बुधवार, 7 दिसंबर 2022

फरहाद सूरी के हारने का मतलब

 

 फरहाद सूरी चुनाव हार गए। यह यकीन नहीं हो रहा। वे दरियागंज सीट से 244 वोटों से चुनाव हार गए हैं। जीत आप की सारिका की हुई है। उन्हें जीत मुबारक। पर फरहाद सूरी की हार का मतलब यह हुआ कि आप जनता के बीच में लगातार रहने के बाद भी पराजित हो सकते हैं। यानी काम करने का कोई मतलब नहीं रहा। वे दिन रात निजामउद्दीन,जंगपुरा, दरियागंज वगैरह में घूमते थे। वे खुद देखते थे कि विकास से जुड़े काम रूके नहीं।


बाराखंभा रोड, मिन्टो रोड और दरियागंज उनसे पहले उनकी मां ताजदार बाबर की सीट थी। वह इन सीटों पर अजेय रहीं थीं। ताजदार बाबर कश्मीरी थीं और उन्होंने शादी जिन्ना के पाकिस्तान के विचार को खारिज करके पेशावर से दिल्ली आने वाले डब्ल्यू.एम.बाबर से की थी। बाबर साहब के साथ ताज मोहम्मद भी दिल्ली आए थे। ताज मोहम्मद के साहबजादे को शाहरूख खान या किंग खान भी कहते हैं।


 खैर, ताजदार बाबर को दिल्ली की सियासत से जुड़े लोग मम्मी कहते थे। उनसे बड़ी उम्र की लोग भी उन्हें मम्मी कहते थे। कभी इन हिन्दू बहुल मतदाताओं वाली सीटों पर ताजदार बाबर और फरहाद सूरी को भरपूर प्यार मिला था। बदले में ये दोनों हर वक्त अपने मतदाताओं के साथ खड़े रहे। फरहाद सूरी दिल्ली के 2012 में मेयर भी रहे। जिंदगी भर कांग्रेस को देने वाले फरहद सूरी की इमेज बेदाग रही। माफ कीजिए, उनकी हार मतदाताओं के फैसले पर सवालिया निशान खड़ा करती है। पर क्या करें,अब दिल्ली भी पहले वाली कहां रही।

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