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- हास्टल से महिला पत्रकार का सामान फेंका
- कोई है जो इस बेबस लड़की को बचा सकता है?
- आनंद की तरफ से भड़ास4मीडिया को 11111/-
- साथियों, दीपक को बचा लें
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- जरूरी सूचना... मदद चाहिए
- शिबली व विजय की तरफ से हजार-हजार रुपये
- विकीलिक्स और विकीपीडिया का मॉडल बनाम भड़ास4मीडिया की चिंता
- ऐसे फर्जी मेलों का जवाब न दें वरना फंस जाएंगे
- डेडीकेटेड सर्वर फाइनल, संकट खत्म
- भड़ास4मीडिया फिर फंसा संकट में
दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
मंगलवार, 15 मार्च 2016
न्यूज बैंक / भडास 4 मीडिया
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