● वैवाहिक बलात्कार..!!!
हमारे देश में शादी के रिश्ते को विश्वास, प्रेम, सम्मान, और एक पवित्र बन्धन के रूप में देखा जाता है। जहां एक तरफ ये समाज और कानून दो लोगों (लड़के और लड़की ) को एक दूसरे के साथ रहने के लिए वैध मान्यता प्रदान करता है, वही दूसरी तरफ इस रिश्ते के कुछ ऐसे भी पहलू हैं, जो इस शादी जैसे मजबूत रिश्ते को खोखला करते नज़र आते हैं! जैसे दहेज का लेन देन, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और एक दूसरे से अलगाव हो जाना ! पर मैं आज उस संवेदनशील मुद्दे पर बात कर रहा हूं, जिसके बारे में बात करना अपने आपको ही एक गुनहगार की तरह कटघरे में खड़ा करता है, जिसको सिर्फ सहा जाता है, पर किसी से कहा नहीं जाता है..!!
जी हाँ ! वैवाहिक बलात्कार ! सबसे पहले में उन लोगों को स्पष्ट कर दूँ जो लोग इस शब्द से अछूते हैं!
"पति या पत्नी के बीच एक दूसरे की मर्ज़ी के बिना या जबरन बनाये सम्बन्ध को वैवाहिक बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है" पर हमारा क़ानून या समाज इसको अपराध नहीं मानता है। इसकी जगह घेरलू हिंसा या यौन उत्पीड़न का केस दर्ज़ करके सामने वाले को दण्डित करने का हमारे कानून में प्रावधान है !
वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप कोई नई चीज नहीं है। हमारे देश में पत्नी शादी के बाद अपने पति को परमेश्वर मानने के लिए बाध्य है और पति अपनी पत्नी पर अपना एकाधिकार ज़माने के लिए तैयार है, फिर चाहे उसका पति उसकी सहमती-असहमति की या उसकी भावनाओं का ख्याल करे या ना करे फिर भी वो चुप चाप ऐसी यातनाओं को सहती रहती है, क्यूंकि हमारे पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की ही इच्छा को सर्वोपरि माना गया है। हर एक महिला अपना परिवार बचाना चाहती है, अपने बच्चों का अच्छा भविष्य चाहती है, और समाज में अपने परिवार और पति की प्रतिष्ठा चाहती है। जिसकी कीमत उसे ऐसी मानसिक और शारीरिक यातना सहकर चुकानी पड़ती है, इसलिए परिवार और समाज में अपनी मर्यादा और अपने आत्मसम्मान की खातिर मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार जैसे मुद्दों पर चुप ही रहती है !
लेकिन मैरिटल रेप या जबरन संबंधों का एक महिला के ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्तर पर भी गहरा असर पड़ता है। महिलाओं के लिए अपने पति के साथ सम्बन्ध प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक होता है, पर ये सम्बन्ध उसको शारीरिक यातना देकर या मर्ज़ी के बिना हो तो शरीर के साथ उसका दिल भी टूट जाता है, फिर उसके दिल में उसके पति के लिए ना प्यार बचता है, ना सम्मान, रह जाती है सिर्फ विवशता, खोखलापन, अविश्वास और खुद को सिर्फ भोग की वस्तु समझने की भावना जो कि बहुत दुःखदायी है ! चूंकि महिलायें इस बारे में चुप ही रहती हैं, इसलिए अंदर ही अंदर घुटती हैं, उनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है, उनके अंदर चिढ़चिड़ेपन की भावना पैदा हो जाती है ! जिसे वो मानसिक और शारीरिक बिमारियों का शिकार हो जाती है, और कुछ मामलों में महिलाओं का वैवाहिक बलात्कार जैसी यातनायें सहने के बाद उनका शादी जैसे रिश्ते से विश्वास उठ जाता है, जिसका दोषी सिर्फ हमारा खोखला समाज है।
अंत में बस इतना कहना चाहता हूँ कि विवाह नामक संस्था को जितनी पवित्रता हमारे समाज ने बख्शी हुई है, यदि हम उस पवित्रता का भी मान रखने का प्रयास करेंगे तो विवाहित लोगों के जीवन से वैवाहिक बलात्कार जैसे कटु विकार स्वतः ही समाप्त हो जाएँगे और विवाह नामक संस्था की गरिमा जो समय के साथ साथ फीकी पड़ रही है शायद बरकरार रह जाए..!!
(बड़क साहब)✍️
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