षेत्रों,राज्यों एवं जिलों में निम्न लिंगानुपात को सुधारने के लिए परिणामप्रेक्षित और संकेतकों को एक साथ उपयोग में लाया जाएगा।

परियोजना कार्यान्वयन



केंद्र स्तर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस योजना के बजटीय नियंत्रण और प्रशासन के लिए जिम्मेदार होगा। राज्य स्तर पर, सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग समग्र दिशा और योजना के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होंगे। प्रस्तावित योजना की संरचना को निम्नानुसार देखा जा सकता है:

राष्ट्रीय स्तर पर

महिला एवं बाल कल्याण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, विकलांगता मामलों से संबंधित विभाग और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, जेंडर विशेषज्ञों एवं सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों को मिलाकर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के लिए एक कार्य दल का गठन मार्गदर्शन,समर्थन प्रशिक्षण विषय सामग्री और राज्यों की योजना और निगरानी के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए किया गया है।

राज्य स्तर पर

राज्यस्तर पर बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के कार्यान्वयन में बेहतर समायोजन के लिए राज्यों को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण,शिक्षा,पंचायती राज्य / ग्रामीण विभागों के साथ राज्यस्तरीय प्राधिकरण एवं विकलांगता से संबंधित मामलों के प्रतिनिधियों को मिलाकर राज्य कार्यदल(एसटीएफ) का गठन किया जाएगा। संघ शासित क्षेत्रों में टास्क फोर्स प्रशासक, केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासन की अध्यक्षता में किया जाएगा। केंद्रशासित प्रदेशों के स्तर पर इसके अध्यक्ष उनके प्रशासन के प्रशासक होंगे।

जिला स्तर पर

जिलास्तर पर बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के कार्यक्रम के कार्यान्वयन,निगरानी और पर्यवेक्षण में बेहतर समायोजन के लिए जिला स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, पीसी और पीएनडीटी के लिए नियुक्त उचित प्राधिकरण शिक्षा,पंचायती राज्य/ग्रामीण विभागों के साथ जिला स्तरीय वैधानिक प्राधिकरण के प्रतिनिधियों का एवं विकलांगता से संबंधित मामलों के प्रतिनिधियों को मिलाकर जिला कार्यदल(डीटीएफ) का गठन किया जाएगा।

ब्लॉक स्तर पर

ब्लॉक स्तर पर कार्यक्रम के कार्यान्वयन,निगरानी और पर्यवेक्षण में सहायता प्रदान करने के लिए उप डिवीजनल मजिस्ट्रेट/उप संभागीय अधिकारी/खंड विकास अधिकारी की अध्यक्षता में एक ब्लॉक स्तर निगरानी समिति (यह संबंधित राज्य सरकारों द्वारा तय किया जा सकता है।) स्थापित की जाएगी ।

ग्राम पंचायत/वार्ड स्तर पर

स्वयं के न्यायिक क्षेत्र में आने वाली पंचायत समिति/वार्ड के लिए संदर्भित पंचायत समिति/वार्ड समिति(जैसा कि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा तय किया जा सकता है) कार्यान्वयन,निगरानी और पर्यवेक्षण के साथ सभी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होगी।

ग्राम स्तर पर

ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति ग्राम स्तर पर योजना के क्रियान्वयन और निगरानी के लिए सलाहकार और समर्थन देगी।

अनुसूचित शहरों/शहरी क्षेत्रों में


योजना को नगर निगमों के समग्र मार्गदर्शन और नेतृत्व के अंतर्गत लागू किया जाएगा।

सोशल मीडिया

बच्चे के गिरते लिंग अनुपात के मुद्दे पर प्रासंगिक वीडियो के साथ BBBP पर एक यूट्यूब चैनल शुरू किया गया है। जागरूकता पैदा करने के लिए और आसान उपयोग और प्रसार के लिए लगातार वीडियो अपलोड की गईं और इस मंच के माध्यम से उसे साझा भी किया जा रहा है। इसके साथ राष्ट्र को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से जोड़ने के लिए और लोगों की भागीदारी,समर्थन प्राप्त करने लिए MyGov पोर्टल से लोगों को इससे जोड़ा जा रहा है।

बजट


बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं अभियान के अंतर्गत 100 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया गया। 12 वीं योजना में देखभाल और बालिकाओं की सुरक्षा' 'ए मल्टी सेक्टर कार्ययोजना के अंतर्गत परिव्यय १०० करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे। अतिरिक्त संसाधन राष्ट्रीय व राज्य स्तर एवं कार्पोरेट स्तर पर सामाजिक दायित्व के माध्यम से जुटाए जा सकते हैं। योजना की अनुमानित लागत 200 करोड़ है जिसमें से 115 करोड़ रुपये (छह महीने के लिए) 2014-15 यानी चालू वर्ष के दौरान जारी किया जाना प्रस्तावित है।

निगरानी प्रणाली

एक निगरानी प्रणाली के अंतर्गत निगरानी लक्ष्य, परिणाम और प्रक्रिया संकेतकों के आधार पर योजना की प्रगति को राष्ट्रीय, राज्य, जिला, ब्लॉक और ग्राम स्तर ट्रैक किया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर पर, सचिव MWCD की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स एक नियमित आधार पर तिमाही प्रगति की निगरानी करेंगी। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक राज्य टास्क फोर्स प्रगति की निगरानी करेंगी। जिला स्तर पर जिला कलेक्टर (डीसी) और जिला स्तर के अधिकारियों के माध्यम से सभी विभागों की कार्रवाई का समन्वय करेगा।
स्त्रोत:बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,महिला और बाल कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार

3.04
प्रवल्लिका vvln Aug 08, 2015 09:26 AM
कुछ और चित्र लगाएं तो बेहतर होता. मेरी परियोजना कार्य के लिए मुझे बहुत उपयोगी लगी .इतनी अच्छी समाचार देने के लिए धन्यवाद .
राज वीर सिंह Aug 25, 2015 09:08 PM
बेटियाँ
बेटियाँ सत्कर्म की पहचान होती हैं, अरु पिता के सदन की शान होती हैं ll
सुख-शाँति स्वयं आती जहाँ रहतीं ये l लक्ष्मी भी वहीं बसती जहाँ कहतीं ये ll करुणा व स्नेह का प्रतिमान होती हैं l बेटियाँ सत्कर्म की पहचान होती हैं, अरु पिता के सदन की शान होती हैं ll
जहाँ जातीं स्नेह का संचार करती हैं l मात-पिता को असीमित प्यार करती हैं l दो घर सँवार माँ का स्वाभिमान होती हैं l बेटियाँ सत्कर्म की पहचान होती हैं, अरु पिता के सदन की शान होती हैं ll
शिक्षा व संस्कार का अधिकार इन्हें दो l हो सके जितना अधिकतम प्यार इन्हें दो l परिवार ही नहीं राष्ट्र का अभिमान होती हैं l बेटियाँ सत्कर्म की पहचान होती हैं, अरु पिता के सदन की शान होती हैं ll
कवि किंकर राज वीर सिंह डी ए वी गुआ झारखंड
XISS Aug 26, 2015 10:12 AM
राज वीर सिंह अपनी कविता साझा करने के लिए धन्यवाद , अपने बिलकुल सही फ़रमाया "बेटियाँ सत्कर्म की पहचान होती हैं, अरु पिता के सदन की शान होती हैं"
जीनियस इंफोर्मेशन कंप्यूटर सिस्टम सीकर सोशियल एंड वेलफेयर सोसाइटी Sep 28, 2015 02:47 PM
कार्यशालाओ की बजाय वार्ड, ग्राम, पंचायत तथा सामाजिक स्तर पर शिविर, बैठक आदि कर लोगों को समझकर जागरूक िकया जाये साथ ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में कार्य करने वाले व्यक्ति, संस्था आदि को पुरस्कृत करना चाहिए
XISS Sep 29, 2015 11:36 AM