शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

शीला जी दिल्ली में ऐसा नजारा आम है

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण स्कूलों के बारे में अखबारों में यदा-कदा कुछ पढ़ने को मिल जाता था कि हालात अच्छे नहीं हैं, लेकिन हाल ही में अपने गांव का दौरा करने पर जो कुछ देखा उससे मन तो खराब हुआ ही, तकलीफ भी बहुत हुई कि सरकारी योजनाओं का खुद समाज के लोग ही कैसे गुड़-गोबर करते हैं। जरा-सी बरसात क्या हुई कि स्कूल का मैदान तालाब में तब्दील हो गया। घुटनों-घुटनों पानी में बच्चे अंदर जाएं तो जाएं कैसे। लिहाजा महीने भर स्कूल की छुट्टी। मासूम बच्चे क्या जानें कि उनके जीवन के साथ उनके ही आसपास के लोग कैसा खिलवाड़ कर रहे हैं। यह स्कूल से छुट्टी नहीं, बल्कि उनके उज्ज्वल भविष्य से भी छुट्टी का पुख्‍ता इंतजाम है।

गांव वालों ने जो बताया उसे सुनकर तो और भी दुख हुआ। एक ग्रामीण ने बाकायदा अभिनय करके दिखाया कि कैसे 8 बजे के बजाय पास के ही गांव से दो शिक्षक 11 बजे स्कूल पहुंचते हैं। बच्चों को बोलते हैं कि घर से चम्‍मच और थाली लेकर आओ। बच्चे चम्‍मच से थाली बजाते मस्ती करते हुए स्कूल पहुंचते हैं, जहां उन्हें एक-एक चमचा चावल या कभी-कभी दाल परोसी जाती है। फिर मास्टर जी का फरमान होता है कि यह थाली और चम्‍मच वापस घर रखके आओ। गांव की गलियों में फिर से चम्‍मच और थाली का संगीत सुनाई देता है। बच्चे जब फिर स्कूल लौटते हैं तब तक इस सबमें दो घंटे गुजर चुके होते हैं और टीचर महोदय उन्हें प्यार से कहते हैं कि जाओ अब छुट्टी हो गयी। लो जी, हो गयी पढ़ाई। बरसात में तो इस सबसे भी छुटकारा। अब ये शिक्षक, जिन्हें यूपी में शिक्षामित्र कहा जाता है, किस ग्रह से आये हैं। इन्हें किस भाषा में समझाया जाये कि इन्हें किस बात की तनख्‍वाह दी जाती है और आखिर इस तरह के लापरवाह रवैये से ये किसका अहित कर रहे हैं। वैसे बताते चलें कि यह सैम्‍पल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में बिसौली तहसील के पलई गांव का है।


पढ़ाई को इस तरह से ताक पर रख दिया है उन्हीं लोगों ने जिन पर नई पीढ़ी को बेहतरीन इंसान बनाने का जिम्‍मा है। इस दयनीय हालत के लिए कौन दोषी है? ये तथाकथित शिक्षामित्र, प्रधानाचार्य, ग्राम प्रधान, गांव के लोग, प्रदेश सरकार या खुद ईश्वर? ग्राम प्रधान से पूछा कि स्कूल में पानी क्यों भरा है, समय पर मैदान में मिट्टी क्यों नहीं डाली गयी, तो जवाब मिला कि फंड नहीं था। प्रिंसीपल ने बताया कि स्कूल बनाते समय भराव डाला जाना चाहिए था, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। उन्होंने कोशिश की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। अब सुना है कि मिट्टी डालने का कार्य शुरू किया गया है। तब, जब बरसात की अनचाही लंबी छुट्टियां बच्चों की किस्मत पर पानी फेर चुकी हैं। इस जूनियर स्कूल की पढ़ाई की हालत देख कर अनेक ग्रामीणों ने अपने बच्चों को दूर दूसरे गांवों में साइकिल से भेजना शुरू किया है। जिले के शिक्षा अधिकारियों को स्कूलों की जांच पड़ताल करते रहना चाहिए।

लेखक नरविजय यादव प्रकाश फाउंडेशन के संस्‍थापक

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