13.8.15
बीहड़ जो कि कभी खूंखार डकैतों के शरण स्थली के रुप में जाना जाता था आजकल वीरान सा है कल तक बीहड़ो में दस्यु सरगनाओं एवं दस्युसुंदरियों के शौतिया डाह के चलते जहां चूड़ियों की खनखनाहट और गोलियों की तड़तड़ाहट आम बात थी आज वहां सन्नाटा सा पसरा है । उ0 प्र0 एवं म0 प्र0 के ज्यादातर दस्यु गिरोहों के खात्में के चलते दस्युओं का खैाफ जो ग्रामीणों के सिर चढ़कर बोलता था अब नजर नही आता ! चंबल के निकट बसे ग्रामीण अब जब इन दस्युयों की चर्चा छेड़तें हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्थितियां चाहे जो भी रहीं हो किन्तु कई दस्यु ऐसे भी रहें हैं जिन्हें आज भी लोग डकैत नही बल्कि सम्मान से बागी कहना ज्यादा पसन्द करते हैं । कल तक गोलियों से बीहड़ थर्रा देने वाले यही डकैत अब वन बचाने की मुहिम में शामिल होने जा रहे हैं। यह डकैत अब लोगों को पर्यावरण बचाने का संदेश देंगे। इस मुहिम में चंबल के खूंखार डकैत रहे मोहर सिंह, मलखान सिंह, सरला यादव समेत दर्जनों पूर्व डकैत शामिल होंगे। चंबल की सबसे चर्चित दस्यु सुंदरियों में से एक सीमा परिहार भी इसमें हिस्सा लेंगी। इसके लिए तैयारियां भी जोरों पर चल रही हैं। सीमा परिहार ने बताया कि जंगल बहुत जरूरी हैं। तरक्की चाहे कितनी भी हो, लेकिन जीवन इन्हीं से है। वह 'पहले बसाया बीहड़, अब बचाएंगे बीहड़' का नारा देंगी।
दरअसल, जयपुर में पर्यावरण और वन इलाकों को बचाने के लिए एक जागरुकता कार्यक्रम होने जा रहा है। इसे श्री कल्पतरु संस्थान नामक स्वयंसेवी संस्था चलाने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता विष्णु लांबा आयोजित करा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए चंबल के पूर्व डकैतों से मिलने के लिए झांसी आए हैं। साथ ही उन्होंने औरैया, मध्य प्रदेश के मुरैना, भिंड और कुछ ऐसे ही कई इलाकों का दौरा भी किया है । विष्णु लांबा के मुताबिक, एमपी, राजस्थान और यूपी में 1970-80 के दशक में जो डकैत कभी बीहड़ में रहा करते थे, उनमें से कई अब आम-आदमी की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं। यह लोग जंगल बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। जंगल के भूगोल और हालात को यह अच्छी तरह से समझते हैं। जुलाई में होने वाले इस अभियान में करीब दो दर्ज़न से ज्यादा पूर्व डकैतों के हिस्सा लेने की संभावना है !
और तो और कभी चंबल की घाटियों में दहशत का पर्याय रहीं दस्यु सुंदरी सीमा परिहार भी इस कार्यक्रम में विशेष रूप से हिस्सा लेंगी। यूपी के औरैया जिले के दिबियापुर की रहने वाली 35 साल की सीमा परिहार ने बताया कि यह एक अच्छी मुहिम है और अब समाजसेवा ही हमारा ऐम भी है और पेड़-पौधे जीवन का अहम हिस्सा हैं। वो कहती हैं की मैंने काफी समय जंगल में ही बिताया है, लेकिन पेड़ पौधों की अहमियत मैं अच्छे से समझती भी हूँ वो कहती हैं की मौजूदा वक्त में तेजी से पेड़ काटे तो जा रहे हैं, लेकिन लगाए नहीं जा रहे हैं। उनकी इन बैटन से स्पष्ट है की सीमा परिहार अब सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर उभर रही हैं हाला की वो पिछले कुछ सालों से राजनीति से भी जुड़ी हैं। 13 साल की उम्र में हथियार उठाने वाली सीमा परिहार पर लगभग 70 हत्याओं और 150 से ज्यादा लोगों के अपहरण का आरोप था। साल 2003 में उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
बीहड़ों के आस पास बसे ग्रामीणों के मुताबिक चंबल घाटी के डाकुओं के भी अपने आदर्श और सिंद्धांत हुआ करते थे अमीरों को लूटना और गरीबों की मदद करना चंबलं के डाकुओं का शगल हुआ करता था। बहुत से गा्रमीणों का मानना है कि अन्याय और शोषण के खिलाफ विद्रोह करने वाले दस्यु भले ही पुलिस की फाइलों में “डाकू” के नाम से जाने जाते हों, लेकिन उनके नेक कामों से लोग उन्हें सम्मान से “बागी” ही मानते थे। बागी यानी अन्याय के खिलाफत बगावत करने वाला... मानसिंह और मलखान सिंह जैसे दस्यु सरगनाओं की गौरव गाथाएं और आदर्श की मिसाल यहां के लोग बड़ी ही दिलचस्पी से सुनाते है दस्यु मलखान सिंह जिसे कि चंबल के राजा के रुप में जाना जाता था के खिलाफ 113 मामले हत्या से जुड़े थे। उसने 1982 में आत्मसमर्पण कर दिया 2003 में वह मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी लड़ा।
दस्यु मोहर सिंह पर करीब115 मामले आरोपित थे जिनमें 71 हत्याये भी शामिल थी । दस्यु मान सिंह चंबल में एक अन्याय का बदला लेने के वास्ते उतरा था तथा उसे 11 साल के लिए जेल भी हुई थी किन्तु वह अपनी रिहाई के बाद बीहड़ों में पुनः कूद गया था । पुराने दस्यु सरगनाओं में चर्चित डकैत मोहर सिंह जिसने आत्मसमर्पण के बाद मेहानगांव नगर पंचायत के अध्यक्ष के रूप में जनसेवा भी की यद्पि मोहर सिंह की भांति कई पूर्व के डकैतों ने राजनीति में प्रवेश किया डकैत तहसीलदार सिंह को एक राष्ट्रीय पार्टी ने अपना प्रत्यासी भी बनाया यह बात दीगर है कि वे चुनाव नही जीत पाये । कई बार विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से इन डकैतों का उपयोग राजनीति में किया गया वैसे राजनीति मे आने वाले अधिकांश डकैतों ने आत्मसमर्पण ही किया था ! दस्यु सुंदरियों मे फूलन व सीमा परिहार ने भी आत्मसमर्पण के बाद राजनीति से नाता जोड़ा । आत्म समर्पण करने वाले दस्यु माखन सिंह का मानना रहा कि पुलिस व पटवारी हमेशा बहुत जालिम होते रहे जिनके जुल्म से पीडित लोग गरीबी के चलते अन्याय के शिकार होने पर मजबूरी में बीहड़ में कूदने को वाध्य हो जाते थे ! माखन सिंह जिन्होने डकैत चिडढा के साथ चम्बल में एक घातक जोड़ी बनाई 1972 में 511 डकैतों के साथ जयप्रकाश नारायण के समक्ष आत्मसमर्पण किया।
उस समय मुरैना जिले में करीब 15,524 बंदूक के लाइसेंस थे जब कि अवैध बंदूकों की संख्या भी तकरीबन इतनी ही होने का अनुमान था । आलम यह था कि पैरों में फटहा जूते पहने पैदल जा रहे है पुरानी साइकिल की सवारी नहीं है किन्तु कंधों पर असलहे को लटकाये हैं। हाला कि इस तरह के नजारे केवल भिण्ड मुरैना तक ही नही बल्कि बांदा चित्रकूट में भी अक्सर देखने को मिलते रहे है यहां भी खेंतों की ओर जाते किसान के कंधे पर बंदूक होना आम बात रही है भले उसके पास रहने को छत न हो मात्र झोपड़ी मे ही क्यों न बसर कर रहा हो। वैसे निर्भय ददुआ और ठेाकिया के पुलिस मुटभेड़ मे मारे जाने के बाद विशेष रूप से उभर कर सामने आए राजा खान उर्फ ओम प्रकाश और उसके साथी राहुल तिवारी उर्फ गुरु को भी 16 मई 2010 को चित्रकूट जिले के जंगलों में स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा मुठभेड़ में मौत के घाट उतारा जा चुका है बताया जाता है कि राजा खान ददुआ गिरोह के सदस्यों द्वारा अपने चचेरे भाई के अपमान का बदला लेने की भावना से बीहड़ों में उतरा था वह पहले गौरी यादव गिरोह का सक्रिय सदस्य बना बाद में उसने अपना गैंग बना लिया था। वैसे अब बीहड़ों में गिरोह न के बराबर ही बचे हैं, जो कि पुलिस रिकार्ड में भिन्न - भिन्न श्रेणियों में सूचीबद्ध हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक जो गिरोह कम से कम तीन जिलों में संचालित होता है वो वर्ग डी में सूचीबद्ध कर लिया जाता है ।
डकैत मान सिंह जो कि 11 साल जेल में गुजारने के बाद दोबारा बीहड़ों में कूदा था उसका अन्त 1955 में हुआ उसे लम्बे समय तक बीहड़ आपरेशन करने के बाद गोरखा पुलिस ने मार गिराया था । राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाले कुख्यात डकैत मान सिंह ने गरीबी और जमीनी बटवारे व भेदभाव के कारण अपराध का रास्ता अपनाया था । 1939 और 1955 के बीच मान सिंह पर करीब 1112 डकैती और (32 पुलिस अधिकारियों की हत्या सहित) 185 हत्याओं का श्रेय था । दस्यु माखन सिंह भी चम्बल में के दुर्दान्त दस्युयों में से थे कुछ बुजुर्ग बताते है कि चंबल के पुरानी पीढ़ी के डाकू महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे पहले के डाकू डकैती के समय महिलाओं को हाथ नहीं लगाते थे यहां तक कि महिलाओं का मंगलसूत्र डाकू कभी नहीं लूटते थे अगर डकैती वाले घर में बहन- बेटी आकर रुकी है तो इज्जत पर हाथ डालने की बात तो दूर डाकू उनके गहनों तक को हाथ नहीं लगाया करते थे। पहली और दूसरी पीढ़ी के डाकू इस सिद्धांत और आदर्श को लगभग पूरी तरह से मानते थे तब गिरोह में किसी महिला सदस्य का प्रवेश वर्जित था लेकिन तीसरी पीढ़ी के डाकुओं ने अपने आदर्श बदल लिए चंबल के बीहड़ों में लंबे समय तक कार्यरत रहे एक पूर्व पुलिस अधिकारी के मुताबिक “तीसरी पीढ़ी के डाकूओं ने न केवल महिलाओं पर बुरी नजर डालनी शुरु की, बल्कि उन्हें अपह्रृत कर बीहड़ में भी लाने लगे।
अस्सी और नब्बे के दशक में जितनी महिला डकैत हुई, उनमें से ज्यादातर का डाकू गिरोहों के सरदारों द्वारा अपहरण कर लाई गई थीं। ”चंबल घाटी के इतिहास में पुतलीबाई का नाम पहली महिला डकैत के रूप में दर्ज है बीहडों में पुतलीबाई का नाम एक बहादुर और आदर्शवादी महिला डकैत के रूप में सम्मानपूर्वक आज भी लिया जाता है। बताया जाता है कि गरीब मुसलिम परिवार में जन्मी गौहरबानों उर्फ़ पुतली बाई को परिवार का पेट पालने के लिए नृत्यांगना बनना पड़ा था इस पेशे ने उसे –पुतलीबाइ का नया नाम दिया था । बताया जाता है कि शादी-ब्याह और खुशी के मौकों पर नाचने-गाने वाली खूबसूरत पुतलीबाई पर सुल्ताना डाकू की नजर पड़ी और वह उसे जबरन गिरोह के मनोरंजन के लिए नृत्य करने के लिए अपने पास बुलाने लगा । डाकू सुल्ताना का पुतलीबाई से मेलजोल धीरे - धीरे बढ़ता गया और दोनों में प्रेम हो गया। इसके बाद पुतलीबाई अपना घर बार छोड़ कर सुल्ताना के साथ बीहड़ों में रहने लगी ” पुलिस इनकाउंटर में सुल्ताना के मारे जाने के बाद पुतलाबाई गिरोह की सरदार बनी और 1950 से 1956 तक बीहड़ों में उसका जबरदस्त आतंक रहा। पुतलीबाई पहली ऐसी महिला डकैत थी, जिसने गिरोह के सरदार के रूप में सबसे ज्यादा पुलिस से मुठभेड़ की थी ।
बताया जाता है कि एक पुलिस मुठभेड़ में गोली लगने से पुतलीबाई को अपना एक हाथ भी गवाना पड़ा था बावजूद इसके उसकी गोली चलाने की तीव्रता में कोई कमी नहीं आई छोटे कद की दुबली-पतली फुर्तीली पुतलीबाई एक हाथ से ही राइफल चला कर दुश्मनों के दांत खट्टे कर देती थी। सुल्ताना की मौत के बाद गिरोह के कई सदस्यों ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन सुल्ताना के प्रेम में दिवानी पुतलीबाई ने सबको इनकार कर काटों की राह चुनी, बताते है कि कभी चंबल के बीहड़ों में आतंक के पर्याय रह चुके पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह पुतलीबाई के साहस और सुल्ताना के प्रति समर्पण भावना की प्रशंसा करने में हमेशा आगे रहे हैं । पुतलीबाई के साहस की मिसाल देते हुए मलखान सिंह दो टूक कहते कि “वह ‘मर्द’ थी और मुठभेड़ में जमकर पुलिस का मुकाबला करती थी। सूत्रों के मुताबिक बीहड़ में अपनी निडरता और साहस के लिए जानी जाने वाली डाकू पुतलीबाई 23 जनवरी, 1956 को शिवपुरी के जंगलों में पुलिस द्वारा इनकांउटर में मार दी गई थी।
पुतलीबाई के बाद फूलनदेबी व कुसमा नाइन को कुख्यात एवं खूंखार दस्यु सुंदरियों के रूप में जाना जाता है । 90 के दशक में चंबल के बीहड़ों में फूलन और कुसमा ने अपने आतंक का डंका बजा रखा था। विक्रम मल्लाह के साथ फूलन और बीहड़ के गुरु कहे जाने वाले दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ के साथ कुसमा थी । विक्रम मल्लाह का साथ फूलन ने और फक्कड़ का साथ कुसमा ने आखिर तक नहीं छोड़ा। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव की रहने वाली कुसमा को विक्रम मल्लाह गिरोह का माधो सिंह गाव से उठा कर अपने साथ बीहड़ में ले गया था। यह बात 1978 की है बाद में गिरोह बंटने पर कुसमा नाइन कुछ दिनों लालाराम गिरोह में भी रही किन्तु सीमा परिहार से लालाराम के निकटता के चलते वह राम आसरे उर्फ फक्कड़ के साथ जुड़ गई और करीब दस साल से ज्यादा फक्कड के साथ बीहड़ों में बिताने के बाद 8 जून, 2004 को भिंड में मध्य प्रदेश पुलिस के सामने उसने आत्म समर्पण कर दिया । कुसमा फक्कड़ को इस कदर प्रेम करती थी कि जब 2003 में फक्कड़ बुरी तरह बीमार था और बंदूक उठाने में असमर्थ था, तब कुसमा न केवल उसकी सेवा करती थी, बल्कि साए की तरह हमेशा उसके साथ रहती थी. इस दौरान कई मुठभेड़ में वह फक्कड को पुलिस से बचाकर भी कई बार सुरक्षित स्थान पर ले गई। कुसमा फक्कड को लेकर जितनी कोमल थी, दुश्मनों के लिए उतनी ही निर्दयी और बर्बर,दस्यु फूलन देवी के द्वारा 14 फरवरी 1981 को किये गये बेहमई कांड जिसमे कि फूलन ने एक साथ करीब 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा कर मौत के घाट उतार दिया था जिसका बदला कुसमा ने 23 मई को उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के मईअस्ता गांव के 13 मल्लाहों को एक लाइन में खड़ा कर फूलन की तर्ज पर ही गोलियों से भून कर लिया था , इतना ही नहीं फक्कड गिरोह से गद्दारी करने वाले संतोष और राजबहादुर की चाकूं से आंखे निकाल कर कुसमा ने ‘प्रेम’ के साथ-साथ ‘बर्बरता’ की भी मिसाल पेश की ।
1976 से 1983 तक चंबल में फूलन ने राज किया और चर्चित बेहमई कांड के बाद उसने 12 फरवरी, 1983 को मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की उपस्थिती में करीब 10 हजार जनता व 300 से अधिक पुलिस कर्मियों के सामने आत्मसमर्पण करने वाली फूलन ने पांच मागें प्रमुखता से सरकार के सामने रखीं थी जिसमें अपने भाई को सरकारी नौकरी व पिता को आवासीय प्लाट तथा मृत्यु दण्ड न होना और 8 साल से अधिक जेल न होना प्रमुख थीं. बाद में वह 1994 में पैरोल पर आयी तथा एकलब्य सेना का गठन किया महात्मांगांधी व दुर्गा को आदर्श व पूज्य मानने वाली फूलन ने राजनीति में रुचि ली और सांसद भी बनीं. लेकिन 25 जुलाई, 2001 को दिल्ली के सरकारी निवास पर उनकी हत्या कर दी गई. सीमा परिहार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। हालां कि फूलन की तर्ज पर चलने वाली सीमा परिहार भी दस्यु सुंदरी के रूप में बीहड़ों में काफी चर्चित रहीं। दस्यु सरगना लालाराम सीमा परिहार को उठा कर बीहड़ लाया था बाद में लालाराम ने गिरोह के एक सदस्य निर्भय गूजर से सीमा की शादी करवा दी लेकिन दोनों जल्दी ही अलग हो गए।
सीमा परिहार का लालाराम से प्रेम हो गया था कहा यह जाता है की उसने लालाराम से शादी कर ली थी तथा उसके एक बेटा भी है । 18 मई, 2000 को कानपुर देहात में पुलिस मुठभेंड में लालाराम के मारे जाने के बाद 30 नवंबर, 2000 को सीमा परिहार ने भी आत्मसमर्पण कर दिया फिलहाल वह जमानत पर रिहा हैं और औरैया में रहते हुए राजनीति में भी सक्रिय हैं सीमा परिहार फूलनदेवी के ही चुनाव क्षेत्र मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं तथा अपनी कहानी की एक फिल्म में भी वे अपना किरदार निभा चुकीं है यही नहीं पिछले दिनों वे बिग बास में भी अपना जौहर प्रदर्शित करते हुए देखी गईं थीं । इसके अलावा रज्जन गूजर के साथ रही लबली पांडेय जो कि उत्तर प्रदेश की इटावा के भरेह गांव की रहने वाली थी काफी चर्चित हुई दस्यु सुदंरी लवली के आतंक से कभी बीहड़ थर्राता था। सूत्र बतातें है कि 1992 में ही लबली की शादी हो गई थी लेकिन पति ने उसे तलाक दे दिया पिता की मौत और पति द्वारा ठुकराए जाने से आहत लवली की मुलाकात दस्यु सरगना रज्जन गूजर से हुई और दोनों में प्यार हो गया रज्जन से रिश्ते को लेकर लवली को गांव वालों के भला-बुरा कहने पर रज्जन ने भरेह के ही एक मंदिर में डाकुओं की मौजूदगी में लवली से शादी कर ली ! आतंक की पर्याय बनी 50 हजार की इनामी यह दस्यु सुंदरी 5, मार्च, 2000 को अपने प्रेमी रज्जन गूर्जर के साथ पुलिस मुठभेड़ में मारी गई।
इसी बीच दस्यु सुन्दरी नीलम गुप्ता सुर्खियों में आई नीलम और श्याम जाटव की कहानी बड़ी रोचक व अन्य दस्यु सुन्दरियों से काफी अलग थी, श्याम जाटव को दुर्दांत डाकू निर्भय गूजर ने अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था बताते चलें कि औरैया की रहने वाली नीलम गुप्ता का निर्भय ने 26 जनवरी, 2004 को अपहरण कर लिया था । महिलाओं के शौकीन निर्भय ने नीलम को अपना रखैल बना लिया लेकिन जवानी व अल्लड़पन मे खोई दस्यु सुन्दरी नीलम को बाबाओं की तरह दाढ़ी रखे निर्भय पसन्द नही आये और उसने निर्भय के दत्तक पुत्र से ही आखे दो चार करना शुरु कर दिया अन्ततोगत्वा नीलम और श्याम जाटव का प्यार ऐसा परवान चढा कि दोनों ने निर्भय के खौफ को दरकिनार कर शादी कर ली बाद में निर्भय ने दोनों की हत्या के काफी प्रयास भी किए निर्भय से बचने के लिए दोनों ने उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया जब कि निर्भय भी पुलिस मुटभेड में मारा गया था । बताते चलें कि दस्यु निर्भय गुज्जर लगभग 239 गंभीर अपराधों के लिए प्रतिबद्ध था हत्याए, अपहरण ,जबरन वसूली ,सशस्त्र डकैती के सैकड़ो वारदातों को वह अंजाम दे चुका था इसी तरह एस टी एफ द्वारा दस्यु ददुआ दस्यु ठोकिया को मुटभेड़ में मार गिराया गया था!
इन सबके अलावा सलीम गूजर-सुरेखा,चंदन यादव-रेनू यादव, मानसिंह-भालो तिवारी, सरनाम सिंह- प्रभा कटियार, तिलक सिंह-शीला, जयसिंह गूर्जर-सुनीता बाथम , बंसती पांडेय की जोड़ियां बीहड़ों में काफी चर्चित रही थी । इनमें से सीमा परिहार और सुरेखा तथा रेनू यादव ने तो अपने प्रेमियों के निशानी के रूप में बच्चे को भी जन्म दिया है।आज चंबल में न तो दस्यु सुदरियों की चूड़िया खनकती दिखतीं हैं और न ही अब गोलियों की तड़तड़ाहट ही सुनाई पड़ती है हाला की बीहड़ों के डकैतो में ज्यादातर डकैत मारे जा चुके है ऐसे में कभी बीहड़ों में गोलियों की तड़तडाहट करने वाले डकैतों द्वारा समाजसेवा की ओर बढ़ाये जा रहे इस कदम की सभी लोग सराहना कर रहें हैं !
रिज़वान चंचल बाराबंकी के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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