बुधवार, 30 सितंबर 2015

नाव और मामा



 

 

 

जहां मामा- भांजा नाव से नही जाते चढ़ते

Updated Mar 07, 2013 at 14:51 pm IST |
07 मार्च 2013
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस


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रायपुर। छत्तीसगढ़ के राजिम के त्रिवेणी संगम के बीच में वर्षों से टिका कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना होने के साथ-साथ प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का जीवंत उदाहरण है। तीन नदियों के संगम के कारण राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी नदियों का संगम है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 किलोमीटर दूर स्थित राजिम में नदी पर बना पुल 40 साल भी नहीं टिक पाया, जबकि वहां आठवीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर आज भी खड़ा है। मान्यता है कि जहां मंदिर है वहां राम वनवास के दौरान सीता ने रेत का शिवलिंग बनाकर पूजा-अर्चना की थी। मंदिर का दर्शन करने देशभर के लोग यहां पहुचते हैं।

राजिम में नदी के एक किनारे पर भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और बीच में कुलेश्वर महादेव का। किनारे पर एक और महादेव मंदिर है जिसे मामा का मंदिर कहा जाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर को भांजे का मंदिर कहते हैं।

किंवदंति है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहां से आवाज आती थी, मामा बचाओ। इसी मान्यता के कारण यहां आज भी नाव पर मामा-भांजे को एक साथ सवार नहीं होने दिया जाता है। नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।

इसी नदी पर मंदिर से कुछ ही दूरी पर नयापारा और राजिम दोनों बस्तियों को जोड़ने वाला पुल है। सन 1971 में यातायात के लिए खोला गया नेहरू पुल आज खस्ताहाल होकर खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। उसी जलधारा के बीचों-बीच कुलेश्वर मंदिर प्राचीन काल की इंजीनियरिंग का ज्वलंत प्रमाण है। बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों तक मंदिर को डुबाए रखता है।

कुछ सालों पहले जब नदी पर बांध नहीं बने थे तब उसकी उफनती जलधारा कहर बरपाती थी। उस समय भी अपने बेहतरीन अष्टकोणीय ढांचे पर आसानी से पानी की मार झेलता मंदिर खड़ा रहा।

मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियां बनी है। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। मंदिर निर्माण के लिए लगभग 2 कि.मी. चौड़ी नदी में उस समय निर्माताओं ने ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था।

यह मंदिर और राजिम अब कुंभ के रूप में प्रसिद्ध हो चला है। अभी यहां देशभर के साधु-संतों का जमघट लगा हुआ है।

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