कृष्ण और सुदामा का प्रेम बहुत ही गहरा था, प्रेम भी इतना कि कृष्ण सुदामा को रात दिन अपने साथ ही रखते थे। कोई भी काम होता था तो वेह दोनों साथ-साथ ही करते।
एक दिन दोनों वन संचार के लिए गए और रास्ता भटक गए। दोनो भूखे प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे, उन्होने देखा पेड़ पर एक ही फल लगा हुआ है। कृष्ण जी ने घोड़े पर चढ़ कर फल को अपने हाथ से तोड़ा, फिर कृष्ण जी ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा सुदामा को दे दिया। सुदामा ने वह टुकड़ा खा लिया और बोले 'बहुत स्वादिष्ट है। मैने ऐसा फल पहले कभी नहीं खाया है, मुझे एक टुकड़ा और दे दो ओर दूसरा टुकड़ा भी सुदामा को मिल गया।
दो टुकडे खाने के बाद सुदामा ने एक टुकड़ा और कृष्ण जी से मांग लिया। इसी तरह बारी बारी सुदामा ने पांच टुकड़े कृष्ण जी से मांग कर खा लिए। जब सुदामा ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो कृष्ण जी ने कहा। यह तो सीमा से बाहर है, आखिर मैं भी तो भूखा हूँ। मेरा तुम से बहुत प्रेम है, पर तुम मुझ से प्रेम नहीं करते हो क्या?* और कृष्ण जी ने वह आखरी फल का टुकड़ा अपने मुंह में रख लिया।
मुंह में रखते ही *कृष्ण जी ने उसे बाहर थूक दिया, क्योंकि वह बहुत ही कड़वा था।* कृष्ण जी बोले 'तुम पागल तो नहीं हो, इतना कड़वा फल तुम कैसे खा गए? उस पर सुदामा का उत्तर था, 'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले। उस से मै एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूँ? मै सब टुकड़े इस लिए लेता गया, ताकि आप को पता ना चले।
बिल्कुल ऐसे ही सतगुरु ने हमे ज़िंदगी भर की खुशियाँ दी है और हमे अगर कभी कोई दुख आ जाए तो हमे उस के लिए गुरु से नाराज नहीं होना चाहिए। हमे उस पल के लिए भी गुरू का शुकराना ही करना चाहिए और हंसते हंसते उस दुख को पार करना चाहिए। पर हम इंसान थोड़ा सा भी हमारी जिंदगी में दुख आ जाए, तो हम घबरा जाते हैं डोल जाते हैं। और हम अपने रास्ते से भटक जाते हैं, भजन सुमिरन करना छोड़ बैठते हैं।
हमें दुख मै घबराना नहीं चाहिए, बल्कि परमार्थ की राह पर चलते हुए हमें निडर होकर भजन सिमरन करना चाहिए। हमे उस कुल मालिक को याद करते रहना चाहिए, दुख और सुख तो आते जाते रहते हैं। जब दुख का समय टल जाता है, फिर हमारी जिंदगी में सुख आ जाता है। और फिर हमारा सुख चैन चला जाता है तो दुख का समय आ जाता है। इसलिए हमें घबराना नहीं है और समय निकाल कर भजन सिमरन पर बैठ कर नाम की शब्द की कमाई करते रहना है।
इस लिए हमें समझाने के लिए कबीर साहिब जी ने भी बाणी में लिखा है। दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय॥
*कबीर दास जी कहते हैं, कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं। पर सुख में कोई नहीं करता, यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों!
शब्द मनिये गुर पाइए
विचों आप गवाइ,
अनदिन भगति करे सदा
साचे की लिव लाइ,
नाम पदार्थ मन वसिआ
नानक सहज समाइ ।।
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