दिल्ली
का प्रथम शहर लाल कोट, जिसे किला राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है,
का निर्माण दिल्ली के तत्कालीन शासक अनंगपाल तोमर और पृथ्वीराज चौहान ने
कराया था। पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के अन्तिम हिन्दू शासक (1178 से 1192 ई.)
थे। मुहम्मद शहाबुद्दीन गोरी द्वारा इनकी हत्या के बाद दिल्ली सल्तनत पर
गुलाम वंश का शासन प्रारम्भ हुआ। इस ऐतिहासिक किले के भग्नावशेष तकरीबन ढाई
वर्ग किलोमीटर में दिल्ली में महरौली के पास सैदूलाजब नामक स्थान पर फैले
हुए हैं। यह वही किला है जहां पृथ्वीराज और कन्नौज
नरेश जयचंद की पुत्री संयोगिता का प्रणय मिलन हुआ था। संयोगिता से विवाह
कर एक तरफ पृथ्वीराज संयोगिता के अप्रतिम सौंदर्य में सालोंसाल तक इस किले
में मदहोश भोगविलास में डूबे रहे, तो दूसरी तरफ देश की तकदीर अन्दर ही
अन्दर करवट ले रही थी। यह किला गवाह है दिल्ली के उस इतिहास का, जब यहां
मुस्लिम शासन की नींव पड़ी।
दिल्ली में लाल किला और पुराना किला को तो सभी जानते हैं, लेकिन इस किले के बारे में वहां आसपास रहने वालों को भी नहीं मालूम है। मैने कई टैक्सी वालों और आटोवालों से उस इलाके में किला राय पिथौरा का रास्ता पूछा तो उन्हें इसका रास्ता तो दूर नाम तक पता न था। पास में रहने वाले एक बुजुर्ग सज्जन ने तो यह कह दिया कि इस नाम का किला जयपुर में है ! देश भर में तो वैसे बहुत से किले हैं और उन्हें सरकार ने सहेज कर पर्यटक स्थल के रूप में कमाई का जरिया बना लिया है। लेकिन दिल्ली के इस प्रथम किले की उपेक्षा समझ से परे है - संजय सिंह
दिल्ली में लाल किला और पुराना किला को तो सभी जानते हैं, लेकिन इस किले के बारे में वहां आसपास रहने वालों को भी नहीं मालूम है। मैने कई टैक्सी वालों और आटोवालों से उस इलाके में किला राय पिथौरा का रास्ता पूछा तो उन्हें इसका रास्ता तो दूर नाम तक पता न था। पास में रहने वाले एक बुजुर्ग सज्जन ने तो यह कह दिया कि इस नाम का किला जयपुर में है ! देश भर में तो वैसे बहुत से किले हैं और उन्हें सरकार ने सहेज कर पर्यटक स्थल के रूप में कमाई का जरिया बना लिया है। लेकिन दिल्ली के इस प्रथम किले की उपेक्षा समझ से परे है - संजय सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें