5 सितम्बर को पेपर प्लेट मजदूरों ने करावल नगर मजदूर यूनियन के बैनर के तले अपने हक और मांगो को लेकर अनिश्चितकालीन हडताल की शुरुवात की। मजदूरों ने पीस रेट पर मिलने वाली मजदूरी में बढोतरी व साफ पानी, साफ टोइलेट, फैक्ट्री कार्ड की व्यवस्था इत्यादि मांगे उठाई हैं। करीबन 100-150 मजदूरों ने फैक्ट्री इलाके और आस पास के इलाके में रैली निकलकर हडताल का आगाज किया। उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर तथा आस-पास के इलाके में लगभग 1 लाख मजदूर आबादी रहती हैं। वैसे तो करावल नगर औद्योगिक क्षेत्रा है जहां करीबन 2000 छोटी-बड़ी फैक्ट्री हैं। इनमें हर पफैक्ट्री में 5-10 से लेकर 100-150 मजदूर तक 12-14 घंटे सिंगल रेट पर खटते हैं। यहां पर खिलौनों, हवाई जहाज के कल पुर्जे, प्रेशर कुकर, गत्ता, जूत्ता, कपड़ा, चश्मे के फ्रेम, मोटर-साइकिल के पोर्ट, बिजली का तार , इत्यादि माल का उत्पादन होता है। सिपर्फ पफैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की आबादी ही पचास-साठ हजार होगी। इनमें से लगभग 95 पफीसदी फैक्ट्रीयां, फैक्ट्री एक्ट 1948 के तहत रजिस्टरड नहीं हैं यानी बगैर लाइसेन्स की हैं। यहां श्रम कानूनों को मालिक अपने जूते के नीचे रखते हैं। फैक्ट्री इलाके के मजदूरों के अलावा बादाम मजदूर, निर्माण मजदूर, रिक्शा-ठेला आदि मजदूरों की भी भारी आबादी इस इलाके में बसती हैं। वैसे करावल नगर इलाका दो साल पहले बादाम मजदूरों की 16 दिन की ऐतहासिक हड़ताल के कारण चर्चित रहा था। जिसमें ज्यादातर माहिला मजदूर काम करती हैं ये आन्दोलन जरूर एक पेशा के तौर पर लड़ा गया लेकिन इसका आधर इलाकाई था।
रैली में लाल झंडों, मांगो व नारों की तख्तियों, यूनियन के बैनर लिए गगन भेदी नारे लगाते हुए मजदूरों के टोले ने हर पेपर प्लेट फैक्ट्री पर जाकर ये सुनिश्चित किया की किसी भी फैक्ट्री में मशीन न चले. पेपर प्लेट मजदूरों की इस लडाई में तमाम फेक्टोरियों के मजदूर, निर्माण मजदूर, बादाम मजदूर, सिलाई मजदूर, छात्र व नागरिक भी शामिल थे। रैली करावल नगर चोक से होती हुयी जाकर थमी दयालपुर फैक्ट्री के आगे जहाँ बड़ी पेपर प्लेट फैक्ट्री है. हडताल स्थल पर जाकर यूनियन के सदस्यों, मजदूरों, छात्रों ने हड़तालियों को संबोधित किया। यूनियन के सदस्य नवीन ने हडताली मजदूरों को हड़ताल की जरूरत तथा इसे मालिक वर्ग की लड़ाई में कारगार बताया, उन्होंने बताया की हडताल मालिक वर्ग के खिलाफ़ मजदूर वर्ग का सबसे कारगर हथियार होता है. उन्होंने बताया की पेपर प्लेट मजदूरों की12 14 घंटे की कडी मेहनत के बाद ही तमाम शादी पार्टियों, छोटी, बड़ी दुकानों तक ये पेपर प्लेट पहुँचती है, परन्तु किसी को भी नहीं पता होता कि इन पेर प्लेटों के बनने के पीछे क्या गोरखधंधा चल रहा है। दिशा छात्र संगठन के सनी ने हड़ताली मजदूरों की मांगों का महत्व समझाया। मजदूरों ने मांग की कि अलग किस्म की प्लेटों में पीस रेट पर हो रही मजदूरी के भुगतान को बढाया जाए। सभी वेतन मजदूरो को तयशुदा सरकारी अवकाश पर अवकाश दिया जाए। ओवर टाइम के समय नाषते तथा नाईट षिप्फट के समय खाने की व्यवस्था मालिक की तरपफ से हो। सभी मजदूरों को पहचान कार्ड जारी हो और हाजिरी रजिस्टर की व्यवस्था हो। सभी पफैक्टरी में पीने का सापफ पानी और सापफ टाॅयलेट की व्यवस्था हो। सुरक्षा उपकरण और प्राथमिकी उपचार की व्यवस्था हो और दुर्घटना होने पर वेतन सहित इलाज की व्यवस्था हो।
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के अजय ने बताया कि प्लेट मजदूरों की लड़ाई में मेट्रो मजदूर भी शामिल है तथा हमारी लड़ाई को पूरी मालिकों की व्यवस्था के खिलापफ संगठित करना होगा। मालिकों से पैसा खाने वाली पुलिस का भी चरित्रा सापफ हो गया जब बिना किसी उत्पात के चल रही हड़ताल को हटाने पहुँच गई। यह खुद में इस मालिक-पुलिस गठजोड़ को नंगा कर देता हैं। इन पुलिस वालों को मजदूरों के बुनियादी हकों की अनदेखी तो नही दिखती है पर मालिकों की शिकायत पर जायज मांग उठा रहे मजदूरों को भगाने ये लोग पहुँच जाते हैं। मजदूरों ने खाना साथ ही खाया, गाते नारे लगाते तथा आस-पास से गुजर रहे मजदूर तक पर्चे के माध्यम से अपनी बात कहते हुये हड़ताली मजदूरों का जोश शिखर पर था। करावल नगर मजदूर यूनियन की गायन टोली में अवदेश, राहुल, गोविन्दा, नवनीत द्वारा कई क्रान्तिकारी गीत गाये गये।
मजदूरों ने भी फैक्ट्री के अंदर हो रहे शोषण से अवगत कराया। पेपर प्लेट बनाने वाले मजदूर दीपक ने बताया कि फैक्ट्री में साफ सफाई की किल्लत है। पीने के पानी के लिए एक नल है जिसमें जो गटर के पास खूदा है उसमें पानी का स्वाद भी खारा है। शम्भू ने बताया कि मालिक कम मजदूरी देकर मजदूरों का शोषण करता हैं, मालिक पेपर प्लेट बनाने के अलावा भी मजदूरों से बेगारी करवाता है। उन्होंने कहा कि मजदूर अब और अत्याचार नहीं सहेंगे।
हडताल स्थल पर ही कुछ मालिकों ने बातचीत का आग्रह किया। इससे पहले यूनियन की 14 सदस्य टीम में मालिकों को मांगपत्राक सौंपा था। हडताल स्थल मजदूरों पर की कार्यकर्ता टीम ने मालिकों को कहा जब वे आपसी राय बनाकर मजदूरों की माँगे मान लें तभी हड़ताल खत्म होगी। पेपर प्लेट मालिक ने पिछले 1 साल से मजदूरी में कोई इजाफा नहीं किया है जबकि पिछले पांच सालों में मंहगाई का कहर सबसे ज्याद मजदूरों के जीवन पर पड़ा हैं। एक महिला मजदूर ने बताया की फैक्ट्री के अन्दर साफ पानी की व्यवस्था तक नही है, साफ टायलेट नहीं है। मालिक पेपर प्लेट बनाने के अलावा भी मजदूरों से बेगारी करवाता है। मजदूर पप्पू ने बताया कि बिजली की मशीनों तथा हाई-प्रेशर की मशीनों पर काम करने वाले मजदूरों के लिए सुरक्षित उपकरणों की तथा बुनियादी प्राथामिक स्वास्थ्य व्यवस्था व दुर्घटना होने पर मुआवजे की व्यवस्था नहीं हैं। मजदूरों की एक कार्यकर्ता टीम नागरिक इलाके में संघर्ष में सहयोग जुटाने तथा समर्थन की अपील करने के लिए निकल गयी। करावल नगर की सांस्क्रतिक टोली ने कईं क्रांतिकारी गानों की प्रस्तुति भी की।
आगे यूनियन के सदस्य प्रेम प्रकाश ने बताया कि मजदूरों की मांगे पूरी तरह सरकार द्वारा तय श्रम कानूनों के दायरे में हैं । हालांकि जब फैक्टरी ही खुद अवैध् हो तो मालिकों द्वारा मजदूरों के वैध् अधिकार देने का मतलब ही नहीं हैं। प्रेम प्रकाश ने बताया की मजदूरों ने ये अधिकार लम्बे संघर्ष में मालिक वर्ग को हासिल किये हैं। इसलिए आज ये मांगे बिल्कुल जायज है। ये हालात आज सिर्फ इन सात फैक्टरियों या करावल नगर की नहीं बल्कि पूरे देश में ही हैं। आज 97 प्रतिशत मजदूर आबादी ऐसे ही अंसगठित मजदूर आबादी है। 2000 से ऊपर मौजूद पेशागत यूनियनें जैसे सीटू, इंटक, एटक आज सिपर्फ 3 प्रतिशत मजदूर आबादी का प्रतिनिधत्व कर रही हैं। आज जब देश की 93 प्रतिशत आबादी छोटे कारखाने, वर्कशापों में या घर में काम करे हैं या फिर रेहड़ी खोचमें वालों, पटरी दुकानदारों के रूप में काम कर रहे हैं। 7 प्रतिशत औपचारिक क्षेत्र में भी असंगठित मजदूरों की बड़ी आबादी मौजूद हैं। ऐसे समय में सिर्फ एक इलाका आधरित यूनियन ही मजदरों के संघर्ष का नेतृत्व कर सकती हैं। पेपेर प्लेट मजदूरों का यह संघर्ष इस प्रयोग का बेहनरीन उहादरण हैं।
ajay swamy
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें