#फिल्म_समीक्षा_PS2
आज मणिरत्नम की फिल्म PS 2 देख ली । सिनेमाहाल में आज पहली बार बहुत सारे बच्चे देखे । माता-पिता अपने बच्चों के साथ आये हुए थे । देखकर अच्छा लगा कि लोग अपने बच्चों को इस देश के एक हिस्से के गौरवपूर्ण इतिहास से रूबरू कराना चाहते हैं । पता नहीं बच्चे फिल्म को, राजनैतिक छल-छद्मों को, भयंकर मार-पीट को, नागपत्तनम बौद्ध विहार की नीरव शान्ति को कितना समझ पाएंगे पर जितना भी समझेंगे अच्छा ही होगा ।
पूरी फिल्म देखने के बाद कह सकता हूँ कि यह फिल्म तो एक प्रेमकथा होनी चाहिए थी । आदित्य करिकालन और नंदिनी की प्रेमकथा । एश्वर्या राय अनिन्द्य सुन्दरी लगी हैं अपनी भूमिका में और एक मानिनी स्त्री जिसे अपने प्रेम के तिरस्कार का बदला लेना है । वही आदित्य करिकालन की भूमिका में विक्रम एक कठोर, निर्दयी और रुक्ष प्रकृति के राजकुमार लगते हैं जिसे हिमालय तक चोल साम्राज्य का विस्तार करना है ।
जब मैं यह कहता हूँ कि इस फिल्म एक ऐतिहासिक राजवंश की कथा सुनाने वाली फिल्म की जगह एक विशुद्ध प्रेमकथा वाली फिल्म होना था तो इसके पीछे के मेरे अपने तर्क है ।
नंदिनी जिसके प्रेम को चोल राजवंश महज इसलिए स्वीकार नहीं करता क्योंकि उसके कुल का पता नहीं है तो वह समूचे चोल वंश के निर्मूलन का संकल्प ले लेती है । उस चोल वंश के निर्मूलन का संकल्प जिसमे उसका प्रेमी आदित्य करिकालन भी है । कभी वह समय था जब आदित्य और नंदिनी के प्रेम की महक समूचे कावेरी घाटी को सुवासित करती थी और अब उसमे जगह ले ली है प्रेम के तिरस्कार से उपजे नफरत ने । मान,अपमान और नफरत की विषबेल कुछ ऐसी पनपी कि समूचे चोल वंश से लिपटकर उसे सुखा देना चाहती है । फिल्म के मध्यांतर के बाद का एक दृश्य है जिसमे नंदिनी और आदित्य करिकालन का आमना-सामना होता है । नंदिनी अपने संकल्पों में बंधी हुई है और उसे आदित्य को समाप्त करना है, आदित्य भी जीवन से प्रेम के चले जाने के बाद ऐसा विरक्त हो चला है कि उसे अब अपनी प्रेयसी के हाथों मरने में ही मुक्ति दिखती है । जब दोनों सामने होते हैं तो नफरत की दीवारे गिर जाती हैं । आँखे अश्रुपूरित होकर बीते दिनों को याद करने लगती हैं । एक-एक संवाद, एक-एक दृश्य आपको प्रेम में टूट जाने के गहरे मर्म समझाता है । आदित्य करिकालन जिसे दुनिया एक भयंकर और वीर योद्धा के तौर पर जानती है वह अन्दर से कितना टूटा हुआ है यह बस चंद मिनटों के दृश्यों में पता चल जाता है ।
बाकी जयम रवि और कार्थी सुरेश ने भी अपनी भूमिकाओं का अच्छा निर्वहन किया है । त्रिशा, चोल राजकुमारी के रूप में अच्छी लगती है । बौद्ध विहार, कावेरी के तट की सुन्दरता, चोलो और पांड्यो की शिवभक्ति मन मोहती है ।
फिल्म की कमियों की बात करें तो फिल्म में कई कहानियाँ एक साथ चलती हैं जिससे कई बार बहुत कुछ समझ में नहीं आता । अगर चोलों, पांड्यो, राष्ट्रकूटों का इतिहास नहीं पढ़ा है तो एकसाथ इतनी कहानियां जोड़कर समझने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है । फिल्म के क्लाइमेक्स में ही इतना दिखा दिया गया है जिसपर एक अलग से फिल्म बन सकती है । गाने भी कुछ खास अच्छे नहीं है ।
इतने के बाद भी मै कहूँगा कि फिल्म देखनी चाहिए, एश्वर्या राय और विक्रम के शानदार अभिनय के लिए,दक्षिण के चोलों के राजनैतिक उत्थान को समझने के लिए... मौका मिले तो देखिए जरुर..