बेगम हजरत महल की शख्सियत मामूली पसमंजर वाली ऐसी हिन्दुस्तानी औरत की दास्ताँ है जिसने शोहरत हासिल करने में आसमान की उंचाइयो को छू लिया और जिसने यह साबित कर दिया कि औरत की शख्सियत अपने शौहर से अलग भी और ज्यादा भी हो सकती है | रसल ने उनकी तारीफ़ में कहा , '' यकीनन बेगम हजरत महल का वजूद उनके शौहर से कही बेहतर था '' हजरत शायरा भी थी उन्ही की कलम से ---
हुकूमत जो अपनी थी , अब है पराई |
अजल की तलब थी , अजल भी न आई
न तख्त और तख्ता असीरी न शाही ,
मुकद्दर हुई है जहा की गदाई ||
अदू बन के आये थे जो दोस्त अपने ,
न थी जिनकी उम्मीद की वह बुराई |
जमाना रखेगा पर अपनी नजर में ,
मेरी सरफरोशी मेरी परसाई ||
लिखा होगा हजरत महल की लहद पर ,
नसीबो जली थी फलक की सतायी |
उन्होंने कहा
जिन्दगी का फरेब खाना मत ,
सर कता देना मगर झुकाना मत |
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