एक नई सुबह में सांस लेता आजाद भारत,
हिमालय हो जिसका मस्तक,
गंगा जिसकी हो हृदय स्थल,
सागर करता हो जिसकी चरण वंदन,
आओ करे मिल हम सब इसका अभिनंदन,
रक्षा करनी है हम सबको इसकी गरिमा इसका कण-कण।।
वीरों का बलिदान:
याद रहे अनमोल समर्पण, उन वीरों का,
जिनके कारण आसमान में सूर्य उदय है,
अस्त नहीं होने पाए ये नभ से,
नीर नहीं उन मातृ-भक्तों का खून बहा है,
आजादी के परवानों ने क्या खूब जिगर दिखलाई है
अब बारी है हम सबकी,संकट की घड़ी फिर आई है,
रक्षा करनी है हम सबको इसकी गरिमा इसका कण-कण ।।
आम जनता की बेरुखी और स्वार्थ:
माना व्यस्त है जीवन का हर पल,
बड़ा कठिन है राह मगर चलना है संभलकर,
दुनियां की बेहोशी में हम भी बदले हैं,
अर्थ बनाने के चक्कर में उलझ गए हैं,
अपने ही अब लूट रहे हैं घर की अस्मत,
बाहर वाले आएंगे तो तुम क्या मुंह दिखाओगे?
अब बारी है हम सबकी,संकट की घड़ी फिर आई है,
रक्षा करनी है हम सबको इसकी गरिमा इसका कण-कण ।।
छत्रपति अंकुर
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