श्रीलंका में गृहयुद्ध खत्म हुए तीन साल होने वाले हैं. आज भी देश के हालात बुरे हैं. महिलाओं के लिए जीवन चुनौती भरा है. यदि महिला पति खो चुकी हो, तो उसका जीना दूभर हो जाता है.
18 मई को श्रीलंका में करीब आठ सौ हिन्दू महिलाएं अपने पति की समृद्धि के
लिए पूजा करेंगी. यह करवाचौथ का व्रत तो नहीं है, बल्कि उन पुरुषों की
सलामती के लिए दुआ में उठे हाथ हैं जो श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान मारे
गए या फिर लापता हो गए. श्रीलंका के उत्तरी इलाकों में महिलाओं के लिए काम
करने वाले समाज सेवक श्री अब्दुल सरूर बताते हैं, "ये महिलाएं आज भी उम्मीद
लगाए बैठी हैं, जबकि इतने लोगों की युद्ध के आखिरी दिनों में जान चली गई.
लेकिन अगर ये इस बात को मान भी लें कि इनके पति मर चुके हैं, तो भी ये
विधवा की जिंदगी नहीं जीना चाहती, क्योंकि फिर उन्हें समाज की बुरी नजरों
का सामना करना पड़ेगा."
महिलाओं का शोषण
गृहयुद्ध के कारण करीब 59 हजार महिलाएं विधवा हो गईं. इनमें से अधिकतर उत्तरी और पूर्वी तमिल आबादी वाले इलाकों में रहती हैं. इन महिलाओं को घर चलाने के लिए मजबूरन सेक्स वर्क के पेशे में जाना पड़ रहा है. अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक समाज सेवक ने बताया, "हम कोशिश करते हैं कि उन्हें देह व्यापार से दूर ले जाएं, लेकिन वे कहती हैं कि उनके पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है. इसलिए हम उन्हें गर्भ निरोध के बारे में जानकारी देते हैं और कंडोम उपलब्ध कराते हैं."
गैर सरकारी संस्थाओं पर सरकार को संशय है. जो गैर सरकारी संगठन पुनर्निमाण में मदद कर रहे हैं, उन्हें सरकार का समर्थन मिलता है. लेकिन मानवाधिकार और महिलाओं से जुड़े एनजीओ पर सरकार को शंका है. सरूर का इस बारे में कहना है, "जैसे ही आप कहते हैं कि आप एनजीओ से हैं, बखेड़ा खड़ा हो जाता है." सरूर का कहना है कि महिलाएं खुद को इस माहौल में असुरक्षित महसूस करती हैं.
बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामले भी सामने आए हैं, "एक बार तो एक नौ साल की बच्ची के शोषण का मामला सामने आया. महिलाओं का कहना है कि वे घर से निकलते हुए डरती हैं कि कहीं उनके पीछे उनके बच्चों के साथ बुरा व्यवहार ना हो."
सरकार का इनकार
समस्या यह भी है कि महिलाओं को यह नहीं पता कि वह अपने हक के लिए कैसे लड़े. महिलाओं के विकास के लिए काम कर रही शांती सचीथंदम का कहना है, "उनके पास आपबीती बताने का कोई विकल्प ही नहीं है. उन्हें सलाह की सख्त जरूरत है."
श्रीलंका इस बात से इनकार करता आया है कि गृहयुद्ध के अंतिम चरण में कई नागरिकों की जान गई. अब सरकार महिलाओं की स्थिति से भी इनकार कर रही है. कई समाज सेवकों को डर है कि यदि वे खुल कर इन मामलों पर चर्चा करेंगे तो उन्हें सरकार की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.
अपना नाम ना बताने की शर्त पर एक समाज सेविका ने कहा कि जब उसने पत्रकारों को हालात बताने चाहे तो उसे और उसके परिवार को सरकार की ओर से धमकियां मिलने लगीं. वह पत्रकारों की इस बात से अवगत करना चाह रही थी कि किस तरह श्रीलंका की महिलाओं को देह व्यापार के पेशे में जाना पड़ रहा है, "वे महिलाएं बहुत बुरे हाल में हैं. हम उन्हें ले कर बहुत चिंतित हैं और उन्हें इस जाल से निकालने में मदद करना चाहते हैं. लेकिन सरकार के सहयोग के बिना हम कुछ खास नहीं कर सकते."
इस समाज सेविका का कहना है कि जागरुकता ना होने के कारण एड्स जैसी बीमारियां भी फैल रही हैं और देश में अवैध बच्चों की संख्या बढ़ रही है.
आईबी, एएम (आईपीएस)
महिलाओं का शोषण
गृहयुद्ध के कारण करीब 59 हजार महिलाएं विधवा हो गईं. इनमें से अधिकतर उत्तरी और पूर्वी तमिल आबादी वाले इलाकों में रहती हैं. इन महिलाओं को घर चलाने के लिए मजबूरन सेक्स वर्क के पेशे में जाना पड़ रहा है. अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक समाज सेवक ने बताया, "हम कोशिश करते हैं कि उन्हें देह व्यापार से दूर ले जाएं, लेकिन वे कहती हैं कि उनके पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है. इसलिए हम उन्हें गर्भ निरोध के बारे में जानकारी देते हैं और कंडोम उपलब्ध कराते हैं."
गैर सरकारी संस्थाओं पर सरकार को संशय है. जो गैर सरकारी संगठन पुनर्निमाण में मदद कर रहे हैं, उन्हें सरकार का समर्थन मिलता है. लेकिन मानवाधिकार और महिलाओं से जुड़े एनजीओ पर सरकार को शंका है. सरूर का इस बारे में कहना है, "जैसे ही आप कहते हैं कि आप एनजीओ से हैं, बखेड़ा खड़ा हो जाता है." सरूर का कहना है कि महिलाएं खुद को इस माहौल में असुरक्षित महसूस करती हैं.
बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामले भी सामने आए हैं, "एक बार तो एक नौ साल की बच्ची के शोषण का मामला सामने आया. महिलाओं का कहना है कि वे घर से निकलते हुए डरती हैं कि कहीं उनके पीछे उनके बच्चों के साथ बुरा व्यवहार ना हो."
सरकार का इनकार
समस्या यह भी है कि महिलाओं को यह नहीं पता कि वह अपने हक के लिए कैसे लड़े. महिलाओं के विकास के लिए काम कर रही शांती सचीथंदम का कहना है, "उनके पास आपबीती बताने का कोई विकल्प ही नहीं है. उन्हें सलाह की सख्त जरूरत है."
श्रीलंका इस बात से इनकार करता आया है कि गृहयुद्ध के अंतिम चरण में कई नागरिकों की जान गई. अब सरकार महिलाओं की स्थिति से भी इनकार कर रही है. कई समाज सेवकों को डर है कि यदि वे खुल कर इन मामलों पर चर्चा करेंगे तो उन्हें सरकार की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.
अपना नाम ना बताने की शर्त पर एक समाज सेविका ने कहा कि जब उसने पत्रकारों को हालात बताने चाहे तो उसे और उसके परिवार को सरकार की ओर से धमकियां मिलने लगीं. वह पत्रकारों की इस बात से अवगत करना चाह रही थी कि किस तरह श्रीलंका की महिलाओं को देह व्यापार के पेशे में जाना पड़ रहा है, "वे महिलाएं बहुत बुरे हाल में हैं. हम उन्हें ले कर बहुत चिंतित हैं और उन्हें इस जाल से निकालने में मदद करना चाहते हैं. लेकिन सरकार के सहयोग के बिना हम कुछ खास नहीं कर सकते."
इस समाज सेविका का कहना है कि जागरुकता ना होने के कारण एड्स जैसी बीमारियां भी फैल रही हैं और देश में अवैध बच्चों की संख्या बढ़ रही है.
आईबी, एएम (आईपीएस)