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दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।

शनिवार, 17 जनवरी 2015

महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा





प्रस्तुति- उपेन्द्र प्रियदर्शी, राहुल मानव




आदर्श वाक्य: ज्ञान शान्ति मैत्री
स्थापित १९९७
प्रकार: सार्वजनिक
मान्यता/सम्बन्धता: यूजीसी
कुलाधिपति: विभूति नारायण राय
स्थिति: वर्धा, महाराष्ट्र, भारत
परिसर: ग्रामीण
जालपृष्ठ: www.hindivishwa.org

महात्मा गान्धी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय भारत का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है।[1] विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार ने सन् १९९६ में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम द्वारा की थी। इस अधिनियम को भारत के राजपत्र में ८ जनवरी सन् १९९७ को प्रकाशित किया गया। यह विश्वविद्यालय महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित है।
गान्धी जी, हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर थे। इसलिये इस विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखना सर्वथा सार्थक है। वर्धा भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण इस विश्वविद्यालय के लिये यह स्थान भी सर्वथा उपयुक्त है।
प्रारम्भ में इसके 8 विद्यापीठ अधिकल्पित किये गये जिनके नाम इस प्रकार हैं:
  • साहित्य विद्यापीठ
  • भाषा विद्यापीठ
  • संस्कृति विद्यापीठ
  • अनुवाद तथा व्याख्या विद्यापीठ
  • मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ
  • सृजन विद्यापीठ
  • प्रबंध विद्यापीठ
  • शिक्षा विद्यापीठ

अनुक्रम

  • 1 स्थापना
  • 2 उद्देश्य
  • 3 दृष्टिकोण
  • 4 ध्येय
  • 5 कार्य लक्ष्य
  • 6 अधिनियम
  • 7 सन्दर्भ
  • 8 इन्हें भी देखें

स्थापना

शान्ति, अहिंसा, सत्याग्रह, खादी, चरखा, स्वराज और जनता के हित के लिये आत्मबल का सन्देश देने वाले महात्मा गान्धी हिन्दी के भी उतने ही बड़े हिमायती थे। वे मानते थे कि आजादी की लड़ाई में हिन्दी का उपयोग एक निर्णायक हथियार के रूप में किया जा सकता है। उन्होंने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की स्थापना की थी। इन दोनों संस्थाओं ने अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन्हीं में से एक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रयासों से 1975 में नागपुर में हुए पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन में स्वीकृत एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव के अनुरूप 1997 में भारत की संसद में पारित एक विशेष अधिनियम के तहत वर्धा में अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही भारतेन्दु की एक अधूरी आकांक्षा भी पूरी हुई। भारतेन्दु की संचित अभिलाषा थी - 'अपने उद्योग से मैं एक शुद्ध हिन्दी यूनिवर्सिटी स्थापित करना।' गान्धी जी द्वारा हिन्दी के संवर्धन के लिये किये गये कार्यों को देखते हुए उन्हीं के नाम पर भारत के बीचों-बीच स्थित वर्धा में पाँच टीलों पर यह अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना।

उद्देश्य

  • हिन्दी भाषा और साहित्य का संवर्धन और विकास करना और उस प्रयोजन के लिए विद्या की सुसंगत शाखाओं में शिक्षण और अनुसंधान की सुविधाएँ प्रदान करना;
  • हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में तुलनात्मक अध्ययन और अनुसंधान के सक्रिय अनुसरण के लिये व्यवस्था करना;
  • देश और विदेश में सुसंगत सूचना के विकास और प्रसारण के लिये सुविधाएँ प्रदान करना;
  • विदेशों में हिन्दी में अभिरुचि रखने वाले हिन्दी विद्वानों और समूहों तक पहुँचना और विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिये उन्हें सहबद्ध करना ;
  • दूर शिक्षा पद्धति के माध्यम से हिन्दी को लोकप्रिय बनाना।
विश्वविद्यालय की परिकल्पना शिक्षा की एक वैकल्पिक संस्था के रूप में की गयी। यह सतत विचार प्रक्रिया का परिणाम है जिसमें अपने उद्देश्यों को पाने के लिय् शैक्षणिक तकनीकों में निरन्तर नवीनीकरण एवं मूल्यानुरूप नीतियों के लिये अनवरत प्रयास करना शामिल है। यह विश्वविद्यालय अपने ज्ञानात्मक आधारों में वैश्विक एवं अपनी संरचना में अन्तरराष्ट्रीय है। विश्वविद्यालय का यह प्रयास होगा कि -
  • वह विभिन्न ज्ञानानुशासनों में अद्यतन मौलिक सृजन तथा विश्व की अन्य भाषाओं में विद्यमान ज्ञान सम्पदा का अनुवाद हिन्दी भाषा में कर सके,
  • समस्त विश्व में फैले हुए भारतीय मूल के व्यक्तियों तथा विदेशी हिन्दी अध्येताओं / प्रेमियों के लिए एक सम्पर्क केन्द्र का कार्य कर सके,
  • समस्त विश्व में हिन्दी भाषा से सम्बन्धित अध्ययन/शोध/अनुसंधान आदि का व्यापक डाटाबेस तैयार करे जिससे हिन्दी भाषा से सम्बन्धित जानकारी सरलता से व्यापक जन तक पहुँच सके,
  • हिन्दी की बेहतरीन रचनाओं को विश्व की अन्य समृद्ध भाषाओं - फ्रेंच, स्पेनिश, चीनी, अरबी इत्यादि - में अनुवाद करे।

दृष्टिकोण

राष्ट्रीय नेताओं एवं हिन्दी प्रेमियों की यह एक उत्कट आकांक्षा रही है कि हिन्दी भारतीयों की भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपना समुचित स्थान ग्रहण करे। दूसरी ओर उनकी यह सोच भी थी कि न केवल विदेशों में अपितु समूचे विश्व में फैले हुए भारतीय मूल के व्यक्तियों के बीच भाषायी आदान-प्रदान के समन्वय हेतु हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय सचिवालय स्थापित किया जाए। इसके अतिरिक्त उनकी यह भी परिकल्पना थी कि अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी की सम्पूर्ण सम्भावनाओं के विकास और संवर्धन के लिये एक केन्द्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये।

ध्येय

क्षेत्रीय भाषा, राष्ट्रभाषा और अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी का संवर्धन और विकास

कार्य लक्ष्य

  • हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाना
  • अप्रतिम वैकल्पिक भाषा (जनसंचार/व्यवसाय, प्रबन्धन, विज्ञान व प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा और प्रशासन में अपनी भूमिका के साथ)
  • राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी संगठनों में सम्पर्क-सूत्र की भूमिका के निर्वाह के लिये नेटवर्क संयोजन
  • भारतीय और अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी भाषाओं के साथ नेटवर्क संयोजन
  • भारतीय संस्कृति की संवाहिका के रूप में हिन्दी
  • हिन्दी द्वारे-द्वारे
  • हिन्दी के एग्रेगेटर (संकलक) का निर्माण)

अधिनियम

  • महात्मा गान्धी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय अधिनियम, 1996-1997 का क्रमांक 3

सन्दर्भ


  1. मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की सूची

इन्हें भी देखें

  • अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय
श्रेणियाँ:
  • भारत के विश्वविद्यालय
  • वर्धा
  • हिन्दी
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