गुरुवार, 28 अगस्त 2014

बौनों की दुनिया में रोशनी की किरण




 

प्रस्तुति-- मनीषा यादव

"हम बौनों को कोई काम नहीं देता. न तो हम दूसरे लोगों की तरह लम्बे हैं न ही ताकतवर." इस पीड़ा से गुजरने वाले लू देफेंग चीन के अकेले नाटे व्यक्ति नहीं है. चीन में करीब 80 लाख लोग बौने हैं, जो रोज हीन भावना से लड़ रहे हैं.
देफेंग चीन में रहने वाले उन लोगों में से हैं जिनकी लम्बाई ज्यादा नहीं है. बौनेपन के कारण उन्हें अकेलेपन के अलावा बेरोजगारी का भी सामना करना पड़ता है. बौनों के साथ भेदभाव का व्यवहार कोई नई बात नहीं है, चीन में यह और भी आम है. दुख की बाद यह है कि देश के विकास और बदल रही मानसिकता के बीच यह एक चीज है जो वहीं की वहीं है, आज भी नहीं बदली.
रौशनी की किरन 'शैडो पपेट्री'
बौनों के लिए चीन में शैडो पपेट्री की कला उम्मीद की किरण जैसी है. यह एक प्राचीन चीनी नाटक कला है. इसमें कठपुतलियों को नियंत्रित रखने में छोटे कद वाले लोग ज्यादा बेहतर होते हैं. इस कला में धीमी रौशनी के किसी प्रकाश स्रोत के सामने कठपुतलियों को रखा जाता है. उनकी आकृति सामने लगे कागज या कपड़े के पर्दे पर दिखती है. उस पर्दे पर ये बौने कठपुतलियों की गतिविधियों से नाट्य रचना करते हैं. प्राचीन काल में इस कला का इस्तेमाल बच्चों को परिकथा या धार्मिक कथाएं बताने के लिए किया जाता था. यह कला आज भी चीन में खासी प्रचलित है और बौनों को रोजगार दे रही है. इस कला की शुरुआत दो हजार साल पहले उत्तरी चीन में हुई थी.
कहानी और संगीत की मिली जुली लय पर पपेट्स यानि कठपुतलियों की हरकतों को नियंत्रित रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना पड़ता है कि सभी के बीच तालमेल बना रहे. अंत में जब सब कुछ सही सही हो जाता है तो ये बौने असली हीरो की तरह मंच पर सामने आते हैं.
बौनों को मिला नया परिवार
ज्यादातर बौनों के लिए अब उनका पपेट्री समूह ही उनका परिवार है. पहले दर बदर की ठोकरें खा चुके वू शुनशियाओ कहते हैं, "मेरे लिए यह ऐसा एहसास है जैसे कोई झुंड से अलग हुआ बछड़ा वापस झुंड में आ गया हो. मैं इस जीवन से और अपने काम से बहुत खुश हूं."
लू देफेंग भी जब दूसरे बौनों की तरह सामाजिक भेदभाव के खिलाफ दुख भरी लड़ाई लड रहे थे, तभी उन्हें 'ड्रैगन इन द स्काई' नाम के एक शैडो पपेट्री चलाने वाले समूह में काम मिल गया. इस समूह में पूरे चीन के दर्जनों बौने काम करते हैं. इनमें से ज्यादातर लोग मात्र सवा मीटर (1.2 मीटर) के ही हैं. 'ड्रैगन इन द स्काई' की शुरुआत 2008 में 66 वर्षीय लुई लिशिन ने की, जो खुद सामान्य कद के हैं. इस समूह के जरिए न सिर्फ बौनी काठी के लोगों को रोजगार मिल रहा है बल्कि एक पुरानी चीनी कला सांस ले रही हैं.
लिशिन ने बताया, "अंदर ही अंदर इन लोगों के मन में बौनेपन की कुंठा होती है. जब वे हमारे समूह में आते हैं तो उन्हें काम के बदले पैसे भी मिलते हैं. इससे ये लोग पूरा मन लगा कर काम करते हैं और खुश भी रहते हैं."
शैडो पपेट्री का शो देखने बाद नौ साल की डियान किम ने कहा, "शो बहुत ही बढ़िया था, देख कर लग रहा था कि वे खूब अभ्यास करते हैं."
हालांकि गावों में अभी भी लोग इस कला को दिलचस्पी से देखते हैं लेकिल शहरों में लोगों की बदल रही रुचि के चलते ये उतनी लोकप्रिय नहीं रही. चीन में करीब 80 लाख व्यक्ति नाटे हैं. कद में सवा मीटर से कम लोगों को सरकार ने विकलांग का दर्जा दिया गया है, लेकिन इनके लिए किसी तरह की खास नौकरियों का कोई प्रावधान नहीं है.
रिपोर्ट: सबरिना माओ, जोनाथन स्टैंडिंग/एसएफ
संपादन: ओ सिंह

DW.DE

WWW-Links

संबंधित सामग्री

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें