वीरेन्द्र सेंगर
प्रस्तुति अमित कुमार/ रोहिट बघेल
रक्षा मोर्चे पर कड़क तेवर:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द से जल्द लोकप्रियता बटोरने के तमाम
फॉर्मूलों पर एक साथ बढ़ते नजर आने लगे हैं। सैन्य जवानों के बीच ‘सुपरहीरो’
बनने की रणनीति पर उन्होंने अपनी पहल तेज कर दी है। प्रधानमंत्री बनने के
बाद उन्होंने दिल्ली से बाहर अपना पहला दौरा गोवा का ही कर डाला। यहां पर
समुद्र तट में उन्होंने सबसे बड़े युद्धपोत और विमान वाहक को देश को समर्पित
किया। आईएनएस ‘विक्रमादित्य’ अब नौसेना का हिस्सा बन गया है। तमाम खूबियों
वाले इस युद्ध पोत से भारतीय नौसेना की ताकत बहुत मजबूत हो गई है। इसे 15
हजार करोड़ रुपए की लागत से रूस में बनवाया गया है। इस जंगी युद्ध पोत के
लोकार्पण समारोह में प्रधानमंत्री ने यह जताने की भरसक कोशिश की कि सुरक्षा
क्षेत्र उनकी सरकार के लिए पहली प्राथमिकताओं में है। उन्होंने इस बात पर
जोर दिया है कि तीनों सेनाओं को जल्द से जल्द साधन-संपन्न बनाने की कोशिश
की जाएगी। यह भी कोशिश रहेगी कि सुरक्षा क्षेत्र में अब देशी उपकरणों को
ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए।
एक तरफ प्रधानमंत्री आईएनएस विक्रमादित्य में सवार होकर 1600 नौसैनिकों का
हौसला बढ़ाते रहे। वे करीब चार घंटे तक इस युद्ध पोत पर रहे। उन्होंने इस
दौरान समुद्र में युद्धाभ्यास का रणकौशल भी देखा। युद्धपोत में सवार तमाम
नौसैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए उन्होंने शाबासी में कइयों की पीठ भी
थपथपाई। मोदी ने इस दौरान आईएनएस विक्रमादित्य से लड़ाकू विमान ‘मिग-29’ के
टेकआॅफ और लैंडिग का करतब भी देखा। 284 मीटर लंबे और 60 मीटर चौड़े इस
महायुद्ध पोत की तमाम खूबियां हैं। इसमें इतनी खुली जगह है कि फुटबॉल के
तीन मैदान बन जाएं। 20 मंजिला यह युद्धपोत एंटी-मिसाइल सिस्टम से लैस है।
दुनिया में बहुत कम देशों के पास ही इतना सक्षम और जंगी युद्धपोत है। इसका
कुल वजन करीब 44,500 टन है।
इसमें 30 लड़ाकू विमान रखने की क्षमता है। ये विमान पलक झपकते ही दुश्मन पर
पलटवार करने में सक्षम हैं। शनिवार को आईएनएस विक्रमादित्य का लोकार्पण
करते हुए नरेंद्र मोदी काफी भावुक भी हो उठे थे। उन्होंने कहा कि आज का दिन
भारतीय नौसेना के लिए स्वर्णिम दिवस बन गया है। क्योंकि, इस जंगी युद्ध
पोत से नौसेना की शान दुनियाभर में बढ़ गई है। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर
अपनी कड़क रक्षा नीति के संकेत भी दे दिए। उन्होंने कहा कि वे चाहेंगे कि
सुरक्षा क्षेत्र में देशी तकनीक को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन दिया जाए।
ताकि, हमें सैन्य संसाधनों के लिए दूसरे देशों का ज्यादा मुंह न ताकना पड़े।
लोकसभा के चुनावी अभियान के दौरान भी मोदी बार-बार कहते आए हैं कि मनमोहन
सरकार के दौर में रक्षा नीति बहुत कमजोर किस्म की रही है। इसी के चलते
पड़ोसी देशों ने सीमाओं पर बार-बार ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघने की जुर्रत की है।
यदि उनकी सरकार आई, तो तस्वीर पूरी तौर पर बदल जाएगी।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बन गई है। सत्ता संभालने के
बीस दिन के अंदर ही उन्होंने आईएनएस विक्रमादित्य के लोकार्पण समारोह में
कह दिया कि भारत की रक्षा नीति का मूलमंत्र यही रहेगा, न किसी को आंख
दिखाएंगे और न झुकाएंगे। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि सैन्य
क्षेत्र में विदेशी आयात पर निर्भरता कम करेंगे। सरकार की कोशिश रहेगी कि
देश में ही ज्यादा से ज्यादा बेहतर सैन्य उपकरण बनाने की तकनीक विकसित कर
ली जाए। मोदी की इस तरह की जज्बाती घोषणाओं से कई सैन्य विशेषज्ञ भी नई
उम्मीदों से भर उठे हैं। शुक्रवार को जम्मू के पास मेंढर सेक्टर में पाक
सैनिकों ने सीजफायर का जमकर उल्लंघन किया था। इन लोगों ने तीन भारतीय सैन्य
चौकियों को निशाना बनाने की कोशिश की। यहां तक कि इस इलाके के कई रिहायशी
क्षेत्रों में भी मोर्टार से गोले दागे गए। लाइन आॅफ कंट्रोल (एलओसी) के
पास आईडी विस्फोट में एक सैन्य जवान शहीद भी हो गया। पाक सैनिकों की इस
करतूत को नई सरकार ने काफी गंभीरता से लिया। शुक्रवार को दोपहर में ही
प्रधानमंत्री ने साउथ ब्लॉक स्थित ‘वार रूम’ में एक उच्चस्तरीय बैठक कर
डाली।
इस ‘वार रूम’ बैठक में तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ रक्षा मंत्री अरुण
जेटली भी थे। इस बैठक में लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग को भी शामिल
किया गया। उल्लेखनीय है कि जनरल सुहाग अगले सेना अध्यक्ष पद के लिए नामित
हो चुके हैं। अगस्त में वे सेना प्रमुख का पदभार संभालेंगे। इस बैठक में
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल भी उपस्थित रहे। सेनाध्यक्ष जनरल
बिक्रम सिंह ने इस दौरान प्रधानमंत्री को यह जानकारी दी कि पाक अधिकृत
कश्मीर के कई इलाकों में दर्जनों आतंकी शिविर बरकार हैं। इन्हीं शिविरों से
तमाम प्रशिक्षित आतंकियों को भारत में घुसपैठ कराने की कोशिशें सालों से
चलती आई हैं। इसमें कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री और रक्षा
मंत्री ने इस मौके पर सेना प्रमुखों को निर्देश दिया कि अब सुरक्षा की
लक्ष्मण रेखा लांघने वालों को कड़ा जवाब मिलना चाहिए। हमें इसी नीति पर आगे
बढ़ना है। प्रधानमंत्री ने यह भी आश्वस्त कर दिया है कि छह महीने के अंदर ही
सेना को सभी बेहद जरूरी युद्धक संसाधन उपलब्ध कराने की कोशिश रहेगी। नेवी
और एयरफोर्स को भी संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी।
रक्षा मंत्री अरुण जेटली भी शनिवार को अपने पहले दौरे पर श्रीनगर के लिए
निकले। वे आज (रविवार) जम्मू के पास एलओसी के इलाकों का भी निरीक्षण कर रहे
हैं। ताकि, यह देख-जान सकें कि भारतीय सेना किस तरह से सीमा पर चाक-चौबंद
रहती है? श्रीनगर पहुंचकर जेटली ने मीडिया से कहा भी कि उनकी सरकार का
रवैया सुरक्षा नीति के मामले में एकदम दृढ़ इरादों वाला रहेगा। यदि सीमापार
से बार-बार शरारत की गई, तो भारतीय फौज भी माकूल जवाब देगी। इसके निर्देश
पहले ही जारी कर दिए गए हैं। हालांकि, उनकी सरकार चाहती है कि पाकिस्तान से
रिश्ते अच्छे हों। पिछले दिनों पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दिल्ली आए
थे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से यह वायदा भी किया है कि दोनों देश यह
कोशिश करेंगे कि एलओसी पर भी शांति रहे, ताकि आपसी विश्वास के रिश्ते मजबूत
हों। इसके बावजूद यदि पाकिस्तान की तरफ से हमारा विश्वास तोड़ा जाता है तो
सेना अपनी तरह से माकूल जवाब देने के लिए सक्षम है।
रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि जिस तरह से सुरक्षा के मामलों में मोदी
सरकार ने कड़क तेवर दिखाए हैं, उससे सेना के बीच भी उत्साह का माहौल तैयार
होगा। जबकि, यूपीए सरकार के दौरान सरकार के स्तर पर उचित फैसलों के लिए समय
पर निर्देश नहीं मिल पाते थे। ऐसे में, कई बार अनिश्चितता की स्थिति भी
पैदा होती रही है। अब नए प्रधानमंत्री से लेकर रक्षा मंत्री जेटली ने साफ
कर दिया है कि देश की सुरक्षा के मामले में किसी तरह का कोई समझौता नहीं
किया जाएगा। राजनीतिक हल्कों में माना जा रहा है कि पाकिस्तान के मोर्चे पर
मोदी ने काफी चतुराई भरे दांव चले हैं। एक तरफ वे अपने शपथ समारोह में
नवाज शरीफ को न्यौता देकर बुला लेते हैं, इससे पूरी दुनिया को यह संदेश दे
देते हैं कि भारत अपनी तरफ से पाकिस्तान से भी दोस्ती के रिश्ते चाहता है।
मोदी ने नवाज शरीफ को भी यही संदेश दिया। शॉल और साड़ी के उपहारों के
लेन-देन की कूटनीति का दांव भी चला गया। इसके जरिए मोदी ने यह संदेश भी
देने की कोशिश की कि वे इतने ‘कट्टर’ नहीं हैं, जितने की उनकी छवि गढ़ने की
कोशिश हुई है।
प्रधानमंत्री ने शुरुआत से ही जिस तरह से सुरक्षा मामलों में पाक के खिलाफ
मजबूत घेरबंदी शुरू की है, इससे कहीं न कहीं उन्होंने लोकप्रियता बटोरने की
भी कवायद कर डाली है। क्योंकि, लंबे समय से देशभर में यह धारणा रही है कि
सैन्य मामलों में भारत की रक्षा नीति कुछ कमजोर किस्म की रही है। इसी के
चलते सीमा पर पाकिस्तान के सैनिक आए दिन भारतीय क्षेत्र में आकर खूनी धमाल
मचा जाते हैं। कुछ महीने पहले तो वे भारतीय सैन्य चौकी तक आ धमके थे।
उन्होंने सेना के जवानों का सिर भी काट लिया था। इस प्रकरण की चर्चा लंबे
समय तक रही है। दूसरी तरफ, चीन भी लद्दाख और अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों
में पिछले दो सालों से आक्रामक तेवरों में रहा है। कई बार चीनी सैनिकों ने
घुसपैठ की है। एक दो बार तो चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में तंबू लगाकर ही
कई दिनों तक बैठे रहे थे।
तमाम कूटनीतिक कोशिशों के बाद ही चीनी सैनिकों ने लौटने की ‘कृपा’ की थी।
लेकिन, इस मोर्चे पर कमजोर सैन्य नीति की आलोचना रक्षा विशेषज्ञों ने जमकर
की थी। अब नई सरकार यह तस्वीर तेजी से बदलने की कोशिश कर रही है। ताकि, देश
में यह संदेश जाए कि अब तो ‘महायोद्धा’ (मोदी) की सरकार है। सो, चीन और
पाकिस्तान कोई भी हमें आंख दिखाने की कोशिश करेगा, तो वह उसका तुरंत माकूल
अंजाम भी भुगतेगा। यह अलग बात है कि मोदी सरकार इस मोर्चे पर आगे क्या कर
पाती है? फिल्हाल, उसने जिस तरह के दृढ़ संदेश दिए हैं, इससे सेना के तमाम
पूर्व जनरल भी खुश हो गए हैं। इनमें से कइयों ने यह अलाप लगाना शुरू कर
दिया है कि अब वाकई में सैन्य क्षेत्र के तो ‘अच्छे दिन’ आने को ही हैं।
लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क virendrasengardelhi@gmail.com के जरिए किया जा सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें