नदिया के पार फिल्म की कुछ सुनी अनसुनी जानकारियां ?
प्रस्तुति - स्वामी शरण
नदिया के पार फिल्म उत्तर भारत में बसे दो गाँवों की कहानी है और क्योंकि इस फिल्म को एकदम जीवंत भाव देने के लिए वैसे ही एक आदर्श लोकेशन मैं शूटिंग करने की आवश्यकता थी तो अब ऐसे में उत्तर प्रदेश से बढ़िया लोकेशन और क्या हो सकती थी? इसलिए फिल्म को शूट करने के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के हिस्से को चुना गया। नदिया के पार फिल्म की 90% शूटिंग जौनपुर के केराकत तहसील के विजयपुर और राजेपुर नामक गांवों में हुई। ये दोनों गांव सई नदी और गोमती नदी के किनारों पर बसे हैं। फिल्म में जिस नदी की बात की जाती है वह यही दो नदियां है। इसी स्थान पर सई नदी और गोमती नदी आपस में मिल जाती हैं।
आइये नदिया के पार फिल्म से जुड़े कुछ रोचक तथ्य जानते हैं।
1. केराकत नामक गांव यानी जहां नदिया के पार फिल्म की शूटिंग हुई थी वहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग लगभग डेढ़ दो महीने तक चली। फिल्म की पूरी टीम उस गांव में ही लगभग डेढ़ दो महीने तक रहे।
2. फिल्म की पूरी टीम का गांव के लोगो के साथ बहुत ही गहरा रिश्ता बन गया था।
3. गांव के स्थानीय निवासी बताते हैं की राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक ताराचंद बड़जात्या ने गाँव के लोगो को उस दौर में फिल्म की शूटिंग करने के लिए ८ लाख रुपये भी देने की पेशकश की थी मगर क्योंकि फिल्म के यूनिट मैनेजर रामजनक सिंह उसी गाँव के निवासी थे और उन्हें अपनी ही फिल्म कंपनी के मालिक से अपने ही गाँव में शूटिंग करने के लिये पैसे लेने का दिल नहीं था इसीलिए उन्होंने फिल्म बनाने के लिए उनके गाँव की लोकेशन का इस्तेमाल करने के लिए एक भी रूपया नहीं लिया था।
4. गाँव वाले कहते हैं की फिल्म की पूरी शूटिंग के दौरान वहाँ पर हमेशा पुलिस तैनात रहती थी क्योंकि कभी कभी शूटिंग देखने आयी भीड़ बेकाबू हो जाती थी और उन्हें कण्ट्रोल करने का काम केवल पुलिस ही कर सकती थी।
5. फिल्म के होली वाले गीत जोगी जी धीरे धीरे के लिए कई बोरियां भर भर के रंग और गुलाल मंगाए गए थे और गाने में दिख रहे ज़्यादातर लोग वही के ग्रामीण ही थे।
6. नदिया के पार फिल्म में भाषा अवधी और भोजपुरी है, नायक सचिन मराठी हैं और गायक जसपाल सिंह जी पंजाबी हैं। सचमुच ये हैं अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण।
7. जसपाल जी के पंजाबी होने के बाद भी उनकी की आवाज़ में साँची कहें तोरे आवन से हमरे और कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया जैसे देहाती गाने सुनने पर ऐसा लगता है जैसे कोई अवधी या भोजपुरी गवैय्या ही गा रहा हो।
8. ऐसा कहा जाता है की जब फिल्म की शूटिंग ख़तम हो गयी थी और फिल्म की टीम गाँव छोड़ कर जा रही थी तो जाते हुए पुरे गाँव के लोग ही नहीं बल्कि फिल्म का पूरा स्टाफ - पूरी की पूरी फिल्म की टीम के लोग - गाँव के लोगो से बिछड़ने के दुःख में फूट फूट के रोये।
महान संगीतकार रविंद्र जैन जी के संगीत से सजे नदिया के पार फिल्म के मिट्टी की खुशबू से ओतप्रोत दिल को छू लेने वाले कालजई गाने...
(1) जब तक पूरे न हों फेरे सात - हेमलता
(2) बबुआ ओ बबुआ - हेमलता
(3) जोगी जी धीरे धीरे - जसपाल सिंह
(4) साँची कहें तोरे आवन से हमरे - जसपाल सिंह
(5) गुंजा रे चन्दन - सुरेश वाडकर
(6) कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया - हेमलता और जसपाल सिंह
मुझे यकीन है इन कालजई गानो के हर गीत के साथ हमारी यादों का कोई ना कोई खुबसूरत किस्सा जरूर जुड़ा होगा और आप सभी इन गानों को इस समय गुनगुनाते हुए उन यादों को याद करते हुए मुस्कुरा रहे होंगे..
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