प्रस्तुति- साक्षी बादल/ संतोष तिवारी
दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने दाखिले पर रोक के बाद इस्तीफा दे
दिया है. विश्वविद्यालय ने पिछले साल चार साल का ग्रेजुएशन कोर्स शुरू किया
है, जिस पर पूरे भारत में विवाद चल रहा है. यहां दाखिला भी रुक गया है.
इस मुद्दे के तूल पकड़ने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर दिनेश
सिंह ने इस्तीफा दे दिया. यूनिवर्सिटी के मीडिया कोऑर्डिनेटर मलय नीरव ने
बताया, "वीसी ने इस्तीफा दे दिया." इससे दो दिन पहले यूनिवर्सिटी ग्रांट
कमीशन ने डीयू से कहा था कि वह चार साल के कोर्स में दाखिला न ले. इसके बाद
से ही गणित के प्रोफेसर और करीब चार साल से यूनिवर्सिटी के उप कुलपति सिंह
के इस्तीफे की अटकलें लग रही थीं.
यूजीसी का कहना था कि चार साल के कोर्स को हटा कर दोबारा से तीन साल का स्नातक कोर्स शुरू किया जाना चाहिए. लेकिन सिंह इस मुद्दे पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता की दुहाई दे रहे थे. बाद में मानव संसाधन मंत्रालय ने इस मुद्दे पर किसी तरह की दखल से इनकार कर दिया और दोनों पक्षों से आपस में समझौता करने की अपील की.
इससे एक दिन पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों ने दाखिले को टालने का फैसला किया क्योंकि विवाद बढ़ता जा रहा था. दिल्ली के 64 कॉलेजों में करीब 54,000 सीटें होती हैं, जिनके लिए पौने तीन लाख छात्रों ने आवेदन किया है.
सिंह के इस्तीफे के बाद यूनिवर्सिटी के कुछ हिस्सों में छात्रों ने जश्न मनाया और अपनी "जीत" की बात कही. कई छात्र संघ चार साल के कोर्स का विरोध कर रहे थे. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष और यूजीसी की सदस्य नंदिता नारायण ने इस्तीफे का स्वागत किया है, "उन्होंने इस सीट पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो दिया था." नारायण ने स्वायत्तता वाली बात को नकारते हुए कहा कि किसी भी डिग्री को मान्यता देने या न देने का अधिकार यूजीसी के पास होता है.
हालांकि वाइस चांसलर का समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं. डीयू के एक्जक्यूटिव काउंसिल सदस्य एएन मिश्रा ने इस्तीफे को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा, "वीसी को यह फैसला लेने पर बाध्य होना पड़ा ताकि यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता को बचाया जा सके. इसके साथ ही यूनिवर्सिटी का पतन भी शुरू हो गया है."
इस बीच राजनीतिक दलों से भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया आने लगी है. यूपीए के शासनकाल में स्वास्थ्य मंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यूजीसी का फैसला जल्दबाजी में लिया गया लगता है और इससे एनडीए को नुकसान होगा, "यह दिमाग से लिया गया फैसला नहीं है और इसका पलटवार होगा."
बीजेपी ने दिल्ली में चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में कहा था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो चार साल वाले कोर्स को खत्म किया जाएगा. आजाद का कहना है कि 60,000 छात्रों ने नए कोर्स में दाखिला लिया है और हड़बड़ी में उठाए गए कदम की वजह से उनके भविष्य पर खतरा मंडरा सकता है.
हालांकि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रमजीत सिंह और एसके सिंह की खंडपीठ ने केस करने वाले प्रोफेसर आदित्य नारायण मिश्र से कहा है कि वह इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट जाएं. मिश्र ने यूजीसी के निर्देश को अदालत में चुनौती देने की कोशिश की थी. मिश्रा का दावा है कि चार सालों वाला एफवाईयूपी वैध है और उसे यूजीसी की सहमति भी मिली हुई है.
एजेए/ओएसजे (पीटीआई)
यूजीसी का कहना था कि चार साल के कोर्स को हटा कर दोबारा से तीन साल का स्नातक कोर्स शुरू किया जाना चाहिए. लेकिन सिंह इस मुद्दे पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता की दुहाई दे रहे थे. बाद में मानव संसाधन मंत्रालय ने इस मुद्दे पर किसी तरह की दखल से इनकार कर दिया और दोनों पक्षों से आपस में समझौता करने की अपील की.
इससे एक दिन पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों ने दाखिले को टालने का फैसला किया क्योंकि विवाद बढ़ता जा रहा था. दिल्ली के 64 कॉलेजों में करीब 54,000 सीटें होती हैं, जिनके लिए पौने तीन लाख छात्रों ने आवेदन किया है.
सिंह के इस्तीफे के बाद यूनिवर्सिटी के कुछ हिस्सों में छात्रों ने जश्न मनाया और अपनी "जीत" की बात कही. कई छात्र संघ चार साल के कोर्स का विरोध कर रहे थे. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष और यूजीसी की सदस्य नंदिता नारायण ने इस्तीफे का स्वागत किया है, "उन्होंने इस सीट पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो दिया था." नारायण ने स्वायत्तता वाली बात को नकारते हुए कहा कि किसी भी डिग्री को मान्यता देने या न देने का अधिकार यूजीसी के पास होता है.
हालांकि वाइस चांसलर का समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं. डीयू के एक्जक्यूटिव काउंसिल सदस्य एएन मिश्रा ने इस्तीफे को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा, "वीसी को यह फैसला लेने पर बाध्य होना पड़ा ताकि यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता को बचाया जा सके. इसके साथ ही यूनिवर्सिटी का पतन भी शुरू हो गया है."
इस बीच राजनीतिक दलों से भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया आने लगी है. यूपीए के शासनकाल में स्वास्थ्य मंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यूजीसी का फैसला जल्दबाजी में लिया गया लगता है और इससे एनडीए को नुकसान होगा, "यह दिमाग से लिया गया फैसला नहीं है और इसका पलटवार होगा."
बीजेपी ने दिल्ली में चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में कहा था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो चार साल वाले कोर्स को खत्म किया जाएगा. आजाद का कहना है कि 60,000 छात्रों ने नए कोर्स में दाखिला लिया है और हड़बड़ी में उठाए गए कदम की वजह से उनके भविष्य पर खतरा मंडरा सकता है.
हालांकि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रमजीत सिंह और एसके सिंह की खंडपीठ ने केस करने वाले प्रोफेसर आदित्य नारायण मिश्र से कहा है कि वह इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट जाएं. मिश्र ने यूजीसी के निर्देश को अदालत में चुनौती देने की कोशिश की थी. मिश्रा का दावा है कि चार सालों वाला एफवाईयूपी वैध है और उसे यूजीसी की सहमति भी मिली हुई है.
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- तारीख 24.06.2014
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