मैं मैके अपने आई सखी, कई दिन साजन से दूर रही
मन मयूर मेरा नाच उठा, जब साजन मेरे घर आया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
एकांत जगह मेरे घर में, बाँहों में मुझको कैद किया
मेरे होठों को होठों से, सखी जोंक की भांति जकड लिया
मैं भी न चाहूँ होंठ हटें, साजन को करीब और खीच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कुछ हलचल हुई, मैं चौंक गई, साजन को परे हटाय दिया
रात में मिलूंगी साजन ने, सखी मुझसे वादा धराय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
जैसे-तैसे तो शाम हुई, रात्रि तो मुझे बड़ी दूर लगी
होते ही रात सखी साजन को, बहनों ने मेरी घेर लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
हँसी ठिठोली बहनों की, मुझको बिलकुल न भाई सखी
सिरदर्द के बहाने मैंने तो, बहनों से किनारा काट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
अपने कमरे में आकर मैं, सखी बिस्तर पर थी लेट गई
बंद करके आँखें पड़ी रही, साजन के सपनो में डूब गई
हर आहट पर सखी मैंने तो, साजन को ही आते पाया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
दरवाज़े खुले फिर बंद हुए, कुण्डी उन पर सरकाई गई
मैं जान – बूझकर सुन री सखी, निद्रा-मुद्रा में लेट गई
साजन की सुगंध को मैंने तो, हर साँस में था महसूस किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने बैठकर बिस्तर पर, मेरे कंधे सहलाए सखी
गालों पर गहन चुम्बन लेकर, अंगिया की डोर को खींच दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
नग्न पीठ पर साजन ने, ऊँगली से रेखा खींच दई
बिजली जैसे मुझमे उतरी, सारे शरीर में दौड़ गई
निस्वास लेकर फिर मैंने तो, अपनी करवट को बदल लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
करवट तो मात्र बहाना था, बैचेन बदन को चैन कहाँ
मुझे साजन की खुसबू ने सखी, अंग लगने को मजबूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
एक हाथ से उसने सुन ओ सखी, स्तन दबाये और भीच लिया
मैंने गर्दन को ऊपर कर, उसके हाथों को चूम लिया
दोनों बाँहों से भीच मुझे, साजन ने करीब और खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने जोर लगा करके, मोहे अपने ऊपर लिटा लिया
मेरे तपते होठों को उसने, अपने होठों में कैद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने भींचा मेरा निचला होंठ, मैंने ऊपर का भींच लिया
दोनों के होंठ यूँ जुड़े सखी, जिह्वाओं ने मिलन का लुत्फ़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने उठाकर मुझे सखी, पलंग के नीचे फिर खड़ा किया
खुद बैठा पलंग किनारे पर, मेरा एक-एक वस्त्र उतार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मुझे पास खींचकर फिर उसने, स्तनों के चुम्बन गहन लिया
दोनों हाथों से नितम्ब मेरे, सख्ती से दबाकर भींच लिया
कई तरह से उनको सहलाया, कई तरह से दबाकर छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
स्तन मुट्ठी में जकड सखी, उसने उनको था उभार लिया
उभरे स्तन को साजन ने, अपने मुंह माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
बोंडियों को जीभ से उकसाया, होठों से पकड़ उन्हें खींच लिया
रस चूसा सखी उनसे जी भर, मेरी काम- क्षुधा भड़काय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन का दस अंगुल का अंग, सखी मेरी तरफ था देख रहा
उसकी बेताबी समझ सखी, मैंने उसको होठास्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पलंग के कोर बैठा साजन, मैं नीचे थी सखी बैठ गई
साजन के अंग पर जिह्वा से, मैंने तो चलीं कई चाल नई
वह ओह-ओह कर चहुंक उठा, मैंने अंग को ऐसा दुलार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
अब सब कुछ था बिपरीत सखी, साजन नीचे मैं पलंग कोर
जिस तरह से उसने चूसे स्तन, उसी तरह से अंग को चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने अपनी जिह्वा से सखी, अंग को चहूँ ओर से चाट लिया
बहके अंग के हर हिस्से को, जिह्वा- रस से लिपटाय दिया
रस में डूबे मेरे अंग में, अन्दर तक जिह्वा उतार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं पलंग किनारा पकड़ सखी, अंग को उभार कर खड़ी हुई
साजन ने मेरे नितम्बों पर, दांतों से सिक्के छाप दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसके बिपरीत मुख करके सखी, घुटनों के बल मैं बैठ गई
कंधे तो पलंग पर रहे झुके, नितम्बों को पूर्ण उठाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने झुककर पीछे से, अंग ऊपर से नीचे चाट लिया
खुले-उभरे अंग में उसने, जिह्वा को अंग बनाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने अपने अंग से सखी, मेरे अंग को जी भरके रगडा
अंग से स्रावित रस में अंग को, सखी पूर्णतया लिपटाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कठोर -सख्त अंग से री सखी, रस टपक-टपक कर गिरता था
दस अंगुल की चिकनी सख्ती, मेरे अंग के मध्य घुसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
जांघों के सहारे उठे नितम्ब, अब स्पंदन का सुख भोग रहे
स्पंदन की झकझोर से फिर, स्तन दोलन से डोल रहे
सीत्कार, सिसकी, उई, आह, ओह, सब वातावरण में घोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
ऐसे स्पंदन सखी मैंने, कभी सोचे न महसूस किये
पूरा अंग बाहर किया सखी, फिर अन्तस्थल तक ठेल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैंने अंग में महसूस करी, अंग की कठोर पर मधुर छुहन
अंग की रसमय मधुशाला में, अंग ने अंग को मदहोश किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पहले तो थे धीरे-धीरे, अब स्पंदन क्रमशः तेज हुए
अंग ने अब अंग के अन्दर ही, सुख के थे कई-कई छोर छुए
तगड़े गहरे स्पंदन से, मेरा रोम-रोम आह्लाद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने अब जिह्वा रस की, एक धारा नितम्ब मध्य टपकाई
उसकी सारी चिकनाई सखी, हमरे अंगों ने सोख लई
चप-चप, लप-लप की ध्वनियों से, सुख के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
जैसे-जैसे बड़े स्पंदन, वैसे-वैसे आनंद बड़ा
हर स्पंदन के साथ सखी, सुख घनघोर घटा सा उमड़ पड़ा
साजन की आह ओह के संग, मैंने आनंदमय सीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
वारिस होने के पहले ही, सखी मेरा बांध था टूट गया
मेरी जांघों ने जैसे की, नितम्बों का साथ था छोड़ दिया
अंग का महल ढह गया सखी, दीर्घ आह ने सुख अभिव्यक्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मेरे नितम्बों के आँगन पर, साजन ने मोती बिखेर दिया
साजन के अंग ने मेरे अंग को, सखी अद्भुत यह उपहार दिया
आह्लादित साजन ने नितम्बों का, मोती के रस से लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मोती रस से मेरी काम अगन, मोती सी शीतल हुई सखी
मन की अतृप्त इस धरती पर, घटा उमड़-उमड़ कर के बरसी
मैंने साजन का सिर खीच सखी, अपने बक्षों में छुपाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया