गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

मोदी और केजरीवाल के नाक के नीचे सुपर बाजार फिर बंद





विदेश नहीं अपने घर को भी संभालिए पीएम मोदीजी और सीएम केजरीवालजी



अनामी शरण बबल

मीडिया माईक और मास के सामने लंबी लंबी हांक लगाने में तो देश के पीएम नरेन्द्र भाई मोदी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कोई सानी नहीं है। मीडिया और मास को देखते ही दोनों नेताओं के मन के भीतर मुंगेरीलाल के हसीन सपने उछाल भरने लगती है। एक विदेश में जाकर इंडिया को अमरीका के बराबर खड़ा करने का ख्वाब पाल रहे हैं तो कॉमन मैन के बूते सता संभालते ही केजरी काम से ज्यादा केन्द्र , मोदी और एलजी नजीब जंग को कोसने गरियाने में लगे है। दोनों बातूनी नेताओं के ठीक नाक के नीचे देश का इकलौता मल्टीस्टेट कॉपरेटिवसोसाईटी के तहत संचालित सुपर बाजार फिर से दोबारा मर गया, मगर जनता के इन ठेकेदार नेताओं को भनक तक ना लगी।
भास्कर अखबारसमूह द्वारा सुपर बाजार का संचालन किया जा रहा था। मगर भास्कर समूह द्वारा अपने हाथ खड़े कर देने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने भास्कर को लंबित 124 करोड़ की रकम अदा करने के लिए इसकी संपतियों को बेचने की अनुमति दे दी है।
गौरतलब है कि 1965 में आरंभ किया गयाी था। यहदेश का इकलौता बाजारों की एक श्रृंखला थी,जिसके तहत 100 से ज्यादा दुकाने सहित दिल्ली के सभी बड़े अस्पतालों में मेडिकल दुकान थी। दिल्ली में पांच गोदाम सहित बाजार के अधीन काफी जमीन भी थी। 1995 तक यह बाजार अपने कारोबार के लाभांश से ही संचालित होता था। मगर इसके पत्तन की कहानी 1996 में प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी बाजपेयी में आरंभ हुई। जब खस्ताहाल बाजार की कुर्सी पर पंजाब के सुरजीत सिंह बरनाला के कहने पर एस एस धुरी को सुपर बाजार का अध्यक्ष और दिल्ली के सुरेन्द्र गांधी को उपाध्यक्ष बनाया गया। धुरी एंड कंपनी ने तो बाजार को लूटऔर सरकारी सामानों का कबाडा बना डाला। जब तक ये दोनों नेता यहां से विदा हुए तब तक तो सुपर बाजार घाटे से लस्त पस्त हो गया था। बाजार बंद और वेतन के लिए 2100 कर्मचारी धरना भूखहडतालके लिए सड़कतों पर उतर गयी थी। औरयहां के कर्मचारियों की बर्बादी का नजारा कवि से लेकर मौन पीएम देखते रहे। अलबत्ता अपनी दूसरी पारी में भी कांग्रेी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी बेशर्म बनी रही।
यहां के कर्मचारियों ने अपने पहल पर कई कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा। जिसमें भास्कर समूह भी था। बास्कर में कार्यरत अपने शिशिर सोनी के बराबर प्रेशर के बाद अंतत इस संवाददाता ने भी पहल की। और भास्कर के लिए रास्ता सीधा कराया। इससे पहले सहारा परिवार समूह के कई बड़े दिग्गजों से बात करके यह प्रयास भी किया कि सुपर बाजार को सहारा समूह ही अपने हाथओं मे ले ले। मगर परिवारवाद के इस स समूह के मुखिया तक बात को इनके सहकर्मियों ने नाना प्रकारेण तर्क के जरिे नहींजाने दी। और 30 हजार करोड़ से भी अधिक की परिसंपतियों वाले सुपरबाजार को कोई 200 करोड़ में भी खरीदना नहीं चाहा।
अंतत 2007 भास्कर समूह के साथ सुपर बाजार का सौदा पट गया मगर सुपर बाजार को चलाने से ज्यादा इसकी परिसंपतियों के कॉमर्शियल उपयोग पर इनका ध्यान रहा। दर्जनों दुकाने खोली तक नही, और लगभगद एक हजार कर्मचारियों को नाना प्रकार से अलग किया।और चौथा साल यानी 2012 आते आते एक ही झटके में समूह द्वारा समस्त कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। हालांकि समूह ने सुपर बाजार से अलग होने का प्रपत्र भी कोर्ट में डाल दी थी, मगर कोई पार्टी सामने नहीं आने के कारण मामला खिसकता रहा। और अंतत 124 करोड की मांग के साथ ही सुपर बाजारके दरवाजे को दोबारा बंद कर दिया गया। कोर्ट ने इसकी संपतियों को बेचने का भी आदेश देकर फाईल ही बंद कर दी। जिससे सुपर बाजार की अरबों की जमीन को कौडियों के भाव बेचने का दौर चलेगा, ताकि भास्कर को एक मुश्त रकम दी जा सके।
सुपर बाजार की तालेबंदी के खिलाफ आम आदमी के सीएम केजरीवाल आम आदमी के हित में सुपर बाजार को अपने अधीन ले सकते थे, मगर इनको भी समस्या के हल नहीं केवल मुद्दा चाहिए, ताकि केंद्र पर हमला कर सके। तो वहीं पीएम मोदी भी पहल करके बिट्रेन के टेस्ला सीरियल बाजार समूह की तरह विकसित एक डूबते सुपर बाजार को जनता के लिए फिर से खोल सकते थे। मगर मोदी जी को भी मुद्दा के निराकरण से ज्यादा घोषमा करना रास आता है। बुलेट ट्रेन चलाने से फुर्सत कहां कि वे देख सके कि रोजाना आठ हजार ट्रेने समय पर नहीं पहुंचती। विदेशी कारोबारियों को यहां लाना ही मकसद ना होकर यह तय करना होगा कि देशी ब्रांड़ो को बचाना भी देशभक्ति ही कही जाती है।

अब सुपर बाजार के किसमत के मारे सैकड़ो कर्मचारियों की कौन सुध लेगा जो सरकार और लाला की चोट से दर दर को भटक रहे है। सुपर बाजार को जीवित करने की पहल में अभी तक लगे जगदीश चौधरी ने कहा कि आजिज होकर सुप्रीम कोर्ट ने तो फाईल ही बंद करदी है, जिससे इसकी संभावनाओं पर पानी फिर सा गया है। बकौल चौधरी यह एक अजीब संयोग है कि जिस बीजेपी एनडीए शासन में इसकी पत्तनगाथा शुरू हुई थी उसी शासन में इसकी संभावनाएं भी लगभग मर गयी।

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