रविवार, 22 अक्टूबर 2023

भारत यायावर बने रहेगें हमेशा प्रासंगिकता / विजय केसरी


(22 अक्टूबर,कवि भारत यायावर की  द्वितीय पुण्यतिथि पर  विशेष)


भारत यायावर की कविताएं सदा मुस्कुराती रहेंगी / विजय केसरी 


झारखंड के जाने माने साहित्यकार कवि, संपादक, आलोचक, समीक्षक भारत यायावर की कविताएं सदा समय से संवाद करती नजर आती है है । उनकी कविताएं  लोगों के बीच सदा मुस्कान  बिखेरती ही रहेंगी । भारत यायावर  सदैव लोगों को गले लगाते रहे थे।  आज  वे हमारे बीच नहीं हैं। । इसके बावजूद उनके मन से उपजी कविता की पंक्तियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैं। उनकी कविताएं मन में उठते सवालों का जवाब भी देती नजर आती हैं । उनकी कविताएं  पाठकों से वार्तालाप भी करती रहती हैं । उनकी कविता की पंक्तियों की यह खासियत है।  उनके मन की उपजी  कविताएं जितनी बार भी पढ़ी जाती हैं, हर बार एक नए अर्थ और रस के साथ उपस्थित हो जाती हैं। जब तक यायावर इस धरा पर रहें, सदा गतिशील रहें, सदा रचना रत रहें । साहित्य के अलावा उन्होंने इधर उधर बिल्कुल झांका नहीं। हिंदी साहित्य ही उनके जीवन का सब कुछ था । वे हिंदी साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया  बन गए थे । हिंदी साहित्य पर क्या कुछ लिखा जा रहा है ? उनके पास बिल्कुल ताजा जानकारी रहती थी ।  पूर्व के रचनाकारों ने हिंदी साहित्य को किस तरह समृद्ध किया है ? इस पर उनकी टिप्पणी सुनते बनती थी । उनकी बातों को सुनकर प्रतीत होता था कि उन्हें हिंदी साहित्य की कितनी जानकारी थी।  एक बार प्रख्यात कथाकार रतन वर्मा, कवि भारत यायावर के साथ फणीश्वर नाथ रेणु के गांव एक साहित्यिक कार्यक्रम में जा रहे थे। उन दोनों के बीच हिंदी साहित्य पर लंबी वार्ता हुई थी। इस वार्ता पर रतन वर्मा ने कहा कि 'भारत यायावर निश्चित तौर पर हिंदी के एक मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्हें हिंदी साहित्य की हर विधा की जानकारी थी।

कवि भारत यायावर की लगभग साठ पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी  कुछ महत्वपूर्ण पांडुलिपियां अभी भी  प्रकाशान के लिए तैयार हैं, जिन्हें  यायावर ने अपने जीवन काल में ही तैयार कर लिया था। उन्होंने जो कुछ भी रचा और संपादन किया । सभी महत्वपूर्ण कृतियां बन गई हैं । आज उनकी पुण्यतिथि पर  एक महत्वपूर्ण कृति  'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता संग्रह की विशेष रूप से चर्चा करना चाहता हूं। इस संग्रह में कुल उनहत्तर कविताएं दर्ज हैं।  सभी कविताएं विविध विषयों पर लिखी गई हैं। कविताओं के पाठन के उपरांत मैं यह विमर्श कर रहा था कि आखिर भारत यायावर ने इस संग्रह का नामकरण 'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' शीर्षक कविता को ही क्यों चुना ? इस संग्रह की कविताओं के पाठ से लगा कि उन्हें संपादन की भी बड़ी अच्छी समझ थी । इस संग्रह का नामकरण इससे बेहतर और कुछ हो भी नहीं सकता था।

'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता के माध्यम से कवि भारत यायावर ने दर्ज किया है।  टहनियां सूख जाएंगी/  अपना होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि टहनियां सुख जाएंगी । अपना होने का अर्थ मिट जाएगा। फिर भी कविता मुस्कुराएगी । अर्थात यह जीवन एक वृक्ष के समान है । समय के साथ एक वृक्ष का उदय होता है । समय के साथ वृक्ष पुष्पित और पल्लवित होता है और  अपना संपूर्ण आकार ग्रहण करता है । लेकिन एक न एक दिन उसकी टहनियां धीरे धीरे कर सूखती चली जाती है।  एक समय ऐसा आता है, जब वृक्ष का अस्तित्व मिट जाता है। लेकिन मनुष्य के जीवन के  वृक्ष से निकले उदगार और कर्म  कविता के रूप में फिर भी मुस्कुराते रहेंगे । भारत यायावर की पंक्तियां एक जीवन के समान हैं।  उनकी पंक्तियां चंद शब्दों के मिलान भर नहीं है, बल्कि मनुष्य का संपूर्ण जीवन है।  मनुष्य का जीवन अनंत काल से है। और अनंत काल तक बना रहेगा । कविता का जन्म ना मरने के लिए होता है । कविता की पंक्तियां कालजई होती हैं । कविता अमरता का वरदान लेकर ही पैदा होती हैं। कविता जब भी किसी पाठक के पास पहुंचती हैं। कविता पुनः गतिशील हो जाती हैं।  कविता गीता के श्लोकों की तरह सदा साक्षी भाव में रहती हैं।  कविता दुःख - सुख दोनों में सदा  मुस्कुराती रहती हैं। यही कविता की खूबसूरती है। कविता किसी राजनेता की आलोचना कर रही होती है, तब भी मुस्कुराती रही होती है। कविता जब किसी श्रमिक के बहते पसीने पर अपनी बात कह रही होती है, तब भी कविता मुस्कुराती रही होती है । कवि के लिए कविता एक जीवन के समान है। जीवन के समान निरंतर गतिमान बनी रहती है । जीवन का आना जाना लगा रहता है।  लेकिन कविता जीवन के आने जाने से मुक्त होकर  कवि के मन के  भावों को सदा सदा के लिए अमर बना देती हैं।


आगे पंक्तियां कहती हैं। कविता / मेरे धीरे-धीरे मरने का संगीत ही नहीं/ कविता/ सृष्टि को अकेले में / या भीड़ में भोगी / संवेदना का गीत ही नहीं /लोग /रेंगते/ घिसटते / थके - हारे लोग / कविता सिर्फ कविता। अर्थात कविता सिर्फ मेरे धीरे धीरे मरने का संगीत ही नहीं बल्कि मेरे जीवन के संघर्ष की सहचर भी हैं। लोग रेंगते हैं। लोग घिसटते हैं।  थक कर चूर हो जाते हैं । इन तमाम संघर्ष और परेशानियों के बीच मनुष्य रहकर भी  चलता ही रहता है । यह संघर्ष ही उसे गतिमान बनाता है। यह परेशानियां ही उसे जीने का एक नया अर्थ प्रदान करती हैं। मनुष्य के जीवन में संघर्ष ना हो।  परेशानियां ना हो।  तब यह जीवन किस काम का ? जीवन के संघर्ष और परेशानियां ही मनुष्य को  साधारण से असाधारण बनाता है । इसलिए मनुष्य को कविताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए।  कविता का जन्म किसी भी कालखंड में क्यों ना हुआ हो । जब भी उसे पढ़ा जाता है। कविता पूरी शिद्दत के साथ अपनी बातों को रखती हैं । कविता लोगों को  प्रेरणा देती हैं। फिर मनुष्य क्यों अपने संघर्ष और परेशानियों से घबराता है ? उसे कविता की तरह ही विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराने की जरूरत है।


मेरे अंदर / टूटती है शिलाएं रोज / फिर भी मैं गहरे अंधेरे में खो जाता हूं / रोशनी मेरी आंखों में / ढेर सारा धुआं उड़ने लगती है /लगातार जारी इस बहस से/ आजाद कब होओगे, भाई ! / इस विफल यात्रा की झूठ को ढोता थक गया हूं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बहुत ही महत्वपूर्ण बातों की ओर इशारा करते हुए कहना चाहते हैं कि हर रोज लोगों के अंदर नए-नए विचार उत्पन्न होते हैं । विचारों की शिलाएं रोज बनती हैं। टूटती हैं । और ना जाने ये विचार किस भंवर में समा जाती है ? जैसे लगता है कि आंखों के सामने सब कुछ दिख रहा है।लेकिन कुछ भी  दिख नहीं हो रहा है।  जैसे किसी ने ढेर सारा धुआं आंखों के सामने उड़ेल दिया हो।  जब से मनुष्य आया है।  तब से यह बहस जारी है कि मेरी यह यात्रा किस लिए है ? लेकिन अब तक किसी ने इस यात्रा  के रहस्य को समझा ही नहीं पाया।  मनुष्य अनंत काल से जन्म लेता चला रहा है।  शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य का जन्म अनंत काल तक होता रहेगा । मनुष्य एक राहगीर के समान है।  वह इस राह पर कब तक चलता रहेगा ? उसे मालूम ही नहीं । मनुष्य इस विफल यात्रा से मुक्ति चाहता है । आखिर इस विफल यात्रा के झूठ को मनुष्य कब तक ढोता चला जाएगा ? मनुष्य इस यात्रा से मुक्ति की नई राह को ढूंढता नजर आता है।  जिसकी तलाश ना जाने कितने महापुरुषों ने  की थीं । उन्हें इस विफल यात्रा से मुक्ति मिली अथवा नहीं ? ये भी बातें रहस्य बन कर रह गई हैं।


आगे पंक्तियां कहती हैं । आओ / हम अपने को नंगा कर / स्वतंत्र हो जाएं/ यातनाओं के बीच / हमारी अस्मिता का सुंदर रुप हो/ लय हो/ टहनियां सूख जाएंगी/ हमारे होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। कवि इन पंक्तियों में एक संदेश वाहक के रूप में यह कहना चाहते हैं कि यह जीवन सिर्फ माया का एक बंधन है।  मनुष्य खाली हाथ आया है । और इस धरा से खाली हाथ ही चला जाएगा।  मनुष्य इस धरा से फूटी कौड़ी भी नहीं ले जा सकता है।  तो फिर मनुष्य धन, यश और पद के पीछे क्यों भाग रहा है ?  ये सारी चीजें उसे माया में ही बांधती चली जाएगी।  इसलिए मनुष्य को इन बंधनों से मुक्त होने के लिए नंगा होना होगा । खुद को इन बंधनों से मुक्त करना होगा।  स्वतंत्र होना होगा । तभी इस यात्रा से मुक्ति संभव है।  जीवन में जो दुःख, संघर्ष, खुशी आदि हैं।  इन्हीं के बीच अपनी अस्मिता को सुंदर बनाया जा सकता है।  जब मनुष्य माया के बंधनों से मुक्त होता है, तभी उसका रूप निखर कर सुंदर होता है। और इसी रूप का लय होना सच्चे अर्थों में इस यात्रा से मुक्ति का मार्ग है ।


विजय केसरी,


( कथाकार / स्तंभकार) 


पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301


 मोबाइल नंबर : 92347 99550.

बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

अद्भुत_है_राजगीर_का_ग्लास_ब्रिज अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर में

 #प्रवीण परिमल


वैसे तो पर्यटकों को लुभानेवाले कई प्रमुख दर्शनीय स्थल पहले से मौजूद हैं, जैसे सप्तधारा ब्रह्मकुंड (गर्म जल का झरना), विश्व शांति स्तूप, घोड़ा कटोरा, जरासंध का अखाड़ा, पांडु पोखर, अशोक स्तूप शिखर, सोन भंडार गुफाएँ, मनियार मठ आदि। लेकिन पर्यटकों को आजकल ज़्यादा आकर्षित कर रहा है, नेचर सफारी पार्क में चीन के हांग्झोऊ ग्लास ब्रिज के तर्ज़ पर हाल ही में बना पारदर्शी ग्लास ब्रिज, जिसे ग्लास स्काई वाॅक भी कहा जाता है। 

     प्राप्त जानकारी के अनुसार यह ब्रिज 85 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा है। इसकी ऊँचाई लगभग 200 फुट है। एक बार में इसके आख़िरी छोर तक मात्र 10 से 12 लोगों को ही जाने की इजाज़त रहती है, जिन्हें नयनाभिराम नज़ारों को अपनी आँखों और मोबाइल के कैमरों मे क़ैद करने के लिए सिर्फ 5 से 7 मिनट का ही समय दिया जाता है। 15 मिली मीटर मोटाई वाली काँच की तीन परतों से इसका निर्माण किया गया है।

  यहाँ ऑनलाइन टिकट लेकर जाना ही सुविधाजनक रहता है। वैसे ऑन द स्पॉट टिकट भी उपलब्ध होता है। नेचर सफारी पार्क का प्रवेश शुल्क 150/ रुपए है तथा ग्लास ब्रिज पर जाने के लिए 150/ रुपए अलग से देने होते हैं। नेचर सफारी में प्रवेश के बाद ग्लास ब्रिज की लगभग दस किलोमीटर की दूरी वहाँ उपलब्ध 25- सीटर गाड़ियों से तय करनी होती है।

        राजगीर में बना यह ग्लास ब्रिज भारत का दूसरा और बिहार का पहला ग्लास ब्रिज है। भारत का पहला ग्लास ब्रिज सिक्किम के पहाड़ी शहर पेलिंग में है। चीन का ग्लास ब्रिज विश्व का पहला और सबसे बड़ा ब्रिज है, जिसे देखने के लिए पूरी दुनिया के लोग चीन पहुँचते हैं।

      राजगीर के इस ब्रिज पर चलने में एक अद्भुत आनंद का अनुभव होता है। कहा जाता है कि इसकी ख़ूबसूरती चीन के ग्लास ब्रिज से भी अधिक है। यहाँ से चारों तरफ़ प्राकृतिक सुंदरता देखने को मिलती है। हरे- भरे प्राकृतिक वातावरण में इस पुल पर चलना लोगों में रोमांच भर देता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम हवा में चल रहे हों। जूते- चप्पल पहनकर इस पर प्रवेश निषेधित है। इस पर चलने के लिए एक ख़ास कपड़े के बने मोजे उपलब्ध कराए जाते हैं, जिसे पहनकर ही ख़ूबसूरत वादियों से घिरे इस ख़ूबसूरत ग्लास ब्रिज का आनंद लिया जा सकता है।

     ग्लास स्काई वाॅक यानी ग्लास ब्रिज से थोड़ी ही दूरी पर एक और ब्रिज है जिसे सस्पेंशन ब्रिज कहा जाता है। यह ब्रिज इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध ब्रिज की तर्ज़ पर बनाया गया है। यह राजगीर की पाँच पहाड़ियों में शामिल वैभारगिरि की दो पर्वत श्रृंखलाओं को आपस में जोड़ता है। 135 मीटर लंबा और 6 फुट चौड़ा यह ब्रिज इस इलाके का इकलौता सस्पेंशन ब्रिज है।

    

 इसमें रस्सों के दो सेट लगे हैं जो रास्ते के दोनों तरफ़ रज्जुवक्र  की आकृति में लटक रहे हैं। यह ब्रिज लोहे के बने मोटे रस्सों के सहारे टंगा है। चलने के लिए इसमें लकड़ी के प्लास्टिक कोटेड पटरे लगे हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसके दोनों ओर लोहे के मोटे तारों से बनी जालियाँ लगी हैं। इस पर चलने में शरीर में एक अजीब सी लचक पैदा होती है। तार की जालियों या रस्सों का सहारा लेकर ब्रिज के दूसरी तरफ जाया जा सकता है। इस ब्रिज पर न तो विजिटर्स की संख्या सीमित है और न ही समय का कोई बंधन है। इस पर जाने के लिए जूते- चप्पल खोलने की अनिवार्यता भी नहीं है। और हाँ, ग्लास ब्रिज के टिकट के साथ यह सुविधा मुफ़्त में उपलब्ध है। यदि कोई ग्लास ब्रिज न जाकर केवल सस्पेंशन ब्रिज पर जाना चाहे तो सुविधा शुल्क मात्र ₹ 10/ देय है।



मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

 महाराजा मित्रजित सिंह की बेगम 


अल्ला ज़िल्लाई


महाराजा मित्रजित सिंह के मुस्लिम पत्नी अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम, एक बेहद सुंदर ईरानी पर्शियन महिला थी,


पर्शियन महिला के बारें -- 


वैसे तो दुनिया की सारी महिलाएं बेहद खुबसूरत होती है लेकिन कुछ देश की महिलाओं को कुछ अलग तरह का खूबसूरत कहा जाता है. इसी तरह ईरान की महिलाओं को दुनियां की खुबसूरत महिलाओं में एक कहा जाता है. उनकी खुबसूरती को ईरान की भौगोलिक और आनुवंशिक स्थिति को बताया जाता है. ईरान की ज्‍यादातर महिलाएं आरामदायक ज़िन्दगी जीती हैं. वह चाहे नेत्री, अभिनेत्री या फिर कोई साधारण महिला हो, उनकी जीवनशैली दुनिया के बाकी महिलाओं से थोड़ी अलग होती है. वह अपना शारीरिक बनावट सही रखने के लिए हर कोशिश करती रहती हैं.


हालांकि कहा यह भी जाता है कि पर्शियन महिला की खूबसूरती उनके जन्‍म से जुड़ी होती है. उनकी चर्म बचपन से ही बहुत तीखा और चमकदार होती है. उनकी चमकदार चर्म पर उनकी आंखें बहुत ही खूबसूरत दिखती हैं. इन महिलाओं का सुंदरता का अपना ही एक मुकाम है. पर्शियन महिलाएं अपने बालों की भी प्राकृतिक तरीके से देखभाल करती है. ईरान की महिला, जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह से हिजाब से ढक लेती है. ईरान में महिला को पहनने में हिजाब प्रचलन है. हिजाब से उनका पूरा शरीर ढका होता है, लेकिन चेहरा दिखना चाहिए. ईरानी महिलाएं काला रंग का ही परिधान ज्यादा पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. औरतें सामाजिक रीती का पालन करती हैं, लेकिन इन हदों में रहकर अपने हुस्न का जश्न मनाया करती है.


अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम के बारें में --


आम ईरानी महिलाओं के तरह, अल्ला ज़िल्लाई भी दिखने में बेहद ख़ूबसूरत, लम्बी कद काठी, गोरी पर्शियन महिला थी. उनकी सुन्दरता ने सभी मानकों को तोड़ दिया था.


अल्ला ज़िल्लाई के पूर्वज  ईरान देश की रहने वाले थे. ईरान में उनकी परिवार की आर्थिक दशा ठीक नहीं रहने के कारण, पूरा परिवार ईरान देश को छोड़कर कश्मीर में आ कर बस गया था.

कुछ दिन बाद उनमें से कुछ लोग लखनऊ चले आये और अवध के दरबार में नौकरी करने लगे. इनकी मां अवध के नवाब के राज दरबार में मुख्य राज नर्तकी थी.


सन १७६४  में टिकारी राज का प्रांतीय मुख्यालय कुछ दिन के लिए अवध, लखनऊ, उत्तर प्रदेश था. 


सन १७६५ में बक्सर युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मुग़ल शासन पर जीत के बाद टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय बंगाल प्रान्त से हट कर अवध प्रान्त में हो गया था. उस समय टिकारी राज का प्रांतीय मुख्खालय अवध, लखनऊ होता था.


टिकारी राज के राजा को समय समय पर कार्यवश या औपचारिकतावश  समय समय पर प्रांतीय मुख्खालय लखनऊ में जा कर अवध के नवाब से मिलना होता था.


महाराजा मित्रजित सिंह -----


महाराजा मित्रजित सिंह का कद ७ फीट लम्बा, अच्छे कद काठी, गोरा व्यक्तित्व के थे. वे देखने में बेहद खूबसूरत थे, एक अच्छे लेखक और कवि भी थी. 


वे पर्शियन भाषा के बहुत अच्छे जानकार थे, उन्होंने साहित्य पर विशेष ध्यान देते हुये उसके विकाश के लिए काफी कार्य किया. उन्होंने अपने राज के लेखक और कवि को प्रोत्साहित किया और उन्हें समय पर पुरुस्कृत किया.


मित्रजित सिंह को संगीत क्षेत्र में काफी रूचि थी. उन्होंने ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए गायक, कवि, गीतकार को प्रोत्साहिक किया और समय समय उन लोगों को इनाम भी दिया. उनलोगों के लिए संगीत सभाएं आयोजित करवाते थे.


इन्होने कृषि पर एक पुस्तक भी लिखी थी "कृषि शास्त्रंम" जो उस ज़माने में काफी लोकप्रिय हुई थी. उन्होंने अपने राज्य में कृषि के विकाश के लिए कई परियोजना शुरू की थी जो उस ज़माने में काफी सफल और लोकप्रिय हुआ था.


महाराजा मित्रजित सिंह के समय, टिकारी राज का आमदनी १ करोड़ सालाना थी. अंग्रेज के ईस्ट इंडिया कंपनी उनके सम्पन्नता पर बहुत ईष्या करती थी. उसने इनके राज को काट-काट कर छोटा करना शुरू कर दिया था. बहुत से छोटे छोटे स्टेट बना कर, उस स्टेट को टिकारी राज से उसको अलग कर दिया था.  


महाराजा मित्रजित सिंह ने पटना के बांकीपुर के ज्यादातर मकान और दुकान को खरीद लिया था. पटना के छाज्जुबाग में काफी ज़मीन थी.


मित्रजित सिंह ने औरंगाबाद के कुछ गाँव को टिकारी राज से काट कर अल्लाह ज़िल्लाई से उत्पन्न अपने प्रिय पुत्र खान बहादुर खान को देकर एक अलग स्टेट बनाया दिया था. बाद में राजा खान बहादुर खान के मरने के बाद, यह औरंगाबाद स्टेट अँगरेज़ ने ले लिया था.


अल्ला ज़िल्लाई से भेट ---


कहा जाता है की एक बार महाराजा मित्रजित सिंह अवध के नवाब के दरबार में उनसे मिलने के लिय गए हुए थे. उसी समय अल्ला ज़िल्लाई भी अपनी माँ के साथ राज दरबार में आई हुयी थी. अल्ला ज़िल्लाई पर नज़र पड़ते ही महाराजा मित्रजित सिंह मंत्रमुग्ध हो गए और उसे अपनी दूसरी पत्नी बनाने के लिय, मन बना लिए थे.


उनकी खुबसूरती पर महाराजा मित्रजित फ़िदा हो गए, वह उसकी माँ के पास विवाह करने के प्रस्ताव भेजे, जिसे उसकी माँ ने ससहर्ष तैयार हो गयी थी.


कहा जाता है की उनको भी महाराजा मित्रजित सिंह पसंद आ गए थे. इसलिए दोनों के तरफ से रिश्ता को स्वीकार करने में किसी तरह का परेशानी और देर नहीं हुई.


महाराजा मित्रजित सिंह ने उनसे विवाह कर उसे अपने दूसरी पत्नी बना कर टिकारी राज लेते आये. उस समय राजा की दूसरी पत्नि को उप रानी भी कहते थे.


महाराजा मित्रजित सिंह ने उनके रहने के लिए मुख्य महल के दक्षिण - पश्चिम के कोना से कुछ दूर पर एक छोटा महल बनवाया था. यह वर्तमान में खंडहर के रूप में मौजूद है और अब इसे मुनि राजा के किला भी कहा जाता है. महाराजा के विद्वान पुत्र खान बहादुर खान को मुनि राजा भी कहा जाता था.


महाराजा मित्रजित सिंह ने पारंपरिक, व्यवहारिक एवं पारिवारिक परेशानियों से बचने के लिय उनके लिए अलग छोटा सा महल बनवाया था. इस महल के खाना पीना, रहन सहन, कर्मचारी, सुरक्षा पहरी, दैनिक कार्य में आने वाले जरुरत का चीजे, ये सब मुख्य महल से अलग था.  


मित्रजित सिंह अपने पर्शियन पत्नी के प्रेम के ऐसे दीवाने थे की उनके साथ साथ रहते हुए पर्शियन भाषा के बहुत ही अच्छे जानकार हो गये थे. उन्होंने ने पर्शियन भाषा में पुस्तक भी लिखी थी.


उनके जीवन शैली, खान पान, बातचित, पहनावा और व्यवहार टिकारी राज के अन्य स्त्रियों से एकदम अलग था. कहीं से उनलोगों में सामंजस्य होने का सवाल ही नहीं था. उनकी धर्म उनलोगों के दूरियों को और बढ़ा दिया था. इसलिए मित्रजित सिंह ने उनके लिए छोटा महल का निर्माण करवाना उचित समझा था.   


कहा जाता है की उनको संगीत में खास रूचि थी विशेष कर गायन शैली में. वह अच्छी गाती थी.


कहा जाता है की वे शिक्षित और अच्छी तहजीब वाली घरेलु महिला थी. वह हिंदी, उर्दू, पर्शियन भाषा के अच्छी जानकार थी. 


कहा जाता है की उनमें दूसरों की इज्जत करना, प्यार से बात करना और सच का साथ देना आदि ऐसे बहुत से गुण थे जिसमें त्याग, ममता, बड़ों का आदर, आत्म सम्मान, सहन शक्ति गुण समाएं हुए थी.


वे टिकारी राज के पारिवारिक सदस्यों सबको को सामान इज्ज़त देती थी. राज के लोगों और कर्मचारियों को आदर और सम्मान देती थी. वह प्रायः ईरान के परिधान हिजाब में रहा करती थी.


कहा जाता है की वह एक धर्म परायण महिला थी, इनका अधिकांश समय धार्मिक कार्य में लगा होता था.  


महाराजा मित्रजित सिंह के द्वारा उनको राज दरबार या किसी समारोह, सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से रोक था. उन्हें प्रमुख सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन में जगह जाने / भाग लेने के लिए महाराजा से पहले अनुमति लेनी पड़ती थी.


कहा यह भी जाता है की इनकी एक मात्र पुत्र राजा खान बहादुर खान भी अपनी माँ के तरह धार्मिक विचार के थे.


वे अपने पुत्र के पढाई पर बहुत ध्यान देती थी. उनको पढ़ने के लिए दूर दूर से खोज कर हर भाषा के जानकार और विद्वान लोग को राज में बसाया गया था. पुत्र को अच्छा तालीम दिलवाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा.


अल्ला ज़िल्लाई के  पुत्र राजा खान बहादुर उर्फ़ मुनि राजा बहुत ही प्रतिभावान थे. इनका अधिकतर समय पठन-पाठन में गुज़रता था. हिंदी, संस्कृत, उर्दू और फारसी के अच्छे ज्ञाता थे.


कहा जाता है की महाराजा मित्रजित सिंह उनको बहुत मानते थे. उनकी हर जरूरते को हर समय, ध्यान देते हुए पूरा करते थे. महाराजा मित्रजित सिंह उनके पुत्र खान बहादुर खान को बहुत मानते थे उसे अपने तरह लेखक, कवि और शायर बनाना चाहते थे. 


कहा जाता है है की महाराजा मित्रजित सिंह अपनी दूसरी पत्नि अल्ला ज़िल्लाई के साथ छज्जुबाग, पटना में विशाल परिसर वाला बंगला में अधिकतर समय निवास करते थे. 


छज्जुबाग का इलाका टिकारी राज का था. यह कई एकड़ में फैला हुआ था. उसमें से एक बड़ा भू भाग, सन १८५७ में उनके बड़े पुत्र महाराजा हितनारायण सिंह ने, अपने स्कॉटिश पत्नी के साथ पटना प्रवास के समय, एक अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड के हाथ से बेच दी थी. 


उस अंगरेज जॉन एलेग्जेंडर बोयलार्ड की पत्नी मर चुकी थी. उसने उस भू- भाग को अपनी पत्नि के यादगार में ख़रीदा और एक बगीचा के रूप में विकसित करके, उसे छज्जुबाग के नाम से नामकरण कर दिया.


आजादी के समय उस अँगरेज़ को यहाँ से जाने के बाद उसके सम्पति पर बिहार सरकार का कब्ज़ा हैं. आज के समय उस ज़मीन पर बिहार सरकार के बंगला और फ्लैट बने हुए हैं. 


अल्ला ज़िल्लाई से एक पुत्र हुए थे. 


राजा खान बहादुर खान उर्फ़ मुनि राजा - महाराजा मित्रजित सिंह और अल्ला ज़िल्लाई के लड़के थे. इन्हें टिकारी राज परिवार का विद्वान सदस्य कहा गया है. 

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पत्थरकट्टी गांव खिज़रसराय, गया/ रजनीश वाजपेयी

 


बिहार में शिल्प कला का इतिहास गौरवशाली रहा है. सम्राट अशोक के समय से ही भवन निर्माण में पत्थरों का प्रयोग प्रारंभ हो गया था. अशोक ने पत्थरों का लगभग 40 स्तंभों का भी निर्माण कराया था. उस समय शिल्प कला की तकनीक कितनी उन्नत थी. इसका पता इससे चलता है कि आज भी अशोक स्तम्भ  की पॉलिश शीशे जैसे काफी चमकती है. 


पटना और दीदारगंज से मिली यक्षी की मूर्तियां विशेष रूप से शिल्प कला के दृष्टिकोण से अद्वितीय हैं. मूर्तियों के निर्माण के लिए चिकने काले रंग की कसौटी वाले पत्थरों एवं धातुओं का चयन किया गया था.  


कसौटी एक सघन घनत्व वाले काले पत्थर बिहार में गया क्षेत्र के पत्थरकट्टी पहाड़ वाले इलाके में ही मिलते हैं. पत्थरकट्टी एक पहाड़ की तलहटी में बसा एक गांव है, जो गांव कटारी में आता है. कटारी तीन छोटे-छोटे गांवों का घिरा है जिसमें पहला गांव कटारी, दूसरा पत्थरकट्टी और तीसरा झरहा, जिसे कटारी-पत्थरकट्टी के नाम से जाना जाता है. पत्थरकट्टी दो शब्दों का युग्म है, पत्थर और कट्टी यानी पत्थरों को काटना. 


ऐसा माना जाता है कि सन 1857 के विद्रोह के दौरान पत्थरकट्टी के स्थानीय लोगों ने नियामतपुर गांव के मुसलमानों के साथ मिलकर अपने पराक्रम से अंग्रेजों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. उस विद्रोह में वीर गति प्राप्त वीरों को स्थानीय समाज ने कट्टर कहकर सम्मानित किया था और तब से उस गांव का नाम कटारी-पत्थरकट्टी हो गया.


गया की तरफ से मानपुर-सर्बह्दा सड़क पर करीब तैंतीस किलोमीटर बढ़ने पर पत्थरकट्टी गांव आता है. इसी सड़क पर ठीक अगला गांव खुखरी है. पटना के रास्ते जहानाबाद और वहां से वाया इस्लामपुर और सर्बहद्दा भी पहुंचा जा सकता है. राजगीर और गया रेलवे स्टेशन भी पत्थरकट्टी के नजदीक है. जहां से एक-डेढ़ घंटे में वहां पहुंचा जा सकता है.


गया के साथ पत्थरकट्टी का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध है. वर्तमान में यहाँ से तराशे गए मूर्तियां और घरेलू उपयोग के उत्पादों को राजगीर, गया और बोधगया के बाजार में बिका करते हैं. 


पत्थरकट्टी गांव का इतिहास गया के विश्व विख्यात विष्णुपद मंदिर से भी जुड़ा हुआ है, इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सन 1787 में इस अष्टकोणीय मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था. यह मंदिर फल्गू नदी के किनारे पर स्थित है, जिसके दर्शनों के लिए पूरे देश से श्रद्धालु गण आते रहते हैं. 


महारानी अहिल्या बाई होल्कर के विशेष निमंत्रण पर जयपुर से करीब 1300 शिल्पी गौड़ ब्राह्मण गया आये थे. 


मंदिर के जीर्णोद्धार का काम पत्थरकट्टी के ही काले पत्थरों को तराशकर किया गया था. कहा जाता है कि शिल्पियों को इसके लिए काले पत्थरों की जरूरत थी और इसके लिए उन्होंने उस समय यहाँ से असम तक छानबीन की थी. अंतत: मंदिर के जीर्नोदार के लिए उन्होंने पत्थरकट्टी पहाड़ के काले पत्थरों को ही सबसे उपयुक्त पाया. विष्णुपद मंदिर का सम्पूर्ण स्वरुप का निर्माण पत्थरकट्टी गांव में हुआ था. तराशे गए समस्त पत्थरों को गया ले जाने की व्यवस्था टिकारी राजा द्वारा की गई थी. 


विष्णु पद मंदिर के जिर्नोदार कार्य संपन्न होने के पश्चात् अनेक शिल्पी जयपुर वापस लौट गये और उसमें से कुछ शिल्पकार पत्थरकट्टी गांव में ही बस गये. 


महारानी अहिल्याबाई होल्कर के बाद स्थानीय टिकारी राज के महाराजा और अन्य स्थानीय जमींदार का संरक्षण गौड़ ब्राह्मण शिल्पी कलाकारों मिला. जिसके कारण उनका कारोबार तीन-चार पीढ़ियों तक खूब फला-फूला. 


आजादी के बाद राजतंत्र का अंत हो गया था और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में आर्थिक संकट गहरा गया था, तब उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों का मांग काफी कम हो गई थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गई थी. इन परिस्थितियों में लाचारी वस् इनलोगों का पलायन वापस अपने मातृभूमि जयपुर के तरफ शुरू हो गया. 


शिल्पियों को काफी भूमि दान टिकारी राजा के द्वारा दिया गया था, जो भूमि पत्थरकट्टी से बथानी गांव तक थी.


पत्थरकट्टी में टिकारी राज की छत्री और कचहरी थी. टिकारी राज के पहले देवमूर्ति बनाने पर मुगलों द्वारा रोक लगा दी गई थी. पुनः टिकारी राजा के आदेश से देवस्थल और देवमूर्ति का निर्माण होना आरंभ हुआ.


उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में गौड़ ब्राह्मण शिल्पियों के सिर्फ चार परिवार पत्थरकट्टी में थे, जिनके सदस्यों की कुल संख्या 90 के आसपास है. 


जहां तक गांव की बसावट का प्रश्न है, इस गांव में शुरुआती तौर पर सिर्फ गौड़ ब्राह्मण परिवार थे.


पत्थरकट्टी गांव में गौड़ ब्राह्मण शिल्पियों के बसने के बाद अन्य जाति के लोगों ने भी धीरे-धीरे यहाँ बसना शुरू किया. जिसमें भूमिहार ब्राह्मण नवादा के बज्र इलाके से आये. केनार गांव से कोयरी आये थे. गौड़ ब्राह्मणों के साथ इन दो जातियों के लोग सबसे पहले बसे. कोयरी जाति के लोगों के पत्थरकट्टी में बसने के बाद केनार गांव से ही ब्राह्मण समाज के लोग भी वहां पहुंचे. जो स्थानीय मुस्लिम जमींदार से प्रताड़ित थे. राजपूत, कायस्थ, दुसाध, सोनार आदि जातियां गौड़ ब्राह्मण के बसने के बाद यहाँ बसी थी. 


यहाँ के स्थानीय कारीगर काले कठोर पत्थर पर नक्काशी करते हैं, जो की अपने आप में हस्त कला का एक अनोखा नमूना है.


पत्थरकट्टी गांव पत्थरों से मूर्ति एवं वस्तुएं को तराशने के लिए काफी प्रसिद्ध है. यहाँ के कुशल कारीगर ग्रेनाइट, सफ़ेद बलुआ पत्थर, संगमरमर को विभिन्न स्वरुप देने में कुशल हैं. इन पत्थरों से घरेलु सामान भी बनाये जाते हैं. अगर आप पत्थर से बनी वस्तुएं रखने के शौक़ीन हैं, तो एक बार पत्थरकट्टी गांव जरूर जाएं.


वर्तमान में पत्थरकट्टी के गौड़ ब्राह्मण परिवार को काफी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों का मांग स्थानीय बाज़ार राजगीर, गया और बोध गया में कम हो गई है. मूर्ति निर्माण की लागत काफी बढ़ गई है. इस कारण बचे हुए गौड़ ब्राह्मण शिल्पी, अब वापस अपने मातृभूमि जयपुर की ओर पलायन करने का मन बना रहे है.


वर्तमान में पत्थर कट्टी में कुशल शिल्पकार सुरेश गौड़ और रवि गौड़ अपने पूर्वज़ के बनाये हुए मूर्ति कला व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं और किसी तरह पत्थर कट्टी में अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैं.

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रजनीश वाजपेयी 

वाजपेयी भवन 

टिकारी गया

अमिताभ बच्चन की सक्रियता अनुकरणीय / विजय केसरी


 ( 11 अक्टूबर, महानायक अमिताभ बच्चन की 81 वीं जयंती पर विशेष)


अमिताभ बच्चन की सक्रियता अनुकरणीय / विजय केसरी



अमिताभ बच्चन के गतिशील जीवन से हम  सबों को जीवन जीने की कला सीखने की जरूरत है। आज वे 81 वर्ष की उम्र की दलहीज में  कदम रख चुके हैं । वे उसी जोश और जुनून के साथ फिल्मों सहित अन्य गतिविधियों में सक्रिय । सोनी टीवी द्वारा प्रायोजित 'कौन बनेगा करोड़पति ?' में अमिताभ बच्चन उसी सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं, जैसा कू पहली कड़ी में काम किया था ।उनकी उम्र के कई साथी कलाकार फिल्मों से अलग-थलग पड़ गए हैं अथवा सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे हैं । निश्चित तौर पर अमिताभ बच्चन का जीवन हम सबों के लिए अनुकरणीय है। आखिर क्या बात है ? अमिताभ बच्चन में, उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर भी वे एक युवा की तरह ही गतिशील बने हुए हैं । अमिताभ बच्चन का जीवन आम आदमी की तरह ही है।  वे सहज, सरल, मृदुभाषी हैं। वे अपने काम से बेहद मोहब्बत करते हैं । वे अपने काम को  जीते हैं । वे पूरी लगन और ईमानदारी के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं।  समय का कदापि दुरुपयोग नहीं करते हैं। समय के पाबंद भी हैं।  दर्शकों ने उन्हें सुपरस्टार और महानायक बना दिया, लेकिन आज भी वे अपने को एक साधारण कलाकार ही मानते हैं। उनकी सादगी और सरलता से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।  उनका संतुलित बयान और व्यवहार उन्हें सबसे अलग बनाता है।

 हिन्दी सिनेमा में चार दशकों से ज्यादा का वक्त बिता चुके अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्मों ने ‘एंग्री यंग मैन’ की उपाधि प्रदान किया है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर भी उनकी सक्रियता ही उन्हें एंग्री यंग बनाए हुए हैं । वे हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली अभिनेता माने जाते हैं। उन्हें लोग ‘सदी के महानायक’ के तौर पर भी जानते हैं । लोग उन्हें प्‍यार से बिग बी, शहंशाह भी कहते हैं। अमिताभ बच्चन के फिल्मों में बोले गए डायलॉग लोगों की जुबान पर रहती हैं। यह उनके अभिनय की जीवंतता को दर्शाता है।

  अमिताभ बच्चन ने  राजनीति में भी अपनी किस्‍मत्  आजमाई थी। वे राजीव गांधी के करीबी दोस्‍त् थे।  इसलिए उन्‍होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन की थी। उन्होंने इलाहाबाद से  आठवां लोक सभा का चुनाव एक ताकतवर नेता एच. एन. बहुगुणा से लड़ा था, और अपनी जीत दर्ज की थी।  राजीव गांधी जैसे दोस्त के कहने पर उन्होंने चुनाव तो जरूर लड़ लिया था, जीत भी लिया था, लेकिन वे राजनीति के घोर पेंच से  अनजान थे । राजनीति उनके बस की ना थी, ऐसा उन्होंने महसूस किया था।  चूंकि वे एक कलाकार थे। एक संवेदनशील इंसान थे । उन्होंने राजनीति से अपने को किनारा कर लेना ही उचित समझा था।  उन्‍होंने मात्र तीन साल में राजनीति से अलविदा  कह दिया था।

अमिताभ बच्चन के  पिता  हरिवंश राय बच्चन हिंदी जगत के मशहूर कवि रहे हैं। उनकी मां का नाम तेजी बच्चन था। उनके एक छोटे भाई भी हैं, जिनका नाम अजिताभ है। अमिताभ का नाम पहले इंकलाब रखा गया था, लेकिन उनके पिता के साथी रहे कवि सुमित्रानंदन पंत के कहने पर उनका नाम अमिताभ रखा गया। जिस कालखंड में अमिताभ बच्चन का जन्म हुआ था, उनके जन्म के तीन माह पूर्व ही देश में 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रस्ताव पारित हुआ था । स्वाधीनता संग्राम की लहर संपूर्ण देश में जन जन तक पहुंच चुकी थी। उनको बचपन से ही घर पर एक साहित्यिक माहौल मिला था ।  वे अंदर से एक कलाकार थे।  इस बात को उनकी मां बखूबी समझती थी।  उनकी मां चाहती थी कि अमिताभ बच्चन एक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाए। हरिवंश राय बच्चन का कविता संग्रह 'मधुशाला' को जन जन तक पहुंचाने में अमिताभ बच्चन के अवदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है।

 अमिताभ बच्चन बचपन से ही एक मेधावी छात्र रहे । पढ़ाई में उन्हें बहुत मन लगता था। उन्होंने  शेरवुड कॉलेज, नैनीताल से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी । इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से की थी।  उनकी गिनती एक अच्छे छात्र के रूप में होती थी। अमिताभ बच्चन बच्चन प्रारंभ से ही एक अच्छे श्रोता रहे । वे सामने वाले की बातों को बड़े ही ध्यान से सुनते थे । वे अपना जवाब बहुत ही संतुलित दिया करते थे। आज भी उनका स्वभाव यही बना हुआ है।

 आज जो अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता देखने को मिल रही है , उनसे मिलने की चाह करोड़ों लोग रखते हैं।  वे जहां भी जाते हैं, उनके चाहनेवालों की एक लंबी कतार लग जाती है । यह लोकप्रियता उन्हें ऐसे नहीं मिली है,बल्कि इस लोकप्रियता की लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी है । आज भी वे लगातार कड़ी मेहनत कर रहे। उनकी  शुरूआत फिल्मों में वॉयस नैरेटर के तौर पर फिल्म 'भुवन शोम' से हुई थी।   अभिनेता के तौर पर उनके करियर की शुरूआत फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से हुई। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की , लेकिन वे ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। फिल्म 'जंजीर' उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने लगातार हिट फिल्मों की झड़ी तो लगाई ही, इसके साथ ही साथ वे हर दर्शक वर्ग में लोकप्रिय हो गए । उन्होंने अपने अभिनय के बल पर फिल्म इंडस्ट्री में अपने  लोहा भी मनवाया। जिस कालखंड में युवा अमिताभ बच्चन फिल्मों में अभिनय  कर रहे थे, देश के युवा हो रही पीढ़ी को एक मार्गदर्शक की जरूरत थी।  उन्होंने करोड़ों युवाओं के इच्छाओं के अनुकूल  अभिनय किया  । उन्होंने युवाओं की आवाज को अपना स्वर प्रदान किया। देखते ही देखते अमिताभ बच्चन  बॉलीवुड के सुपरस्टार व महानायक बन गए। सुपरस्टार बनने के बाद जैसा कि अन्य कलाकारों में होता रहा है,.. 'मैं' की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन ने जितनी बुलंदियों को छुआ, वे उतना ही सहज और सरल बनते गए । यही उन्हें सबसे अलग करता है।

 सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तौर पर उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा चौदह बार उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल चुका है। फिल्मों के साथ साथ वे गायक, निर्माता और टीवी प्रजेंटर भी रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी नवाजा है। कौन बनेगा करोडपति, सोनी टीवी का एक लोकप्रिय ज्ञान वर्धक कार्यक्रम साबित हुआ।  अमिताभ बच्चन लगातार एक संचालक की भूमिका में सराहनीय योगदान दे रहे हैं। आज भी यह शो जनता के बीच में प्रसिद्ध है।  जिस अंदाज में वे प्रतिभागियों से मुखातिब होते हैं, सबसे अलग होता है । लाखों लोग कौन बनेगा करोड़पति के प्रतिभागी बनने की इच्छा रखते हैं ।

 अमिताभ बच्चन को अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था । उन्होंने जीवन के हर मुश्किलों का सामना पूरी शक्ति के साथ किया।  1982 में कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्‍हे गंभीर चोट लगी गई थी। वे कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे थे। उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना के लिए देशभर में दुआएं की गई थी। वे पूर्णतः स्वस्थ हो गए और पुनः फिल्मों में सक्रिय हो गए थे। उन्होंने फिर से कड़ी मेहनत कर एक के बाद एक सफल फिल्मों में  अभिनय किया। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म निर्माण कंपनी का भी शुभारंभ किया था, जो पूरी तरह असफल साबित हुआ था।  इस फिल्म कंपनी निर्माण में उनका करोड़ों रुपया का नुकसान हुआ था। कई बैंकों की देनदारी भी हो गई थी।  वे इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। वे लगातार अभिनय नहीं करते रहे थे।  इसी बीच सोनी पर कौन बनेगा करोड़पति का शुरू हुआ।  आगे कई विज्ञापन के लिए भी काम किया। फलत: उनका सारा कर्जा समाप्त हो गया।

 एक बार अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति शो के दौरान कहा था कि उनका लिवर 75 परसेंट डैमेज हो चुका है।  इसके बावजूद वे नियमित संतुलित आहार व्यायाम कर स्वयं को स्वस्थ रखे हुए हैं। लोग थोड़ी सी बीमारी को होने पर चिंतित हो जाते हैं। वैसे लोगों को अमिताभ बच्चन से सीख लेनी चाहिए । 

इन तमाम शारीरिक और सामाजिक झंझवटों  के बीच रहकर अमिताभ बच्‍चन लोगों की मदद के लिए भी हमेशा आगे खड़े रहते हैं। वे सामाजिक कार्यों में काफी आगे रहते हैं। उन्होंने कर्ज में डूबे आंध्रप्रदेश के 40 किसानों को 11 लाख रूपए की मदद की। ऐसे ही विदर्भ के किसानों की भी उन्‍होंने 30 लाख रूपए की मदद की। इसके अलावा और भी कई ऐसे मौके रहे हैं जिसमें अमिताभ ने दरियादिली दिखाई है और लोगों की मदद की है। इसके साथ ही वे कई स्वास्थ संबंधी राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापनों में  नजर आते हैं। इसमें अधिकांश विज्ञापन वे मुफ्त में करते हैं। अमिताभ बच्चन को चाहने वाले, विश्व के कई देशों  के लोग हैं। अमिताभ बच्चन का जीवन सदैव गतिशील बना रहा है। वे काम को इंजॉय करते हैं।  आज समस्त देशवासियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए । हम सब उनके स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं।


विजय केसरी,

( कथाकार / स्तंभकार)

 पंच मंदिर चौक, हजारीबाग -825301

 मोबाइल नंबर :- 9234799550.

युद्ध के 72 घंटे के बाद

संघर्ष के 72 घंटे के अंदर करीब 1600 की मौत; हमास ने दी इस्राइली बंधकों की हत्या की धमकी


अमेरिका की शीर्ष जांच एजेंसी एफबीआई ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी नागरिकों की जान पर किसी भी संभावित खतरे की वह जांच कर रहे हैं और अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए कोई भी सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे। एफबीआई की यह चेतावनी ऐसे समय आई है, जब इस्राइल और हमास के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है।


हमास के हवाई हमले में बाल-बाल बची अमेरिकी पत्रकार की जान

इस्राइल में घुसकर फलस्तीन की आतंकी संगठन हमास ने खुलेआम सड़कों पर गोलीबारी करने के साथ हवाई हमले भी किए, जिसमें अबतक 900 के करीब इस्राइली नागरिकों की मौत हो चुकी है। जहां इस हमले से डरकर लोग अपने घरों में छिपने के लिए मजबूर हो गए हैं, तो वहीं अमेरिकी न्यूज चैनल की रिपोर्टर और उनकी टीम ने इस हमले को काफी करीब से देखा है। उन्होंने हमास द्वारा किए गए इस हमले का जिक्र करते हुए अपनी दास्तां बताई हैं।




 हमास के हवाई हमले में बाल-बाल बची अमेरिकी पत्रकार की जान, लाइव टेलीकास्ट के दौरान पास में गिरा रॉकेट*


इस्राइल में घुसकर फलस्तीन की आतंकी संगठन हमास ने खुलेआम सड़कों पर गोलीबारी करने के साथ हवाई हमले भी किए, जिसमें अबतक 900 के करीब इस्राइली नागरिकों की मौत हो चुकी है। जहां इस हमले से डरकर लोग अपने घरों में छिपने के लिए मजबूर हो गए हैं, तो वहीं अमेरिकी न्यूज चैनल की रिपोर्टर और उनकी टीम ने इस हमले को काफी करीब से देखा है। उन्होंने हमास द्वारा किए गए इस हमले का जिक्र करते हुए अपनी दास्तां बताई हैं। 

अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन की मुख्य अंतर्राष्ट्रीय संवाददाता क्लेरिसा वार्ड एक लाइव सेगमेंट के बीच थी, तभी उन्होंने रॉकेटों की तेज आवाज सुनी। आवाज सुनते ही वह अपनी तीन साथियों के साथ सड़क किनारे जाकर छिप गई। इस दौरान कैमरामैन को बोलते सुना गया, 'ठीक है, ठीक है।'

संवाददाता वर्ड ने इस दौरान अपनी स्थिति के लिए सीएनएन टीम से माफी मांगी और वहां के दृश्य का वर्णन किया। उन्होंने बताया, 'हम यहां भारी मात्रा में रॉकेट आते हुए देख रहे हैं। यह हमसे ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए हमें छिपने के लिए सड़क किनारे आना पड़ा।'


 

इजरायल और हमास से युद्ध के बीच दिल्ली में सख्त पहरा, इजरायली दूतावास और यहूदियों के धार्मिक स्थलों की बढ़ाई सुरक्षा*


मिडिल ईस्ट में इजरायल और फलस्तीन के बीच जारी जंग को ध्यान में रखते हुए दिल्ली पुलिस ने इजरायली दूतावास के आसपास सुरक्षा कढ़ी कर दी है. इस बात की जानकारी एक अधिकारी ने आज मंगलवार (10 अक्टूबर) को दी. अधिकारी ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने इजरायल-हमास संघर्ष के मद्देनजर इजरायली दूतावास और चाबड़ हाउस के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है। 


उन्होंने आगे कहा कि नई दिल्ली में इजरायली दूतावास और मध्य दिल्ली के चांदनी चौक स्थित चाबड़ हाउस के आसपास तैनात स्थानीय पुलिस को कड़ी निगरानी बनाए रखने का निर्देश दिया गया है. इज़रायली दूतावास और भारत में इज़रायली रजादूत नोर गिलों के अधिकारिक आवास के बाहर अतिरिक्त पुलिस तैनात की गई है. इसके अलावा नई दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में यहूदियों के धार्मिक स्थल चबाड़ हाउस के पास भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है।




इजराइल का गाजा बॉर्डर पर कब्जा, 1500 लड़ाके मारे: नेतन्याहू बोले- ऐसी कीमत वसूलेंगे कि पीढ़ियां याद रखेंगी; हमास की धमकी- बंधकों को मार देंगे*


इजराइली सेना के प्रवक्ता ने बताया है कि उन्होंने गाजा पर 2,000 में हुई लेबनान जंग से भी 5 गुना ज्यादा बमबारी की है।


इजराइल-हमास के बीच आज जंग का चौथा दिन है। *टाइम्स ऑफ इजराइल* Newspaper के मुताबिक, इजराइल की सेना ने घोषणा की है कि उसने गाजा के बॉर्डर पर कब्जा कर लिया है। सेना ने बताया कि रातभर में उसने गाजा में 200 जगहों को निशाना बनाया है अब तक हमास के 1,500 लड़ाके मारे जा चुके हैं। जंग में इजराइल के करीब 123 सैनिकों की अब तक मौत हो चुकी है।


दूसरी तरफ हमास के हमलों में थाईलैंड के अब तक 18 नागरिकों की मौत हो चुकी है। सोमवार को इजराइल के रक्षा मंत्री ने पूरी गाजा पट्टी पर कब्जे का आदेश दिया था। इसके बाद रात भर इजराइल ने गाजा पर हमले किए। जवाब में हमास ने धमकी दी है कि वो इजराइल से पकड़े करीब 150 बंधकों की हत्या कर देंगे।


नेतन्याहू बोले- हम पर जंग थोपी गई, अब इसे हम ही खत्म करेंगे

दूसरी तरफ, जंग के बीच इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि हमास ने हम पर हमला करके सबसे बड़ी गलती की है। हम इसकी ऐसी कीमत वसूलेंगे, जिसे हमास और इजराइल के बाकी दुश्मनों की पीढ़ियां दशकों तक याद रखेंगी।


PM नेतन्याहू ने कहा- हम युद्ध नहीं चाहते थे। हम पर बहुत क्रूर तरीके से यह थोपा गया। हमने भले ही युद्ध शुरू नहीं किया, लेकिन इसका अंत हम ही करेंगे। इजराइल सिर्फ अपने लोगों के लिए नहीं बल्कि बर्बरता के खिलाफ खड़े हर देश के लिए लड़ रहा है।


बीते 7 अक्टूबर से शुरू हुए इस जंग में अब तक कुल 1,587 लोगों की मौत हो गई है। इजराइल में 900 लोग मारे गए हैं, जबकि 2,300 लोग घायल हैं। वहीं गाजा पट्टी में 140 बच्चों समेत 687 फिलिस्तीनी मारे गए हैं। वहीं 3,726 लोग घायल हुए हैं। इसके अलावा इजराइल की सेना ने अपने क्षेत्र में 1,500 हमास के लड़ाकों को भी मार गिराया है।


शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023

साहित्य का नॉवेल

 * पहली किताब आत्महत्या पर लिखी; कमेटी ने कहा- वे लोगों की अनकही भावनाएं सामने लाए*


साहित्य का नोबेल प्राइज 64 साल के नॉर्वे के राइटर जॉन फॉसे को दिया गया है। कमेटी ने माना है कि उनके नाटकों और कहानियों ने उन लोगों को आवाज दी है जो अपनी बातें कहने में सक्षम नहीं थे। जॉन ने अपने नाटकों में ड्रामा के जरिए उन इंसानी भावनाओं को जाहिर किया है जो आमतौर पर जाहिर नहीं की जा सकती हैं। जिसे समाज में टैबू समझा जाता है।


जॉन ने अपने पहले ही उपन्यास रेड एंड ब्लैक में आत्महत्या जैसे गहरे और संवेदनशील मुद्दे पर लिखा था। इनकी मशहूर किताबों में पतझड़ का सपना भी शामिल है। साहित्य में अब तक 120 लोगों को नोबेल मिला है। इसमें केवल 17 महिलाएं हैं। इसकी वजह से नोबेल कमेटी की काफी आलोचना भी हुई है।


नोबेल जीतने वाले को 8.33 करोड़नोर्वे क़ो रुपए की राशि और एक गोल्ड मेडल दिया जाता है। नोबेल की घोषणा के बाद जॉन ने कहा- मैं काफी खुश हैं। मुझे लगता है कि ये प्राइज उस तरह के साहित्य के लिए दिया गया है, जो साहित्य के अलावा कुछ नहीं।


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