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और दुख का परिमाण इतना था कि सचिन तेंडुलकर मैन ऑफ द मैच का अपना पुरस्कार लेने भी नहीं आये।
राजसिंह डूंगरपुर ने तत्कालीन कोच अंशुमान गायकवाड़ जो इशारा किया कि वह सचिन को प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन सेरेमनी में आने को कहें। मगर गायकवाड़ ने कहा- सर, वो नहीं आ सकता। वह रो रहा है। डूंगरपुर स्वयं सचिन के पास गए और उन्हें आने को कहा। यह भी कहा की तुम सारा दोष अपने ऊपर क्यों लेते हो! तुमने एक असंभव को संभव करने का प्रयास तो किया ही था।
सचिन ने कहा- नहीं सर, मैच मैंने ही गंवाया है।
सचिन किसी हाल प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन में नहीं आये।
ऐसा नहीं है कि यह दुख कुछ नया था। क्रिकेट के शैदाई सरहद के दोनों जानिब ही इस दुख से परिचित हैं। खेल हार-जीत का ही नाम है। मगर यह हार कुछ खास थी। देर तक, दशकों तक की टीस दे जाने वाली।
बात सकलैन की करते हैं। अपने घर की छत पर अपने भाइयों को टेबल टेनिस की प्लास्टिक गेंद फेकते हुए इस बच्चे ने गौर किया कि गेंद को अंगूठे से धकेल देने पर गेंद ऑफ स्पिन के एक्शन में ही दूसरी ओर घूम जा रही है। पहले तो उसे लगा कि यह हवा के कारण हो गया। मगर दो-चार बार ऐसा करने पर उसने देखा कि यह कुछ अलग है। बच्चे ने इसे जलेबी नाम दिया (बाद में जब मोइन ने इसे ‘दूसरा’ कह कर पुकारा तो सकलैन ने अपनी अगली खोज का नाम जलेबी दिया)
जलेबी गेंद इतनी अलग थी कि 18 साल की उम्र में ही सकलैन को ग्रीन कैप पहनने का सौभाग्य मिल गया। सकलैन कहर बरसाने लगे।
गैर-परंपरागत ऑफ स्पिन सचिन की जान को बवाल रही ही है, इसकी तसदीक सचिन की क्रिकेट को ध्यान से देखने समझने वाले करते हैं। सकलैन और बाद में सईद अजमल ने उन्हे बारहा तंग किया है। यह रिकॉर्ड में है।
सचिन और सकलैन की भिड़ंत दिलचस्प होती रही थी। याद आता है कि शारजाह के एक मुक़ाबले ने सचिन को आउट करने के बाद सकलैन ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखाया था और फिर दूसरी पारी में पाकिस्तान के अंतिम विकेट के लिए जब सकलैन बैटिंग करने आए तो सचिन ने अजहर से लगभग गेंद छीनकर बौलिंग की थी और सकलैन को न सिर्फ एलबीडबल्यू किया था बल्कि धराशायी भी कर दिया था। बाद में सचिन ने सकलैन को नसीहत देते हुए कहा था कि ‘पियक्कड़ मछेरों की भाषा छोड़ दो, बहुत आगे जाओगे।’ सकलैन ने पियक्कड़ मछेरो की भाषा छोड़ दी थी।सकलैन बहुत आगे गए।
मैच पर आते हैं।चेन्नई टेस्ट की आखिरी पारी में भारत को जीत के लिए 271 रन की दरकार थी। सकलैन पहली पारी में भी कहर बरपा चुके थे। अपने पाँच विकेट में उन्होने सचिन को शून्य पर बाहर भेजा था। दूसरी पारी जब शुरू हुई तो अपना पहला टेस्ट खेल रहे सदगोपन रमेश 5 रन के स्कोर पर राहुल द्रविड़ के आने का रास्ता साफ कर दिया और 6 रन के स्कोर पर लक्ष्मण ने सचिन के आने का रास्ता साफ कर दिया।
271 के स्कोर का पीछा करते हुए भारत जैसे तैसे 50 तक पहुंचा ही था कि स्विंग सुल्तान वसीम अकरम ने ‘द वाल’ कही जाने वाली दीवार के सरिये उखाड़ दिये। भारत 50 पर 3.
मोहम्मद अजहरुद्दीन उन दिनों या तो गुस्से में सत्तर गेंदों पर शतक पीट जाते थे या फिर विरोधी टीम को कैच प्रैक्टिस कराते थे। इस मैच में उन्होने सकलैन को एलबीडबल्यू की प्रैक्टिस करायी और 7 के व्यक्तिगत स्कोर पर वापस हुए। सकलैन उन दिनों क्रिकेट की सिलेबस के बाहर का सवाल थे। वह कॉपीबुक क्रिकेट खेलने वालों को क्या ही समझ आते। सो 2 के स्कोर पर दादा गांगुली भी पवेलियन रवाना हो गए। आधी भारतीय टीम लंच के थोड़ी देर बाद तक ड्रेसिंग रूम में थी। 82 पर 5. जीत से 189 रन दूर। जीत तो दूर कि बात थी, अब बस हार का अंतर कम करना था। मगर एक योद्धा खड़ा था। सचिन तेंदुलकर। सचिन को चौतरफा हमले का सामना करना था। पाकिस्तान की तेज तिकड़ी, सकलैन की फिरकी, चेन्नई की गर्मी और दूसरी तरफ से तेजी से गिरते जा रहे विकेट।उन्होने भरसक कोशिश की कि मोंगिया को स्ट्राइक से दूर रखा जाये। हालाकि मोंगिया ने बहुत अच्छा साथ दिया और तीन घंटे से ऊपर खड़े रहकर 52 रन बनाए।
रन बने तो पारी बनने लगी। 100 लगे। 150 लग गए। दोनों खिलाड़ी अच्छे ताल मेल से आगे बढ़ने लगे। मगर तभी सचिन पर पांचवा हमला हुआ। सचिन की पीठ में दर्द का पहला प्रवेश इसी मैच में हुआ। उनके पीठ और ऊपरी कंधे में दर्दीली जकड़न आ गयी। उन्हें फिजियोथेरेपी के लिए बाहर जाने की नसीहत आई। मगर आज यह खिलाड़ी कुछ अलग ही सोच कर बैठा था। उसने दर्द को धता बताया और खेलना जारी रखा। रन 218 तक पहुँच गए थे। और अब पाकिस्तानी टीम के चेहरे पर परेशानी दिखने लगी थी। जीत के लिए महज 53 रन की जरूरत थी और विकेट 5 बचे हुए थे।
मगर यहीं किस्मत ने पलटा खाया। या यूँ कहें जो सकलैन कहते हैं – उस दिन अल्लाह हमारे साथ था। नयन मोंगिया, सचिन पर से दबाव हटाने के चक्कर में शॉट लगा बैठे और वकार के हाथों कैच हुए। छठा विकेट गिरा।
खेल फिर भी चाय के बाद का पूरा बचा हुआ था। हालाकि सचिन अब समझ गए थे कि खेल जल्द न खत्म किया गया तो या तो ये पीठ दर्द जीत जाएगा और फिर बाकी के तीन पुछल्ले बल्लेबाजों को आउट कर पाकिस्तान। यानी दोनों सूरतों में पाकिस्तान।
यहीं से सचिन ने दूसरा तेवर दिखाया। अपना स्टांस बदला और ताबतोड़ क्रिकेट खेलने लगे। अगले पाँच ओवर में देश ने 34 रन जोड़ दिये। यानी स्कोर 254 पहुंचा दिया। अब जीत के लिए महज 17 रनों की जरूरत थी।
सचिन थक चुके थे। उन्हें खेल खत्म करने की जल्दी थी। सकलैन गेंदबाजी पर आए, मगर अपने सबसे मारक हथियार दूसरा फेकने से डर रहे थे। उन्हें सचिन के तेवर का अंदाजा था। मगर कप्तान वसीम ने उन्हें अपना यही अस्त्र इस्तेमाल करने की ताकीद की। पाँचवी गेंद को सीमा रेखा से बाहर पहुंचाने के चक्कर में सचिन गेंद को मिस टाइम कर गए। गेंद दूरी तरफ जाती हुई वसीम अकरम के सुरक्षित हाथों मे समा गयी। जीत के लिए वांछित 17 रनों से दूर सचिन आंखो मे निराशा लिए लौटे। हालाकि लौटते हुए भी उन्हे इस बात का अंदाजा नहीं होगा जिस बात को सोच वसीम अकरम हाथ में कैच पकड़े मुसकुराते हुए सकलैन की ओर बढ़े आ रहे थे।
खैर, खेल सचिन के जाने के बाद 20 मिनट भी नहीं चला। पाकिस्तानी टीम ने वह 3 विकेट महज 4 रनों के भीतर समेत दिये। जोशी, कुंबले और श्रीनाथ ने मिलकर बाद में 4 रन जोड़े। भारत वह टेस्ट 12 रनों से हार गया।
बात वसीम के मुस्कुराहट की।
वसीम ने एक दफा भारतीय ड्रेसिंग रूम में मज़ाक में एक बात कही थी। बस सचिन आउट हो जाये। बाकी की पूरी टीम हम 50 रनों मे समेट देंगे। यहाँ तो फिर भी 3 विकेट ही समेटने थे। विकेट समेट दिये गए।
#दुःख
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