शनिवार, 28 नवंबर 2015

मां-पुत्र के पावन मिलन का प्रतीक श्री रेणुका जी मेला

प्रस्तुति-  स्वामी शरण



पुत्र के पावन मिलन का श्री रेणुकाजी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलो में से एक है, जो हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्रीरेणुका में मनाया जाता है। जनश्रुति के अनुसार इस दिन भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुका से मिलने आते है। यह मेला श्रीरेणुका मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा संगम है जोकि असंख्य लोगों  की अटूट श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक है। इस वर्ष यह मेला 2 नवंबर से 6 नवंबर तक परंपरागत ढंग से बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।  यह स्थान नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है जहां नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील जिसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है स्थित है। इसी झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं। कथानक अनुसार प्राचीन काल मे आर्यवर्त में हैहयवंषी श्रत्रिय राज करते थे तथा भृगुवंशी ब्राह्मण उनके राज पुरोहित थे, इसी भृगुवंश के महर्षि ऋचिक के घर जमदग्नि का जन्म हुआ। इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ। महर्षि जमदग्नि सपरिवार इसी क्षेत्र मे तपस्या मग्न रहने लगे। जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की वह तपे का टीला कहलाता है। वैसाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को मां रेणुका ने  परशुराम को जन्म दिया। इन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। अश्वत्थामा, ब्यास, बलि, हनुमान, विभीषण, अश्वत्थामा व मारकंडेय के साथ अष्ठ चिरंजीवियों के साथ भगवान परशुराम भी चिरंजीवी हैं। महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा ऋषि लालायित थे। राजा अर्जुन ने वरदान मे भगवान दतात्रेय से एक हजार भुजाएं पाई थी जिसके कारण वह सहस्त्रार्जुन कहलाए जाने लगा । एक दिन वह महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु मांगने पहुंच गया। महर्षि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया तथा उसे समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत थी जिसे किसी को नहीं दिया जा सकता। यह सुनकर गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी। यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई। राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने का प्रयास किया जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया। उधर, भगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या मे लीन थे, लेकिन योगशक्ति से उन्हें अपनी जननी एवं जनक के साथ हुए घटनाक्रम का अहसास हुआ और उनकी तपस्या टूट गई। परशुराम अति क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े तथा उसे आमने-सामने के युद्ध के लिए ललकारा। परमवीर भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया।  तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्नि तथा मां रेणुका को जीवित कर दिया। माता रेणुका ने वचन दिया कि वह प्रति वर्ष इस दिन कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को अपने पुत्र भगवान परशुराम को मिलने आया करेगी। एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि जमदग्नि तपस्या मे लीन रहते थे। ऋषि पत्नी रेणुका पतिव्रता रहते हुए धर्म कर्म मे लीन रहती थी। वे प्रतिदिन गिरि गंगा का जल पीते थे तथा उससे ही स्नान करते थे। उनकी पतिव्रता पत्नी रेणुका कच्चे घड़े में नदी से पानी लाती थी। सतीत्व के कारण वह कच्चा घड़ा कभी नहीं गलता था। एक दिन जब वह पानी लेकर सरोवर से आ रही थी तो दूर एक गंर्धव जोड़े को देखकर वह भी क्षण भर के लिए रुक गई तथा आश्रम देरी से पहुंची। ऋषि जमदग्नि ने अंतर्ज्ञान से जब विलंब का कारण जाना तो वह रेणुका के सतीत्व के प्रति आशंकित हो गए ओैर उन्होंने एक-एक करके अपने 100 पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दिया परंतु उनमें से केवल पुत्र परशुराम ने ही पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता का वध कर दिया। इस कृत्य से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने पुत्र से वर मांगने को कहा तो भगवान परशुराम ने अपने पिता से माता को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा। माता रेणुका ने वचन दिया कि वह प्रति वर्ष इस दिन डेढ़ घड़ी के लिए अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिला करेंगी। तब से हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने आते हैं मां-बेटे के इस पावन मिलन के अवसर से रेणुका मेला आरंभ होता है। तब की डेढ़ घड़ी आज के डेढ़ दिन के बराबर है तथा पहले यह मेला डेढ़ दिन का हुआ करता था तथा वर्तमान में लोगों की श्रद्धा व जनसेलाब को देखते हुए यह कार्तिक शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक आयोजित किया जाता है। मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा आयोजन है। पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-पुत्र के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं। कई धार्मिक अनुष्ठान सांस्कृतिक कार्यक्रम हवन, यज्ञ, प्रवचन एवं हर्षोल्लास इस मेले का भाग है। हिमाचल प्रदेश, उतराखंड, पंजाब तथा हरियाणा के लोगों की इसमें अटूट श्रद्धा है। राज्य सरकार द्वारा इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया गया है।

बाबू राम चौहान  नाहन, सिरमौर

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