बुधवार, 6 अप्रैल 2016

कानून की आँखें पर बंधी है अंग्रेजी की काली पट्टी






जज साहब.....!
खोलिए हिन्दुस्तानी कानून की वो आँखें जिनपर पर बंधी है अंग्रेजी की काली पट्टी
और देखिये हिंदी और भारतीय भाषाओँ की वह बेगुनाही जो सत्तर साल की आज़ादी के बाद भी आजतक कोई कोर्ट नहीं देख पा रही है. क्या सत्तर साल में किसी हिन्दुस्तानी कोर्ट के पास ऐसी ऑंखें नहीं रही है, जो हिंदी और भारतीय भाषाओँ की बेगुनाही को नहीं देख सकी और आज किसी कोर्ट के पास वो आँखें क्यों नहीं जो इन भाषाओं कीबेगुनाहाही को देख सकें ?
जज साहब ....!!
आप हिंदी और भारतीय भाषाओँ का आज तक कोई गुनाह तय किये बिना कैसे इतने दिनों से इन्हें कानून की अंधी कालकोठरी में डालें बैठे है ? क्या हिंदी और भारतीय भाषाओँ के नसीब में कानून के गलियरों की चौखट पर सिर पटक पटक कर खुदखुसी करना लिखा है ? ये मत भूलिए यदि ऐसा कभी हुआ तो हिंदी और भारतीय भाषाओँ के खून की कातिल हिंदुस्तान की अदालतें ही होंगी ?
जज साहब ....!!!
अगर अदालतें फैसला नहीं देकर न्याय ही कर रही है, तो बेगुनाही के बावजूद हिंदी और भारतीय भाषाएँ कानून के गलियारों में अछूत क्यों है ? बंद कीजिये न्याय और अन्याय का यह खेल अगर आपको देश कि आम जनता की भाषा में न्याय देना नहीं आता है ? तो तोड़ दीजिये इस अंधे कानून की वो कलम जो न जाने अब तक कितने अंग्रेजी नहीं जानने वालों को फांसी के तख्तें तक ले जा चुकी है ? कितने अंग्रेजी नहीं जानने वाले गरीब- लाचार लोगो के खून पसीने की कमाई से मोटी तनख्वाह लेकर भी ये अदालते अपनी आँखों पर अंग्रेजी की पट्टी बाँध कर उनके लिए उनकी अपनी देशी भाषा में न्याय नहीं कर पाती है ?
जज साहब ....!!!!
बोलिए क्या यह सही नहीं है कि आप अंग्रेजी में इस देश की हिंदी और भारतीय भाषी आम जनता के साथ वास्तव में न्याय नहीं कर पा रहे है ? जवाब दीजिये , बोलिए आप चुप क्यों है , सब आपका फैसला सुनना चाहते है, आप तो न्याय-मूर्ति है, आप न्याय-प्रिय है , आपकी तो न्याय-करुणा की नदियाँ न्यायालयों में बहती है, आपकी न्याय की तराजू तो सबके लिए बराबर तौलती है, फिर अंग्रेजी का पलड़ा भारी क्यों है ?
जज साहब .....!!!!!
क्या कानून असल में हिंदी और भारतीय भाषाओँ के लिए अँधा ही है ?
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