प्रस्तुति-- रतन सेन भारती / विनय बिंदास
इस प्यारी मुस्कुराहट के लिए..
साल 2015 तक दुनिया भर में अनाथ बच्चों की संख्या 40 करोड़ हो जाएगी. माएं
अनचाहे बच्चों की जान न लें या उन्हें कहीं बेसहारा न छोड़ जाएं, इसके लिए
जर्मनी ने एक तरकीब निकाली है.
कहते हैं मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है. एक नई जिंदगी को
दुनिया में लाना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है. पर कई बार माएं इस
जिम्मेदारी को उठाने के लिए तैयार नहीं होतीं. अनचाहे बच्चों को कोई
अस्पताल में ही छोड़ आता है, कोई मंदिर की सीढ़ियों पर तो कई बार तो नवजात
बच्चे कूड़ेदान में पड़े मिलते हैं. दुनिया भर में इसी तरह से बच्चों को अनाथ
छोड़ दिया जाता है.
जर्मनी में कैथोलिक महिलाओं के लिए काम कर रहे समाज सेवी संगठन एसकेएफ की प्रमुख मोनिका क्लाइने बताती हैं कि विकसित देशों में, जहां महिलाओं और परिवारों के पास अच्छी काउंसलिंग के अवसर होते हैं, वहां भी कई बार महिलाएं गरीबी या सामाजिक दबाव के कारण ऐसा करती हैं, "इन गर्भवती महिलाओं के सामने ऐसी स्थिति आ जाती है जहां वे समझ ही नहीं पाती कि करना क्या है और बच्चे के जन्म तक वे कोई उपाय नहीं ढूंढ पातीं." इसीलिए बच्चा हो जाने के बाद या तो वे उसे कहीं छोड़ देती हैं या फिर उसकी जान ले लेती हैं. इनमें कई ऐसी लड़कियां होती हैं जो विवाह से पहले गर्भवती हो जाती हैं, तो कुछ ऐसी जिनका पति बच्चे का पिता नहीं होता. साथ ही आर्थिक तंगी के कारण एक और बच्चे का बोझ उठाना भी मुश्किल हो जाता है.
"बच्चा यहां छोडें"
इसी को रोकने के लिए जर्मनी में ऐसी खास जगह बनाई गईं हैं जहां लोग अपना बच्चा छोड़ कर जा सकें. इन्हें "बेबीक्लापे" कहा जाता है यानी एक ऐसी खिड़की जिसे खोल कर आप बच्चे को वैसे ही रख सकते हैं जैसे आप लेटर बॉक्स में चिट्ठी डालते हैं. जर्मनी में इस तरह के करीब 100 बॉक्स हैं. साल 2000 से इस्तेमाल हो रही इन खिड़कियों में अब तक सैकड़ों बच्चों को छोड़ा जा चुका है. कोलोन में भी एसकेएफ ने अपनी एक इमारत में इस तरह की एक खिड़की लगाई है. यहां काम करने वाली काटरिन लाम्बरेष्ट बताती हैं कि खिड़की के अंदर बच्चे के लिए एक पालना रखा होता है जिसमें फर की चादर होती है ताकि बच्चे को कोई परेशानी न हो, साथ ही हीटर भी चलता रहता है, "जैसे ही कोई बच्चे को यहां छोड़ जाता है मेरे मोबाइल फोन में अलार्म बजने लगता है. जैसे ही अलार्म बजता है, मेरा दिल बैठ जाता है."
पिछले 12 साल में यहां 19 बच्चे छोड़े जा चुके हैं. हालांकि कई जानकार इसके खिलाफ हैं और कड़े नियमों की मांग कर रहे हैं. जर्मन युवा शोध संस्थान डीजेआई की मोनिका ब्राडना कहती हैं, "मां और बच्चे के लिए इस बेबीक्लापे से बुरा कुछ नहीं हो सकता. बेबीक्लापे चलाने वाली कई संस्थाएं तो आज यह जानती भी नहीं हैं कि बच्चों के साथ बाद में हुआ क्या." दरअसल इन संस्थाओं का काम केवल बच्चों को सुरक्षित सरकार तक पहुंचाना होता है. इसके बाद सरकार उन्हें अनाथ आश्रम भेज देती है, जहां से लोग उन्हें गोद ले लेते हैं. कई बार माएं इनसे संपर्क दोबारा बनाकर अपने बच्चे के बारे में पूछताछ करती हैं. लेकिन अधिकतर बच्चों को अपने मां बाप के बारे में कभी कुछ पता नहीं चलता.
1989 में बने जर्मन कानून के अनुसार हर व्यक्ति को अपने माता पिता के बारे में जानकारी हासिल करने का हक है. जर्मनी में ऐसे करीब 130 अस्पताल हैं जहां महिलाएं बिना अपनी पहचान बताए बच्चे को जन्म दे सकती हैं. हालांकि असपताल में परिचय छिपाने पर अभी कोई कानून नहीं बना है. अब तक इस पर बहस चलती आई है और अब जर्मनी की परिवार मामलों की मंत्री क्रिस्टीना श्रोएडर देश भर के अस्पतालों में इसकी अनुमति देना चाहती हैं. इससे वे बच्चे को वहीं छोड़ सकेंगी और उन्हें बेबीक्लापे का सहारा नहीं लेना पड़ेगा. साथ ही सरकार मां और बच्चे की पूरी जानकारी भी जुटा सकेगी. 16 साल तक मां की जानकारी अस्पताल में सुरक्षित रहेगी. उसके बाद बच्चे के पास इस जानकारी को हासिल करने का हक होगा. पैदा होते ही भले ही किसी न किसी कारण से माओं ने अपने बच्चों को छोड़ दिया हो, लेकिन इस तरह के कानून के आने के बाद कई साल बाद भी अपने बच्चे से दोबारा मिलने की एक उम्मीद बनी रहेगी.
रिपोर्ट: मोनिका डीटरिष/ईशा भाटिया
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन
जर्मनी में कैथोलिक महिलाओं के लिए काम कर रहे समाज सेवी संगठन एसकेएफ की प्रमुख मोनिका क्लाइने बताती हैं कि विकसित देशों में, जहां महिलाओं और परिवारों के पास अच्छी काउंसलिंग के अवसर होते हैं, वहां भी कई बार महिलाएं गरीबी या सामाजिक दबाव के कारण ऐसा करती हैं, "इन गर्भवती महिलाओं के सामने ऐसी स्थिति आ जाती है जहां वे समझ ही नहीं पाती कि करना क्या है और बच्चे के जन्म तक वे कोई उपाय नहीं ढूंढ पातीं." इसीलिए बच्चा हो जाने के बाद या तो वे उसे कहीं छोड़ देती हैं या फिर उसकी जान ले लेती हैं. इनमें कई ऐसी लड़कियां होती हैं जो विवाह से पहले गर्भवती हो जाती हैं, तो कुछ ऐसी जिनका पति बच्चे का पिता नहीं होता. साथ ही आर्थिक तंगी के कारण एक और बच्चे का बोझ उठाना भी मुश्किल हो जाता है.
"बच्चा यहां छोडें"
इसी को रोकने के लिए जर्मनी में ऐसी खास जगह बनाई गईं हैं जहां लोग अपना बच्चा छोड़ कर जा सकें. इन्हें "बेबीक्लापे" कहा जाता है यानी एक ऐसी खिड़की जिसे खोल कर आप बच्चे को वैसे ही रख सकते हैं जैसे आप लेटर बॉक्स में चिट्ठी डालते हैं. जर्मनी में इस तरह के करीब 100 बॉक्स हैं. साल 2000 से इस्तेमाल हो रही इन खिड़कियों में अब तक सैकड़ों बच्चों को छोड़ा जा चुका है. कोलोन में भी एसकेएफ ने अपनी एक इमारत में इस तरह की एक खिड़की लगाई है. यहां काम करने वाली काटरिन लाम्बरेष्ट बताती हैं कि खिड़की के अंदर बच्चे के लिए एक पालना रखा होता है जिसमें फर की चादर होती है ताकि बच्चे को कोई परेशानी न हो, साथ ही हीटर भी चलता रहता है, "जैसे ही कोई बच्चे को यहां छोड़ जाता है मेरे मोबाइल फोन में अलार्म बजने लगता है. जैसे ही अलार्म बजता है, मेरा दिल बैठ जाता है."
पिछले 12 साल में यहां 19 बच्चे छोड़े जा चुके हैं. हालांकि कई जानकार इसके खिलाफ हैं और कड़े नियमों की मांग कर रहे हैं. जर्मन युवा शोध संस्थान डीजेआई की मोनिका ब्राडना कहती हैं, "मां और बच्चे के लिए इस बेबीक्लापे से बुरा कुछ नहीं हो सकता. बेबीक्लापे चलाने वाली कई संस्थाएं तो आज यह जानती भी नहीं हैं कि बच्चों के साथ बाद में हुआ क्या." दरअसल इन संस्थाओं का काम केवल बच्चों को सुरक्षित सरकार तक पहुंचाना होता है. इसके बाद सरकार उन्हें अनाथ आश्रम भेज देती है, जहां से लोग उन्हें गोद ले लेते हैं. कई बार माएं इनसे संपर्क दोबारा बनाकर अपने बच्चे के बारे में पूछताछ करती हैं. लेकिन अधिकतर बच्चों को अपने मां बाप के बारे में कभी कुछ पता नहीं चलता.
1989 में बने जर्मन कानून के अनुसार हर व्यक्ति को अपने माता पिता के बारे में जानकारी हासिल करने का हक है. जर्मनी में ऐसे करीब 130 अस्पताल हैं जहां महिलाएं बिना अपनी पहचान बताए बच्चे को जन्म दे सकती हैं. हालांकि असपताल में परिचय छिपाने पर अभी कोई कानून नहीं बना है. अब तक इस पर बहस चलती आई है और अब जर्मनी की परिवार मामलों की मंत्री क्रिस्टीना श्रोएडर देश भर के अस्पतालों में इसकी अनुमति देना चाहती हैं. इससे वे बच्चे को वहीं छोड़ सकेंगी और उन्हें बेबीक्लापे का सहारा नहीं लेना पड़ेगा. साथ ही सरकार मां और बच्चे की पूरी जानकारी भी जुटा सकेगी. 16 साल तक मां की जानकारी अस्पताल में सुरक्षित रहेगी. उसके बाद बच्चे के पास इस जानकारी को हासिल करने का हक होगा. पैदा होते ही भले ही किसी न किसी कारण से माओं ने अपने बच्चों को छोड़ दिया हो, लेकिन इस तरह के कानून के आने के बाद कई साल बाद भी अपने बच्चे से दोबारा मिलने की एक उम्मीद बनी रहेगी.
रिपोर्ट: मोनिका डीटरिष/ईशा भाटिया
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन
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