गुरुवार, 28 अगस्त 2014

अलग तरह के पीएम साबित होंगे मोदी





प्रस्तुति-- निम्मी नर्गिस , मनीषा यादव


फर्राटेदार इंग्लिश, इंग्लैंड अमेरिका में पढ़ाई और संभ्रांत खानदानों से ताल्लुक. भारत में आम तौर पर प्रधानमंत्री ऐसे ही बनते आए हैं. लेकिन आज शाम शपथ लेने वाले नरेंद्र मोदी का चरित्र इससे बिलकुल अलग है.
मोदी सिर्फ कट्टर हिन्दूवादी छवि के नेता ही नहीं, बल्कि पूर्व प्रधानमंत्रियों से दूसरे मामलों में भी अलग हैं. उनकी कामयाबी को "लोकतांत्रिक धूमकेतु" बताया जा रहा है, जो भारत के विदेशी रिश्तों में भी बड़ी भूमिका निभाएंगे. मोदी ने मुश्किल पड़ोसी राष्ट्राध्यक्षों को शपथ ग्रहण के दौरान दावत में भेजा है, जिनमें श्रीलंका और पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल हैं.
ज्यादार प्रधानमंत्रियों की तरह मोदी की पढ़ाई विदेश में नहीं हुई है. उन्होंने 17 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया था और बाद की पढ़ाई पत्राचार से की है. वह अंग्रेजी की जगह गुजराती या हिन्दी ही बोलना पसंद करते हैं और उनकी विदेश यात्रा सुदूर पूर्व तक ही सीमित है. इसकी एक वजह यह भी है कि गुजरात दंगों के बाद अमेरिका ने उन्हें वीजा नहीं दिया.
इतिहासकार रुद्रांक्षु मुखर्जी का कहना है, "मोदी गुजरात में पैदा हुए भारतीय हैं, जो पश्चिमी तौर तरीके में सहज नहीं महसूस करते हैं. और उन्हें इस बात पर किसी तरह की शर्म नहीं."
नेहरू के विपरीत
मोदी खुले तौर पर धार्मिक कर्मकांड वाले व्यक्ति हैं, जिन्होंने कुछ साल "वनवास" में भी बिताए हैं. इस लिहाज से वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की शख्सियत से बिलकुल उलट लगते हैं. नेहरू की मृत्यु (27 मई, 1964) के ठीक 50 साल बाद प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं.
भारत की आजादी में नेहरू परिवार का बड़ा योगदान था. खुद नेहरू भारतीय स्वाधीनता के प्रमुख नेता महात्मा गांधी के बेहद करीब थे. 1947 में भारत की आजादी के बाद वह अपने पूरे जीवनकाल प्रधानमंत्री रहे. उनके बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी और पोते राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री बने. उन सबकी परवरिश पश्चिमी रंग ढंग में हुई थी.
राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी इन दिनों कांग्रेस के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष हैं लेकिन उनकी अगुवाई में पार्टी ने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है. उन्हें लोकसभा चुनाव में सिर्फ 44 सीटें मिली हैं. कांग्रेस ने भारत की आजादी के बाद से सिर्फ 13 साल सत्ता से बाहर रही है. और यह पहला मौका है, जब कांग्रेस छोड़ किसी और पार्टी को बहुमत मिला हो.
वाजपेयी से भी अलग
गांधी नेहरू परिवार की जीवनी लिखने वाले पत्रकार राशिद किदवई का कहना है कि मोदी तो बीजेपी के पिछले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी बहुत अलग हैं, "वाजपेयी भले ही बीजेपी के प्रधानमंत्री हों लेकिन उनकी सोच नेहरू जैसी ही थी. मोदी की विचारधारा नेहरू के विरुद्ध है."
नेहरू ने कभी एक अमेरिकी राजनयिक को कहा था कि वह भारत पर राज करने वाले "आखिरी अंग्रेज" हैं, जबकि गार्डियन ने संपादकीय लिखा कि मोदी की जीत उस दिन का प्रतीक है, "जब अंग्रेजों ने आखिरकार भारत छोड़ा". मोदी ने चुनाव नतीजों से पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि वह "सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि राजनीति के लिए बाहरी" हैं.
गुजरात दंगों की वजह से मोदी की छवि पर दाग जरूर हैं. लेकिन साथ ही अपने राज्य में बेहतर प्रशासन के लिए मामले में भी उनका नाम लिया जाता है. उन्होंने केंद्र में भी काम करने के संकेत दे दिए हैं. किदवई का कहना है कि उनकी टीम में "छोटे शहरों के ऐसे लोग होंगे, जिन्होंने भारत में पढ़ाई लिखाई की है और जो हिन्दी" बोलते हैं, "ऑक्सब्रिज (ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज) से पढ़े लिखे लोगों को ज्यादा तरजीह नहीं मिलेगी."
एजेए/एएम (एएफपी)

DW.DE

संबंधित सामग्री

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें